जेठ की दुपहरी
मंगलवार, 15 जून 2010
जेठ की तपती दुपहरी
आग जो बरसा रही
बर्फ़ की चादर लपेटे
ठंढ भी शरमा रही ।
स्याह लावा हर सड़क पर
बस पिघलता जा रहा
चीख प्यासे पाखियों की
दिल को अब दहला रही ।
दूर तक दरकी है धरती
घाव बस सहला रही
सोत पानी का दिखा कर
आंख को भरमा रही।
हर नदी अब भाप बन कर
धुंध में मिल जा रही
तलहटी की रेत भी अब
भय से बस थर्रा रही ।
0000
हेमन्त कुमार
22 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर रचना, हेमंत जी इस रचना के लिए साधुवाद
Qudrat ne hame kitna khazana diya tha/hai...hame istemal karna nahi aaya..lootte gaye..panchhee aur dharti ki pyas,donon ka bakhubi chitran hai..
waah bahut hi sundar rachna..kahin dar kar hi baarish na ho jaaye...
जेठ की दोपहर है ...घर से निकलो मगर ज़रा संभल कर ...
sunder kavita hai.
बहुत सुन्दर कविता लिखी है भाई... निगेटिव लगी बस थोडी..
बाकी अभिव्यक्ति बहुत सुन्दर है. बधाई.
ek sahi chitran....chilchilati dhoop dikh jati hai
दूर तक दरकी है धरती
घाव बस सहला रही
सोत पानी का दिखा कर
आंख को भरमा रही।
धूप का नज़ारा सामने आ गया .... बहुत लाजवाब लिखा है ...
Rekhachitr kheenchne mein saksham kavita!
सुन्दर कविता ।
दूर तक दरकी है धरती
घाव बस सहला रही
सोत पानी का दिखा कर
आंख को भरमा रही।
सच! बिलकुल सही स्थिति का चित्रण कर दिया इस कविता में .
गर्मी की मार धरती पर ऐसे ही सितम कर रही है..कि-
हर नदी अब भाप बन कर
धुंध में मिल जा रही
तलहटी की रेत भी अब
भय से बस थर्रा रही ।
बहुत ही अच्छी कविता जेठ के मौसम पर लिखी है.
बधाई .
इस तपती गर्मी का आपने सजीव चित्रण किया है ......,व्यंजना भी जबर्दस्त है ।
बिल्कुल सही चित्रण..यही हालत है आजकल धरती की..
कठोर ग्रीष्म का सुन्दर वर्णन.
आपकी सुन्दर पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है!
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http://mayankkhatima.blogspot.com/2010/06/3.html
बहुत सही लिखा आपने अंकल जी...सच्चाई है.
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'पाखी की दुनिया' में 'पाखी का लैपटॉप' देखने जरुर आइयेगा.
बहुत सुन्दर बहुत सुन्दर
बेहतरीन बाल-कविता...बधाई.
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अब ''बाल-दुनिया'' पर भी बच्चों की बातें, बच्चों के बनाये चित्र और रचनाएँ, उनके ब्लॉगों की बातें , बाल-मन को सहेजती बड़ों की रचनाएँ और भी बहुत कुछ....आपकी भी रचनाओं का स्वागत है.
jeth ki dupahari, bahut hi sahi prastutikaran.
bahut achchi lagi kavita.
जेठ की दोपहरी का सुंदर चित्रण।
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ये साहस के पुतले ब्लॉगर।
व्यायाम द्वारा बढ़ाएँ शारीरिक क्षमता।
समय से वार्तालाप करती इस सुन्दर रचना के लिए बधाई.
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