शिक्षा का अधिकार
बुधवार, 5 नवंबर 2008
शिक्षा का अधिकार
अंततः हमारे देश के छः से चौदह साल के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा मुहैया कराने वाले विधेयक को सरकार की मंजूरी मिल ही गई . संभवतः यह बिल दिसम्बर २००८ मैं संसद मैं पेश किया जाएगा . यदि यह बिल पास हो जाता है तो यह हमारे देश की एक बड़ी उपलब्धि होगी ।
शिक्षा के अधिकार सम्बन्धी बिल से हमारे देश के बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा पाने का हक़ मिल सकेगा . इस विधेयक के माध्यम से संसद द्वारा कुछ साल पहले मंजूर किए गए ८६वेइन संविधान संशोधन का क्रियान्वित किया जा सकेगा . .इसमे छः से चौदह साल के बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार देने की बात कही गई है .
लेकिन सवाल यह है की क्या सिर्फ़ बच्चों को ये अधिकार दे देने से ही हमारे देश की निरक्षरता दूर हो सकेगी ? देश आज़ाद होने के बाद बने संविधान में भी शिक्षा को हर बच्चे का मोलिक अधिकार कहा गया था . उसके बाद कई आयोग बने , समितियां बनीं ,रिपोर्टें तैयार हुईं , पर नतीजा क्या रहा ?
१९८६ में बनी राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी छः से चौदह साल के सभी बच्चों को प्राथमिक शिक्षा मुहैया कराने की बात कही गई है . १९८६ की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में लड़के-लड़कियों को समान अधिकार देने ,लड़कियों की शिक्षा के विशेष प्रयास ,स्कूल न आ सकने वाले बच्चों को अनौपचारिक शिक्षा देने ,तथा १५ से ३५ साल के प्रौधों के लिए प्रौढ़ शिक्षा को गति देने की बात की गयी है . राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बाद पूरे देश में ओपरेशन ब्लैक बोर्ड नामक महायोजना , फ़िर सबको शिक्षा सबको स्वास्थय (लक्ष्य २०००), दी.पी.ई.पी;और अब सर्व शिक्षा अभियान और मिड दे मील . इन योजनाओं पर विश्व बैंक एवं भारत सरकार का अच्छा खासा धन खर्च हो रहा है . इन कोशिशों से सफलताएं भी मिल रही हैं . पर क्या हम अभी तक अपने देश की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को वह स्वरुप दे पाए जो भारत जैसे विकासशील देश में होनी चाहिए थी?
जब हम बच्चों को मुफ्त किताबें,ड्रेस,मद्ध्यांह भोजन,टी.वी ,एवं कम्प्यूटर द्बारा शिक्षा के अवसर सभी कुछ दे रहे हैं तो भी अभी तक हमारे देश की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था पटरी पर क्यों नहीं आ सकी .
संभवतः इस शिक्षा के अधिकार सम्बन्धी विधेयक के पास होने के बाद स्थितियों में बदलाव आ सकता है . लेकिन इसके लिए हमारी सरकार को कुछ कठोर नियम बनने की जरूरत है . हमारे कई पड़ोसी देशों में स्कूल जाना हर बच्चे के लिए अनिवार्य कर दिया गया है . १९९४ के आस पास चीन में नोऊ साल तक के बच्चों के लिए शिक्षा अनिवार्य कर दी गई है . .बच्चों को स्कूल न भेजने वाले अभिभावकों पर आर्थिक दंड का भी प्रावधान वहां है. थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इन्डोनेशिया आदि देशों में पहले ही शिक्षा अनिवार्य कर दी गयी थी . फ़िर हमें किस बात का इंतज़ार है?
हमारी सरकार को शिक्षा के मौलिक अधिकार सम्बन्धी विधेयक को पास करने के साथ कुछ कठोर नियम एवं दंड भी बनने चाहिए –
*जो अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं उनके ऊपर ५ या १० रुपये प्रतिमाह का आर्थिक दंड लगाया जाया .
*जिस स्कूल में नामांकित होने के बाद बच्चे स्कूल आना बंद कर दें उन स्कूलों के प्रधानाचार्य , अध्यापकों की वेतन वृद्धि रोक लेने जैसा या अन्य कोई दंड .
* जिस गाँव के बच्चे स्कूल नही जा रहे हों वहाँ के प्रधानों पर भी कोई अर्थ दंड .
इसके साथ ही शिक्षा व्यवस्था में नीचे से ऊपर तक व्याप्त भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए कोई ओर कठोर नियम .
यदि हमारी सरकार इन मुद्दों पर भी विचार करे तो शायद हम अपने देश की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर ला सकें .
हेमंत कुमार
०४.०११.०८
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3 टिप्पणियाँ:
god aapke sath hai,
narayan narayan
आपका हर्दिक स्वागत है ।
कविता गज़ल के लिए मेरे ब्लोग पर पधारें ।
ब्लोगिंग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है. लिखते रहिये. दूसरों को राह दिखाते रहिये. आगे बढ़ते रहिये, अपने साथ-साथ औरों को भी आगे बढाते रहिये. शुभकामनाएं.
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साथ ही आप मेरे ब्लोग्स पर सादर आमंत्रित हैं. धन्यवाद.
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