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फिल्म ‘दंगल’ के गीत : भाव और अनुभूति

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2017

         
           फिल्म ‘दंगल’ के गीत : भाव और अनुभूति

लेखिका-डॉ.ममता धवन
दिल्ली विश्वविद्यालय
इमेल : hindimamta3@gmail.com
                 
                   आजकल का दौर तीव्रता से कहानी कहने का चल रहा है. फिल्म प्रदर्शित करने की समय अवधि कम होती जा रही है. फिल्म के इस कम समय को बनाए रखने का पूरा असर फिल्म में गीतों के स्थान और संख्या पर दिखता है. गीतों के लिए स्थितियां बननी बंद हो गयी हैं. कुछ फ़िल्में तो गीत शून्य आने लगी हैं. ऐसे में दंगल फिल्म में मौजूद तीन गीत अपनी ओर आकर्षित करते हैं. भले ही इनकी संख्या कम है लेकिन अपने विषयों के कारण ये बहुत लोकप्रिय हुए हैं. यह फिल्म बायोपिक फिल्म है जो महावीर सिंह फोगाट की आत्मकथा ‘अखाड़ा’ पर बनी है जिसमें कुश्ती क्षेत्र में अपना नाम करने वाली गीता और बबिता के जीवन और उनके पिता के संघर्ष को शब्द और दृश्य दिए गए हैं. अपने प्लाट और अपने गीतों के माध्यम से यह फिल्म दर्शकों को अपनी तरफ खींचने में बखूबी सफल रही है. इसके अलावा आमिर को पसंद करने वाले दर्शकों का भी अपना एक ख़ासा वर्ग है.
       फिल्म का सबसे लोकप्रिय गीत है – ‘बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है’... इस गीत को अमिताभ भट्टाचार्य ने लिखा और हरियाणवी तर्ज पर बड़ा ही घुलता-सा म्यूजिक प्रीतम ने दिया है. यह गीत अपने दिलचस्प बोलों के कारण बच्चे-बच्चे की जुबां पर है. पूरा गीत न केवल गीता बबिता बल्कि सभी बच्चों को उनकी अपनी व्यथा कहता-सा लगता है. गीत हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और हरियाणवी शब्दों का बेहतरीन संयोजन है. सेहत, हानिकारक, बापू, हालत, वाहनचालक, जैसे हिंदी शब्दों के साथ टार्चर, टॉफी, टाटा, बॉडी, मोगाम्बो, डिसिप्लिन, पिकनिक जैसे अंग्रेजी शब्द भी सुनाई देते हैं. हरियाणवी शब्दों जैसे कि तन्ने, घना, बापू का प्रयोग पूरे गीत को हरियाणवी भाषा के गीतों के करीब ले जाता है. ख़ुदकुशी और किस्मत जैसे उर्दू शब्द भी गीत में शामिल किया गया है. यह गीत बैकग्राउंड में चलता है. गीता बबिता की रोजमर्रा की निरंतर तैयारी दिखाने के लिए बड़े ही रोचक तरीके से इस गीत को फिल्माया गया और फिल्म में गीत विधा का बेहतरीन प्रयोग किया गया. फिल्म का दर्शक स्क्रीन पर चल रहे इस गीत जो कि गीता बबिता के हिटलर बने बापू की सही तस्वीर प्रस्तुत करता है; से गीता बबिता की शिकायत भरे बोलों का मज़ा भी लेता है, वहीँ अपनी बेटियों के भविष्य को गढ़ते हुए कर्मठ और समर्पित पिता को भी महसूस करता है. महावीर फोगाट अपने आस-पास के स्त्री विरोधी वातावरण की परवाह किये बगैर अपनी बेटियों के भविष्य को बेफिक्री से जब तैयार कर रहा होता है तो तसलीमा नसरीन के ये पंक्तियाँ याद आने लगती हैं -
यह अच्छी तरह याद रखना,
तुम जब घर की चौखट लान्घोगी,
लोग तुम्हें टेढ़ी मेढ़ी नज़रों से देखेंगे.
जब तुम गली से होकर गुज़रोगी,
लोग तुम्हारा पीछा करेंगे, सीटी बजाएंगे,
जब तुम गली पार करके सड़क पर पहुँचोगी, लोग तुम्हें चरित्रहीन कह देंगे.
तुम व्यर्थ हो जाओगी, अगर पीछे लौटोगी
वरना जैसी जा रही हो, जाओ.

          इस गीत का मुखड़ा है – ‘औरों पे करम अपनों पे सितम.. ऐ बापू हम पे ये ज़ुल्म न कर.. ये ज़ुल्म न कर’. यह मुखड़ा 1968 में बनी फिल्म आँखें के गीत; ‘गैरों पे करम अपनों पे सितम...,ऐ जाने वफ़ा ये ज़ुल्म न कर....ये ज़ुल्म न कर....रहने दे अभी थोडा-सा भरम...ऐ जाने वफ़ा ये ज़ुल्म न कर..’ की तुरंत याद दिलाता है. फिल्म दंगल के इस गीत के मुखड़े को रिक्रिएट किया जाना कहा जा सकता है जो इतनी बखूबी और हरियाणवी संस्कृति  के साथ किया गया है कि दर्शक सिनेमा हाल में ताली पीटने और सिटी बजाने को मचल उठता है.
          फिल्म में ‘बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है /हम पे थोड़ी दया करो हम नन्हें बालक हैं,’ गीत को सरवर खान और सरताज खान ने गाया , धाकड़ गीत को रफ़्तार ने अपनी आवाज़ दी, गिलहरियाँ ज्योति गाँधी, दंगल दिलेर मेहँदी ने गाया ,नैना अरिजीत सिंह और इडियट बन्ना ज्योति और सुल्ताना नूरान ने गाया. फिल्म का दूसरा गीत है- ‘ऐसी धाकड़ है ...धाकड़ है... ऐसी धाकड़ है....,रे छोरियां...,ये छोरियां ..,तन्ने चारों खाने चित कर देगी...,तेरे पुर्जे फिट कर देगी....,डटकर देगी तेरे दांव से..... बाँध के पेंच पलट कर देगी.... ,चित कर देगी चित कर देगी’. इस गीत के बोल लिखे हैं अमिताभ भट्टाचार्य ने, गाया है रफ़्तार ने और म्यूजिक दिया है प्रीतम ने. कहना चाहिए कि स्त्री के बाहरी सौंदर्य पर गीत रचे जाने की अधिकता में बहुत ही कम या न के बराबर गीत ऐसे मिलेंगे जो स्त्री की कर्मठता तथा उसके भीतर छिपी हुई क्षमता को उजागर करते हैं. ऐसे गीतों को स्त्री के प्रति सामाजिक बदलाव करने की भूमिका में हमेशा याद किया जाता रहेगा. बहुत संभव है कि अब लोग ‘शीला की जवानी’ और ‘बेबी डॉल’ सोने की’ की बजाय अब धाकड़ स्त्रियों को पसंद करने लगेंगे. लड़कियां अब सुंदर दिखने की ही कोशिश में नहीं रहेंगी क्यूंकि यह फिल्म स्त्री की सुन्दरता के नए मानदंडों को गढ़ती है. होंठों पर लिपस्टिक लगा लेना, बाल स्टाइल करवा लेना और स्टाइलिश कपडे पहनकर स्त्री सुंदर नहीं पर उपभोग की वस्तु ज्यादा दिखती है. वही स्त्री सुंदर है जो अपने जीवन का एक उद्देश्य निर्धारित करती है और पूरी ईमानदारी से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में समर्पित है. वही स्त्री सुंदर है जो अब अपने जीवन में सफल है. वही स्त्री सुंदर है जो सामाजिक रुढियों से आगे निकलकर नयी पीढ़ी के लिए भी सफलता के रास्ते निश्चित करती है. यह गीत औरत के वीरत्व को शब्द देता है. स्त्री के सौन्दर्य, उसके भाव  से आगे बढ़कर उसमें वीरत्व को दिखने की प्रशंसनीय पहल यह गीत करता है. पुरुष समाज को चुनौती देते इस गीत के आगे के बोल हैं, ‘तेरी अकड की रस्सी जल जाएगी..पकड़ में इसकी आग है..यो इंची टेप से नापेगी..तेरी कितनी ऊंची नाक है..तेरी सांसें अटक जाएंगी ..वो जोर पटक जाएंगी..ऐसी धाकड़ हैं...’ यह गीत रैप वर्ज़न में है और इसे स्वयं आमिर खान ने गाया है. इस से पहले आमिर ने 1998 में बनी  फिल्म गुलाम का ‘आती क्या खंडाला’ गीत गया था जो कि काफी लोकप्रिय हुआ था. आमिर की ये खासियत है कि वो अपनी फिल्म के साथ, अपने लुक के साथ, अपनी भाषा के साथ नए-नये प्रयोग करते रहते हैं. आमिर; शाहरुख़ और सलमान की तरह टाइप्ड हीरो नहीं हैं. वे अपनी हर अगली फिल्म में स्वयं अपनी ही पिछली फिल्म को चुनौती देते नज़र आते हैं. आमिर की प्रतियोगिता उनके अपने आप से है यही कारण है कि वे किसी अवार्ड फंक्शन में नहीं जाते. उनकी फिल्में सामाजिक उद्देश्यों के साथ चलते हुए भी भरपूर मनोरंजन करती हैं.
       पिता और पुत्री के बीच के बड़े ही संवेदनशील रिश्ते को पकड़ने की कोशिश करती है यह फिल्म. महावीर सिंह अपनी बेटियों के भविष्य को गढ़ना चाहता है और देश के लिए कुश्ती में गोल्ड मैडल लाने के लिए उन्हें तैयार करना चाहता है और कोशिश भी करता है. खुद कोच की भूमिका निभाता है और कुश्ती की सभी तकनीकें और चालाकियां अपनी बेटियों को समझाता है. बेटी की इच्छा पर उसे नेशनल स्पोर्ट्स अकादमी भी भेजता है,अपनी नोकरी तक छोड़ देता है. नया कोच, नया वातावरण की ताम-झाम गीता को बेहद आकर्षित करती है. वो देखती है कि इस तरह के वातावरण में भी कुश्ती की तैयारी हो सकती है. उसे लगता है कि चटनी और गोलगप्पे खाकर, सिनेमा देखकर भी कुश्ती की तैयारी की जा सकती है. जब गीता घर वापिस आती है तो अपने पिता को अपने कोच से कमतर आंकती है और अपने बाल बढाकर अनकहा विरोध जताती है. पिता और बेटी के बीच इसी टकराहट से उपजा पिता के भीतर की पीड़ा की पृष्ठभूमि पर बहुत ही भावुक गीत चलता है जिसके बोल लिखे अमिताभ भट्टाचार्य ने और गाया अरिजीत सिंह ने और संगीत दिया प्रीतम ने. बोल हैं...’झूठा जग रेन बसेरा..सांचा दर्द मेरा..मृग तृष्णा-सा मोह पिया..नाता मेरा तेरा..क्यूँ निराशा से है..आस हारी हुई..क्यूँ सवालों का उठा सा ..दिल में तूफ़ान है..’ गीत के आगे के बोल इस तरह हैं..  ’थे आसमान के सितारे..ग्रहण में आज टूट ते हैं यूँ ..कभी जो धूप सेंकते थे...ठहर के छाँव ढूँढ़ते हैं यूँ...’.
        जिस दौर में सीच्युएशनल गीत लिखे जाने बिलकुल खत्म हो गये हों ऐसे में ‘दंगल’ फिल्म अपने गीतों के लिए पर्याप्त स्थितियां भी ढूँढती है और सही तथा उचित समय, भाव, संगीत एवं आवाज़ के साथ फिल्म की लोकप्रियता को बढाती भी है.
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लेखिका ---डॉ.ममता धवन
दिल्ली विश्वविद्यालय
इमेल : hindimamta3@gmail.com




19 टिप्पणियाँ:

Unknown 17 फ़रवरी 2017 को 12:27 am बजे  

बहुत खूब लिखा है ममता आपने। फिल्मों के ऐसे रिवियू बहुत मददगार होते हैं।

Unknown 18 फ़रवरी 2017 को 7:45 am बजे  

बहुत अच्छा ममता, मूल्यांकन के साथ तुलनात्मक विश्लेषण भी प्रस्तुत किया है

ममता धवन 19 फ़रवरी 2017 को 8:31 am बजे  

मीनू प्रशंसा के लिए धन्यवाद।

ममता धवन 19 फ़रवरी 2017 को 8:32 am बजे  

हेमंत जी आभार।।प्रकाशन हेतु।

ममता धवन 19 फ़रवरी 2017 को 8:33 am बजे  

हेमंत जी आभार।।प्रकाशन हेतु।

ममता धवन 19 फ़रवरी 2017 को 8:33 am बजे  

मीनू प्रशंसा के लिए धन्यवाद।

Buy Contact Lenses 27 अप्रैल 2017 को 11:16 pm बजे  

Nice post, things explained in details. Thank You.

GST Registration Delhi 8 मई 2017 को 5:21 am बजे  

Amazing blog and very interesting stuff you got here! I definitely learned a lot from reading through some of your earlier posts as well and decided to drop a comment on this one.

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