गजल
रविवार, 6 दिसंबर 2009
हर सतह पर इस जमीं के खून के छींटे पड़े हैं,
पांव रखें किस जगह पर पशोपेश में हम खड़े हैं।
कल चले थे शेर बनने आज मांदों में घुसे हैं,
हर किसी के हाथ अब तो सिर्फ़ नारों से रंगे हैं।
भूख आंतों से निकल कर आज संसद में खड़ी है,
पेट की भाषा भी शायद राजनेता बन चुकी है।
दिन यहां अब घाव बन कर हड्डियों से रिस रहे हैं,
दर्द सहने के सभी आदर्श अब पीछे खड़े हैं।
हर दिये को छीन कर तुमने हमें अंधा किया है,
आग का शोला यहां दिल में दबाये हम खड़े हैं।
********
हेमन्त कुमार
पांव रखें किस जगह पर पशोपेश में हम खड़े हैं।
कल चले थे शेर बनने आज मांदों में घुसे हैं,
हर किसी के हाथ अब तो सिर्फ़ नारों से रंगे हैं।
भूख आंतों से निकल कर आज संसद में खड़ी है,
पेट की भाषा भी शायद राजनेता बन चुकी है।
दिन यहां अब घाव बन कर हड्डियों से रिस रहे हैं,
दर्द सहने के सभी आदर्श अब पीछे खड़े हैं।
हर दिये को छीन कर तुमने हमें अंधा किया है,
आग का शोला यहां दिल में दबाये हम खड़े हैं।
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हेमन्त कुमार
10 टिप्पणियाँ:
आम आदमी की सोच यही है
बहुत खूब कहा है ।
'भूख आंतों से निकल कर आज संसद में खड़ी है,
पेट की भाषा भी शायद राजनेता बन चुकी है।'
हर शेर सच को आईना दिखाता हुआ है.
हर कोई इस इंतज़ार में है की कोई चमत्कार हो जाए और इस देश की स्थिति सुधरे !
ग़ज़ल बहुत तीखे तेवर लिए हुए है.अभिव्यक्ति में सक्षम .बधाई.
हर दिये को छीन कर तुमने हमें अंधा किया है,
आग का शोला यहां दिल में दबाये हम खड़े हैं...
बहुत खूब हेमंत जी ....... लाजवाब ग़ज़ल .....
तीखे तेवर लिए ..... बहुत कुछ कहती हुई .......
shukria.
har saccha hindustani is dard ko mahasus karega;kuch waisa hi dard aapki is gazal mein bhi jhalakta hai.
बेहतर इजहार हैं।
कल चले थे शेर बनने आज मांदों में घुसे हैं,
हाँ जी, अब तो हम पर भी कमेन्ट होने लगे हैं.
:)
BAHUT KHOOBSOORAT GAZAL HAI. BADHHAI AUR SHUBH KAMNAYEN...
बहुत बढिया गजल।शुभकामनाय़े
very interesting and touching at the same time . but "'http://alovinglotus.blogspot.com' ko follow kab kareinge"!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!????????????????????????????????????
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