गौरैया से----
शनिवार, 20 मार्च 2010
प्यारी गौरैया
क्यों रूठ गई हो तुम
हमसे
पिछले कुछ सालों से।
मेरा आंगन घर
और खपरैले पर फ़ैली
लौकी की बेल
सब बाट जोह रहे
तुम्हारी वापसी का।
तुम्हारी
चीं चीं चूं चुं से ही
हमारी सुबह होती थी
आंगन में तुम्हारे फ़ुदकने
के साथ ही तो
हम भी
शुरू करते थे धमाचौकड़ी।
प्यारी गौरैया
फ़िर क्यों रूठ गयी हो तुम
हमसे
पिछले कुछ सालों से।
याद होगा तुम्हें भी
हमारा बचपन
सबेरे जब मां आंगन में
बंसेहटी पर हमें
खाना खिलाने बैठती
कितना निडर होकर
तुम आ बैठती थी
बंसेहटी के पावे पर
मां चीखती
बड़ी ढीठ गौरैया।
कहिं तुम इसी से तो
नाराज नहीं हो गयी?
प्यारी गौरैया
सुना है आज
पूरी दुनिया भर में
तुम्हें मनाने
आंगन में वापस बुलाने
और
तुम्हारी प्रजाति बचाने
के लिये
गौरैया दिवस मना रहे हैं
सारे लोग
तुम्हें वापस बुलाने के
ढेरों उपाय और जतन
कर रहे हैं
दुनिया भर के लोग।
प्यारी गौरैया
एक बार ---
सिर्फ़ एक बार तुम
माफ़ कर दो
हम सभी को
लौट आओ फ़िर से हमारे
आंगन और खपरैलों पर
मैं तुम्हें कर रहा हूं आश्वस्त
अब नहीं कहेंगी मां तुम्हें कभी
ढीठ गौरैया
नहीं रंगेंगे पिताजी
तुम्हारे कोमल पंखों को
गुलाबी रंग से
नहीं डांटेगा
तुम्हें कोई भी
शैतान गौरैया कहकर।
बोलो
प्यारी गौरैया
तुम वापस आओगी न
फ़िर से
मेरे आंगन में?
0000
हेमन्त कुमार
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