क्षणिकाएं
शुक्रवार, 21 जनवरी 2011
बेटियां
खुली खिड़कियां
खुला आसमां
हुलस पड़ी ज्यों
सभी बेटियां।।
000
बच्चे
नई स्लेट और नई किताबें
बच्चे सब स्कूल को भागें
कुछ बच्चे क्यों
रिंच हथौड़ी
में बस अपना भाग्य निहारें ?
000
बाल मन
झमाझम बारिश
कागज की नाव
मास्टर जी की छड़ी देख
सहम उठा बाल मन।
000
किशोरावस्था
रंग बिरंगे सपने
मेरे हिस्से के
छिनते गये मुझसे
ज्यों ज्यों मैं
बच्चे से किशोर होता गया।
000
हेमन्त कुमार
8 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर क्षणिकाएं .... ' बेटियां ' सबसे अच्छी लगी.....
बहुत सुन्दर। क्षणिकायें बड़ी अर्थमयी और भावमयी थीं।
नई स्लेट और नई किताबें
बच्चे सब स्कूल को भागें
कुछ बच्चे क्यों
रिंच हथौड़ी
में बस अपना भाग्य निहारें ?
bahut gahre khyaal
'किशोरावस्था' और 'बच्चे' ख़ासतौर पर द्रवित करते हैं...
सुन्दरतम !
एक तकनीकी सलाह ....फोन पर !
मन को गहरे तक उद्द्वेलित करने वाली कविताएँ.बधाई एवं शुभकामनाएँ.
सुन्दर क्षणिकाएँ!
आपकी चर्चा बाल चर्चा मंच पर भी तो है!
http://mayankkhatima.uchcharan.com/2011/02/30-33.html
एक टिप्पणी भेजें