बया आज उदास है
बुधवार, 18 मार्च 2009
बया आज उदास है।
नहीं गा रही वह आज
एक भी गाना
नहीं दिया उसने अभी तक
बच्चों को अपने
पानी दाना।
नहीं फड़फड़ाए उसने
अपने पंख
एक बार भी
नहीं खुजलाया उसने
अपनी चोंच को
बबूल की टहनी पर
एक बार भी।
वह देख रही है बस
एकटक
लगातार
निश्चल भयभीत
बेबस और
सहमी हुई आँखों से
अपनी ओर धीरे धीरे
बढ़ते चले आ रहे
विशालकाय
लौह मानव की ओर।
जो अपनी लम्बी भुजाएं ताने
नुकीले पंजों को हवा में लहराता
और अपनी जीभ को लपलपाता
सारे जंगलों की हरियाली
पहाडों की ऊँचाई
और नदियों की गहराई
को रौंदता कुचलता
बढ़ा आ रहा है
उसी की ओर
लगातार लगातार।
बया आज उदास है।
*********
हेमंत कुमार
नहीं गा रही वह आज
एक भी गाना
नहीं दिया उसने अभी तक
बच्चों को अपने
पानी दाना।
नहीं फड़फड़ाए उसने
अपने पंख
एक बार भी
नहीं खुजलाया उसने
अपनी चोंच को
बबूल की टहनी पर
एक बार भी।
वह देख रही है बस
एकटक
लगातार
निश्चल भयभीत
बेबस और
सहमी हुई आँखों से
अपनी ओर धीरे धीरे
बढ़ते चले आ रहे
विशालकाय
लौह मानव की ओर।
जो अपनी लम्बी भुजाएं ताने
नुकीले पंजों को हवा में लहराता
और अपनी जीभ को लपलपाता
सारे जंगलों की हरियाली
पहाडों की ऊँचाई
और नदियों की गहराई
को रौंदता कुचलता
बढ़ा आ रहा है
उसी की ओर
लगातार लगातार।
बया आज उदास है।
*********
हेमंत कुमार
9 टिप्पणियाँ:
बया आज उदास है
Hemant ji
Bahoot saarthak, sach aur prakriti ki vedna ko sahi rang mein ubhaara hai aapne. Sachmuch aaj maanav is prakriti ka sabse badaa dushman bana huva hai
सच, लौह मानव का इस तरह वन को बर्बाद कर के, वन्य जीवन को नष्ट कर देना....आपकी ऐसी सोच के लिये आपको बधाई।
बया की उदासी के संग पर्यावरण की महत्ता दर्शाकर एक
महत्वपूर्ण सन्देश दिया .......बहुत बढिया
बया की उदासी के बहाने एक गंभीर तथ्य को खूबसूरत ढंग से उजागर करने के लिए साधुवाद.
बहुत ही सुन्दर रचना....
Bohot saarthak rachna....ek kavita bhejti hun, jise maine apni ek shrot film me voice over kee taurse padhee thi...mai kavi yaa lekhika to nahee hun, phirbhi gustaqee kar rahee hun..
Copy paste karke phirhee theek rahega, haina?
Anek shubhkamnayen!
मत काटो इन्हें !!
मत काटो इन्हें, मत चलाओ कुल्हाडी
कितने बेरहम हो, कर सकते हो कुछभी?
इसलिए कि ,ये चींख सकते नही?
ज़माने हुए,मै इनकी गोदीमे खेलती थी,
ये टहनियाँ मुझे लेके झूमती थीं,
कभी दुलारतीं, कभी चूमा करतीं,
मेरे खातिर कभी फूल बरसातीं,
तो कभी ढेरों फल देतीं,
कड़ी धूपमे घनी छाँव इन्हीने दी,
सोया करते इनके साये तले तुमभी,
सब भूल गए, ये कैसी खुदगर्जी?
कुदरत से खेलते हो, सोचते हो अपनीही....
सज़ा-ये-मौत,तुम्हें तो चाहिए मिलनी
अन्य सज़ा कोईभी,नही है काफी,
और किसी काबिल हो नही...
अए, दरिन्दे! करनेवाले धराशायी,इन्हें,
तू तो मिट ही जायेगा,मिटनेसे पहले,
याद रखना, बेहद पछतायेगा.....!
आनेवाली नस्ल्के बारेमे कभी सोचा,
कि उन्हें इन सबसे महरूम कर जायेगा?
मृत्युशय्यापे खुदको, कड़ी धूपमे पायेगा!!
शमा
Aaashaa kartee hun, ki aapko achhee lagegee...rachnaa shayad nahee, lekin uske bhav...kyonki mai khud na kavi hun naa lekhikaa..!
Hemantji,
Aapne poochha tha ki mai kis kshetr me kaam karti hun.
Mere jo 13 blogs hain, un sab kshetrome kaam karti hun, jaiseki" gruhsajja"," baagwaanee"(Interior tatha landscape designer hun), "fiberart"( jisme linen designing bhee karti hun), recycling,( chindi chindi), "lizzat"(abhi is blogpe kuchh post nahee kiya hai, lekin paak kalaake varg letee rahee hun), bukaron ke liye kuchh kaam karneki koshish me rehtee hun...iske alawa thoda lekhan, English, Hindi, tatha Marathime.
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