मनीषियों से संवाद--एक अनवरत सिलसिला
गुरुवार, 19 जनवरी 2017
पुस्तक समीक्षा
पुस्तक
सुविख्यात
मनीषी-संवादों के आईने में
लेखक--डा०सुनील केशव देवधर
प्रकाशक--सुभांजलि
प्रकाशन ;कानपुर
मूल्य -तीन सौ पचास
रूपये।
मनीषियों से संवाद--एक अनवरत
सिलसिला
संचार माध्यमों में साक्षात्कारों
का प्रकाशन एवं प्रसारण पाठकों और श्रोताओं के लिए एक बहुत ही आकर्षण का विषय रहा
है।संवाद के माध्यम से बहुत कुछ ऐसा बाहर निकालकर आता है ,जो संभवतः किसी अन्य माध्यम से सम्भव नहीं हो पता है।डा०सुनील
केशव देवधर एक लंबे समय से प्रसारण माध्यमों और लेखन से जुड़े हुए है।रेडियो
प्रसारण पर इनकी कई पुस्तकें भी आ चुकी है।संवादों की इस किताब को पढ़कर मुझे जो
बात सबसे अच्छी लगी वह यह कि डा०देवधर ने बात करने के लिए वह चलताऊ फार्मूला नहीं
अपनाया कि हम चार -पांच या कुछ ज्यादा भी ,परंपरागत सवाल पहले से
तैयार कर लेते है और उनके लिखित उत्तर लेकर, साक्षात्कार जैसा
शीर्षक देकर आनन -फानन एक किताब तैयार कर देते है,पर
डा० देवधर की इस किताब में ऐसा नहीं है।
जिन बारह मनीषियों से देवधर ने
संवाद किया है वे अपने -अपने क्षेत्रों की जानी -मानी हस्तियां है ये संवाद
प्रायोजित भी नहीं है ,जैसे कि प्रायःराजनीतिज्ञों और
"सीकरी"में बसे बड़े -बड़े पदों पर विराजमान साहित्यकारों और कलाकारों के
होते है।इन्होंने संवाद के लिए उन संतों का चयन किया है जिन्हें पद,पुरस्कार और सीकरी का कभी आकर्षण नहीं रहा है।ये बारह नाम
है---वेद पंडित डा०शंकर अभ्यंकर,कत्थक नृत्यांगना मनीषा साठे,ओंकार साधक डा०जयंत करंदीकर,इतिहासविद निनाद बेड़ेकर ,कवि
अग्निशेखर,कश्मीरी शायर प्रेमी रूमानी,रंगकर्मी डी०जे०नारायण,लेखक-अनुवादक
निशिकांत ठकार,संत साहित्य अध्येता यू०म०पठान,सामजिक कार्यकर्ता सिंधुताई सकपाल,वैज्ञानिक डा०जयंत नारलीकर और गांधीवादी विचारक नारायण
भाई देसाई।
मुझे लगता है कि इस पुस्तक में जिन
मनीषियों से संवाद स्थापित किया गया है उनसे समय पाना काफी कठिन रहा होगा क्योंकि
उनके लिए कर्म ही पूजा है।उदाहरण के लिए प्रख्यात खगोलशास्त्री डा0 जयंत
नारलीकर कभी किसी उद्घाटन समारोह में नहीं जाते है।इन संवादों में एकतरफा संवाद
नहीं है। बातें होती है और बातों से ही बातें निकलती चली जाती हैं।और बातों -बातों
में हमारे सामने देश,दुनियां,धर्म, अध्यात्म,फिल्म, वैदिक परंपरा,संगीत, नृत्य,खगोलशास्त्र,साहित्य,संत परंपरा और गाँधी दर्शन जैसे
न जाने कितने विषय सहज रूप में हमें आनंदित करते हुए ज्ञान की अथाह गंगा में स्नान
करते से चलते है। इनमे से अधिकांश मनीषियों का कार्यक्षेत्र महाराष्ट्र है ,पर इन्होंने विलक्षण प्रतिभा से देश ही नहीं, देश के बाहर भी अपने कर्तत्व का झंडा फहराया है।
मेरा मानना है कि डा०देवधर की यह
पुस्तक "सुविख्यात मनीषी -संवादों के आईने में "को पढ़कर पत्रकारिता के
विद्यार्थी यह जान सकेंगे कि वास्तव में किसी मनीषी से संवाद के माध्यम से कैसे
उसके अंतर्मन तक पहुंच जा सकता है, संचार माध्यमों में काम
करनेवाले पत्रकार यह जान सकेंगे कि केवल राजनीति के पीछे भागना ही पत्रकारिता नहीं
है और सामान्य पाठकों को यह जानकारी मिलेगी कि हमारे देश में मनीषियों की एक ऐसी
परंपरा आज भी है ,जो बिना किसी शोर -शराबे और प्रचार
-प्रसार के अपने सार्थक उद्देश्यों में निरंतर लगे हुए है।
०००
समीक्षक--
कौशल पाण्डेय
1310 ए,बसंत विहार,
कानपुर-208021
मो० --09532455570
2 टिप्पणियाँ:
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