टिप्पणियों में भी गीत रचते-----डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
रविवार, 13 दिसंबर 2009
आदरणीय डा0 रूप चन्द्र शास्त्री जी से हिन्दी का कोई भी ब्लागर,रचनाकार अपरिचित नहीं होगा। शास्त्री जी अपने ब्लागों के अलावा भी कई ब्लाग पर लिखते रहते हैं।इनके लेखन की,कथ्य को प्रस्तुत करने की शैली अपने आप में अनूठी है। आपकी इस शैली भाषा से तो सभी पाठक परिचित ही हैं।
शास्त्री जी की एक और विशेषता है।वह है टिप्पणी देने का अनोखा अंदाज।अनोखा इस मायने में कि इनकी टिप्पणियां भी गीतात्मक बन जाती हैं। आपकी कई टिप्पणियां तो अपने आप में एक पूरे गीत का ही आनन्द देती हैं। इन टिप्पणियों से ब्लाग लेखकों को आगे लिखने के लिये प्रेरणा मिलती है। मेरे बच्चों वाले ब्लाग फ़ुलबगिया पर आदरणीय शास्त्री जी ने ऐसी कई गीतात्मक टिप्पणियां दी थीं। सबसे मजेदार बात यह कि बच्चे इन टिप्पणियों को गीत के रूप में ही गाते भी हैं।मैं आज उन्हीं टिप्पणियों को यहां प्रकाशित कर रहा हूं। आप भी इन टिप्पणी / बालगीतों का आनन्द उठाइये।
(1) नित्या शेफ़ाली के गीत गुड़िया रानी को पढ़ कर डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…
नित्या शेफाली भी तो,
शास्त्री जी की एक और विशेषता है।वह है टिप्पणी देने का अनोखा अंदाज।अनोखा इस मायने में कि इनकी टिप्पणियां भी गीतात्मक बन जाती हैं। आपकी कई टिप्पणियां तो अपने आप में एक पूरे गीत का ही आनन्द देती हैं। इन टिप्पणियों से ब्लाग लेखकों को आगे लिखने के लिये प्रेरणा मिलती है। मेरे बच्चों वाले ब्लाग फ़ुलबगिया पर आदरणीय शास्त्री जी ने ऐसी कई गीतात्मक टिप्पणियां दी थीं। सबसे मजेदार बात यह कि बच्चे इन टिप्पणियों को गीत के रूप में ही गाते भी हैं।मैं आज उन्हीं टिप्पणियों को यहां प्रकाशित कर रहा हूं। आप भी इन टिप्पणी / बालगीतों का आनन्द उठाइये।
(1) नित्या शेफ़ाली के गीत गुड़िया रानी को पढ़ कर डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…
नित्या शेफाली भी तो,
प्यारी गुड़िया रानी सी है।
बिल्कुल मेरी पोती जैसी,
सूरत पहचानी सी है।।
रचना करती पाठ पढ़ाती,
मीठे बोल बोलती है।
मधु-रस में भीगी भाषा,
कानों में सुधा घोलती है।।
(2) मेरे बालगीत बरफ़ मलाई को पढ़ने के बाद शास्त्री जी की यह प्रतिक्रिया रही डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…
गर्मी में बच्चों को,
(2) मेरे बालगीत बरफ़ मलाई को पढ़ने के बाद शास्त्री जी की यह प्रतिक्रिया रही डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…
गर्मी में बच्चों को,
अच्छी लगती बरफ-मलाई।
मम्मी-पापा दिलवाते हैं,
उनको, बरफ-मलाई।।
ठण्डी-ठण्डी, बरफ-मलाई,
दादी-अम्मा जी को भाई।
गली-गली में बेच रहे है,
गली-गली में बेच रहे है,
दादा बरफ-मलाई।
सुन्दर बाल गीत लिखने की,
तुमको बहुत बधाई।
(3) मेरे बालगीत भालू पहुंचा मेले में पर शास्त्री जी ने लिखा था-----------
भालू ले कन्धे पे थैला,
(3) मेरे बालगीत भालू पहुंचा मेले में पर शास्त्री जी ने लिखा था-----------
भालू ले कन्धे पे थैला,
चला घूमने को मेला।
बन्दर मामा साथ हो लिया,
बन करके उसका चेला।
चाट पकौड़ी जम कर खाई,
और खाया जम कर खेला।
फिर दोनों आपस मे बोले,
अच्छा लगा बहुत मेला।
(4) मेरे बालगीत गर्मी आई पर शास्त्री जी की कलम से ये शब्द निकल पड़े---------
(4) मेरे बालगीत गर्मी आई पर शास्त्री जी की कलम से ये शब्द निकल पड़े---------
जाड़ा भागा, गरमी आई।
पंखें-कूलर लेकर आई।
सबकी पहली पसन्द बनी है,
ठण्डी लस्सी और मलाई,
लेकिन बच्चों को गरमी में,
आइसक्रीम लगती सुखदाई
(5) मेरे ही बालगीत प्यारी गाय पर शास्त्र्र जी की प्रतिक्रिया थी----------
जब मैं गैया दुहने जाता,
(5) मेरे ही बालगीत प्यारी गाय पर शास्त्र्र जी की प्रतिक्रिया थी----------
जब मैं गैया दुहने जाता,
बछड़ा अम्मा कह चिल्लाता।
सारा दूध नही दुह लेना,
मुझको भी कुछ पीने देना।
थोड़ा ही ले जाना भैया,
सीधी-सादी मेरी मैया
(6) मेरे एक अन्य बालगीत नाचा मोर को पढ़ने के बाद--------डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…
शीतल मन्द बयार चली जंगल की ओर,
(6) मेरे एक अन्य बालगीत नाचा मोर को पढ़ने के बाद--------डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक ने कहा…
शीतल मन्द बयार चली जंगल की ओर,
जंगल में खुश होकर अब नाचा है मोर।
शोर मच गया चारों ओर,
ठुमुक-ठुमुक कर नाचा मोर।
वर्षा से मन हुआ विभोर,
झूम-झूम कर नाचा मोर
(7) मेरी एक बाल कहानी घर की खोज को पढ़ कर शास्त्री जी ने प्रतिक्रिया गीत में ही दिया--------
हाथी दादा चले ढूँढने,
(7) मेरी एक बाल कहानी घर की खोज को पढ़ कर शास्त्री जी ने प्रतिक्रिया गीत में ही दिया--------
हाथी दादा चले ढूँढने,
घर अपना प्यारा-प्यारा।
रैन बसेरे की आशा मे,
छान लिया जंगल सारा।।
घर नही पाया ऐसा,
जिसमे तोंद-पैर आ जाते।
थक-कर आखिर अब तक,
पेड़ों के नीचे ही सुस्ताते।
(8) पूनम जी(झरोखा ब्लाग) के बालगीत होली का हुड़दंग पर शास्त्री जी की प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार रही-------
नीम, आम, धनिया गदराया,
(8) पूनम जी(झरोखा ब्लाग) के बालगीत होली का हुड़दंग पर शास्त्री जी की प्रतिक्रिया कुछ इस प्रकार रही-------
नीम, आम, धनिया गदराया,
होली का मौसम है आया।
बन्दर मामा, भालू दादा,
सबने जम कर भंग चढ़ाई।
सूंड उठा कर हाथी ने भी,
जम कर कीचड़ बरसाई
000000000000
हेमन्त कुमार
000000000000
हेमन्त कुमार
12 टिप्पणियाँ:
वाह बहुत सुंदर.
टिप्पणियों का यह दूसरा पहलू तो मुझे पता ही नहीं था. शास्त्री की मन सरल है.
वाह बहुत सुंदर.
रूपचन्द्र शास्त्रीजी तो बहु आयामी व्यक्तित्व के धनी लगते हैं!
वाह भई शास्त्री जी की टिप्पणियाँ तो अपने आप में अनोखी है.
nice...........nice.........nice.........................................................................................................................................................................................................
इनका भी जवाब नहीं ।
प्रतिभा के धनी हैं रूपचंद्र शास्त्री जी !!
शास्त्री जी का जबाब नहीं..नमन उनकी प्रतिभा को.
रचना अच्छी लगी ।
बहुआयामी प्रतिभा के धनी शास्त्री जी का अनोखा प्रेम है बच्चो के प्रति ....... कमाल के व्यक्ति हैं वो ....... प्रणाम है हमारा उनको .......
वाकई.......इन टिप्पणियों में एक आशीष है
रूपचन्द्र जी पर आलेख लिखने के लिए धन्यवाद. हम तो पहले से ही उनकी शैली के मुरीद हैं.
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