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हमारे जनप्रतिनिधियों को जरूर पढनी चाहिए यह किताब ---“आनन्द नगर”

मंगलवार, 30 जून 2020


हमारे जनप्रतिनिधियों को जरूर पढनी चाहिए यह किताब
    त्याग,सेवा समर्पण की गाथा--डोमिनिक लापिएर कृत-आनन्द नगर
                                                                         



           हमारे देश में वैसे तो प्राचीन काल से लोगों में दीन दुखियों,गरीबों के प्रति सेवा और सहृदयता का भाव रहा है।लेकिन पिछले दो दशकों में गरीबों,दुखियों की सेवा करने की भावना व्यक्तियों से हटकर संस्थाओं में समाहित होती जा रही है।संस्थाओं से मेरा तात्पर्य एन जी ओ यानि स्वयं सेवी संगठनों से है।हाल के वर्षों में हमारे देश में इतनी तेजी के साथ हजारों की संख्या में एन जी ओ खुल गये हैं कि हर गली कूचे में आपको किसी एन जी ओ का बोर्ड दिख जायेगा।लेकिन दुख की बात यह है कि इन संगठनों का मकसद गरीबों,दुखियों की सेवा या विकास न होकर देश और विदेश की तमाम वित्तीय एजेंसियों से अनुदान इकट्ठा करना है।
      इसके साथ ही मैं यह किताब अपने देश के समस्त माननीय जनप्रतिनिधियों को भी पढने की सलाह दूंगा जो गरीबों,किसानों,दलितों,आर्थिक रूप से अपवंचितों के लिए काम करने का बीड़ा उठा कर समाज सेवा की पवित्र भावना लेकर इस क्षेत्र में आये हैं। तथा जिन्हें यहाँ की जनता उसी गरीब जनता ने चुना है।   
    बहरहाल मेरा मकसद यहां एन जी ओ पर लिखना नहीं है।बल्कि उस पुस्तक के बारे में लिखना है जिसे भारत ही नहीं दुनिया के हर व्यक्ति को पढ़ना चाहिये।खासकर उन युवाओं को जो एन जी ओ सेक्टर में काम कर रहे या जाने की मंशा रखते हैं तथा हमारे समस्त सम्माननीय जनप्रतिनिधियों को भी।
 यह पुस्तक है डोमिनीक लापिएर की सिटी आफ़ ज्वाय। मैंने इस पुस्तक का हिन्दी रूपान्तर आनन्द नगर पढ़ी है।इस कोविड महामारी के दौरान ही मैंने इसे दोबारा पढ़ा।तो मुझे लगा की इस किताब की चर्चा आज के किसानों मजदूरों के सन्दर्भ में पुनः होनी ही चाहिए।ऐसे वक्त में जब कि देश के लाखों किसानों,मजदूरों के शहरों से पलायन,उनकी तमाम दुश्वारियों के बारे में हर जगह चर्चा हो रही।उनकी सहायता को तमाम सरकारी,गैरसरकारी संस्थाएं,एन0जी०ओ० और व्यक्तिगत स्तर पर तमाम लोग प्रयास कर रहे। यह तो निश्चित है कि आप इस किताब को एक बार पढ़ना शुरू करके खतम किये बिना दूसरा काम नहीं करेंगे।
             आनन्द नगर सचमुच एक आनंद नगर ही है्।ड़ोमिनीक लापियेर ने इस किताब के बारे में खुद लिखा हैयह उन पुरुषों,स्त्रियों और बच्चों की कहानी है,जिन्हें प्रकृति और विपरीत परिस्थितियों ने उनके घर से उखाड़ फ़ेंका है।यह कहानी है इस बारे में कि लोग अविश्वसनीय कठिनाइयों के बावजूद किस प्रकार जिंदा रहना,आपस में मिल बांट कर खाना और परस्पर स्नेह करना सीखते हैं।
              आनन्द नगर की कहानी शुरू होती है पश्चिमी बंगाल के बांकुली गांव से कुछ दूरी पर रहने वाले गरीब किसान हसारी पाल के घर से।दुर्भिक्ष और गरीबी का शिकार होकर हसारी पाल भी हजारों किसानों की तरह गांव छोड़कर अपनी पत्नी और बच्चों के साथ महानगर कलकत्ता (कोलकाता) की ओर कूच कर जाता है।उस महानगर कलकत्ते में जो हजारों लाखों लोगों को रोज अपने उदर में समाहित करने की क्षमता रखता है।कलकत्ता महानगर में पहुंचने के बाद हसारी पाल जैसे किसानों को किन मुसीबतों का सामना करना पड़ता है,उन्हें मलिन बस्तियों में जानवरों से भी बद्तर कैसा जीवन बिताना पड़ता है यह आप आनन्द नगर में पढ़ सकते हैं।
                 किताब का दूसरा प्रमुख चरित्र स्टीफ़न कोवाल्स्की पोलैण्ड से आया हुआ एक 32 वर्षीय पादरी है।स्टीफ़न पश्चिम की सुख सुविधा छोड़कर भारत के कलकत्ता शहर में सिर्फ़ उन दीन,दुखियों,कोढ़ियों की सेवा करने आया था जिनमें हमेशा उसे प्रभु ईसा मसीह के दर्शन होते हैं।वह अपने पादरी मित्रों के लाख कहने के बावजूद कलकत्ता की उसी मलिन बस्ती में रहता है जहां एक छोटे से मैदान में हजारों झोपड़ियों में सत्तर हजार हसारी पाल जैसे लोग रहते थेआनन्द नगर एक ऐसा स्थान जहां झोपड़ियों में मनुष्यों के साथ कीड़े मकोड़ों से लेकर विषैले जीव जन्तु भी रहते थे। चौबीसों घण्टे खुली नालियों में कीड़े बजबजाते हैं जहां के लोग सड़ास और नाली की सड़ान्ध और बद्बू के अलावा दूसरी गन्ध के बारे में जानते ही नहीं थे।ऐसी बस्ती का नाम था आनन्द नगर।
         ऐसी बस्ती में रहकर दलितों,गरीबों और ऐसे कोढ़ियों की सेवा----जिनके शरीर को छूना तो दूर आप उनके पास खड़े ही न हो पायें। यह काम सिर्फ़ स्टीफ़न कोवाल्स्की के बूते का था।और स्टीफ़न ने यह किया भी।वह उसी बस्ती में रहकर सुबह,शाम,रात, हर समय आनन्द नगर के निवासियों  की सेवा में तत्पर था।वह उन्हीं कोढ़ियों के बीचबैठकर उन्हीं के हाथों से बनाया गया दाल भात खाता था।उन्हीं के साथ खेलता था।घूमता था।उन्हीं की तरह खुले नल से नहाता था।और उन्हीं की तरह हजारों  लाखों मच्छरों,के दंश के बीच झुग्गी में सोता था।
            हसारी पाल के माध्यम से लेखक ने भारत के उन लाखों करोड़ों झुग्गीवासियों के संघर्ष की गाथा लिखी है जिन्हें जिन्दा रहने के लिये अपने जीवन के हर पल की कीमत चुकानी पड़ती है।जो तमाम सपने लेकर अपने गांव से किसी महानगर में पहुंच तो जाते हैं।लेकिन रिक्शा चलाने, कुलीगीरी,प्लेटें धोने,भीख मांगने से लेकर ब्लड बैंकों में खून बेचने के बावजूद अपने परिवार को दो जून का भात नहीं खिला पाते।महानगर की तमाम विसगतियों,बीमारियों,महामारियों को झेलना और मरते रहना उनकी नियति है।इसके बावजूद उनके अन्दर जीवन जीने की जो अदम्य लालसा है वही उनकी प्राण शक्ति बन कर उन्हें नये रास्ते दिखलाती है।वे भीड़ के रेले में धक्का खाकर धूल में गिरते हैं फ़िर और फ़िर अगले ही पल उसी जोश के साथ नये रास्ते की खोज में निकल पड़ते हैं।
       उन्हें इन्हीं परिस्थितियों से निकालने और उन्हें एक बेहतर जीवन की ओर ले जाने के लिये ही स्टीफ़न कोवाल्स्की भारत आये थे।और उन्होंने इसका प्रयास भी किया। सफलता असफ़लता मिलने का मुद्दा अलग है।
                मेरा इस पुस्तक के बारे में लिखने का मकसद सिर्फ़ यह है कि यहां के युवाओं और समस्त समाजसेवियों को यह पुस्तक जरूर पढ़नी चाहिये।खासकर जो एन जी ओ सेक्टर में जाने के इच्छुक हैं,समाजसेवा की इच्छा रखते हैं या फिर जनप्रतिनिधि के रूप में समाज के गरीबों,दलितों, अपवंचितों के लिए कुछ बेहतर करने की ख्वाइश दिल में रखते हैं।उन्हें स्टीफ़न कोवाल्स्की के चरित्र से प्रेरणा तो मिलेगी ही।साथ ही वो समझ सकेंगे कि मानव सेवा है क्या?इस रास्ते में क्या रुकावटें आती हैं?और हम उन रुकावटों को कैसे दूर कर सकते हैं?
                यदि आपने अभी तक यह पुस्तक आनन्द नगर नहीं पढ़ी है तो एक बार इसे पढ़िये जरूर।निश्चित रूप से इसे पढ़ कर आपका जीवन पूरी तरह बदल जायेगा।और शायद आप अपने जीवन में वह कुछ कर सकेंगे,वह पा सकेंगे जो आप पाना चाहते थे।
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डा0हेमन्त कुमार

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. ‘देख लूं तो चलूं’ "आदिज्ञान" का जुलाई-सितम्बर “देश भीतर देश”--के बहाने नार्थ ईस्ट की पड़ताल “बखेड़ापुर” के बहाने “बालवाणी” का बाल नाटक विशेषांक। “मेरे आंगन में आओ” ११मर्च २०१९ ११मार्च 1mai 2011 2019 अंक 48 घण्टों का सफ़र----- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अण्डमान का लड़का अनुरोध अनुवाद अभिनव पाण्डेय अभिभावक अम्मा अरुणpriya अर्पणा पाण्डेय। अशोक वाटिका प्रसंग अस्तित्व आज के संदर्भ में कल आतंक। आतंकवाद आत्मकथा आनन्द नगर” आने वाली किताब आबिद सुरती आभासी दुनिया आश्वासन इंतजार इण्टरनेट ईमान उत्तराधिकारी उनकी दुनिया उन्मेष उपन्यास उपन्यास। उम्मीद के रंग उलझन ऊँचाई ॠतु गुप्ता। एक टिपण्णी एक ठहरा दिन एक तमाशा ऐसा भी एक बच्चे की चिट्ठी सभी प्रत्याशियों के नाम एक भूख -- तीन प्रतिक्रियायें एक महत्वपूर्ण समीक्षा एक महान व्यक्तित्व। एक संवाद अपनी अम्मा से एल0ए0शेरमन एहसास ओ मां ओडिया कविता ओड़िया कविता औरत औरत की बोली कंचन पाठक। कटघरे के भीतर कटघरे के भीतर्। कठपुतलियाँ कथा साहित्य कथावाचन कर्मभूमि कला समीक्षा कविता कविता। कविताएँ कवितायेँ कहां खो गया बचपन कहां पर बिखरे सपने--।बाल श्रमिक कहानी कहानी कहना कहानी कहना भाग -५ कहानी सुनाना कहानी। काफिला नाट्य संस्थान काल चक्र काव्य काव्य संग्रह किताबें किताबों में चित्रांकन किशोर किशोर शिक्षक किश्प्र किस्सागोई कीमत कुछ अलग करने की चाहत कुछ लघु कविताएं कुपोषण कैंसर-दर-कैंसर कैमरे. कैसे कैसे बढ़ता बच्चा कौशल पाण्डेय कौशल पाण्डेय. कौशल पाण्डेय। क्षणिकाएं क्षणिकाएँ खतरा खेत आज उदास है खोजें और जानें गजल ग़ज़ल गर्मी गाँव गीत गीतांजलि गिरवाल गीतांजलि गिरवाल की कविताएं गीताश्री गुलमोहर गौरैया गौरैया दिवस घर में बनाएं माहौल कुछ पढ़ने और पढ़ाने का घोसले की ओर चिक्कामुनियप्पा चिडिया चिड़िया चित्रकार चुनाव चुनाव और बच्चे। चौपाल छिपकली छोटे बच्चे ---जिम्मेदारियां बड़ी बड़ी जज्बा जज्बा। जन्मदिन जन्मदिवस जयश्री राय। जयश्री रॉय। जागो लड़कियों जाडा जात। जाने क्यों ? 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