राज कुमार को रजुआ केई प्रसाद को कलुआ क्यों पुकारते हो भइया ?
बुधवार, 10 दिसंबर 2008
मैने अपने पुराने लेख में बच्चों के अन्य अधिकारों के साथ ही उनके नाम और राष्ट्रीयता के अधिकार की बात भी उठाई थी.दरअसल बच्चों के नाम और राष्ट्रीयता का मसला ऐसा है जो हमारी रोज मर्रा की जिंदगी से जुडा है । हम , आप,सभी लोग अक्सर दूकानों पर,ढाबों पर,स्कूटर कार का पंचर बनवाते समय ….छोटू,
बोलतू , छोकरा जैसे संबोधनों से बच्चों को बुलाये जाते हुए सुनते भी हैं.ख़ुद बुलाते भी हैं.
मेरा सीधा सा सवाल ये है की भइया हम, आप हम सभी ऐसा क्यों करते हैं?हम उन बच्चों का अच्छा खासा नाम क्यों बिगाड़ देते हैं.
जब की बाल अधिकारों के अंतर्राष्ट्रीय घोषणा पत्र में साफ साफ लिखा है की
“ हर बच्चे को पैदा होने पर नाम मिलना चाहिए.बच्चे को राष्ट्रीयता मिलने का भी अधिकार है.
तथा जहाँ तक सम्भव हो उसे अपने मां बाप को जानना चाहिए .मां बाप द्वारा उसकी देख भाल भी होनी चाहिए.”
परन्तु हमारे देश का ये दुर्भाग्य ही है की यहाँ पर नियम ,कानून,घोषना पत्र …वादे ..ये सब सिर्फ़ कागजों और पुस्तकालयों की शोभा बढ़ने के लिए होते हैं.
मुझे तो व्यक्तिगत रूप से बहुत दुःख होता है ,जब किसी बच्चे को उसके असली नाम से न बुला कर उसे बिगाडे गए नाम से बुलाया जाता है.
जरा आप ख़ुद सोचिये की अच्छे खास नाम रामू को रमुआ…काली प्रसाद को कलुआ कह कर पुकारने से हमें क्या मिल जाता है? कोई आत्मिक सुख ….कोई संतुष्टि का भावः….फ़िर हम क्यों ऐसा कर रहे हैं/
बात यहीं तक होती तो भी गनीमत थी,हम लोगों ने तो बच्चों के कामों के हिसाब से ही उनके नामकरण का ठेका भी ले रखा है न.अब आप देखिये …बच्चा स्कूटर की दूकान पर कम कर रहा है तो उसे नट्टू…बोल्टू,ढाबे पर कम कर रहा है तो मग्घा..सकोरा …,किसी साफ सुथरी कपड़े की दूकान पर है तो …हीरो,स्टेशन पर है तो लौंडे..पोरे….छोकरे…..कितने नाम गिनाऊँ मैं.
बस जिसको जहाँ जिस नाम से मर्जी हुई बुला लिया मासूमों को…
और बच्चों कें नाम बिगाड़ कर पुकारने का ठेका सिर्फ़ हमारे देश के लोगों ने ले रखा हो ऐसी बात नहीं है.पूरी दुनिया में इन मासूमों के नामों को अलग अलग ढंग से बिगाडा जा रहा है.दक्षिण अमेरिका और कोलंबिया में सड़क पर काम करने वाले बच्चों को गामिन्स(छोकरा),एवं
“चिन्चेज” खटमल कहते हैं.ब्राजील में इन्हें “ मर्गिनीज”(अपराधी)कहते हैं.पेरू में “पेजेरस फ्रुतेरस”(फल पक्षी)कहते हैं.अफ्रीका में “सलीगोमन” (निर्लज्ज बच्चा),कमरून में “मस्तिक्स”(मच्छर),वियतनाम में “बुइदुई”(धूल वाले बच्चे) कहा जाता है.
अब आप सोचिये जरा .मान लीजिये मेरा नाम हेमंत कुमार है.मुझे कोई हेमुआ कह कर बुलाए तो मुझे तो बहूत ज्यादा बुरा लगेगा.आपका नाम शेर बहादुर है अगर आपको सेरुआ कह कर बुलाया जाय तो ….?बौखला जायेंगे न आप और हम.फ़िर जरा सोचिये उन मासूमों पर क्या गुजराती होगी जब उनका अच्च्छा खासा नाम बिगाड़ कर उन्हें बुलाया जाता होगा.जब दिनेश कुमार को दिनुआ,रत्तन कुमार को रत्तू,लाल सिंह को ललुआ या लालू..कह कर बुलाया जाता है.
और बच्चों के इस नाम बिगाड़ने की परम्परा ..उनके अपमान..उनके आत्म सम्मान को ठेस पहुँचाने के लिए हम आप सभी जिम्मेदार हैं.और हम ही बच्चों को इस मानसिक संताप…अपमान और नाम बिगाड़ कर बुलाने से उनके अन्दर जीवन भर के लिए पनप रही कुंठा,हीन भावना से मुक्ति दिला सकते हैं.
तो आइये कम से कम हम लोग ही मिल कर इस दिशा में कुछ करें.कम से कम हम ब्लोगर ही ये निश्चय कर लें की हम मासूमों को उनके सही नामों से सम्मान जनक ढंग से बुलाएँगे.नाम बिगाड़ कर नहीं.
हेमंत कुमार
बोलतू , छोकरा जैसे संबोधनों से बच्चों को बुलाये जाते हुए सुनते भी हैं.ख़ुद बुलाते भी हैं.
मेरा सीधा सा सवाल ये है की भइया हम, आप हम सभी ऐसा क्यों करते हैं?हम उन बच्चों का अच्छा खासा नाम क्यों बिगाड़ देते हैं.
जब की बाल अधिकारों के अंतर्राष्ट्रीय घोषणा पत्र में साफ साफ लिखा है की
“ हर बच्चे को पैदा होने पर नाम मिलना चाहिए.बच्चे को राष्ट्रीयता मिलने का भी अधिकार है.
तथा जहाँ तक सम्भव हो उसे अपने मां बाप को जानना चाहिए .मां बाप द्वारा उसकी देख भाल भी होनी चाहिए.”
परन्तु हमारे देश का ये दुर्भाग्य ही है की यहाँ पर नियम ,कानून,घोषना पत्र …वादे ..ये सब सिर्फ़ कागजों और पुस्तकालयों की शोभा बढ़ने के लिए होते हैं.
मुझे तो व्यक्तिगत रूप से बहुत दुःख होता है ,जब किसी बच्चे को उसके असली नाम से न बुला कर उसे बिगाडे गए नाम से बुलाया जाता है.
जरा आप ख़ुद सोचिये की अच्छे खास नाम रामू को रमुआ…काली प्रसाद को कलुआ कह कर पुकारने से हमें क्या मिल जाता है? कोई आत्मिक सुख ….कोई संतुष्टि का भावः….फ़िर हम क्यों ऐसा कर रहे हैं/
बात यहीं तक होती तो भी गनीमत थी,हम लोगों ने तो बच्चों के कामों के हिसाब से ही उनके नामकरण का ठेका भी ले रखा है न.अब आप देखिये …बच्चा स्कूटर की दूकान पर कम कर रहा है तो उसे नट्टू…बोल्टू,ढाबे पर कम कर रहा है तो मग्घा..सकोरा …,किसी साफ सुथरी कपड़े की दूकान पर है तो …हीरो,स्टेशन पर है तो लौंडे..पोरे….छोकरे…..कितने नाम गिनाऊँ मैं.
बस जिसको जहाँ जिस नाम से मर्जी हुई बुला लिया मासूमों को…
और बच्चों कें नाम बिगाड़ कर पुकारने का ठेका सिर्फ़ हमारे देश के लोगों ने ले रखा हो ऐसी बात नहीं है.पूरी दुनिया में इन मासूमों के नामों को अलग अलग ढंग से बिगाडा जा रहा है.दक्षिण अमेरिका और कोलंबिया में सड़क पर काम करने वाले बच्चों को गामिन्स(छोकरा),एवं
“चिन्चेज” खटमल कहते हैं.ब्राजील में इन्हें “ मर्गिनीज”(अपराधी)कहते हैं.पेरू में “पेजेरस फ्रुतेरस”(फल पक्षी)कहते हैं.अफ्रीका में “सलीगोमन” (निर्लज्ज बच्चा),कमरून में “मस्तिक्स”(मच्छर),वियतनाम में “बुइदुई”(धूल वाले बच्चे) कहा जाता है.
अब आप सोचिये जरा .मान लीजिये मेरा नाम हेमंत कुमार है.मुझे कोई हेमुआ कह कर बुलाए तो मुझे तो बहूत ज्यादा बुरा लगेगा.आपका नाम शेर बहादुर है अगर आपको सेरुआ कह कर बुलाया जाय तो ….?बौखला जायेंगे न आप और हम.फ़िर जरा सोचिये उन मासूमों पर क्या गुजराती होगी जब उनका अच्च्छा खासा नाम बिगाड़ कर उन्हें बुलाया जाता होगा.जब दिनेश कुमार को दिनुआ,रत्तन कुमार को रत्तू,लाल सिंह को ललुआ या लालू..कह कर बुलाया जाता है.
और बच्चों के इस नाम बिगाड़ने की परम्परा ..उनके अपमान..उनके आत्म सम्मान को ठेस पहुँचाने के लिए हम आप सभी जिम्मेदार हैं.और हम ही बच्चों को इस मानसिक संताप…अपमान और नाम बिगाड़ कर बुलाने से उनके अन्दर जीवन भर के लिए पनप रही कुंठा,हीन भावना से मुक्ति दिला सकते हैं.
तो आइये कम से कम हम लोग ही मिल कर इस दिशा में कुछ करें.कम से कम हम ब्लोगर ही ये निश्चय कर लें की हम मासूमों को उनके सही नामों से सम्मान जनक ढंग से बुलाएँगे.नाम बिगाड़ कर नहीं.
हेमंत कुमार
3 टिप्पणियाँ:
... बहुत ही प्रसंशनीय लेख है, एट्रोसिटी एक्ट की तरह ही एक नया एक्ट बनना चाहिये ताकि इस मजाकिया प्रवृति को रोका जा सके, वास्तव मे यह एक गम्भीर मुद्दा है इस पर राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास होना चाहिये ।
श्रीवास्तव जी बहुत ही अच्छा संदेश आपने दिया है /वाकई ये प्रथा बहुत पुरानी है और शायद नाम शोर्ट में बोलना भी इसका कारण रहा हो सकता है /हमारे यहाँ जैसे जैसे लोगों के पास पैसा बढ़ता जाताहै उसका नाम भी बदल जाता है "" माया तेरे तीन नाम परसू ,परसा ,परसराम "/
श्रीवास्तव जी बहुत ही अच्छा संदेश आपने दिया है /वाकई ये प्रथा बहुत पुरानी है और शायद नाम शोर्ट में बोलना भी इसका कारण रहा हो सकता है /हमारे यहाँ जैसे जैसे लोगों के पास पैसा बढ़ता जाताहै उसका नाम भी बदल जाता है "" माया तेरे तीन नाम परसू ,परसा ,परसराम "/
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