यह ब्लॉग खोजें

हिरिया

गुरुवार, 13 जुलाई 2023

 

कहानी

हिरिया



      दरअसल बात एक गाँव की है।कोई सौ-दो सौ वर्ष पुरानी नहीं, अभी कुछ दिन पहले की है।फिर भी कुछ लोग बहुत पुरानी कहते हैं।कहने वाले तो यहाँ तक कहते हैं कि बात सिर्फ गाँवों की ही नहीं, नगर और पढ़े लिखे लोगों के बीच की भी है।इस तरह और न जाने क्या- क्या लोग कहते और सोचते हैं।उस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करता, केवल दो चार शब्दों में अपनी बात कहना चाहता हूँ, पर क्या मैं कह सकता हूँ? इस पर तो कुछ सोचा ही नहीं।लेकिन हाँ, आज तो जीने और कहने का हक तो सबको है।फिर मैं ही क्यों नहीं कह सकता? मैं जरूर कहूँगा।आज तो आप को सुनना ही पड़ेगा।

    


    उस दिन मैं दरवाजा खोल कर बैठा ही था कि मास्टर बाबू ! मास्टर बाबू ! बचा लो, मुझे पचास रुपये दे दो।मेरे दोनों लड़के जेल चले जायेंगे।चिल्लाती हुई वह बिलख पड़ी थी।दर्द भरी उसकी आवाज में पीड़ा थी,चुभन थी।सुनकर मुझे भी कष्ट हुआ, पर कोरी सहानुभूति उसकी मरहम पट्टी के लिए काफी न था।उसे तो तत्काल लड़के को बचाने के लिए रुपया चाहिये था।वह भी एक दो नहीं पूरे पचास।मैं अपनी जेब टटोलने लगा।महीने के बचे हुए दिन गिनने लगा।सोच रहा था कि किसी तरह महीने का खर्च पार हो जाता।बार-बार उधार न लेने का संकल्प न टूटता---- इस तरह मन ही मन तर्क-वितर्क करता हुआ शीला के पर्स में पड़े हुए दस-दस के उन पाँच नोटों को एक बार भली प्रकार निहार कर, उसे दे दिया था ।

  


     हिरिया के चले जाने के बाद मेरी छटपटाहट कम न हुयी।अकुलाहट बढ़ती गयी उसकी पीड़ा मेरे हृदय में शूल बन कर चुभ गयी थी।इसलिए नहीं कि मैंने उसे पचास रुपये दे दिये थे, इसलिए नहीं कि महीने के शेष दिन गृहस्थी कैसे चलेगी।इसलिए नहीं कि उधार न लेने का संकल्प पुनः तोड़ना पड़ेगा, बल्कि इसलिए कि वह दृश्य मेरी आँखों से ओझल नहीं हो पा रहा था।लकीरों की भाषा में व्यक्त साहित्य उसका मर्म मुझे शूल रहा था।हालांकि विद्यार्थी जीवन में, पीठ पर बनाये गये कितने लकीरों की पीड़ा सहकर मैंने पढ़ना सीखा था ।.जिन्हें आज भूल चुका हूँ।स्वयं अपने अध्यापन काल में भी मैने बेतों से कितने छात्रों की पीठों पर लकीरे बनाई थी, पर किसी का रूप आज याद करने पर भी याद नहीं आता।शायद मेरी स्मरण शक्ति ही कुछ मन्द पड़ गई है, किन्तु असहाय परिन्दों के पीठों पर निर्दयता से बनाये गये कोड़ों के निशान, उभरे हुए लकीरों की गहराई एवं बच्चों के लिए चीखती हुई माँ की ममता, उसकी करुण पुकार, मेरे मानस पटल पर अंकित हो गई थी।प्रयत्न करके भी मैं न भुला सका था।

   


      पूरी रात मुझे नीद नहीं आयी थी।भोजन अच्छा न लगा था।और फिर उसके बाद दिन प्रति दिन घर के कामों में तथा बच्चों के प्रति मेरी उदासीनता बढ़ती गई।इसलिए तंग आकर एक दिन शीला बोल पड़ी थी---"आप क्यों इतना सीरियस हो गये हैं? अपनी गृहस्थी क्यों नहीं संभाल रहे हैं? आप किस-किस का दुख दर्द ढोते फिरेंगे, और फिर गलती तो हिरिया के दोनों बच्चों की ही थी।न वे चोरी करते न पिटते।उसका यह वाक्य घी की आहुति बन कर मेरे हृदय में समा गया।मेरी क्रोधाग्नि भभक उठी थी।हाँ ! हाँ अपनी भूख मिटाने के लिए, दो किलो आलू की चोरी की थी, ग्यारह बारह वर्ष के उन बच्चों ने, वह भी अपने पुराने मालिक सरपंच चौधरी साहब खेत से।बस यही कहना चाहती हो न।पर वह कोई इतना बड़ा अपराध न था शीला ! केवल हिरिया के बच्चे ही नहीं, आज जिस किसी को निकट से निहार कर देखो, सभी चोर नजर आयेंगे।कोई धन-दौलत चुराता है, तो कोई इज्ज़त और ईमान पर कौन कह सकता है, उन लोगों को जो सब कुछ करते हुए भी, धर्म और सच्चाई के ठेकेदार बन बैठे हैं। ईमानदारी का स्वांग रचते हैं।खुद अपने पिता जी को ही देखो न ! अरे ! तुम सिसक रही हो ! लगता है, सच्चाई तुम्हें कड़वी लग गई।पर क्या तुम्हें याद है? मेरी गरीबी का कितना मखौल उड़ाया था, तुम्हारे पिता ने।जरा ध्यान करो, अपने विवाह के पूर्व के वे क्षण... विश्वविद्यालय जीवन के वे क्षण...स्वयं तुम्हारे पिता जी द्वारा विवाह, प्रस्ताव रखना फिर बाद में मेरी गरीबी का उपहास ... मेरा अपमान, तुम्हारी इच्छा के विपरीत विवाह प्रस्ताव रद्द करना, मेरी जीवन लीला समाप्त करने की अनेक कुचेष्टाएँ और षड़यन्त्र रचना,... आदि सब कुछ तुम्हारे पिता ने ही तो किया था।कितने निंदनीय थे वे दुष्कर्म।हर कोई उंगली उठा सकता था, किन्तु उन सब बातों को कहने तक की भी हिम्मत किसी में न थी, क्योंकि तुम एक इज्जतदार अमीर मिल मालिक की बेटी हो न ! इसलिए सब कुछ अच्छा था।और हाँ, याद है कि चौधरी सरपंच साहब के लड़के, हरिहरपुर की डकैती में, रंगे हाथ पकड़े गये थे।जेल भी जाना पड़ा था।पर आज भी समाज में हर जगह उनका नाम है।उनकी इज्जत और धाक है । बिरादरी में उनके गुण गाये जाते हैं।उनकी औलाद को कोई चोर नहीं कह सकता।इतना ही नहीं रंगीलाल, मंहगी, बराती लाल आदि के काले कारनामे कौन नहीं जानता पर वे तो चौधरियों  के घराने में काम करते हैं, इसलिए वे भी नेक और ईमानदार हैं ।

     


     हिरिया के दोनों बच्चे, यदि दिन भर काम करके भी, सरपंच चौधरी साहब से उचित मजदूरी पाते रहते, तो क्यों उनका दरवाजा छोड़कर मजदूरी के लिए कहीं और जाते।वे बेचारे मजबूर हो गये थे, उनका आश्रय छोड़ने को, तथा लाचार थे अन्यत्र मजदूरी करने को, बस यही था उनका अपराध।इस अपराध का उचित दण्ड देने के लिए चौधरी साहब मौके की तलाश में ही थे कि उन्हें अवसर मिल गया।

    


    बरसात के दिन थे।हिरिया के बच्चों को कहीं मजदूरी न मिली।तब एक दिन भूख से बेताब होकर चौधरी साहब के खेत में आलू चुराने के लिए पहुँच गये।रंगे हाथ पकड़े गये। सरेआम चौराहे पर पीटे गये।पचास रुपये जुरमाने के देने पड़े।इस पर बिरादरी वालों ने उनको अपने समाज से अलग कर दिया।हिरिया का हुक्का पानी बन्द कर दिया गया।हर कोई उन बच्चों को, इस तरह डाँट रहा था जैसे उन दोनों ने ही सर्वप्रथम चोरी की हो और डाँटने वालों का दामन स्वच्छ चाँदनी की तरह निर्मल रहा हो, पर ऐसा नहीं था।मैं अच्छी तरह उन लोगों को जानता हूँ।गाँव के राम लीला और मंदिर कमेटी का हजारों रुपये वे खा गये थे, फिर भी वे अच्छे थे।उनके दामन धूमिल न थे।चौधरी साहब ने हिरिया के उन पचास रुपयों को, जनता के सामने मन्दिर कमेटी को दान कर दिया था।दानी कहला रहे थे।उनके आगे-पीछे चाटुकार प्रशंसकों की भीड़ लगी थी।कई बार उन चाटुकारों को मैंने आड़े हाथों लिया था।पर उसका कुपरिणाम आज तक भोगना पड़ रहा है।वरना आज मैं भी निकट के स्कूल ही रहता।बढ़ती हुई इस मंहगाई में ऋण के बोझ से न दबता।यदाकदा घर की देखरेख, और वृद्ध माता-पिता की सेवा कर सकता, अन्य सुविधाओं से वंचित न रहता।आज हर तरह से प्रताड़ित हूँ, फिर भी मुझे गम नहीं है, किन्तु उन बच्चों के पीटे जाने, पीठ पर उभरे हुए चोट के निशान टेढ़े मेढ़े लकीरों से बना वह मानचित्र, मेरी आँखों से ओझल नहीं हो पा रहा है।ऐसा लगता है कि मानो वह चोट मेरी पीठ पर ही लगी हो।इतना कहते ही अचानक मेरी कराह सुनकर शीला चौंक गई।कमीज उठाकर, मेरी पीठ पर उभरे हुए, चोट के निशानों को देख कर, वह दंग रह गयी। बिफर पड़ी।अपने आँचल से वह मेरी पीठ सहलाने लगी और मैं पागलों की तरह बड़बड़ाता रहा।“शीला, तुम घबड़ाओ नहीं, मैं पागल नहीं हूँगा।मैं नहीं मरूँगा।क्योंकि मैं नहीं चाहता कि मेरे न रहने के बाद, मेरी पत्नी अर्थात् एक गरीब की पत्नी अपने, अमीर पिता का  बोझ बने, गरीब कभी नहीं मरता।मैं जीवित रहूँगा।तुम क्यों रो रही हो ? शायद इसलिए कि उन चोटों के निशान, मेरे पीठ पर तुमसे नहीं देखा गया।मेरी पीड़ा तुमसे नहीं सही गयी, क्योकि मैं तुम्हारा पति हूँ, तुम्हारे भविष्य और जीवन से जुड़ा हूँ।शायद तुम इसलिए मेरी अनुभूति एवं पीठ पर उभरी लकीरों का मर्म समझ सकी हो ? काश! इसी तरह, आज हमारे मानव समाज में एक दूसरे की पीड़ा, गरीबों की आह उनकी मूक भाषा में व्यक्त पीड़ा का मर्म, लोग समझने लगते तो कोई किसी के लिए घातक न बनता।सबको सबसे प्यार होता।सभी एक दूसरे के दुख दर्द में हाथ बंटाते।सभी खुशहाल ....होते।इस तरह न जाने क्या- क्या मैं बड़बड़ाता रहा।



शीला क्षण भर में ही मेरे पागलपन, तथा भविष्य में आने वाली विपत्तियों की कल्पना मात्र से ही, बेचैन हो उठी।उसे जिन्दगी पहाड़ सी लगने लगी थी घंटे भर बाद मेरी पीड़ा, दूर हो गयी थी और मैं नार्मल हो गया था।



0000


लेखक:डा०शिवभूषण त्रिपाठी

     


1 जनवरी 1944 को सिद्धार्थनगर(बस्ती) के चौखडा गाँव में जन्म।लगभग 40वर्षों तक शिक्षा विभाग के विभिन्न पदों और शैक्षिक दूरदर्शन में फिल्म निर्माण का कार्य।देश की कई पात्र पत्रिकाओं में समय समय पर कहानियों,कविताओं,निबंध,एवं नाटकों का प्रकाशन।समय समय पर आकाशवाणी पर कार्यक्रमों का प्रसारण।एन सी ई आर टी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित। सरकारी सेवा से रिटायरमेंट के बाद से अभी तक “विद्या भारती” की लखनऊ शाखा में सचिव,कोषाध्यक्ष एवं सम्पादक के रूप में कार्यरत।

संपर्क सूत्र : 07007879305,09451176775     

                               

 

2 टिप्पणियाँ:

बेनामी,  13 जुलाई 2023 को 11:43 pm बजे  

Very heart touching feeling

एक टिप्पणी भेजें

लेबल

. ‘देख लूं तो चलूं’ "आदिज्ञान" का जुलाई-सितम्बर “देश भीतर देश”--के बहाने नार्थ ईस्ट की पड़ताल “बखेड़ापुर” के बहाने “बालवाणी” का बाल नाटक विशेषांक। “मेरे आंगन में आओ” ११मर्च २०१९ ११मार्च 1mai 2011 2019 अंक 48 घण्टों का सफ़र----- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अण्डमान का लड़का अनुरोध अनुवाद अपराध अपराध कथा अभिनव पाण्डेय अभिभावक अम्मा अरुणpriya अर्पणा पाण्डेय। अशोक वाटिका प्रसंग अस्तित्व आज के संदर्भ में कल आतंक। आतंकवाद आत्मकथा आनन्द नगर” आने वाली किताब आबिद सुरती आभासी दुनिया आश्वासन इंतजार इण्टरनेट ईमान उत्तराधिकारी उनकी दुनिया उन्मेष उपन्यास उपन्यास। उम्मीद के रंग उलझन ऊँचाई ॠतु गुप्ता। एक टिपण्णी एक ठहरा दिन एक तमाशा ऐसा भी एक बच्चे की चिट्ठी सभी प्रत्याशियों के नाम एक भूख -- तीन प्रतिक्रियायें एक महत्वपूर्ण समीक्षा एक महान व्यक्तित्व। एक संवाद अपनी अम्मा से एल0ए0शेरमन एहसास ओ मां ओडिया कविता ओड़िया कविता औरत औरत की बोली कंचन पाठक। कटघरे के भीतर कटघरे के भीतर्। कठपुतलियाँ कथा साहित्य कथावाचन कर्मभूमि कला समीक्षा कविता कविता। कविताएँ कवितायेँ कहां खो गया बचपन कहां पर बिखरे सपने--।बाल श्रमिक कहानी कहानी कहना कहानी कहना भाग -५ कहानी सुनाना कहानी। काफिला नाट्य संस्थान काल चक्र काव्य काव्य संग्रह किताबें किताबों में चित्रांकन किशोर किशोर शिक्षक किश्प्र किस्सागोई कीमत कुछ अलग करने की चाहत कुछ लघु कविताएं कुपोषण कैंसर-दर-कैंसर कैमरे. कैसे कैसे बढ़ता बच्चा कौशल पाण्डेय कौशल पाण्डेय. कौशल पाण्डेय। क्षणिकाएं क्षणिकाएँ खतरा खेत आज उदास है खोजें और जानें गजल ग़ज़ल गर्मी गाँव गीत गीतांजलि गिरवाल गीतांजलि गिरवाल की कविताएं गीताश्री गुलमोहर गौरैया गौरैया दिवस घर में बनाएं माहौल कुछ पढ़ने और पढ़ाने का घोसले की ओर चिक्कामुनियप्पा चिडिया चिड़िया चित्रकार चुनाव चुनाव और बच्चे। चौपाल छिपकली छोटे बच्चे ---जिम्मेदारियां बड़ी बड़ी जज्बा जज्बा। जन्मदिन जन्मदिवस जयश्री राय। जयश्री रॉय। जागो लड़कियों जाडा जात। जाने क्यों ? जेठ की दुपहरी टिक्कू का फैसला टोपी ठहराव ठेंगे से डा० शिवभूषण त्रिपाठी डा0 हेमन्त कुमार डा०दिविक रमेश डा0दिविक रमेश। डा0रघुवंश डा०रूप चन्द्र शास्त्री डा0सुरेन्द्र विक्रम के बहाने डा0हेमन्त कुमार डा0हेमन्त कुमार। डा0हेमन्त कुमार्। डॉ.ममता धवन डोमनिक लापियर तकनीकी विकास और बच्चे। तपस्या तलाश एक द्रोण की तितलियां तीसरी ताली तुम आए तो थियेटर दरख्त दरवाजा दशरथ प्रकरण दस्तक दिशा ग्रोवर दुनिया का मेला दुनियादार दूरदर्शी देश दोहे द्वीप लहरी नई किताब नदी किनारे नया अंक नया तमाशा नयी कहानी नववर्ष नवोदित रचनाकार। नागफ़नियों के बीच नारी अधिकार नारी विमर्श निकट नियति निवेदिता मिश्र झा निषाद प्रकरण। नेता जी नेता जी के नाम एक बच्चे का पत्र(भाग-2) नेहा शेफाली नेहा शेफ़ाली। पढ़ना पतवार पत्रकारिता-प्रदीप प्रताप पत्रिका पत्रिका समीक्षा परम्परा परिवार पर्यावरण पहली बारिश में पहले कभी पहले खुद करें–फ़िर कहें बच्चों से पहाड़ पाठ्यक्रम में रंगमंच पार रूप के पिघला हुआ विद्रोह पिता पिता हो गये मां पिताजी. पितृ दिवस पुण्य तिथि पुण्यतिथि पुनर्पाठ पुरस्कार पुस्तक चर्चा पुस्तक समीक्षा पुस्तक समीक्षा। पुस्तकसमीक्षा पूनम श्रीवास्तव पेड़ पेड़ बनाम आदमी पेड़ों में आकृतियां पेण्टिंग प्यारा कुनबा प्यारी टिप्पणियां प्यारी लड़की प्यारे कुनबे की प्यारी कहानी प्रकृति प्रताप सहगल प्रतिनिधि बाल कविता -संचयन प्रथामिका शिक्षा प्रदीप सौरभ प्रदीप सौरभ। प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक शिक्षा। प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव। प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव. प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव। प्रेरक कहानी फ़ादर्स डे।बदलते चेहरे के समय आज का पिता। फिल्म फिल्म ‘दंगल’ के गीत : भाव और अनुभूति फ़ेसबुक बंधु कुशावर्ती बखेड़ापुर बचपन बचपन के दिन बच्चे बच्चे और कला बच्चे का नाम बच्चे का स्वास्थ्य। बच्चे पढ़ें-मम्मी पापा को भी पढ़ाएं बच्चे। बच्चों का विकास और बड़ों की जिम्मेदारियां बच्चों का आहार बच्चों का विकास बच्चों को गुदगुदाने वाले नाटक बदलाव बया बहनें बाघू के किस्से बाजू वाले प्लाट पर बादल बारिश बारिश का मतलब बारिश। बाल अधिकार बाल अपराधी बाल दिवस बाल नाटक बाल पत्रिका बाल मजदूरी बाल मन बाल रंगमंच बाल विकास बाल साहित्य बाल साहित्य प्रेमियों के लिये बेहतरीन पुस्तक बाल साहित्य समीक्षा। बाल साहित्यकार बालवाटिका बालवाणी बालश्रम बालिका दिवस बालिका दिवस-24 सितम्बर। बीसवीं सदी का जीता-जागता मेघदूत बूढ़ी नानी बेंगाली गर्ल्स डोण्ट बेटियां बैग में क्या है ब्लाइंड स्ट्रीट ब्लाग चर्चा भजन भजन-(7) भजन-(8) भजन(4) भजन(5) भजनः (2) भद्र पुरुष भयाक्रांत भारतीय रेल मंथन मजदूर दिवस्। मदर्स डे मनीषियों से संवाद--एक अनवरत सिलसिला कौशल पाण्डेय मनोविज्ञान महुअरिया की गंध मां माँ मां का दूध मां का दूध अमृत समान माझी माझी गीत मातृ दिवस मानस मानस रंजन महापात्र की कविताएँ मानस रंजन महापात्र की कवितायेँ मानसी। मानोशी मासूम पेंडुकी मासूम लड़की मुंशी जी मुद्दा मुन्नी मोबाइल मूल्यांकन मेरा नाम है मेराज आलम मेरी अम्मा। मेरी कविता मेरी रचनाएँ मेरे मन में मोइन और राक्षस मोनिका अग्रवाल मौत के चंगुल में मौत। मौसम यात्रा यादें झीनी झीनी रे युवा रंगबाजी करते राजीव जी रस्म मे दफन इंसानियत राजीव मिश्र राजेश्वर मधुकर राजेश्वर मधुकर। राधू मिश्र रामकली रामकिशोर रिपोर्ट रिमझिम पड़ी फ़ुहार रूचि लगन लघुकथा लघुकथा। लड़कियां लड़कियां। लड़की लालटेन चौका। लिट्रेसी हाउस लू लू की सनक लेख लेख। लेखसमय की आवश्यकता लोक चेतना और टूटते सपनों की कवितायें लोक संस्कृति लोकार्पण लौटना वनभोज वनवास या़त्रा प्रकरण वरदान वर्कशाप वर्ष २००९ वह दालमोट की चोरी और बेंत की पिटाई वह सांवली लड़की वाल्मीकि आश्रम प्रकरण विकास विचार विमर्श। विश्व पुतुल दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस. विश्व रंगमंच दिवस व्यंग्य व्यक्तित्व व्यन्ग्य शक्ति बाण प्रकरण शब्दों की शरारत शाम शायद चाँद से मिली है शिक्षक शिक्षक दिवस शिक्षक। शिक्षा शिक्षालय शैलजा पाठक। शैलेन्द्र श्र प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव स्मृति साहित्य प्रतियोगिता श्रीमती सरोजनी देवी संजा पर्व–मालवा संस्कृति का अनोखा त्योहार संदेश संध्या आर्या। संवाद जारी है संसद संस्मरण संस्मरण। सड़क दुर्घटनाएं सन्ध्या आर्य सन्नाटा सपने दर सपने सफ़लता का रहस्य सबरी प्रसंग सभ्यता समय समर कैम्प समाज समीक्षा। समीर लाल। सर्दियाँ सांता क्लाज़ साक्षरता निकेतन साधना। सामायिक सारी रात साहित्य अमृत सीता का त्याग.राजेश्वर मधुकर। सुनीता कोमल सुरक्षा सूनापन सूरज सी हैं तेज बेटियां सोन मछरिया गहरा पानी सोशल साइट्स स्तनपान स्त्री विमर्श। स्मरण स्मृति स्वतन्त्रता। हंस रे निर्मोही हक़ हादसा हादसा-2 हादसा। हाशिये पर हिन्दी का बाल साहित्य हिंदी कविता हिंदी बाल साहित्य हिन्दी ब्लाग हिन्दी ब्लाग के स्तंभ हिम्मत हिरिया होलीनामा हौसला accidents. Bअच्चे का विकास। Breast Feeding. Child health Child Labour. Children children. Children's Day Children's Devolpment and art. Children's Growth children's health. children's magazines. Children's Rights Children's theatre children's world. Facebook. Fader's Day. Gender issue. Girl child.. Girls Kavita. lekh lekhh masoom Neha Shefali. perenting. Primary education. Pustak samikshha. Rina's Photo World.रीना पीटर.रीना पीटर की फ़ोटो की दुनिया.तीसरी आंख। Teenagers Thietor Education. World Photography day Youth

हमारीवाणी

www.hamarivani.com

ब्लागवार्ता


CG Blog

ब्लागोदय


CG Blog

ब्लॉग आर्काइव

कुल पेज दृश्य

  © क्रिएटिव कोना Template "On The Road" by Ourblogtemplates.com 2009 and modified by प्राइमरी का मास्टर

Back to TOP