गजल
मंगलवार, 29 दिसंबर 2009
धूप के छौने भी अब तो ठंढ से शर्मा रहे
आग से दहके थे उपवन राख बनते जा रहे।
स्याह चादर में लिपटते शब्द ढलते जा रहे
गीत के मुखड़े निकल कर धुंध बनते जा रहे।
बंद मुट्ठी से फ़िसल कर छंद निकले जा रहे
शीत के पहरे में बैठे हम तो बस बल खा रहे।
मौन पसरा गांव में जो सुर सभी शरमा रहे
सर्द कुहरे को चिढ़ाते फ़ूल सब इठला रहे।
धुंध का कैदी है सूरज सोच सब घबरा रहे
गोठियों की आग से ही मन को सब बहला रहे।
०००
आग से दहके थे उपवन राख बनते जा रहे।
स्याह चादर में लिपटते शब्द ढलते जा रहे
गीत के मुखड़े निकल कर धुंध बनते जा रहे।
बंद मुट्ठी से फ़िसल कर छंद निकले जा रहे
शीत के पहरे में बैठे हम तो बस बल खा रहे।
मौन पसरा गांव में जो सुर सभी शरमा रहे
सर्द कुहरे को चिढ़ाते फ़ूल सब इठला रहे।
धुंध का कैदी है सूरज सोच सब घबरा रहे
गोठियों की आग से ही मन को सब बहला रहे।
०००
हेमन्त कुमार
22 टिप्पणियाँ:
बहुत बढ़िया गजल है।बधाई।
स्याह चादर में लिपटते शब्द ढलते जा रहे
गीत के मुखड़े निकल कर धुंध बनते जा रहे।
बहुत बेहतरीन गज़ल!!
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
बहूत खूब !
बहुत अच्छी ग़ज़ल।
आने वाला साल मंगलमय हो।
ठंड के मौसम पर बहुत शानदार गज़ल हेमन्त जी को बधाई और शुभकामनायें
गोठियों की आग से ही मन को सब बहला रहे।
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सच में आज गजब की सर्दी है!
नव वर्ष आपको और आपके परिवार को मंगलमय हो!
Hemant ji,nav varsh ki dheron shubkamnayen.
बहुत बढ़िया, नव वर्ष की आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं |
चिंता नहीं करिए, हमारे आलस्य का हिमखंड दरक चुका है और हम आपका...
अरे हमारा मतलब है आप के ब्लॉग का template बदलवाने के लिए हाज़िर है हुज़ूर.
Hemantjee aaj ke mousam ka baya karatee badee acchee rachana 1 Badhai.
गोठियों की आग से ही मन को सब बहला रहे।
achi rachna
हेमंत जी ,
बहुत-बहुत अच्छी कवितायेँभीतर तक छूने वाली रचनाएँ हैं पढ़ कर अच्छा लगा -- के.रवीन्द्र
acchee gazal!
गणतंत्र दिवस की आपको बहुत शुभकामनाएं
मौन पसरा गांव में जो सुर सभी शरमा रहे
सर्द कुहरे को चिढ़ाते फ़ूल सब इठला रहे।
पूरी की पूरी ग़ज़ल नायाब...
हर शेर अपने आप में मुक़म्मल..और अहसास से लबरेज़..
पहली बार आई हूँ आपके ब्लॉग पर..और सोच रही हूँ देर तो नहीं हो गयी है....!!
एक खूबसूरत ग़ज़ल से तार्रुफ़ कराने का शुक्रिया..!
wah....wah ..........
sundar sher
स्याह चादर में लिपटते शब्द ढलते जा रहे
गीत के मुखड़े निकल कर धुंध बनते जा रहे।
knol k liye jo aapne tippani di uske liye bahut dhanyvaad..vahan dhanyavaad dene ka tareeka nahi malum hone ki vajeh se aapke blog par yahan dhanyavaad de rhi hoon
knol k liye jo aapne tippani di uske liye bahut dhanyvaad..vahan dhanyavaad dene ka tareeka nahi malum hone ki vajeh se aapke blog par yahan dhanyavaad de rhi hoon
रूह स्पर्शी और लयबद्ध रचना।
bahut badhiya sir ji :)
bahut khoob!!
बहुत ख़ूबसूरत!!
हेमंत जी बहुत!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!सुन्दर 1यूं लगता है कि शब्दों के तिनकों से जुड़कर आशियाना बना हो जैसे ............
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