रस्म में दफन इन्सानियत
बुधवार, 15 जून 2011
चिडियों का झुंड जीवन
उडना साथ साथ
सांस फेफ़ड़ों में 
जीवन होना।
पर दो जोडी आंखों वाले  
जादूगर ने खींच लिया था
उस मासूम की नजरों को 
अपनी ओर
जो दूर गगन की छाँव में
सकून से उड़ रही थी।
नजर यहाँ एक रस्म है
जो  उड़ता है वह खिंचता भी है
इस तरह वह थी झुंड से दूर
साथ जादूगर के।
वह चंगुल मे थी
पर
वक्त का ख्याल था कि
नसीब है उसका।
चिड़िया ने लम्हा लम्हा सांस 
पिला दिया था 
दो जोडी आंखों को
पर हर बार बडी ही निर्ममता से
वह एक एक कर 
पंखो को खींचता
रिसते खून पर कालिख पोत देता।
आज बेबस बेपंख थी 
वह 
चोंच मारना सीख रही थी
पर डर भी जाती
अपने पास से
गुजर जाने वाली हवाओं से भी।
रस्म भी ऐसी क्यों होती है
जो दफन करती है इंसानियत !!!!!
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कवियत्री---सन्ध्या आर्या----परिचय उन्हीं के शब्दों में----पिछले 14 सालो से मुम्बई मे प्रवास।   पिछ्ले दो साल से ब्लोग पढती रही हूँ और एक साल से कविताये लिख रही हूँ। साहित्य से कोई खास लगाव नही रहा, पर पता नही कब कुछ लिखने लगी। और लोगो ने उसे कविता कहना शुरू कर दिया। हाँ, मुम्बई के साहित्यिक सांस्कृतिक  कार्यक्रमो मे अक्सर हिस्सा लेती रहती हूँ।


