शनिवार, 1 नवंबर 2008
ब्लॉग क्यों ?
मैं पिछले लगभग तीन दशकों से बच्चों के लिए काम कर रहा हूँ ।प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों ही माध्यमों के द्वारा ।फ़िर मुझे ब्लॉग शुरू करने की जरूरत क्यों पड़ गयी । बात बहुत सीधी सी है । मुझे इधर ये दोनों माध्यम नाकाफी लग रहे थे । लोगों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए ।
मुझे लग रहा था की मुझे कोई तीसरा माध्यम भी अपनाना चाहिए ।
दूसरी बात यह है की ,मैं एक ऐसे मंच का निर्माण भी करना चाह रहा था जिस पर मैं बच्चों के लिए काम करने , चिंता करने वाले दुनिया भर के लोगों को अपने साथ जोड़ सकूं ।
इस समय पूरी दुनिया भर में बच्चों की जो स्थिति है ,
उससे हर संवेदनशील व्यक्ति परिचित होगा .(खासकर अविकसित देशों के बच्चों की ).एक तरफ़ उन्हें अशिक्षा , गरीबी प्रदुषण जैसी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है तो दूसरी तरफ़ उनका साबका कुपोषण ,और एड्स जैसी बीमारियों से भी पड़ रहा है .
आज दुनिया भर में बढ़ते आतंकवाद के कारन हर देश के बच्चों का बचपन डर और अनजाने भय की लम्बी अभेद्य सुरंगों में खोता जा रहा है . दुनिया के हर देश के बच्चे आज मजबूर हो गए है रात रात भर जागने और बार बार डर कर आँखें बंद कर लेने के लिए ।
मैंने कुछ दिनों पहले एक कविता ऐसे ही बच्चों की मानसिक स्थितियों पर लिखी थी ।इसे आप भी पढिये ।
भयाक्रांत
उसकी आँखों की
पुतलियों में
अब नहीं होती
कोई हलचल
सतरंगे गुब्बारों
और लाल पन्नी वाले
चश्मों को देख कर ।
नहीं फड़कते हैं अब
उसके होंठ
बांसुरी बजाने के लिए
नहीं मचलती हैं उसकी उंगलियाँ
रंगीन तितलियों के मखमली स्पर्श
को महसूस करने के लिए ।
उसके पावों में
नहीं होती कोई हलचल
अब
गली में मदारी की
दुग्दुगी की आवाज सुनकर ।
नहीं उठाती है उसकी गुलेल
कच्ची अमियों पर निशाना
लगाने के लिए .
पिछले कुछ दिनों से
उसकी आँखों में
जम गया है खून
होंठों पर लग गया है ताला
लग गयी है जंग
हाथों और पांवों में ।
जब से उसने देखा है
अपने गाँव की कच्ची गलियों में
फौलादी मोटरों की कवायद
संगीनों की चमक
और बारूद के धमाकों के बीच
अपनी बूढी दादी और बड़ी बहन
की लाशों को
खाकी वर्दी द्वारा
घसीटे जाते हुए ।
बच्चों की इन हालातों को हम कैसे बदल सकते हैं ?उन्हें एक सामान्य जीवन देने के लिए हम क्या कर सकते हैं?आप भी यदि इन मुद्दों पर कुछ सोच रहे हैं तो क्रिएटिव कोना
में आप का खुले दिल से स्वागत है ।
हेमंतकुमार 01।11.08
मैं पिछले लगभग तीन दशकों से बच्चों के लिए काम कर रहा हूँ ।प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों ही माध्यमों के द्वारा ।फ़िर मुझे ब्लॉग शुरू करने की जरूरत क्यों पड़ गयी । बात बहुत सीधी सी है । मुझे इधर ये दोनों माध्यम नाकाफी लग रहे थे । लोगों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए ।
मुझे लग रहा था की मुझे कोई तीसरा माध्यम भी अपनाना चाहिए ।
दूसरी बात यह है की ,मैं एक ऐसे मंच का निर्माण भी करना चाह रहा था जिस पर मैं बच्चों के लिए काम करने , चिंता करने वाले दुनिया भर के लोगों को अपने साथ जोड़ सकूं ।
इस समय पूरी दुनिया भर में बच्चों की जो स्थिति है ,
उससे हर संवेदनशील व्यक्ति परिचित होगा .(खासकर अविकसित देशों के बच्चों की ).एक तरफ़ उन्हें अशिक्षा , गरीबी प्रदुषण जैसी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है तो दूसरी तरफ़ उनका साबका कुपोषण ,और एड्स जैसी बीमारियों से भी पड़ रहा है .
आज दुनिया भर में बढ़ते आतंकवाद के कारन हर देश के बच्चों का बचपन डर और अनजाने भय की लम्बी अभेद्य सुरंगों में खोता जा रहा है . दुनिया के हर देश के बच्चे आज मजबूर हो गए है रात रात भर जागने और बार बार डर कर आँखें बंद कर लेने के लिए ।
मैंने कुछ दिनों पहले एक कविता ऐसे ही बच्चों की मानसिक स्थितियों पर लिखी थी ।इसे आप भी पढिये ।
भयाक्रांत
उसकी आँखों की
पुतलियों में
अब नहीं होती
कोई हलचल
सतरंगे गुब्बारों
और लाल पन्नी वाले
चश्मों को देख कर ।
नहीं फड़कते हैं अब
उसके होंठ
बांसुरी बजाने के लिए
नहीं मचलती हैं उसकी उंगलियाँ
रंगीन तितलियों के मखमली स्पर्श
को महसूस करने के लिए ।
उसके पावों में
नहीं होती कोई हलचल
अब
गली में मदारी की
दुग्दुगी की आवाज सुनकर ।
नहीं उठाती है उसकी गुलेल
कच्ची अमियों पर निशाना
लगाने के लिए .
पिछले कुछ दिनों से
उसकी आँखों में
जम गया है खून
होंठों पर लग गया है ताला
लग गयी है जंग
हाथों और पांवों में ।
जब से उसने देखा है
अपने गाँव की कच्ची गलियों में
फौलादी मोटरों की कवायद
संगीनों की चमक
और बारूद के धमाकों के बीच
अपनी बूढी दादी और बड़ी बहन
की लाशों को
खाकी वर्दी द्वारा
घसीटे जाते हुए ।
बच्चों की इन हालातों को हम कैसे बदल सकते हैं ?उन्हें एक सामान्य जीवन देने के लिए हम क्या कर सकते हैं?आप भी यदि इन मुद्दों पर कुछ सोच रहे हैं तो क्रिएटिव कोना
में आप का खुले दिल से स्वागत है ।
हेमंतकुमार 01।11.08
4 टिप्पणियाँ:
sir,it is a pleasure to see that in today's world,where a mad-rush is going on and people dont have the time to take care of themselves,there are active people like you who still care for the world's children....there are people who think, who speak ,who promise, but very less people who keep their word...n take things seriously....and i think u r one among them......Now since you have started this blog...surely ppl will come up n will make this world a bettr place to live in ....as children are the future of this world....n working 4 their bttrmnt means wrkng 4 the bttrmnt of mankind....lookng 4ward to more such wondrful aticles n poems.......
Dear Sir, there is still a lot needed to be done for bringing a paradigm shift in the lives of millions of the downtrodden, uneducated and below poverty line children. Since, these children are the future of our nation special emphasis should be given for their socio-economic upgradation. I appreciate your efforts. Best wishes.
Hemant Ji,
Aap Ka blog padha bahut achha laga. Especially I was extremely impressed with your selfless devotion and your work with children and caring for them. This world needs more people like you. Please keep up good work and keep this beacon of hope lit-up for these kids to get directions and motivation.
Aashoo
so many thanx for ur apperciation..
thanx a lot sir...i have seen ur work..ur creativity..its too gud..
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