पुस्तक समीक्षा---लोक चेतना और टूटते सपनों की कवितायें
गुरुवार, 7 फ़रवरी 2019
पुस्तक समीक्षा
लोक चेतना और टूटते सपनों की कवितायें
समीक्षक ----- कौशल पाण्डेय
लोक चेतना और टूटते सपनों की कवितायें
समीक्षक ----- कौशल पाण्डेय
समीक्ष्य पुस्तक
ठेंगे से
(कविता संग्रह )
कवि-अजीत सिंह
राठौर “लुल्ल कानपुरी”
प्रकाशक
प्रकाशक
सोशल रिसर्च
फाउण्डेशन
मूल्य - ३०० रूपए
कला मनीषियों ने कविता को कवि द्धारा अपने
से की गई बातचीत का व सहज स्वरूप भी माना है।जो तमाम अवरोधों से अप्रभावित रहते हुए
भी सदैव
शाश्वत और गतिमान रहता है।कविता से किया जाने वाला यह
आत्मसंवाद समाज और परिवेश की उस भावभूमिपर जन्म लेता है जहाँ अभाव,पीड़ा,भूख,निराशा,कुंठा,घुटन और आर्थिक विसंगतियाँ हमें पल-पल प्रभावित करती हैं।ऐसे
में जब कोई कवि
वर्षों की प्रतीक्षा के बाद कविता का दामन थामता है तो उसकी धार में व्यंग का
उपजना स्वाभाविक है।
अजीत सिंह राठौर “लुल्ल कानपुरी” की चौंसठ कविताओं
का पहला संकलन जब तिरसठ वर्ष की उम्र में आता है तो उन कविताओं में समाज
की विसंगतियाँ व्यंग का रूप लेकर एक ऐसा आकार ग्रहण करती हैं जहाँ
सामान्य पाठकों को यह कवितायेँ अपने आस-पास की कवितायें सी लगने लगती हैं।
अजीत सिंह राठौर के इस संकलन -"ठेंगे से" की
अधिकाँश कविताओं में रिश्तों के कोमल
तानों-बानों और बचपन की खुरदुरी यादों के सहारे हमारा लोक जीवन अपनी
लोक भाषा में एक सार्थक आकार लेता प्रतीत होता है ------
मिटटी के चूल्हे ने रोते हुए
बहन फुँकनी से कहा
बरसों बरस का था
साथ हमारा तुम्हारा
बिना तुम्हारे
हम जलते नहीं थे
तनिकौ हिलते नहीं थे
नहलाये जाते
पोंछे जाते
पूजे जाते
मनाये जाते
तब कहीं आगि
जोरी जाती
** ** **
बहिन तुम्हारे कूटे बिना
कौनो कण्डा चूल्हे मा घुसत न रहे
(मिटटी के चूल्हे का दर्द )
दिन पर दिन बढ़ती जाती जीवन की आपा-धापी, उथल-पुथल और इससे उपजे तरह-तरह के कडुवे अनुभवों को झेलने के लिये अब ये जरूरी लगने लगा है कि जीवन के दृष्टिकोण को हास्यपरक बनाया जाये।हास्य-व्यंग का यह व्याकरण अजीत सिंह राठौर की कविताओं में जगह जगह नजर आता है ----------
राम रामलीला के रंगमंच पर
राम के मुखौटे का धैर्य
आखिर जवाब दे गया
उसने रावण के
मुखौटे से पूछा
गुरु तुम तो
पूरे गुरु नजर आते हो
हमको एक रात के
तीन सौ
दिलवाते हो
आप तो तीन हजार
एक रात के झटक ले जाते हो
** ** **
पूरी भीड़ मुझ पर थूकती है
कोसती है गालियाँ देती है
मेरा मृतक शरीर
बड़ी-बड़ी आँखों से
यह सब देखता है
इस दर्द को
कभी आपने महसूस किया है
(मुखौटों का दर्द )
आज हिंदी कविता की सबसे बड़ी जरूरत है कि वह भाषा के चोंचलों और शिल्प के बखेड़ों से मुक्त होकर लोक परम्पराओं, मुहावरों और देशज शब्दों साथ एक आत्मीय रिश्ता जोड़े।दृष्टि और सम्भावनाओं से भरी-पूरी यह कवितायेँ आज की संपूर्ण लोक चेतना, खंडित होते सपने और आदमीपन की तलाश के साथ-साथ इस बात की भी प्रमाण हैं की लोक और आँचल से जुड़ा साहित्य ही पाठकों को साथ लेकर चल सकता है।मेरे लिए इन कविताओं को पढ़ना एक आत्मीय रिश्ते की गर्माहट को महसूस करने जैसा है।
००००००
मिटटी के चूल्हे ने रोते हुए
बहन फुँकनी से कहा
बरसों बरस का था
साथ हमारा तुम्हारा
बिना तुम्हारे
हम जलते नहीं थे
तनिकौ हिलते नहीं थे
नहलाये जाते
पोंछे जाते
पूजे जाते
मनाये जाते
तब कहीं आगि
जोरी जाती
** ** **
बहिन तुम्हारे कूटे बिना
कौनो कण्डा चूल्हे मा घुसत न रहे
(मिटटी के चूल्हे का दर्द )
दिन पर दिन बढ़ती जाती जीवन की आपा-धापी, उथल-पुथल और इससे उपजे तरह-तरह के कडुवे अनुभवों को झेलने के लिये अब ये जरूरी लगने लगा है कि जीवन के दृष्टिकोण को हास्यपरक बनाया जाये।हास्य-व्यंग का यह व्याकरण अजीत सिंह राठौर की कविताओं में जगह जगह नजर आता है ----------
राम रामलीला के रंगमंच पर
राम के मुखौटे का धैर्य
आखिर जवाब दे गया
उसने रावण के
मुखौटे से पूछा
गुरु तुम तो
पूरे गुरु नजर आते हो
हमको एक रात के
तीन सौ
दिलवाते हो
आप तो तीन हजार
एक रात के झटक ले जाते हो
** ** **
पूरी भीड़ मुझ पर थूकती है
कोसती है गालियाँ देती है
मेरा मृतक शरीर
बड़ी-बड़ी आँखों से
यह सब देखता है
इस दर्द को
कभी आपने महसूस किया है
(मुखौटों का दर्द )
आज हिंदी कविता की सबसे बड़ी जरूरत है कि वह भाषा के चोंचलों और शिल्प के बखेड़ों से मुक्त होकर लोक परम्पराओं, मुहावरों और देशज शब्दों साथ एक आत्मीय रिश्ता जोड़े।दृष्टि और सम्भावनाओं से भरी-पूरी यह कवितायेँ आज की संपूर्ण लोक चेतना, खंडित होते सपने और आदमीपन की तलाश के साथ-साथ इस बात की भी प्रमाण हैं की लोक और आँचल से जुड़ा साहित्य ही पाठकों को साथ लेकर चल सकता है।मेरे लिए इन कविताओं को पढ़ना एक आत्मीय रिश्ते की गर्माहट को महसूस करने जैसा है।
००००००
कौशल पाण्डेय
1310-ए,बसंत विहार,
कानपुर-208021
मोबाइल नंबर-9532455570
2 टिप्पणियाँ:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-02-2019) को "तम्बाकू दो त्याग" (चर्चा अंक-3243) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Beauty Tips in Hindi
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