लेख--बहुत कुछ देती है एक बाल कविता भी--कौशल पाण्डेय
रविवार, 20 नवंबर 2022
बहुत कुछ देती है एक बाल कविता भी
जब मैंने 1987 के आस-पास बच्चों के लिए लिखना शुरू किया
तो “बालभारती”,“पराग” और “बालहंस” के साथ-साथ दैनिक जागरण के साप्ताहिक परिशिष्ट में मेरी बाल कविताएं लगातार छपने लगींl उन्हीं दिनों मेरी बाल कविता “सोन मछरिया गहरा पानी” दैनिक जागरणके रविवारीय परिशिष्ट में छपी पर कंपोजिंग की गलती के
चलते कई पंक्तियाँ उलट-पुलट गईं lउन दिनों जागरण का साप्ताहिक परिशिष्ट बहुत ही लोकप्रिय था l एक अच्छी कविता के गलत छप जाने
का काफी दुख हुआ l मुझे लगा कि इसे दोबारा छपना चाहिए l उन्हीं दिनों मेरी कुछ बाल
कविताएं “राजस्थान पत्रिका” के रविवारीय अंक में भी छपी l वह अखबार अपनी साज-सज्जा और सुंदर छपाई के लिए हिंदी का सबसे अच्छा अखबार माना
जाता था l उस कविता को कुछ विस्तार देकर मैंने राजस्थान पत्रिका में
भेजा l जब छपकर आई तो मैं मुग्ध सा हो गया l बड़ा टाइप,सुन्दर चित्र और भव्य प्रस्तुति
l उसमें लेखकों के पते भी छपते थे l
वह पत्रों का जमाना था l कई पाठकों के पत्र आए l कुछ पत्र तो बच्चों के थे l आकाशवाणी की नौकरी में उन्हीं
दिनों मेरा स्थानांतरण मुंबई हो गया l वहां के चर्चित उद्घोषक और
फिल्म कलाकार ब्रज भूषण साहनी की सधी हुई आवाज में यह बाल कविता आकाशवाणी मुंबई से
प्रसारित हुई l श्रोताओं के कई पत्र आए l मुंबई से निकलने वाली मासिक
पत्रिका “नवनीत” उन दिनों अपने हर अंक
में एक बाल कथा प्रकाशित करती थी l अपने दिवाली अंक के लिए जब
सम्पादक गिरिजा शंकर त्रिवेदी ने मुझसे एक अच्छी बाल कथा देने को कहा तो नई कहानी
लिख पाना सम्भव न हो पाने के कारण मैंने इसी कविता को गद्य में रूपांतरित
करके “रानी की जिद” शीर्षक से बाल कथा लिखी l बाद में वह अन्यत्र भी छपी l
वर्ष 2000 में दिल्ली पहुँचा l कुछ दिन गाजियाबाद भी रहा l वहां के दिल्ली पब्लिक स्कूल के एक
संगीत शिक्षक ज्ञानदीप मेरे संपर्क में आये l उन्होंने इस कविता को लेकर एक
नृत्यनाटिका अपने स्कूल के बच्चों के साथ की l इसकी संगीतमय ऑडियो रिकॉर्डिंग
भी मुझे भेंट की l वह कैसेट का जमाना था l टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने
कैम्पस पेज पर इस पर काफी अच्छी रिपोर्ट छापी l
दिल्ली में अपने मित्र हीरालाल
नागर की सलाह पर इस कविता की पांडुलिपि किताबघर प्रकाशन के संचालक श्री
सत्यव्रत जी को विचारार्थ दी l उन्हे कविता पसंद आई और 2004 में यह मल्टीकलर में छपकर
पुस्तक रूप में आई l बाल साहित्य के कई कार्यक्रमों में भी मुझे इसे पढ़ने का
अवसर मिला l बच्चों और बड़ों ने समान रूप से सराहा l हाल ही के लॉक डाउन में भी कई
ऑनलाइन कार्यशालाओं और प्रतियोगिताओं में बच्चों ने इस बाल कविता के साथ अपनी
प्रस्तुतियाँ दीं l सहीं मायनों में मुझे एक बाल साहित्यकार के रूप पहचान
दिलाने में इस कविता की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही l
००००
कौशल पाण्डेय
जन्म-3 अगस्त,1956
एक लम्बे समय से बाल साहित्य लेखन में सक्रिय।बच्चों
के लिये कई पुस्तकें प्रकाशित।बाल नाटकों का मराठी में अनुवाद। कई बाल कविताएं पाठ्यक्रमों में भी।
मो०न०-- 09532455570
2 टिप्पणियाँ:
अक्सर एक रचना रचनाकार को वह मुक़ाम दिला देती है जो उसकी के रचनाएं मिलकर नही दिला पातीं। इसका अर्थ यह कतई नही की बाकी रचनाएं कमजोर हैं बल्कि रचना का रचनाकर अपना अपना भाग्य है
वाह
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