आभासी दुनिया ने खत्म की रचनाकारों और पाठकों के बीच की दूरियां---।
बुधवार, 28 अक्तूबर 2015
साहित्य के ऊपर इस आभासी दुनिया का सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही
तरह का प्रभाव पड़ रहा है।सकारात्मक इस तरह कि—
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इस आभासी दुनिया की वजह से दिग्गजों और
मठाधीशों(साहित्य के अखाड़े के) की मठाधीशी अब खतम हो रही है।पहले जहां साहित्य कुछ गिने चुने नामों की धरोहर बन कर रह गया था वो
अब सर्व सुलभ हो रहा है।आप देखिये कि जहां बहुत सारे नये लेखक,कवि—किसी पत्र पत्रिका में छपने को तरस जाते थे(मठाधीशी के कारण)वो आज इसी आभासी दुनिया के कारण ही
प्रकाशित भी हो रहे हैं,पढ़े भी जा रहे हैं और अच्छा लिख भी रहे हैं।
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आभासी दुनिया में हर रचना
का तुरन्त क्विक रिस्पान्स मिलता है।अच्छा हो या बुरा तुरन्त आपको पता लगता है,आप
उसमें परिवर्तन परिमार्जन भी कर सकते हैं।जब कि प्रिण्ट में ऐसा नहीं है।आपको
लिखने के कई-कई महीने बाद अपनी रचना पर प्रतिक्रियायें मिलती हैं।आप आज लिखते हैं,
हफ़्ते भर बाद किसी पत्र-पत्रिका में भेजते हैं।वह स्वीकृत होकर महीनों बाद छपती
है।तब कहीं जाकर उस पर आपको पाठकीय प्रतिक्रिया मिलती है।जबकि आप ब्लाग पर या किसी
सोशल नेटवर्किंग साइट पर लिखते हैं तो वहां आपने रात में लिखा और और सुबह तक आपके
पास प्रतिक्रियायें हाजिर।कुछ तारीफ़ की—कुछ सुझावों या वैचारिक मतभेद के साथ।
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लेखक और प्रकाशक(प्रिण्ट
माध्यम)दोनों अब आमने सामने हैं।आभासी दुनिया में जहां लेखक को पाठक उपलब्ध हैं
वहीं आज आप देखिये कि प्रकाशक भी आसानी से अच्छे और नये लेखकों को अन्तर्जाल से
लेकर छाप रहा है।ये हमारे साहित्य,साहित्यकारों,पाठकों सभी के लिये एक शुभ संकेत
है।
जहां तक नकारात्मक प्रभाव की बात
है---उसके खतरों से भी आप इन्कार नहीं कर सकते।
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बहुत से रचनाकारों की
रचनायें अच्छी और स्तरीय न रहने पर भी “वाह-वाह”, “सुन्दर”,“प्रभावशाली” जैसी टिप्पणियां रचनाकार को नष्ट करने का काम कर रही
हैं।और इस बेवजह तारीफ़ का शिकार होकर कुछ रचनाकार अपने शुरुआती मेहनत और लगन के दौर
में ही शायद खतम हो सकते हैं।
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ऐसे भी रचनाकार यहां आपको
मिलेंगे जो सिर्फ़ यही तारीफ़ सुनने या अपना मनोरंजन करने के लिये कुछ भी लिख रहे
हैं,जिसका साहित्य,समाज,देश के लिये या पाठकों के लिये भी कोई उपयोग नहीं।ऐसे
साहित्य की भरमार होने पर इस आभासी दुनिया में से अच्छे रचनाकारों को खोजना अपेक्षाकृत
कठिन हो जायेगा।
इसके बावजूद मेरा मानना यही है कि
अन्तर्जाल ने आज साहित्यकारों,पाठकों और
प्रकाशकों को आपस में इतना करीब ला दिया
है कि अब प्रकाशित होना,पढ़े जाना कोई समस्या नहीं।और मुझे लगता है कि यदि इसे थोड़ा
सा नियन्त्रण में रखा जाये तो यह आभासी दुनिया रचनाकारों,पाठकों,प्रकाशकों के बीच
एक अच्छे और मजबूत सेतु का काम करेगी।
जहां तक मंचों या समूहों की बात है इस समय फ़ेसबुक पर ही साहित्यकार
सन्सद,रचनाकार,वर्ल्ड आफ़ चिल्ड्रेन्स लिट्रेचर आर्ट ऐण्ड कल्चर,दैट्स मी,गीत गज़ल
और मुक्तक,हिन्दी साहित्य,ब्लागर्स रिफ़्लेक्शन,ब्लागर बाइ पैशन,समीक्षा
ब्लाग,पुनर्नवा---जैसे सैकड़ों समूह ऐसे हैं जो सिर्फ़ साहित्य रचना के उद्देश्य से
बनाये गये हैं।अब ये समूह कितना काम करेंगे यह तो भविष्य बतायेगा।लेकिन इतना तो तय
है कि ये समूह भी आपसी विचार विमर्श,साहित्य चर्चा के अच्छे मंच साबित हो रहे हैं।मैं
खुद इण्डियन चिल्ड्रेन्स लिट्रेचर समूह से जुड़ा हूं---और देख रहा हूं कि इस समूह
में बाल साहित्य को लेकर सार्थक चर्चायें हो रही हैं।इसी ढंग से साहित्यकार संसद
में भी लोग साहित्य पर अपने विचार देते हैं।पर बहुत से समूह ऐसे भी हैं जिन्हें
सिर्फ़ सेल्फ़ प्रमोशन के लिये ही बनाया गया है।अभी मैं एक नये समूह से
जुड़ा---डायट,लखनऊ----।इस समूह में मुझे लग रहा है कि ज्यादातर
सदस्य(छत्र-छात्रायें)काफ़ी सृजनशील और जिज्ञासु हैं जो कि एक अच्छी बात है समूह के
सदस्यों,समाज, और प्राथमिक शिक्षा के साथ ही किसी समूह के लिये भी।फ़ेसबुक के अलावा
गूगलप्लस या और भी वेबसाइट्स पर ऐसे ढेरों समूह हैं जहां सार्थक विचार विमर्श चल
रहे हैं।
आज आप देख सकते हैं कि पूरे साहित्य जगत में ब्लाग,फ़ेसबुक,ट्विटर,गूगल प्लस
की चर्चा हो रही है। हर महीने अगर आप नेट पर या अखबारों में देखें तो किसी न किसी
शहर में आपको ब्लागर्स मीट सम्पन्न होने,किसी ब्लागर के सम्मानित होने,ब्लाग
माध्यम पर आधारित किसी पुस्तक का विमोचन
होने,ब्लाग्स पर किसी सेमिनार,संगोष्ठी की खबर जरूर पढ़ने को मिल जायेगी। मेरी
जानकारी में कई विश्वविद्यालयों में भी इस नये माध्यम पर सेमिनार,संगोष्ठियों का
आयोजन हुआ है। इसके अलावा भी विशुद्ध साहित्यिक संगोष्ठियों में भी अब इस माध्यम
के बारे में थोड़ी बहुत चर्चायें तो हो ही रही हैं।
मुझे खुद नेट से जुड़े हुये लगभग तीन साल हुये हैं।मैं ब्लाग से तब परिचित
हुआ जब अमिताभ बच्चन और शाहरुख का वाक युद्ध ब्लाग पर आया था।मैंने मित्र लोगों से
पूछ पूछ कर ब्लाग के बारे में जानकारी इकट्ठी की और इसकी मारक क्षमता को समझकर
इससे जुड़ गया।आप आश्चर्य करेंगे जहां मेरे पाठक 2008 में सिर्फ़ भारत में थे वहीं
आज की तारीख में दुनिया के हर देश में मेरे दो चार पाठक मौजूद हैं।यह सब इसी आभासी
दुनिया का ही तो कमाल है।
और मुझे लगता है कि जिस रफ़्तार से
हमारे देश में(पूरे विश्व की बात नहीं करूंगा)में अन्तर्जाल पर ब्लाग्स,सोशल नेट्वर्किंग
साइट्स,समूह,फ़ोरम बनते जा रहे हैं उससे यही प्रतीत होता है कि पूरे देश में एक
तकनीकी क्रान्ति आ चुकी है जिससे जुड़ कर लोग एक दूसरे के काफ़ी करीब हो रहे हैं।एक
दूसरे को सुन रहे हैं।समझ रहे हैं और सबसे बड़ी बात इस आभासी दुनिया ने दूरियों को
समाप्त कर दिया है।और यह सही वक्त है देश को,समाज को,राष्ट्र को एक सही दिशा देने
में इस आभासी दुनिया के सदुपयोग का।तभी हम सही मायनों में सूचना तकनीकी के सही
लाभार्थी कहे जायेंगे।
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ड़ा0हेमन्त
कुमार
5 टिप्पणियाँ:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (01-11-2015) को "ज़िन्दगी दुश्वार लेकिन प्यार कर" (चर्चा अंक-2147) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अच्छा लेख। पर हिंदी ब्लागर्स के सामने सबसे बड़ी समस्या विजिटर्स की है। हिंदी ब्लागर अपनी पाठक संख्या बढ़ाने के लिए गंभीर नहीं हैं शायद इसीलिए फेल हैं।
अरे हेमंत जी यह तो आपका ब्लाग है। मेरे ब्लाग पर जरूर आइएगा। कमेंट के रूप में लिंक मौजूद है।
सुन्दर प्रस्तुति
सुन्दर प्रस्तुति
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