इस जंगल में हर शाम एक कहर बरपा होता है सन्नाटा टूटता है जंगल का बन्दूकों की आवाजों से।
बूट रौंदते हैं जंगल के सीने को टूटती हैं कुछ व्हिस्की और रम की खाली बोतलें और एक मासूम पेंडुकी दम तोड़ देती है तड़फ़ड़ा कर चन्द खुरदुरे हाथों के बीच। 00000 हेमन्त कुमार
शशक्त ............ सच में इन मूक प्राणियों की कोई नहीं सुनता .......... इंसान की हवस क्या कुछ कराती ई .......... सुन्दर और मार्मिक रचना है हेमंत जी ............
I am a writer and media person.My aim in life is to see a smiles on the face of all children in the universe. I am writing for children and adults, both for 30 years. Working continuously in print and on electronic media.Some 40 books of rhymes,stories, poetry,short plays including also a children's encyclopedia & illustrated dictionary are published in Hindi.I am also writing for different radio programmes. At present I am working on EducationalTelevision,Lucknow,(India.As part of my job I wrote about 300 scripts for E.T.V.and also produced more than 200 programmes.
8 टिप्पणियाँ:
मार्मिक रचना है.
वन और वन्य जीव संरक्षण पर कितना अच्छा लिखा है आपने हेमंत जी. बधाई.
ek yatharth darshatee rachana |
शशक्त ............ सच में इन मूक प्राणियों की कोई नहीं सुनता .......... इंसान की हवस क्या कुछ कराती ई .......... सुन्दर और मार्मिक रचना है हेमंत जी ............
एक बेहद सम्वेदनशील रचना.........
इस सुन्दर और संवेदनशील रचना के लिए साधुवाद.
Avajo ki is duniya me khamoshi pahachane kaun? Very touchy.
Kaphi gehra asar chodti hai aapki yah rachna.Pashu kise mana jaye, jungli jeevon ko ya in insani bhediyon ko?
हेमन्त जी,
बहुत अच्छे से कही है आपने अपनी बात।
वो पेंडुकी ने दम तौड़ दिया
खुरदुरे हाथों के बीच
ना जाने कितने ही मासूम फिर वो चाहे जानवर हो या कॅटल क्लास के इंसान सभी या तो खुरदुरी हाथों, बूटों या खद्दरधारी इन्हीं के हाथों मारे जा रहे हैं।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
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