रिमझिम पड़ी फ़ुहार
बुधवार, 3 अगस्त 2011
भीग उठा बादल के नीचे
पूरा घर संसार।
डूबा आंगन छप्पक छैया
बच्चे ढूंढ़ें छोटी नैया
मेढक कूदें ताल तलैया
इंद्र्धनुष में पंख पसारे
दिखते रंग हजार ।
रिमझिम पड़ी फ़ुहार…।
हल की फ़ाल में साम धराने
धरती का सोंधापन पाने
खाद बीज का जुगत लगाने
बैलों की घंटी सजवाने
निकले सब बाजार ।
रिमझिम पड़ी फ़ुहार-----।
बंसवारी में बोले झींगुर
हंसी दामिनी कड़क कड़क कर
गोरी सहमी घूंघट के भीतर
सपने बादल के पंखों पर
लेके आये बहार ।
रिमझिम पड़ी फ़ुहार
भीग उठा बादल के नीचे
पूरा घर संसार ।
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हेमन्त कुमार