मोनिका अग्रवाल की कविताएँ
रविवार, 4 दिसंबर 2016
मोनिका अग्रवाल की कविताएँ
क्या कहूँ
क्या बोलूँ
पल दो पल
जीवन पास
क्या बोलूँ
पल दो पल
जीवन पास
जिस पर न्योछावर
दौलत बेहिसाब ।
दौलत बेहिसाब ।
क्या पाया
क्या पाओगे
क्या साथ ले जाओगे
क्या मिली खुशी?
कैसी है ये भेड़चाल
क्यों चल रहे हो
मिला कर इससे ताल ।
क्यों चल रहे हो
मिला कर इससे ताल ।
लूट लो सादगी का मजा
करो पुराने दिनों को याद
जब खाते थे दाल रोटी भात
सब जाते थे स्कूल और
खेलते थे खो खो
व छुपम् छुपाई
नौका चलाते
बारिश में भीग भीग कर ।
बस वही थी जिंदगी
वही था असली जीवन
गर देख ली चिड़िया
और घोंसले में बच्चे
तब बाजरे के दानों के लिए
माँ से करते बारंबार मिन्नतें ।
फिर आज क्यों हम
दिखावे मे रहना चाहते हैं
इस दौड़ से हम दूर
क्यों नही हो पाते हैं
गर प्यार की भाषा
हम सब पहचाने
तो शायद जीवन की सही
राह को जाने।
2-आस
चली हूं जीवन सफर
इक नया अरमान लिए
कुछ रंग ढूँढने
कुछ रंग भरने
कुछ कर गुजरने
कुछ पा जाने
कुछ गवां जाने
फिर उन्ही उबड़ -खाबड़ रास्तों पर
कि जहाँ पर हर पल
जीवन था
इक नया अरमान लिए
कुछ रंग ढूँढने
कुछ रंग भरने
कुछ कर गुजरने
कुछ पा जाने
कुछ गवां जाने
फिर उन्ही उबड़ -खाबड़ रास्तों पर
कि जहाँ पर हर पल
जीवन था
तड़प थी ,जुदाई थी
पर फिर भी हर पल
मिलने की इक आस थी
कुछ कर गुजरने की प्यास थी
और हर प्यास के मिटने की
इक आस थी।
पर फिर भी हर पल
मिलने की इक आस थी
कुछ कर गुजरने की प्यास थी
और हर प्यास के मिटने की
इक आस थी।
3
प्रेम देह का मिलन नहीं है
प्रेम दिलों का जुड़ना है ।
चोटी पर चढ़कर मैं सोचूँ ?
आगे बढूँ कि मुड़ना है ।
समझ मुझे समझाती है
कि रुक जाओ गिर जाओगी
प्रेम कह रहा पंख पसारो
नीलगगन तक उड़ना है।
प्रेम दिलों का जुड़ना है ।
चोटी पर चढ़कर मैं सोचूँ ?
आगे बढूँ कि मुड़ना है ।
समझ मुझे समझाती है
कि रुक जाओ गिर जाओगी
प्रेम कह रहा पंख पसारो
नीलगगन तक उड़ना है।
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मोनिका अग्रवाल
मैं कंप्यूटर से स्नातकोत्तर हूं।अपने जीवन के अनुभवों को कलमबद्ध करने का जुनून सा है जो मेरे हौंसलों को उड़ान देता है।मैंने कुछ वर्ष पूर्व टी वी,सिनेमाहाल के लिए 3 विज्ञापन गृहशोभा के योगा विशेषांक के लिए फोटो शूट में भी काम किया।मेरी कविताएँ वर्तमान अंकुर, हमारा पूर्वांचल में प्रकाशित।वेब पत्रिका "हस्ताक्षर" में भी मेरी कविताओं को स्थान मिला।साथ ही अमर उजाला, रूपायन,गृहशोभा में मेरी कुछ कहानी और रचनाओं को भी जगह मिली।
मैं कंप्यूटर से स्नातकोत्तर हूं।अपने जीवन के अनुभवों को कलमबद्ध करने का जुनून सा है जो मेरे हौंसलों को उड़ान देता है।मैंने कुछ वर्ष पूर्व टी वी,सिनेमाहाल के लिए 3 विज्ञापन गृहशोभा के योगा विशेषांक के लिए फोटो शूट में भी काम किया।मेरी कविताएँ वर्तमान अंकुर, हमारा पूर्वांचल में प्रकाशित।वेब पत्रिका "हस्ताक्षर" में भी मेरी कविताओं को स्थान मिला।साथ ही अमर उजाला, रूपायन,गृहशोभा में मेरी कुछ कहानी और रचनाओं को भी जगह मिली।
4 टिप्पणियाँ:
बेहतरीन!!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (07-12-2016) को "दुनियादारी जाम हो गई" (चर्चा अंक-2549) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
BAHUT SUNDER...LIKHTI RAHIYE... HAMARI SHUBHKAAMNAAYEN
I certainly agree to some points that you have discussed on this post. I appreciate that you have shared some reliable tips on this review.
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