ओ मां
गुरुवार, 10 जून 2010
परिस्थितियां हमें कभी कभी इतना विवश कर देती हैं कि हम चाह कर भी कुछ कर नहीं सकते----बस उन हालातों को मूक दर्शक बने देखते रहते हैं और खुद को हवाले कर देते हैं उन हालातों के जिनसे हम जूझ रहे होते हैं। हम मान लेते हैं कि जो प्रकृति करेगी वो ठीक ही करेगी।
ऐसी ही हालातों का शिकार पिछले दिनों मैं भी रहा।---9 मई को जब दुनिया भर में मातृ दिवस मनाया जा रहा था सभी मांओं की लम्बी उम्र के लिये प्रार्थनायें कर रहे थे मैं इलाहाबाद के एक अस्पताल में अपनी मां(अम्मा) को आई सी यू में भर्ती करा रहा था। ----हास्पिटल की फ़ार्मेल्टीज के तहत मुझे उन पेपर्स पर दस्तखत करने पड़ रहे थे जिन्हें पढ़ पढ़ कर मेरे आंसू लगातार मेरे चेहरे को भिगो रहे थे---कि हे ईश्वर मातृ दिवस के दिन मुझसे किन पेपर्स पर दस्तखत करवाये जा रहे हैं----कि यदि मेरी मां को कुछ हो जाता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी मेरी होगी------
------- लेकिन परिवार के सभी लोगों,रिश्तेदारों,मित्रों की दुआओं प्रार्थनाओं के साथ ही घर के सभी लोगों की सेवा एवम प्रार्थना से मेरी मां जल्द ही आई सी यू से बाहर आ गयीं। लगभग 15 दिनों तक अस्पताल में रहने के बाद अब मेरी मां घर आ गयी हैं।धीरे धीरे उनका स्वास्थ्य भी सुधर रहा है।
पिछले दिनों मैं नेट पर पूरी तरह अनुपस्थित रहा। अब उपस्थित हुआ हूं --- अपनी मां के ही जन्मदिवस पर लिखी अपनी एक कविता लेकर।(यद्यपि यह कविता मैं पहले भी प्रकाशित कर चुका हूं। फ़िर भी मुझे यह कविता बहुत बहुत अच्छी लगती है----)
ओ मां
बालकनी में कुर्सी
पर अकेला
मेरी आंखों के सामने
आता है कैमरे का व्यूफ़ाइंडर
और उसमें झलकती है
एक तस्वीर
आंगन में तुलसी की पूजा करती
एक स्त्री की
और कहीं दूर से आती है एक आवाज
ओ मां।
जब भी बच्चे व्यस्त रहते हैं
टी वी स्क्रीन के सामने
और मैं बाथरूम में
शेव कर रहा होता हूं
शीशे के सामने अकेला
अचानक मेरे हाथ हो जाते हैं
फ़्रीज
शीशे के फ़्रेम पर
डिजाल्व होता है एक फ़्रेम और
मेरा मन पुकारता है
ओ मां।
जब भी मैं खड़ा होता हूं
बाजार में किसी दूकान पर अकेला
कहीं दूर से आती है सोंधी खुशबू
बेसन भुनने की
आंखों के सामने क्लिक
होता है एक फ़्रेम
बेसन की कतरी
और मेरे अन्तः से आती है आवाज
ओ मां।
जब भी मैं बैठता हूं
देर रात तक किसी बियर बार में
कई मित्रों के साथ पर अकेला
अक्स उभरता है बियर ग्लास में
आटो रिक्शा के पीछे
दूर तक हाथ हिलाती
एक स्त्री का
और टपकते हैं कुछ आंसू
बियर के ग्लास में
टप-टप
फ़िर और फ़िर
चीख पड़ता है मेरा मन
ओ मां।
**********
हेमन्त कुमार
16 टिप्पणियाँ:
waah man ko chhoo gayi...ishwar kare aapki mata shri 100 saal tak jiyein...
बहुत अच्छी पोस्ट
bahut sundar abhivyakti
बहुत भावपूर्ण!!
आपकी अम्मा को मेरा प्रणाम । भगवान करे उनका स्वास्थ्य सदैव अच्छा रहे ।
माँ को नमन ओर प्रणाम ! इस पोस्ट के लिए आभार
Khush qismat hai wo maa,jise uski aulaad is tarah yaad kare!Unhen zaroor mera pranam kahiyega!
is pyaar is samman is abhivyakti ko naman
आपको बधाई, मार्मिक रचना के लिए और आपकी माताजी के स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाएँ।
बहुत बढ़िया हमारी दुआ है कि आपकी माँ स्वस्थ जीवन जीयें...........
बहुत भावपूर्ण...आपकी माताजी के स्वास्थ्य के लिए शुभकामनाएँ।
Aapki maa ke swasth aur dirghau zeevan ki kamna karti hoon.
kavita par kya likhun?bas mahsoos kar sakti hoon.
जब भी किसी नये सफर के लिए निकलती हूँ तो लगता है ट्रेन की खिडकी पर एक चिंतित मुखड़ा आएगा और कहेगा 'ध्यान से जाना बेटा और पहुचते ही फोन करना'..और अन्दर कोई कह उठता है ओ माँ
मैं यह पूछने ही वाली थी कि अप्रैल के बाद इतना लंबा अंतराल क्यूँ?
यह पोस्ट मेरी निगाह से कैसे निकल गयी मालूम नहीं.
चलिये आप की अनुपस्थिति का कारण तो मालूम हुआ .
आप की मम्मी जी के अच्छे स्वास्थ्य के लिए ढेरों शुभकामनाएं
माँ के लिए लिखी कविता तो लाजवाब है ही..बेहद भावपूर्ण है.
उन्हें प्रणाम कहीयेगा.
आभार.
maa aapki sabki sada svast rahe yehi kaamana.bahut sunder kavita hai hameshaa ki taraha.
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