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बेटा{कहानी}

बुधवार, 31 जुलाई 2024

आज मेरे आदरणीय पिता जी स्व०श्री प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव जी की आठवीं पुण्य तिथि है .उनको स्मरण करते हुए मैं   क्रिएटिवकोना पर आज उनकी एक कहानी “ बेटा “प्रकाशित कर रहा हूँ .



कहानी

 



बेटा

 

                    


कुलवीर सिंह गीले तौलिए से सेबों को रगड़ रगड़ कर पोंछ कर,टोकरी में करीने से लगा ही रहा था कि चौथी बाहर वह लड़की फिर उस की दुकान में दाखिल हुई। वह उसे देखकर बेतहाशा चिढ़ गया। अभी सुबह से बोहनी बट्टा कुछ नहीं हुआ था। और पता नहीं किस गली की यह लौंडि़या तीन बार उस से उधार फल लेने आ चुकी थी। म्युनिसिपैलिटी आवारा कुत्तों को पकड़ने का इंतजाम तो करती है मगर इन आदमीनुमा पिल्लों को पकड़ने की वह कोई जरूरत नहीं समझती............वह मन में कई बार भुनभुनाया था। उसके जी में आया कि वह उसे एक तमाचा रसीद करता हुआ कहे, फिर आएगी उधार मांगने ?

            


लेकिन इसकी नौबत ही नहीं आई। इस बार लड़की के हाथ में एक रूपए वाला नोट चमक रहा था। नोट एकदम नया था जैसे अभी-अभी छप कर निकला हो। कहीं जाली तो नहीं है, उस ने नोट को हाथ में ले कर अविश्वास के साथ कई बार उलटा पलटा,लेकिन कहीं कोई गड़बड़ी नहीं थी। कुलवीर सिंह ने लिफाफे में सेब रखे और लड़की को झुका हुआ कांटा दिखा कर कहा, पाव भर से ज्यादा दे रहा हूं। फिर उस ने लिफाफा उस के हाथ में दे दिया। उसे डर था कहीं लड़की उसी जगह लिफाफे के भीतर से सड़े हुए सेबों को देख न ले।लेकिन लड़की के मन में शायद इस संदेह के लिए जगह न थी। सेबों के हाथ में आते ही वह कुलांचे मारती हुई सामने की गली में गायब हो गई। कुलवीर सिंह ने संतोष की सांस ली।

          

 

फिर रोज के ग्राहक आने शुरू हो गए।उस लड़की की बात वह करीब-करीब भूल सा गया।

            


तीसरे पहर की डाक में उसे घर से छोटे भाई महिंदर की चिठ्टी मिलीआप ने आने के लिए लिखा था,क्यों नहीं आए? मेरी पढ़ाई करीब-करीब छूटने वाली है क्यों कि मेरे पास किताबें नहीं हैं। मां दिन प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है।यहां दवा का कोई इंतजाम नहीं है।आप ने जो फल भेजे थे आधे से भी ज्यादा सड़ चुके थे।

            


कुलवीर सिंह का मन रेलवे अधिकारियों के प्रति रोष से भर उठा--- इनके हाथों उसे हमेशा नुकसान उठाना पड़ता है। घर भेजे गए फलों की ही बात नहीं, खुद उस की दुकान पर आने वाली पेटियों को अक्सर रास्ते में ही खोल डाला जाता है। कभी-कभी तो माल को पता नहीं कहां अटका देते हैं कि यहां पहुंचने पर उस के खोलने से पहले ही भीतर की सड़ी हुई बास बाहर फूटने लगती है। तब भला वह ग्राहकों पर अपने हाथ की कारीगरी न दिखाए तो कैसे काम चले ? घाटे का सौदा ले कर यह छोटी सी दूकान कितने दिन चल सकती है।

            


इस बात का ख्याल आते ही सुबह वाली लड़की अचानक फ़िर उसकी आंखों में आ खड़ी हुई। किस खूबी से उस ने ऊपर वाले अच्छे सेब के नीचे दो एकदम गले हुए सेब छिपा दिए थे।यह तय बात है कि मरीज को पहले ऊपर वाला अच्छा सेब खाने का दिया जाएगा। जब तक दूसरे सेबों की बारी आएगी वे गल चुके होंगे। हां-हां सेब तो एकदम कच्चा और नाजुक माल है। देखते न देखते सड़ने शुरू हो जाते हैं। कहीं दबा पड़ा होगा और वे गल गए होंगे। इस के लिए भला मैं क्या कर सकता हूं। वह मन ही मन जवाब तैयार कर लेता है।

            


कहना शायद गलत हो क्योंकि यह तो बहुत पहले से तैयार किया हुआ है।शायद फलों की दूकान खोलने के दिन से ही।

            


कुलवीर सिंह ने चिट्ठी टाट के नीचे दबाई और सेबों तथा मौसम्मियों को फिर संवारने लगा।बाज ग्राहक बड़े ऊलजुलूल किस्म के आ जाते हैं। जरूरत चाहे पाव भर अमरूद की भी न हो मगर तमाम टोकरियों को इस बुरी तरह उलटपलट डालते हैं कि उन्हें तरतीब से रखने में फिर उस का बड़ा वक्त बरबादद होता है। सेबों की आजकल बेहद कमी थी।उसके पास ज्यादातर हरे खट्टे सेब रह गए थे। मीठे सेब कम आते थे और जो आते वे पहुंचते ही बिक जाते थे। वह एक-एक सेब को बड़ी सावधानी से पोंछता और लगाता। यह भी एक कला है जिसे उसने किसी से सीखा नहीं, धीरे-धीरे अनुभव, द्वारा स्वयं जान गया था। वह सेबों के गुलाबी हिस्से को बाहर की ओर रखता था। आगे की ओर बडे-बड़े और उम्दा किस्म के सेब रहते। सेबों के पिरामिड पर टोकरी के सब से बड़े और खूबसूरत सेब को स्थान मिलता। इन सब के बीच सड़े हुए, दागी और कीड़े खाए सेबों को वह बड़ी होशियारी से छिपा देता। और उन्हें अच्छे सेबों के साथ इस तरह मिलाकर तोलता कि ग्रहक को जरा भी संदेह न होता। कभी-कभी ग्राहक अपने हाथ से फल उठाने लगते तब वह मुस्करा कर उन की पसंद की दाद कुछ इस लहजे में देता कि उन का हाथ लगाने का उत्साह खुद ठंडा पड जाता और वे उसी की इच्छा पर सब कुछ छोड़ देते। इस तरह एक ओर का घाटा दूसरी तरफ पूरा हो जाता।

            


कुलवीर सिंह ने मिंटो रोड पर यह दुकान हाल में ही शुरू की है।पहले वह ठेला लगाता था। शुरू में तो उसे लगातार ऐसा घाटा होता चला गया  कि उस ने फलों की दुकानदारी का विचार ही समाप्त कर दिया था।मगर धीरे-धीरे इस बिजनेस के गुर मालूम हुए तो वह जम गया।पहले सिर्फ मौसमी फल रखता था। अब कम या ज्यादा हर किस्म के फल बेचता है। अगले महीने से तो उस ने सूखे फल और मेवे भी लगाने का इरादा कर लिया है। उस पर छोटे भाई को बैठा देगा, भाई आएगा तो मां भी आएगी और तब वह निश्चय ही उस के लिए कुछ कर सकेगा।और कुछ नहीं अस्पताल तो है ही।

           


उस ने टाट के नीचे से छोटे की चिठ्ठी निकाली और एक बार फिर पढ़ गया। मां बीमार है।आज से नहीं,बल्कि पूरे दो बरस से। सूख कर कंकाल हो गई है। न तो अभी तक वह उस के इलाज भर को पैसे जुटा सका और न उसे अपने पास ही रख सका है। घर पर सभी कच्चे कमरे बैठ चुके हैं। बस एक खपरैल का ओसारा शेष है। जिस के एक कोने में मां की चारपाई लगी रहती है। मां से मिले उसे कई महीने हो गए हैं। न जाने कैसी हो गई होगी, शायद पहचानना भी मुश्किल हो जाए। मंहिदर उसे कमर के सहारे बैठा कर पानी पिलाता है। और अचानक कुलवीर सिंह की आंखे गीली हो आईं।

           


दे दो न! मां खुद आने को कहती थी मगर उस से तो बैठते भी नहीं बनता।हां, लड़की ने यही तो कहा था। जैसे वह उस की मां को पहले से जानता हो, उस ने कठोर स्वर में उत्तर दिया था,“ चल हट मैं तुझे या तेरी मां को नहीं जानता!

            


लड़की दुबारा आई तो सहमी हुई सी दूर एक कोने में खड़ी रही। उस की आंखें टोकरी में लगे हुए गुलाबी सेबों पर गड़ी हुई थीं। जैसे वह उन्हें आंखों में फंसा कर ले भागना चाहती हो।



कुलवीर सिंह को सुबह बोहनी के वक्त यह खोट खल गई थी। इस बार वह बोला तो कुछ नहीं मगर जिन आंखों से उसे तरेर कर देखा उन्हें सहन कर पाना शायद उस छोटी लड़की की हिम्मत से बाहर था। वह धीरे से खिसक गई।

 


तीसरी बार उस ने दूर से ही डरते डरते कहा, “मां ने सेबों का भाव पूछा है?”



 फिर वह रूपया ले कर आई तो उस ने सेब तोल दिए थे।



सेठ, यह नोटिस है!कुलवीर सिंह सुबह दुकान का ताला खोल रहा था कि म्युनिसिपैलिटी के एक चपरासी ने उस की ओर एक कागज बढ़ाते हुए कहा।

           


उसे लेते वक्त कुलवीरसिंह का हाथ कांप गया, यह गुमटी उठा लेने का नोटिस था। छः सात महीने पहले जब उस ने यहां लकड़ी की गुमटी खड़ी की थी, तभी म्युनिसिपैलिटी के मास्टर प्लान में इस सड़क को चौड़ी करने की बात आ चुकी थी।मगर प्लान में जल्दी हाथ लग जाएगा, उसे ने सोचा भी न था। अब गुमटी कहां हटाई जाए,  कहीं भी तो गुंजाइश नहीं है। कुलबीर सिंह ने सपनों का जो इतना ऊंचा महल खड़ा किया था, वह क्षण भर में बालू के घरौंदे सा ढहता नजर आया। उस ने चपरासी के हाथ पर फैली हुई पियनबुकपर कांपती उंगलियों से दस्तखत कर दिए।

            


दिन भर कुलवीर सिंह खोया-खोया सा रहा। न उस ने भाटिया रेस्तरां से चाय मंगवाई और न दोपहर का खाना खाया। उस का मस्तिष्क इतना असंतुलित हो उठा कि वह क्या तोल रहा है, कितना तोल रहा है इन बातों में भी गलतियां करने लगा। किसी की डलिया में अनार की जगह मौसमी डाल दी तो किसी को पाव की जगह आधा किलो तोल दिया। कौन कितने पैसे दे रहा है, वह क्या वापस कर रहा है- इसे ले कर भी ग्राहकों ने उसे खूब बेवकूफ बनाया। आज का दिन उसे बेहद लंबा महसूस हुआ। सूरज जैसे ढलना ही नहीं चाहता था। किसी तरह शाम हुई तो उसने रोज की अपेक्षा जल्दी ही दुकान बंद कर दी। वह किसी पार्क में पहुंच कर एक कोने में चुपचाप लेट जाना चाहता था। अपनी बीमार मां, परेशान महिंदर और ठेले पर गली-गली घूमने का ख्याल---कुछ देर के लिए वह इन सब को विस्मृति के गर्त में दबा देने को कोशिश करेगा।

            


जब वह पहली गली में मुड़ रहा था, अचानक उसे फिर वही लड़की नजर आ गई। हालांकि उस का चेहरा पीला था और आँखों में से एक अजीब पीड़ा और उदासी झांक रही थी। मगर वह उसे देखते ही भभक उठा, इसी के अपशकुन से उस पर अकस्मात् इतनी बड़ी मुसीबत भहराई है। कितनी बुरी होती है सुबह ही सुबह बोहनी की खोट! उस के जी में आया कि आगे बढ़ कर उस का मुंह नोच ले, लेकिन लड़की शायद उसके मन का भाव पहले ही ताड़कर रफूचक्कर हो चुकी थी, कुलवीर सिंह चुपचाप पार्क की ओर बढ़ने लगा।

           


कुछ ही दिन बाद एक सबुह कुलवीर सिंह पार्सलघर में एक पेटी के उपर झुका हुआ उस के सही सलामत होने की जांच कर रहा था कि किसी ने पीछे से उस के कंधे पर हाथ रखा। उस ने चौंक कर सिर उठाया तो देखा, उस का पूर्व परिचित ओवर सियर बिशनलाल खड़ा मुस्करा रहा था। उस ने छूटते ही कहा, बिशन, तुम्हारे रहते मैं अपनी दुकान हटाने के कल मजबूर किया जाऊं,करेगा कोई हमारी दोस्ती का यकीन?”

            


बिशन लाल हंस कर बोला,“तुम्हारी बात से लगता है कि जैसे मैं ही मास्टर प्लान लागू करने जा रहा हूं।



देखो बिशन, तुम्हारा जोर और रूतबा मुझ से छिपा नहीं है तुम चाहो तो अब भी मेरे लिए कोई सूरत निकाल सकते हो। क्या तुम जानते नहीं कि मुझे सचमुच फिर उसी ठेले पर आना पड़ा तो मैं बरबाद हो जाऊंगा।इस बार कुलवीर सिंह कुछ मायूस हो कर बोला।



कुलबीर, तुम ने यह कैसे समझ लिया कि मैं तुम्हारे बारे में यह सब जान कर भी खामोश बैठा रहूंगा।कह कर बिशन लाल पेटी को गौर से देखने लगा। कुलवीर सिंह की आंखों में आशा की चमक आ गई। उस ने बेताबी से आगे बढ़ कर कहा,“देखते क्या हो, रामगढ़ के नायाब मीठे सेब हैं। महीनों की लिखा-पढ़ी के बाद यही एक पेटी मिल सकी है।

           


होंगे नायाब, मेरे किस काम के?” बिशनलाल एक आंख दबा कर मुस्कराया। कुलवीर सिंह कुछ हड़बड़ा कर बोला, “पूरी पेटी तुम्हारे लिए हाजिर है। मगर इस तरह तुम्हें उठा कर दे दूं तो कल को तुम्हीं गाली दोगे,“क्या सड़े हुए सेब दिए हैं? कसम खा कर कहता हूं, आधे से ज्यादा दागी और गले हुए निकल जाते हैं। कल इन में से उम्दा उम्दा छांट कर तुम्हारे लिए डलिया पेश करूंगा।फिर जैसे गले में अटके हुए थूक को निगल कर बड़ी मुश्किल से अपने मतलब की बात पर आने की कोशिश की खैर इसे छोड़ो, यह सब तो तुम्हारा है ही यह बताओ कि मुझे कहां ठिकाना दे रहे हो?”

           


कोशिश करूंगा कि मेडिकल कालिज के सामने म्युनिसिपैलिटी की दुकानों में तुम्हें जगह मिल जाए।बिशनलाल ने अपने ओहदे के मुताबिक गंभीर लहजे में कहा,



वहां तो तिल धरने की भी जगह नही हैं”?  अचानक कुलवीर सिंह की आंखों में निराशा तैर उठी।

           


मैं जगह करूंगा न। बिषनलाल बोला,“एक दुकानदार पर सालों का टैक्स बकाया था, दो तीन दिन हुए उसे दुकान से बेदखल किया गया है तुम कल किसी वक्त मेरे पास चले आना,बडे़ बाबू के यहां चले चलेंगे।बस, उनके खाने पीने का ध्यान रखना। और फिर इशारों ही इशारों में सब तय हो गया।

           


लौटते वक्त कुलवीर सिंह रिक्शे पर नहीं था। जैसे इंपाला कार पर उड़ रहा था।मेडिकल कालिज के सामने दुकान पाना उस के लिए शुरू से ही सपना रहा है। उसे अच्छी तरह मालूम है कि इमामबख्श, दीपचन्द्र,मुंशीराम, सभी जो आज स्कूटरों पर उड़ते फिरते हैं वे सब के सब मेडिकल कालिज की बदौलत ही है। उस ने मन ही मन में पेटी के सारे सबों को चूम लिया।क्योंकि आज वे उस के लिए सेब नहीं, वरदान थे।

          


सुबह जब कुलवीर सिंह पेटी खोल रहा था तो दूर बिजली के खंभे की ओट ले कर किसी की दो आंखे पेटी का एकटक ताक रही थीं। पेटी खुलते ही कुलवीर सिंह को बड़ा धक्का पहुंच, मुश्किल से एक चौथाई बेदाग सेब निकले। लेकिन यह अफसोस ज्यादा देर नहीं टिका।क्योंकि सेबों की एक और ही सुनहरी पेटी उस के सामने खुली पड़ी थी। बचे हुए सेब बिशनलाल के यहां भेजने के लिए काफी थे।उन्हें उस ने एक डलिया में चुन कर सजा दिया। थोड़ी देर में बिशनलाल का आदमी आएगा तो डलिया उसे दे देगा।

          


  खाली पेटी को वह दुकान के पीछे डालने के लिए नीचे उतरा तो सहसा उस की नजर खंभे की ओट ले कर खड़ी उस लड़की पर पड़ गई।

 


आज उसे जरा भी बुरा नहीं लगा। उलटे उसे एक अजीब सी खुशी महसूस हुई। पता नहीं क्यों कर उस ने दागी सेबों में से एक उठाया और उसे लड़की को देने के लिए आवाज दी। शायद लड़की ने समझा कि यह उसे पकड़ने के लिए कोई चाल है। इसलिए वह तेजी से मुड़ कर गली की ओर भागी। कुलवीर सिंह आज शरारत करने के मूड में था। उस ने पड़ोसी को दुकान देखने के लिए कहा और स्वयं सेब ले कर लड़की के पीछे भागा। लड़की अब बेतहाशा दौड़ने लगी थी। कुलवीर सिंह उसे पकड़ पाता इस से पहले ही वह सामने के खंडहरों में घुस कर गायब हो गई। पीछे-पीछे कुलवीर सिंह पहुंचा, लेकिन अंदर उसे एक भी साबित छत वाली कोठरी दिखाई नहीं दी। सिर्फ किसी जमाने की अधगिरी नंगी दीवार खड़ी थी। तभी उस ने अपने पीछे किसी के हांफने की आवाज सुनी। घूम कर देखा दो टेढ़ी पड़ गई दीवारों पर टाट का एक परदा डाला हुआ था और उसी के ठीक पीछे शायद वही लड़की ख्रड़ी हांफ़ रही थी।

            


क्या है,अंजनी ? एक दुर्बल नारी कंठ सुनाई पड़ा। कुलवीर सिंह ने अनुमान लगाया, अवश्य यह लड़की की मां होगी। लड़की अभी तक जोर जोर से सांस ले रही थी। कुलवीर सिंह के मन में एक उत्सुकता जागी। उस ने टाट सरका कर भीतर झांका। इस से पहले कि लड़की चीख कर पीछे लुढ़कती, कुलवीर सिंह ने उसे अपने हाथों पर संभाल लिया। उसने लड़की को फौरन चुप कराने के बाद ही अपना परिचय दे देना उचित समझा,“माता जी, मैं फल बेचने वाला हूं। बिटिया को सेब देना चाहता था मगर यह तो ड़र के ऐसी भागी कि सहसा कुलवीर सिंह बोलता बोलता अटक गया उसे महसूस हुआ कि उस की बांहों में अंजनी नहीं महिंदर है। और यह सामने झिलंगे पर उठने का व्यर्थ प्रयास करती हुई बूढ़ी औरत............ हां अब यहां की फीकी रोशनी में उस के चेहरे को वह अच्छी तरह देख सकता है। उसने अपने दाहिने हाथ को मुक्त कर कई बार अपनी आंखों को मला मगर नहीं एकदम उस की मां है।संदेह के लिए जरा गुंजाइश नहीं। और वह उस के सीने से लग कर धड़कता हुआ दिल? उस ने एक नहीं, पता नहीं कितनी बार इसी तरह मंहिदर को अपने सीने से चिपटाया है। उस का धड़कता हुआ दिल भी ठीक ऐसी ही आवाज करता है, कहीं कोई अंतर नहीं।

   


बेटा!, इस बार आवाज अधिक स्पष्ट थी। अथवा बनाने की कोशिश की गई थी तुम्हें यह लड़की बहुत परेशान करती होगी। भला इस पगली से कोई यह पूछे कि डाक्टर के कह देने से क्या होता है। फल खरीदने को अपनी औकात भी तो होनी चाहिए। पता नहीं कब का जोड़ा हुआ एक रूपया बचा था। यह जिद करके उसी का तुम्हारे यहां से सेब ले आई।

        


कुलवीर सिंह का कलेजा जोरों से धड़कने लगा। लिफाफे के दोनों सड़े हुए सेब उस की आंखो में बिजली के लट्टू की तरह जल उठे। लेकिन मां कहती रही, “इस का भैया जब मिल में नौकर था, कई बार इलाज के लिए उस ने मुझे डाक्टर को दिखाना चाहा मगर पैसे ही पूरे नहीं पड़े अब तो छंटनी में आ कर बेकार हो गया है। पगला एक हफ्ते से मेडिकल कालिज के सामने दुकान लगाने के लिए दौड़ रहा है।नौकरी न सही, फलों की एक छोटी-मोटी दुकान ही सही, नमक रोटी का आसरा तो हो जाता।



मेडिकल कालिज के समाने !अकस्मात कुलवीर के मुंह से निकल पड़ा।



हां बेटा,सुना है कोई दुकान खाली हुई है,उसे कई बार समझाया कि बेकार क्यों दौड़ता है,वहां पैसे वालों की सुनवाई होगी। मगर सनकी है कहता है, तब तुझे डाक्टर को कैसे दिखाऊंगा ?



कुलवीर सिंह का अंतर्मन विस्मय से चीख पड़ा, इतना साम्य! उस का दिल न जाने कैसा होने लगा। उस के जी में आया कि वह फौरन उस के सिरहाने घुटनों के बल बैठ जाए और प्यार से अपना गाल उस के माथे पर टिका दे।

           


मगर वह अपनी सुधबुध खोया सा चुपचाप कुछ देर तक यों ही खड़ा रहा। उन टूटी हुई दीवारों और फटे हुए टाट के परदे के घेरे में एक बेचैनी, एक तड़पन के तार गूंजते रहे।



सहसा उस ने कहा,“मैं अभी आया।और वह तेज कदमों से बाहर निकल आया। कुलवीर सिंह ने दुकान पर पहुंच टाट की परतों को उलटा-पलटा।नीचे मटमैले कपड़े में लिपटी हुई नोटों की एक गड्डी दबी हुई थी।उस की जिंदगी भर की कमाई के अस्सी-पच्चासी रूपये।उस ने नोटों को अपनी मुठ्ठी में कस कर भींच लिया।

       


दूर राम गंगा के किनारे किसी गांव के अंधियारे कोने में खोई हुई बीमार मां, भाई की प्रतीक्षा में पहाड़ से दिन गुजारता महिंदर, मेडिकल कालिज के सामने फलों की सजी हुई दुकान, स्कूटरों पर उड़ते हुई दीपचन्द्र और मुंशीराम, क्षण मात्र में फिल्म की एक रील उस की आंखों के सामने से गुजर गई। हर फ्रेम पर उस की आशा और आकांक्षाओं का शव छितराया हुआ था। मगर इन सब पर हौवा था एक चेहरा, हर तस्वीर पर कांपती हुई उस चेहरे की परछांई, जैसे जनम-जनम का जाना पहचाना एक चेहरा, दर्द और ममता में डूबा हुआ हो। यह टाट के पीछे उस के बाजुओं से टकराती दिल की धड़कने महिंदर की थीं। खंड़हरों के साए में आंखों के नीचे काले गड्ढे थे। चारों ओर पड़ी हुई सलवटें उस की मां की थीं।

         


कुलवीर सिंह ने नोटों की गड्डी उठा कर अपने पडोसी दुकानदार से कहा, “भई थोड़ी देर और देखना,मैं अभी आया,और नीचे उतर कर वह तेजी से उन खंडहरों की ओर बढ़ने लगा............।



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लेखक--प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव








परिचय 11मार्च,1929 को जौनपुर के खरौना गांव में पैदा हुए प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव मुख्यतः ग्रामीण जीवन के कथाकार हैं.चाहे उनका बाल साहित्य हो या फिर बड़ों के लिए लिखी गयी कहानियां या नाटक--- उनकी अधिकाँश रचनाओं में हमें गांव की मिटटी का सोंधापन जरूर मिलेगा.

        


शुरुआती पढ़ाई जौनपुर में करने के बाद बनारस युनिवर्सिटी से हिन्दी साहित्य में एम0ए0।उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर सरकारी नौकरी।देश की प्रमुख स्थापित पत्र-पत्रिकाओं में कहानियों, नाटकों,लेखों,रेडियो नाटकों,रूपकों के अलावा प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य का प्रकाशन।आकाशवाणी के इलाहाबाद केन्द्र से नियमित नाटकों एवं कहानियों का प्रसारण।बाल कहानियों,नाटकों, की पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित।वतन है हिन्दोस्तां हमारा(भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत)अरुण यह मधुमय देश हमारा”“यह धरती है बलिदान की”“जिस देश में हमने जन्म लिया”“मेरा देश जागे”“अमर बलिदान”“मदारी का खेल”“मंदिर का कलश”“हम सेवक आपके”“आंखों का ताराआदि बाल साहित्य की प्रमुख पुस्तकें।सन 2012 में नेशनल बुक ट्रस्ट,इण्डिया से प्रकाशित बाल उपन्यास मौत के चंगुल में काफी चर्चित।नेशनल बुक ट्रस्ट,इण्डिया से प्रकाशितही  बाल नाटक संग्रहएक तमाशा ऐसा भी 

   इसके साथ ही शिक्षा विभाग के लिये निर्मित लगभग तीन सौ से अधिक वृत्त चित्रों का लेखन कार्य1950 के आस पास शुरू हुआ लेखन एवम सृजन का यह सफ़र 87 वर्ष की उम्र तक निर्बाध चला।  31जुलाई 2016 को लखनऊ में आकस्मिक निधन।

 

 

 

 

2 टिप्पणियाँ:

aparna 31 जुलाई 2024 को 10:30 am बजे  

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. ‘देख लूं तो चलूं’ "आदिज्ञान" का जुलाई-सितम्बर “देश भीतर देश”--के बहाने नार्थ ईस्ट की पड़ताल “बखेड़ापुर” के बहाने “बालवाणी” का बाल नाटक विशेषांक। “मेरे आंगन में आओ” ११मर्च २०१९ ११मार्च 1mai 2011 2019 अंक 48 घण्टों का सफ़र----- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अण्डमान का लड़का अनुरोध अनुवाद अभिनव पाण्डेय अभिभावक अम्मा अरुणpriya अर्पणा पाण्डेय। अशोक वाटिका प्रसंग अस्तित्व आज के संदर्भ में कल आतंक। आतंकवाद आत्मकथा आनन्द नगर” आने वाली किताब आबिद सुरती आभासी दुनिया आश्वासन इंतजार इण्टरनेट ईमान उत्तराधिकारी उनकी दुनिया उन्मेष उपन्यास उपन्यास। उम्मीद के रंग उलझन ऊँचाई ॠतु गुप्ता। एक टिपण्णी एक ठहरा दिन एक तमाशा ऐसा भी एक बच्चे की चिट्ठी सभी प्रत्याशियों के नाम एक भूख -- तीन प्रतिक्रियायें एक महत्वपूर्ण समीक्षा एक महान व्यक्तित्व। एक संवाद अपनी अम्मा से एल0ए0शेरमन एहसास ओ मां ओडिया कविता ओड़िया कविता औरत औरत की बोली कंचन पाठक। कटघरे के भीतर कटघरे के भीतर्। कठपुतलियाँ कथा साहित्य कथावाचन कर्मभूमि कला समीक्षा कविता कविता। कविताएँ कवितायेँ कहां खो गया बचपन कहां पर बिखरे सपने--।बाल श्रमिक कहानी कहानी कहना कहानी कहना भाग -५ कहानी सुनाना कहानी। काफिला नाट्य संस्थान काल चक्र काव्य काव्य संग्रह किताबें किताबों में चित्रांकन किशोर किशोर शिक्षक किश्प्र किस्सागोई कीमत कुछ अलग करने की चाहत कुछ लघु कविताएं कुपोषण कैंसर-दर-कैंसर कैमरे. कैसे कैसे बढ़ता बच्चा कौशल पाण्डेय कौशल पाण्डेय. कौशल पाण्डेय। क्षणिकाएं क्षणिकाएँ खतरा खेत आज उदास है खोजें और जानें गजल ग़ज़ल गर्मी गाँव गीत गीतांजलि गिरवाल गीतांजलि गिरवाल की कविताएं गीताश्री गुलमोहर गौरैया गौरैया दिवस घर में बनाएं माहौल कुछ पढ़ने और पढ़ाने का घोसले की ओर चिक्कामुनियप्पा चिडिया चिड़िया चित्रकार चुनाव चुनाव और बच्चे। चौपाल छिपकली छोटे बच्चे ---जिम्मेदारियां बड़ी बड़ी जज्बा जज्बा। जन्मदिन जन्मदिवस जयश्री राय। जयश्री रॉय। जागो लड़कियों जाडा जात। जाने क्यों ? जेठ की दुपहरी टिक्कू का फैसला टोपी ठहराव ठेंगे से डा० शिवभूषण त्रिपाठी डा0 हेमन्त कुमार डा०दिविक रमेश डा0दिविक रमेश। डा0रघुवंश डा०रूप चन्द्र शास्त्री डा0सुरेन्द्र विक्रम के बहाने डा0हेमन्त कुमार डा0हेमन्त कुमार। डा0हेमन्त कुमार्। डॉ.ममता धवन डोमनिक लापियर तकनीकी विकास और बच्चे। तपस्या तलाश एक द्रोण की तितलियां तीसरी ताली तुम आए तो थियेटर दरख्त दरवाजा दशरथ प्रकरण दस्तक दिशा ग्रोवर दुनिया का मेला दुनियादार दूरदर्शी देश दोहे द्वीप लहरी नई किताब नदी किनारे नया अंक नया तमाशा नयी कहानी नववर्ष नवोदित रचनाकार। नागफ़नियों के बीच नारी अधिकार नारी विमर्श निकट नियति निवेदिता मिश्र झा निषाद प्रकरण। नेता जी नेता जी के नाम एक बच्चे का पत्र(भाग-2) नेहा शेफाली नेहा शेफ़ाली। पढ़ना पतवार पत्रकारिता-प्रदीप प्रताप पत्रिका पत्रिका समीक्षा परम्परा परिवार पर्यावरण पहली बारिश में पहले कभी पहले खुद करें–फ़िर कहें बच्चों से पहाड़ पाठ्यक्रम में रंगमंच पार रूप के पिघला हुआ विद्रोह पिता पिता हो गये मां पिताजी. पितृ दिवस पुण्य तिथि पुण्यतिथि पुनर्पाठ पुरस्कार पुस्तक चर्चा पुस्तक समीक्षा पुस्तक समीक्षा। पुस्तकसमीक्षा पूनम श्रीवास्तव पेड़ पेड़ बनाम आदमी पेड़ों में आकृतियां पेण्टिंग प्यारा कुनबा प्यारी टिप्पणियां प्यारी लड़की प्यारे कुनबे की प्यारी कहानी प्रकृति प्रताप सहगल प्रतिनिधि बाल कविता -संचयन प्रथामिका शिक्षा प्रदीप सौरभ प्रदीप सौरभ। प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक शिक्षा। प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव। प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव. प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव। प्रेरक कहानी फ़ादर्स डे।बदलते चेहरे के समय आज का पिता। फिल्म फिल्म ‘दंगल’ के गीत : भाव और अनुभूति फ़ेसबुक बंधु कुशावर्ती बखेड़ापुर बचपन बचपन के दिन बच्चे बच्चे और कला बच्चे का नाम बच्चे का स्वास्थ्य। बच्चे पढ़ें-मम्मी पापा को भी पढ़ाएं बच्चे। बच्चों का विकास और बड़ों की जिम्मेदारियां बच्चों का आहार बच्चों का विकास बच्चों को गुदगुदाने वाले नाटक बदलाव बया बहनें बाघू के किस्से बाजू वाले प्लाट पर बादल बारिश बारिश का मतलब बारिश। बाल अधिकार बाल अपराधी बाल दिवस बाल नाटक बाल पत्रिका बाल मजदूरी बाल मन बाल रंगमंच बाल विकास बाल साहित्य बाल साहित्य प्रेमियों के लिये बेहतरीन पुस्तक बाल साहित्य समीक्षा। बाल साहित्यकार बालवाटिका बालवाणी बालश्रम बालिका दिवस बालिका दिवस-24 सितम्बर। बीसवीं सदी का जीता-जागता मेघदूत बूढ़ी नानी बेंगाली गर्ल्स डोण्ट बेटियां बैग में क्या है ब्लाइंड स्ट्रीट ब्लाग चर्चा भजन भजन-(7) भजन-(8) भजन(4) भजन(5) भजनः (2) भद्र पुरुष भयाक्रांत भारतीय रेल मंथन मजदूर दिवस्। मदर्स डे मनीषियों से संवाद--एक अनवरत सिलसिला कौशल पाण्डेय मनोविज्ञान महुअरिया की गंध मां माँ मां का दूध मां का दूध अमृत समान माझी माझी गीत मातृ दिवस मानस मानस रंजन महापात्र की कविताएँ मानस रंजन महापात्र की कवितायेँ मानसी। मानोशी मासूम पेंडुकी मासूम लड़की मुंशी जी मुद्दा मुन्नी मोबाइल मूल्यांकन मेरा नाम है मेराज आलम मेरी अम्मा। मेरी कविता मेरी रचनाएँ मेरे मन में मोइन और राक्षस मोनिका अग्रवाल मौत के चंगुल में मौत। मौसम यात्रा यादें झीनी झीनी रे युवा रंगबाजी करते राजीव जी रस्म मे दफन इंसानियत राजीव मिश्र राजेश्वर मधुकर राजेश्वर मधुकर। राधू मिश्र रामकली रामकिशोर रिपोर्ट रिमझिम पड़ी फ़ुहार रूचि लगन लघुकथा लघुकथा। लड़कियां लड़कियां। लड़की लालटेन चौका। लिट्रेसी हाउस लू लू की सनक लेख लेख। लेखसमय की आवश्यकता लोक चेतना और टूटते सपनों की कवितायें लोक संस्कृति लोकार्पण लौटना वनभोज वनवास या़त्रा प्रकरण वरदान वर्कशाप वर्ष २००९ वह दालमोट की चोरी और बेंत की पिटाई वह सांवली लड़की वाल्मीकि आश्रम प्रकरण विकास विचार विमर्श। विश्व पुतुल दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस. विश्व रंगमंच दिवस व्यंग्य व्यक्तित्व व्यन्ग्य शक्ति बाण प्रकरण शब्दों की शरारत शाम शायद चाँद से मिली है शिक्षक शिक्षक दिवस शिक्षक। शिक्षा शिक्षालय शैलजा पाठक। शैलेन्द्र श्र प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव स्मृति साहित्य प्रतियोगिता श्रीमती सरोजनी देवी संजा पर्व–मालवा संस्कृति का अनोखा त्योहार संदेश संध्या आर्या। संवाद जारी है संसद संस्मरण संस्मरण। सड़क दुर्घटनाएं सन्ध्या आर्य सन्नाटा सपने दर सपने सफ़लता का रहस्य सबरी प्रसंग सभ्यता समय समर कैम्प समाज समीक्षा। समीर लाल। सर्दियाँ सांता क्लाज़ साक्षरता निकेतन साधना। सामायिक सारी रात साहित्य अमृत सीता का त्याग.राजेश्वर मधुकर। सुनीता कोमल सुरक्षा सूनापन सूरज सी हैं तेज बेटियां सोन मछरिया गहरा पानी सोशल साइट्स स्तनपान स्त्री विमर्श। स्मरण स्मृति स्वतन्त्रता। हंस रे निर्मोही हक़ हादसा। हाशिये पर हिन्दी का बाल साहित्य हिंदी कविता हिंदी बाल साहित्य हिन्दी ब्लाग हिन्दी ब्लाग के स्तंभ हिम्मत हिरिया होलीनामा हौसला accidents. 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