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मंगलवार, 20 नवंबर 2012


कीमत

पुरस्कार
सम्मान
मरणोपरान्त……परमवीर चक्र
और अब मुआवजा……शोक संवेदना पत्र,
ये पांच शब्द ईजाद किये हैं
हमारी संसद ने
पिछले पैंसठ सालों में
भूख से कुलबुलाती  अंतड़ियों का
पेट भरने के लिये।

फ़िक्स कर दिया है रेट
हमारी संसद ने
देश की जनता के
हर काम हर कुर्बानी
उनके साथ घटने वाली
घटनाओं,दुर्घटनाओं और
हादसों का।

लिखने पर किसी खद्दरधारी की
यशोगाथा
मिलेगा सम्मान या
पुरस्कार अंगवस्त्रम
पत्रं पुष्पं और रूपये इक्यावन हज़ार
कारगिल में शहादत पर
मिलेगा मरणोपरान्त चक्र
और छोड़ दिया जायेगा परिवार
राम भरोसे/सड़क पर भटकने को।

मरने पर किसी दुर्घटना/बिल्डिंग कोलैप्स
या किसी मेले की भगदड़ में
परिवार को मिलेंगे रुपये
दो,एक लाख या फ़िर पचास हजार।

अगर गलती से भी मौत
हो जाती है किसी युवक की
नौकरी खोजने के दौरान
किसी सेप्टिक टैंक में गिरने
या धूप में बेहोश होने से
(कहने कोअसली वजह है भूख)
तो मृतक के परिवार को मिलेंगे
रूपये पच्चीस हजार
नगर प्रशासन से,
और पचास हजार
प्रधानमंत्री सहायता कोष से।

इन सब से भी अलग
अगर आप मर जाते हैं
किसी थू थू/धिक्कार
या शक्ति प्रदर्शन रैली के दौरान
प्लेटफ़ार्म पर मची भगदड़ में
ट्रक पलटने अथवा
मंच ढहने पर उसके नीचे दबकर
तो
इत्मिनान रखिये आप
आपके शवदाह का खर्च भी
परिवार वालों को नहीं उठाना होगा
आपका शव
बहा दिया जाएगा किसी नदी में
या दफ़ना दिया जाएगा कब्रिस्तान में
क्योंकि आपके शव की शिनाख्त ही
नहीं हो सकी थी
फ़िर कुछ दिनों के बाद
आपके परिवार को मिलेगा
रैली की आयोजक पार्टी
की ओर से
सिर्फ़ एक शोक संवेदना पत्र।

अब ये
तय करना है आपको
कि आपको कौन सी मौत चाहिये
हमारी संसद तो
हर तरह से तैयार है।
0000
हेमन्त कुमार


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बैग में क्या है---?

शुक्रवार, 10 अगस्त 2012

    (हिन्दी में बच्चों को लेकर कविताएं बहुत ज्यादा नहीं हैं।बहुत कम रचनाकार बच्चों को अपना विषय बनाते हैं या फ़िर उनके अन्तर्मन में झांकने की कोशिश करते हैं। जबकि आज बच्चों की हालातों के बारे में हम सभी को सोचना लिखना चाहिये। आज मैं शैलजा पाठक की एक ऐसी ही कविता प्रकाशित कर रहा हूं।       
      मुंबई---महानगरकक्षा सात में पढ़ने वाली एक मासूम लड़की की आत्महत्या की खबर किसी भी संवेदनशील मन व्यक्ति को विचलित और उद्वेलित कर देगी।इस घटना ने शैलजा पाठक के अन्तर्मन को कितना अधिक व्यथित किया था ये बात हम उनकी इस कविता में देख सकते हैं--- )


बैग में क्या है?
बिस्कुट है पानी है
परियां हैं कहानी है
(बच्चे इतना ही जानते हैं चाहते हैं)
लेकिन बैग में इनके
बिखरा सा भारत है
नदियां हैं झरने हैं
नेता के धरने हैं
बैग में मेरे
मम्मी के सपने हैं
टीचर का गुस्सा है
नम्बर हैं अक्षर हैं
पीठ पर भार सा
बिजली के तार सा
सहमा हुआ चिपका हूं
बैग के अंदर तो
आगे की सोच है
छूने से डरता हूं
हमको भी कहने दो
अपनी सी करने दो
मैं तुम्हारी जिन्दगी हूं
पर मेरी भी जिन्दगी है
जी नहीं पाऊंगा जो तुम यूं करोगे
कब कहूं कि बोझ है ये
थक गया हूं
कब कहूं कि चाहता कुछ और हूं मैं
मैं बता सकता हूं अपने मन की तुमसे
तुम जरा सा वक्त दो मुझको सुनो तुम
रोपते क्यों हो
नहीं है जिंदगी जिसमें हमारी
थोपते क्यों हो ये मुझ पर
जो नहीं बनना है मुझको
चाहते हो क्यों वही
जो दे नहीं सकता हूं तुमको
नन्हीं सी आंखों में
भविष्य का बोझ मत थोपो
अंकुर हूं पनपने से पहले
मौत की गोद में मत सौंपो------।
0000

शैलजा पाठक

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48 घण्टों का सफ़र-----

शनिवार, 4 अगस्त 2012


(काफ़ी पहले लिखी गयी कविता,जब मैं किसी सरकारी यात्रा पर था और पहली बार अपनी एक साल की बेटी से दो दिन अलग रहा था।)
नहीं आ रही कोई दस्तक
बाथरूम के दरवाजे पर
न बर्तनों की उठा पटक का शोर
न नन्हें कदमों के भागने की ध्वनि
न भू-भू की आवाजें।
सब कुछ शान्त होकर
सिमट गया है
मेरे व्यवस्थित सुसज्जित
अभेद्य सन्नाटे का कवच पहने हुये
कमरे के कोने में
पड़ी हुई गेंद के भीतर
पिछले 48 घण्टों से।
गली में गुब्बारे वाला
आवाज लगा कर
वापस लौट गया
सामने बालकनी में
छोटा पामेरियन उदास बैठा है
थम गयी है चीं चीं की आवाजें
बाहर टेरेस पर।
नहीं हुआ कोई प्रयास
आल्मारी में करीने से सजी
किताबों को फ़ाड़ने का
पिछले 48 घण्टों से।
ऐसा महसूस हो रहा है
अचानक होगा अभी कोई धमाका
फ़ूट जाएगी गेंद
टूट जाएगा सन्नाटे का
अभेद्य कव
कमरा हो जाएगा
फ़िर पहले की तरह गुंजायमान।
अचानक दो नन्हें कोमल हाथ
खींचेंगे मेरे बाल
और सुनाई पड़ेगी
एक मीठी कोमल आवाज
पापा सू सू आई----।
000
हेमन्त कुमार 

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मां का दूध अमृत समान

शुक्रवार, 3 अगस्त 2012


अपने बच्चे को स्तनपान कराने में मां एवं बच्चे दोनों को जिस सुख का अनुभव होता है उसे शब्दों में नहीं व्यक्त किया जा सकता है। उस अलौकिक सुख को या तो स्तनपान कराने वाली मां समझ सकती है या फ़िर वह अबोध शिशु। इस सुख से भी बढ़कर शिशु के विकास में भी स्तनपान की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है।उसके शरीर की वृद्धि,पोषण और मानसिक विकास भी इससे प्रभावित होता है। इसका कारण यह भी है कि दुनिया में आने के बाद शिशु को सबसे पहला आहार मां के दूध के रूप में मिलता है। यह आहार प्रकृति द्वारा शिशु को दिया गया एक ऐसा सम्पूर्ण आहार है जो कि उसे इस दुनिया में रहने,विकसित होने और बाहर के जीवाणुओं,बीमारियों से लड़ने की शक्ति भी प्रदान करता है।
             चूंकि पैदा होते ही शिशु को पहला चेहरा मां का ही दिखता है,सबसे पहले वह मां से ही परिचित होता है शायद इसी लिये प्रकृति ने स्वाभाविक रूप से मां के शरीर के माध्यम से ही उसे यह आहार देने की व्यवस्था भी कर दी है।
           लेकिन दुख की बात यह है कि स्तनपान के विषय में युवा माताओं एवम पिताओं को बहुत कम जानकारियां हैं। इसी लिये हम यहां स्तनपान से संबन्धित कुछ जरूरी बातें बता रहे हैं जिन्हें हर मां,पिता के साथ ही उन नव विवाहितों को भी जानना चाहिये जिन्हें भविष्य में मां,पिता बनना है।
(1)      जन्म के तुरंत बाद स्तनपान बहुत जरूरी:
                                            बच्चा पैदा होने के बाद शुरू के दो
 तीन दिनों में मां के स्तन से निकला हुआ दूध (खीस या कोलेस्ट्रम) बच्चों के लिये अमृत की तरह होता है। यही खीस ही बच्चों के शरीर को जीवन भर रोगों से लड़ने की ताकत देने के साथ उसके सम्पूर्ण विकास में भी सहायक बनता है। खीस दो तीन दिनों के बाद सामान्य दूध में बदल जाता है। यदि बच्चा शुरू में ही इसे नहीं पी पाता तो जीवन भर इस अमृत से वंचित रहेगा। इसी लिये बच्चे के पैदा होने के आधे घण्टे बाद से यह खीस पिलाना शुरू कर देना चाहिये। यदि बच्चा स्तन को मुंह में नहीं लगा रहा है(कुछ बच्चे शुरू में ऐसा करते हैं) तो किसी व्यक्ति  को चाहिये कि वह इस खीस को साफ़ चम्मच में निकाल कर बच्चे को पिलाये।इसी खीस को लेकर ही शायद छ्ठी का दूध याद दिलाने का मुहावरा भी बनाया गया है।बहुत से परिवारों में यह भी कहा जाता है कि खीस गन्दा दूध होता है इसे शिशु को नहीं पिलाना चाहिये। लेकिन यह बात तमाम शोधों से साबित हो चुकी है कि खीस पीने वाले बच्चों में आगे चलकर रोग रोधी शक्ति अधिक रहती है।
(2)      स्तनपान के फ़ायदे:
                 पैदाइश के बाद पहले चारसे छ महीनों तक बच्चे का पेट मां के दूध से ही भर जाता है।उसे इसके अलावा किसी दूसरे ऊपरी आहार की जरूरत नहीं रहती। स्तनपान के कुछ और भी फ़ायदे हैं जिन्हें हर मां को जानना चाहिये----0बच्चे को जरूरत के अनुसार शुद्ध और गरम दूध मिलता है। इस दूध से उसे दस्त नहीं आता।0मां का दूध आसानी से पच जाता है,इसीलिये इससे बच्चे के पेट में गैस नहीं बनती।0सबसे बड़ी बात यह है कि मां का दूध बच्चे की रोग रोधी ताकत (रेजिस्टेंस) को बढ़ाता है।0स्तनपान से मां और उसके शिशु को जो सुख मिलता है उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।इससे बच्चे के अन्दर सुरक्षा,प्यार और खुद को विशिष्ट मानने की भावना बढ़ती है।0स्तनपान से सबसे महत्वपूर्ण और अन्तिम फ़ायदा यह है कि बच्चे को स्तनपान कराने के दौरान मां को दुबारा गर्भ धारण करने की संभावना कम रहती है।(इसका यह मतलब कदापि नहीं कि आप परिवार नियोजन के उपायों को अपनाना छोड़ दें।)
   (3)स्तनपान कैसे करायें: आज भी बहुत सी माताओं को स्तनपान कराने का सही  तरीका नहीं मालूम है। हम स्तनपान कराने के  सही तरीके को यहां बता रहे हैं----
   0 शिशु को स्तनपान कराने के पहले हाथ एवं स्तन दोनों को अच्छी तरह धो लें।अन्यथा हाथ  या स्तनों पर मौजूद मैल दूध के साथ बच्चे के शरीर में भी जायेगी,जो उसके स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होगी।
0 बच्चे को स्तनपान हमेशा बैठ कर करायें। नहीं तो दूध बच्चे के कान या श्वास नली में जाकर उसे नुक्सान पहुंचा सकता है। पहले आप खुद व्यवस्थित ढंग से बैठ जायें। फ़िर बच्चे का सर अपनी बांह पर इस तरह रखें कि उसका सर स्तन से ऊंचा रहे। इससे उसके कान में दूध नहीं जायेगा।यदि आप दूध लेटकर ही पिलाना चाहें तो ध्यान रखें बच्चे की नाक कहीं से न दबे।
0 बच्चे को भूख के हिसाब से ही दूध पिलायें। एक बार 10-15 मिनट दूध पीकर बच्चा दो-तीन घण्टे तक भूख नहीं महसूस करेगा। दुबारा जब बच्चा चाहे तभी उसे स्तनपान करायें।
0 दूध पिलाकर बच्चे को अपने कंधे पर लिटा कर उसकी पीठ पर दो-तीन हल्की थपकियां दें ताकि बच्चा डकार ले। इससे बच्चा दूध उल्टेगा नहीं। अक्सर दूध पीने के बाद डकार न कराने पर शिशु डकार आने पर उसके साथ दूध भी बाहर उलट देते हैं। डकार करा देने से ऐसा नहीं होगा।यदि वह स्तनपान करते करते सो जाय तो उसे सोने दें।
0 यदि आपके स्तन में बच्चे की जरुरत से ज्यादा दूध आये तो उसे निकाल दें। नहीं तो स्तनों में कड़ापन और सूजन आ जायेगी। इससे आपको बच्चे को दूध पिलाने में परेशानी होगी।
0पहले 2-3 महीनों में बच्चा रात में भी मां को स्तनपान के लिये जगायेगा। रात में भी बच्चे को स्तनपान कराना नुक्सान दायक नहीं होता। दूध पीकर वह फ़िर सो जायेगा। कुछ महीनों बाद बच्चा जब रात में ठीक से सोने लगेगा तो धीरे धीरे रात में उसकी स्तनपान करने की आदत  खुद ही बन्द हो जायेगी।
             स्तनपान से सम्बन्धित ये कुछ ऐसी बातें हैं जिन्हें समझ और अपनाकर
   आप शिशु और अपना दोनों का ही जीवन संवार सकेंगी।
                
                  जन्म से छः सालों तक दो,बच्चे को प्यार सुरक्षा।
           बिन बाधा बढ़ता जायेगा ,बनेगा वो फ़िर बच्चा अच्छा॥
                           0000000
डा0हेमन्त कुमार

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पिता (दस क्षणिकाएं)

शनिवार, 16 जून 2012


आज पितृ दिवस पर मैं अपनी इन क्षणिकाओं के साथ अपनी बेटियों द्वारा बनाया गया यह चित्र पोस्ट कर रहा हूं।
(एक)
पिता
विशाल बाहुओं का छत्र
वट वृक्ष
हम पौधे
फ़लते फ़ूलते
वट वृक्ष की
छाया में।
000
(दो)
पिता
अनन्त असीमित आकाश
हम सब
उड़ते नन्हें पाखी।
000
(तीन)
हम
लड़खड़ाते
जब जब भी
सम्हालते पिता
आगे बढ़ कर
बांह पसारे।
000
(चार)
आंसू
बहते गालों पर
ढाढ़स देता
पिता के खुरदरे
हाथों का स्पर्श।
000
(पांच)
पिता
बन जाते उड़नखटोला
हम करते हैं सैर
दुनिया भर की।
000
(छः)
हमारी ट्रेन
खिसकती प्लेटफ़ार्म से
पिता
पोंछ लेते आंसू
पीछे मुड़कर।
000
(सात)
पिता
बन जाते हिमालय
कोई आक्रमण
होने से पहले
हम पर।
000
(आठ)
जब भी
आया तूफ़ान कोई
हमारे जीवन में
पिता बन गये
अजेय अभेद्य
दीवार।
000
(नौ)
पिता
बन गये बांध
समुन्दर को
बढ़ते देख
हमारी ओर।
000
(दस)
पिता
बन गये बिछौना
हमें नंगी जमीन पर
सोते देख कर।
000

डा0हेमन्त कुमार

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कैसे-कैसे बढ़ता बच्चा-----

शनिवार, 9 जून 2012


(आज इतना शिक्षित होने के बाद भी प्रायः बहुत से युवा माता पिता अपने नन्हें बच्चों की देखभाल सही ढंग से नहीं कर पाते।उन्हें यह भी नहीं पता होता कि पैदा होने के बाद से बच्चे की क्या जरूरतें रहेंगी?उनकी देख रेख कैसे की जाय?बच्चे के अंदर हर आने वाले दिन में क्या बदलाव आयेंगे?मैंने अपने इस लेख में पैदाइश से लेकर 5 वर्ष तक के बच्चों को पालने से सम्बन्धित कुछ खास बिन्दुओं को लिखने कोशिश की है।इससे शायद उन युवाओं को लाभ मिल सकेगा जिन्हें भविष्य में माता पिता बनना है।)

                   नारियों को प्रकृति की अनोखी रचना कहा गया है। अन्य बातों को छोड़ भी दें तो भी इस बात को दुनिया का कोई भी व्यक्ति नहीं नकार सकता है कि केवल नारियों का शरीर ही बच्चा रचने में समर्थ है। दुनिया की हर नारी बहुत ही उत्सुकता से उस दिन का इन्तजार करती है जब उसे मां बनने का सुख मिलेगा।इसीलिये हर नारी के साथ ही पुरुषों को भी बच्चों के पालन पोषण से सम्बन्धित कुछ बातें जरूर जाननी चाहिये।ताकि वे अपने बच्चों का सही विकास कर सकें।
 पहला साल हर बच्चे का,मांगे बहुत सुरक्षा।
प्यार,सफ़ाई,टीका ,भोजन दें हम उसको अच्छा॥
बच्चे के जीवन के पहले साल में की जाने वाली देखभाल ही उसके आगे के जीवन की नींव मजबूत बनाती है।यहां हम आपको कुछ खास गुर बता रहे हैं,जिससे आप पहले साल में अपने बच्चे की सही देख भाल कर सकते हैं।
 पानी:-बच्चे को दूध की तरह पानी भी पिलाना जरूरी है। यह पानी स्वछ होना चाहिये।अच्छा होगा यदि आप पानी उबाल कर ठंढा कर लें।पानी में चीनी या ग्लूकोज भी साफ़ चम्मच से मिलाया जा सकता है।हमेशा बच्चे को स्वच्छ पानी ही पिलायें।
कपड़े:-बच्चे को ढीले,नरम और सूती कपड़े ही पहनायें।बाजार से खरीदे कपड़े धो कर ही पहनायें।मौसम के हिसाब से उसे ऊनी या सूती कपड़े पहनायें। नाइलोन या सेन्थेटिक कपड़ों का इस्तेमाल कम से कम करें।
सफ़ाई:- बच्चे को हमेशा साफ़ सुथरा रखें।उसे शुरू से ही रोज नहाने की आदत डालें।नाखूनों को काटकर छोटा रखें।
स्तनपान:- यह बच्चे के लिये बहुत जरूरी है। खासकर पैदाइश के आधे घण्टे बाद मां के स्तन से निकलने वाली खीस बच्चे को जरूर पिलायें।यह बच्चे में जीवन भर रोगों से लड़ने की ताकत पैदा करता है।स्तनपान करते समय बच्चे को शुद्ध गरम दूध मिलता है। यह आसानी से पचता है और बच्चे की रोग रोधी ताकत को बढ़ाता है।हां,स्तनपान हमेशा सही ढंग से ही कराना चाहिये।
अन्य आहार:- चार पांच माह के बच्चे के लिये मां के दूध के अलावा ऊपरी आहार की जरूरत होती है।इसके लिये उसे:(1) ऊपर का दूध,सब्जी,दाल का जूस,फ़लों का रस आदि तरल पदार्थ दें।(2) उसे कुछ तरल ठोस चीजें जैसे घुटी हुयी दाल,अनाज की लप्सी,पका हुआ केला या उबला आलू(मसलकर) दें।उसे ठोस चीजें जैसे कच्चे फ़ल,चावल का माड़,दाल,सब्जियां या सूजी का हलवा भी दें।धीरे धीरे मां का दूध कम हो जायेगा।स्तनपान छोड़ने के बाद उसे ऊपरी दूध दिन में 5-6 बार दें।उसे रात 10 बजे से सुबह 6 बजे तक सोने दें।बच्चे को तीसरे चौथे माह अन्य तरल चीजें देना शुरू करें। पांचवे छ्ठे माह कुछ गीली ठोस चीजें,आठवें नवें माह ठोस,तथा बारहवें माह से साधारण खाना देना शुरू करें।
शारीरिक विकास:-बच्चे के सामान्य शारीरिक विकास की जानकारी उसकी बढ़ती लंबाई और वजन से हो सकती है।
आयु(माह में) -- वजन किलो में लंबाई सेण्टी मी0 मेंलंबाई इंच में
पैदाइश के समय 3------     ------45---------   -----18-------
-------1------  ---4------     ------50---------   -----20-------
------2-------  ----5------    ------55---------   -----22-------
------3-------  ----5.5----    ------60---------   -----24-------
-----4--------  ----6------    ------62---------   -----25-------
-----5--------  ----6.5----    ------65---------   -----26-------
-----6--------  ----7------    ------70---------   -----28-------
-----8--------  ----7.7----    ------75---------   -----30-------
-----10-------  ----8.9----    ------80---------   -----32-------
-----12-------  ----9.2----    ------90---------   -----36-------
जब आपका बच्चा एक से डेढ़ साल के बीच पहुंच जाय,आप उसे दिन में कम से कम 5-6 बार खाना खिलायें। ड़ेढ़ से तीन  साल के बीच पहुंचने पर आप यह ध्यान रखें कि उसका भोजन एक बड़े व्यक्ति का आधा हो।बच्चे के विकास को 5 भागों में बांटा जा सकता है।
शारीरिक,मानसिक,भाषा सम्बन्धी, सामाजिक और रचनात्मक।
सामान्य विकास के कुछ संकेत:-
 आयु (माह में) ----------------क्रियाएं-------------
1 से 2        हंसता,मां को पहचानता है।
3 से 4        अपनी गर्दन संभाल सकता है।
4 से 5        करवट बदलना,खिलौने पकड़ना।
6 से 7        बैठना,खिलौने पकड़ना।
8 से 9        घुटने के बल चलना।
10से12        सहारा लेकर खड़ा होना।चलने की कोशिश।
 एक से तीन साल के बीच
बच्चा चले फ़िरे छुये हर चीज।
एक से तीन साल के बीच बच्चा----
*ज्यादा से ज्यादा जानना चाहता है।
*घर के लोगों को पहचानता है।
*अकेले खेलना पसद करता है।
*शौच करने की समझ आती है।
 हो गया तीन साल का बच्चा
   चौथा साल बनाओ अच्छा।
इस उम्र में बच्चा अपनी पहचान चाहता है।हाथ,आंख का तालमेल बैठाता है।बड़ों की नकल करता है।भाषा,रंग,आकार की समझ बढ़ाता है। नये शब्द सीखता है।
चार साल का हो गया बच्चा
       दिलवाओ इसको अब शिक्षा।\
इस उम्र में बच्चा हर काम खुद करना चाहता है।कहानी सुनता,समझता है।मिलजुल कर खेलना चाहता है।
 पांच-छः साल का बच्चा
लिखता,पढ़ता और समझता।
बच्चा अब संतुलन बना लेता है।लिखने की शुरुआत के साथ कल्पना शक्ति का विकास। नियम से खेलने ,आसान काम करने की क्षमता का विकास होता है।
 किस उम्र में क्या पढ़ सकता----?
 6 माह पर रंग बिरंगे चित्रों वाली किताबें दिखायें।वह चित्र,रंग देखेगा। कागज को छुयेगा।
9 माह पर -- बच्चा चाहेगा कि आप उसे कुछ पढ़ कर सुनायें।सुनकर वह शब्दों को समझने की कोशिश करेगा।
1 साल पर -- किताब के पन्ने पलट सकेगा।उसे छोटी छोटी कहनियां पढ़ कर सुनायें।रंगीन चित्र दिखायें।
2 साल पर -- किताबें पसन्द करेगा। आपके पढ़ने पर खुश होगा।उसे रोज नयी किताबें पढ़ कर सुनाइये। किताबों से उसे खेलने दीजिये।
3 साल पर -- बच्चे की क्रियाशीलता बढ़ जाती है। वह हर चीज जानने,समझने,छूने की कोशिश करता है।उसे छोटी कहानियां गीत सुनाइये।
4 साल पर -- इस उम्र में आकाश,सूरज ,चांद,जानवर बच्चे को अच्छे लगते हैं।उसे ऐसी किताबें पढ़ कर सुनायें जो उसकी कल्पना को बढ़ायें।अच्छे गीत सुनायें।
5 साल पर -- अब वह गद्य,कहानियां पढ़ने,सुनने के योग्य हो जाता है।उसकी उत्सुकता पढ़ने,सुनने,जानने  के प्रति बढ़ जाती है।उसे रोज कुछ पढ़ कर सुनायें। आपको चाहिये कि बच्चे को कम से कम रोज एक कहानी सुनायें।कहानी सुनाने से उसकी कल्पना शक्ति का विकास होगा साथ ही वह नये शब्दों,भाषा को सीखेगा।
 इस प्रकार आप पांच साल तक अपने बच्चे की पूरी विकास प्रक्रिया को खुद जांच परख सकते हैं।
                                     
                                    000000
डा0हेमन्त कुमार

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डा0सुरेन्द्र विक्रम के बहाने----

गुरुवार, 3 मई 2012

पुस्तक चर्चा
                                                        
पुस्तक--

हिन्दी बालसाहित्य
डा0सुरेन्द्र विक्रम का योगदान
लेखिकाडा0स्वाति शर्मा
प्रकाशकहिन्दी साहित्य निकेतन
16,साहित्य विहार,बिजनौर(उ0प्र0)
फ़ोन01342263232
               
              हिन्दी में बाल साहित्य तो आज बहुत प्रचुर मात्रा में लिखा जा रहा है।प्रकाशित भी हो रहा है। अब ये बात अलग है कि इनमें से कितनी किताबें बाल पाठकों तक पहुंच रही है और कितनी सिर्फ़ पुस्तकालयों की शोभा बढ़ा रही हैं।यदि प्रकाशित बाल साहित्य बच्चों तक पहुंच रहा है तो उनकी उस पर प्रतिक्रिया क्या है?उन्हें आज का बाल साहित्य स्वीकार्य है या नहीं?ऐसे ढेरों प्रश्न उठते हैं जब हम बाल साहित्य पर बात उठाते हैं।
          पर इतना तो निश्चित है कि बाल साहित्य पर आलोचनात्मक और समीक्षात्मक किताबें कम लिखी गई हैं।बाल साहित्य पर शोध कार्य भी कम हुये हैं।इतना ही नहीं बाल साहित्य पर सोच विचार करने वाले चिन्तक और लेखक भी कम ही हैं।ऐसी स्थिति में किसी बाल साहित्यकार के पूरे कृतित्व पर केन्द्रित किसी नयी पुस्तक को पढ़ना अपने आप में एक अलग तरह के पाठकीय आनन्द से गुजरना कहा जायेगा। मुझे अभी हाल ही में प्रकाशित डा0स्वाति शर्मा की पुस्तक हिन्दी बाल साहित् सुरेन्द्र विक्रम का योगदान पढ़ने का अवसर मिला।
                 उपरी तौर पर पुस्तक के शीर्षक से तो यह भ्रम होता है कि यह किताब सिर्फ़ सुरेन्द्र विक्रम के ही ऊपर लिखी गई है।लेकिन वास्तविकता यह नहीं है।इस पुस्तक में सुरेन्द्र विक्रम और उनके द्वारा लिखे गये अब तक के बाल साहित्य के बहाने हिन्दी के सम्पूर्ण बाल साहित्य की पड़ताल भी की गई है।
             पुस्तक कुल आठ अध्यायों में विभाजित की गई है।पहले अध्याय बालसाहित्य की अवधारणा में बालक,बाल साहित्य,स्वतन्त्रता के पूर्व हिन्दी बाल साहित्य,स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी बाल साहित्य की चर्चा के साथ ही बाल साहित्य की विभिन्न विधाओं,तथा आज लिखे जा रहे बाल साहित्य  का भी विश्लेषण किया गया है।
              बाद के सात अध्यायों में क्रमशः डा0सुरेन्द्र विक्रम के व्यक्तित्व और कृतित्व,सुरेन्द्र विक्रम के बाल काव्य का वर्गीकरण,सुरेन्द्र विक्रम के बाल गीतों का शिल्प सौन्दर्य,सुरेन्द्र विक्रम का बाल कथा साहित्य,डा0सुरेन्द्र विक्रम द्वारा लिखे गये बाल साहित्य के आलोचनात्मक ग्रन्थ,बाल साहित्य के विकास में सुरेन्द्र विक्रम के योगदान,और सुरेन्द्र विक्रम के बाल साहित्य के वैशीष्ट्य पर विचार किया गया है।
          मूलतः तो यह किताब एक शोध प्रबन्ध ही है। इसी विषय पर लेखिका डा0स्वाति शर्मा ने रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय से पी एच डी की उपाधि प्राप्त की है। लेकिन इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसको लिखने में स्वाति शर्मा ने आम आलोचनात्मक ग्रन्थों से अलग हट कर एक नई तकनीक का प्रयोग किया है।वो यह कि इसके हर अध्याय में सुरेन्द्र विक्रम के बहाने बाल साहित्य की उस पूरी विधा पर पाठकों का ध्यान केन्द्रित किया गया है। य्दि सुरेन्द्र विक्रम के बाल गीतों की बात की जा रही है तो साथ ही बाल गीतों से जुड़े सभी कवियों की चर्चा और उनके बालगीतों के बाकायदा उद्धरण देकर उनका विश्लेषण किया गया है। दूसरी बात पुस्तक में कहीं बहुत ज्यादा अतिवाद का प्रयोग नहीं किया गया जैसा कि सामन्यतः किसी रचनाकार के ऊपर केन्द्रित पुस्तकों में होता है।इस दृष्टि से यह पुस्तक हिन्दी बाल साहित्य की एक उपलब्धि कही जायेगी।ड़ा0स्वाति शर्मा का यह कार्य निश्चय ही प्रशंसनीय है।
            इन समस्त विशेषताओं के साथ ही इस ग्रन्थ में एकाध कमियां भी रह गयी हैं।पुस्तक के पहले अध्याय में जहां लेखिका ने बाल साहित्य की विधागत चर्चा की है। जिसमें---बाल-काव्य,बाल-कहानी,बाल-उपन्यास,बाल नाटक,बाल जीवनी साहित्य की विस्तृत चर्चा है।लेकिन वर्तमान समय में बाल साहित्य की एक लोकप्रिय विधा चित्रात्मक कहानी(इस विधा के लिये लिखना सम्भवतः अन्य विधाओं से ज्यादा कठिन है।) की चर्चा नहीं है।जबकि इस विधा में इधर छोटे बच्चों के लिये बहुत सी किताबें लिखी और प्रकाशित हो रही हैं। कई प्रकाशक और एन जी ओ इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं।
         दूसरे प्रिण्ट के साथ ही इस समय इलेक्ट्रानिक माध्यमों द्वारा भी बच्चों के लिये बहुत कुछ किया जा रहा है। अगर हम टी वी और रेडियो को छोड़ भी दें तो भी इण्टरनेट पर लिखे जा रहे बच्चों के ब्लाग्स,ई0बुक्स या डिजिटल पुस्तकों का भी उल्लेख यहां होना जरूरी है।क्योंकि बच्चों का बहुत अच्छा साहित्य आज ब्लाग्स,सी डी,डिजिटल पुस्तकों के माध्यम से भी लिखा जा रहा है। और आने वाले कल में ये माध्यम भी प्रिन्ट के समकक्ष ही महत्वपूर्ण बन जायेंगे। उम्मीद है कि पुस्तक के अगले संस्करण में डा0स्वाति जी बाल साहित्य की इन विधाओं को भी शामिल करेंगी।
                कुल मिलाकर हिन्दी बाल साहित्य में डा0सुरेन्द्र विक्रम का योगदान एक प्रशंसनीय कार्य कहा जायेगा। और डा0स्वाति शर्मा  भविष्य में बाल साहित्य के लिये और बेहतरीन कार्य करेंगी।
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लेखिका-डा0स्वाति शर्मा

23 जून 1980 को जन्मी स्वाति शर्मा ने हिन्दी, संस्कृत में एम0ए0करने के पश्चात रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय से "हिन्दी साहित्य में डा0सुरेन्द्र विक्रम का योगदान"विषय पर पी0एच0डी0 किया है।"शोध दिशा"सहित कसम्प्रति अध्यापन कर्य में संलग्न।ई पत्र पत्रिकाओं में आलेखों का प्रकाशन।इसके साथ ही कला,साहित्य और संस्कृति से सम्बन्धित विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन और संचालन में सहभागिता।
पुस्तक समीक्षा--डा0हेमन्त कुमार 
                 

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कहां पर बिखरे सपने---कैसे पूरे होंगे सपने--------।

सोमवार, 30 अप्रैल 2012

               बालश्रम सिर्फ़ हमारे देश की ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की एक बड़ी समस्या है।और पिछले दो दशकों में इसे रोकने की दिशा में पूरे संसार के कई देशों ने अच्छी पहल भी की है।दुनिया भर में विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं इस अभिशाप को खतम करने की दिशा में काम कर रही हैं। हमारे अपने देश भारत में भी 1974 में ही बच्चों की बेहतरी के लिये बाकायदा एक नीति भी बनाई गई। इस नीति में अन्य बातों के अलावा बच्चों को मजदूरी से हटाने के साथ ही खतरनाक या भारी कामों में लगाने से रोकने की बात भी कही गई है। इसके बाद 1986 में बालश्रम अधिनियम(निषेध एवं नियंत्रण) का निर्माण हुआ। 1987 में इस अधिनियम में कुछ बदलाव किये। अभी हाल में ही मार्च 2010 में भी इस  अधिनियम में बच्चों के हित के लिये कुछ बदलाव हुये। इतना ही नहीं 1992 में ही दुनिया के 159 देशों के साथ ही भारतवर्ष  ने भी बाल अधिकारों के अन्तर्राष्ट्रीय घोषणा पत्र पर भी दस्तखत किये।इन बाल अधिकारों में भी भीतर वर्ष से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी कराए जाने पर प्रतिबन्ध के साथ ही उन्हें ऐसे कामों से दूर रखने की बात कही गई है जो उनके स्वास्थ्य,शिक्षा और जीवन को हानि पहुंचाएं।
             इतने नियमों,कानूनों के बनने,सरकारी ,गैर सरकारी संगठनों द्वारा प्रयास किये जाने के बावजूद भी हमारे अपने देश भारत में बाल मजदूरों की संख्या में बहुत कमी नहीं आई है। आपको घरों से लेकर पटाखा,माचिस फ़ैक्ट्रियों जैसे खतरनाक उद्योगों में भी बाल मजदूरों की बड़ी संख्या मिलेगी।1971 की जनगणना के अनुसार पूरे भारत में बाल मजदूरों की कुल संख्या लगभग 1,0,753985 थी।जिसमें सबसे कम(97) बाल श्रमिक लक्षद्वीप और सबसे ज्यादा(16,27492) आंध्र प्रदेश में थे।सन 2001 यानि तीस वर्षों के बाद भी जनगणना के आंकड़ों पर ध्यान दें तो यह संख्या बढ़ कर 1,26,66,377 यानि सवा करोड़ से ऊपर पहुंच गई है।मतलब यह कि इन तीस वर्षों में सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर होने वाले तमाम प्रयासों,और धन के व्यय के बाद भी बाल मजदूरों की संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है कमी नहीं हुई।
                         दुख की बात तो यह है कि जितना ही इस दिशा में प्रयास किये जा रहे हैं,लोगों को जागरूक किया जा रहा है उतना ही बच्चों को मजदूरी के काम में और ज्यादा लगाया जा रहा है।उनके बचपन को खतम किया जा रहा है। उनके सपनों को कुचला और बिखेरा जा रहा है। हम सभी आज बाल मजदूरी खतम करने,इन बच्चों के लिये कल्याणकारी योजनाएं बनाने,उन्हें भी एक सामान्य जीवन जीने का अवसर प्रदान करने की बातें तो बहुत करते हैं लेकिन शायद बहुत कम लोग ही ये जानते होंगे कि इन बच्चों के सपने कहां टूट और बिखर रहे हैं?वो कौन से काम हैं जिनमें लग जाने पर उनका जीवन नष्ट हो रहा है।इनमें भी कुछ काम ऐसे हैं जहां इन बच्चों का सिर्फ़ शारीरिक,मानसिक और भावनात्मक शोषण होता है।लेकिन कुछ कार्यस्थल ऐसे हैं जिन्हें खतरनाक श्रेणी में रखा गया है।वहां का वातावरण ही इस ढंग का रहता है जिसमें काम करना बच्चों के स्वास्थ्य और जीवन दोनों के लिये खतरनाक है। आइये पहले हम देखते हैं किन सामान्य कामों में बालश्रमिक लगे हैं।
v      कृषि या खेती मेंहमारे देश के कुल बाल मजदूरों में से 70प्रतिशत से अधिक खेती के काम में लगे हैं।पूरे देश में इनकी संख्या 80-90 लाख होगी।इस काम में कुछ बच्चे तो मजबूरी में अपने मां-बाप की जगह(उनके बीमार हो जाने पर)काम करने जातेशैं। इनसे 10से12घण्टे काम करवा कर भी मजदूरी के रूप में बहुत कम पैसे या अनाज दिया जाता  है।
v      घरेलू नौकरअगर आप अपने अगल-बगल,मुहल्ले में देखें तो बहुत से परिवारों में काम करने वाले बच्चों की उम्र 14 साल से कम है।घरेलू काम करने वाले बच्चों के साथ मार पीट,उनका भावनात्मक यहां तक कि यौन शोषण भी होता है।उन्हीं की उम्र के अपने बच्चों के सामने उनसे काम करवाकर,डांट कर हम उन्हें एक भयंकर मानसिक प्रताड़ना से गुजारते हैं।
v      कूड़ा बीनने का कामआपको रोज सुबह से शाम तक तपती सड़कों पर,चिलचिलाती धूप में कन्धे पर एक बोरा और हाथ में एक छ्ड़ी लिये हुये बहुत से बच्चे दिखते होंगे।इनका काम है पूरे दिन घूम घूम कर कूड़े के ढेर से प्लास्टिक,बोतलें,पालिथिन, और अन्य घरेलू कचरा बीनना।यही इनकी रोजी रोटी है।कचरा बीनने वाले कुल मजदूरों में से 60प्रतिशत से ज्यादा बच्चे हैं।सुबह से शाम तक सड़कों पर कूड़ा बीनने और उसे ठेकेदार तक पहुंचाने के एवज में इन्हें मात्र 10-15 या कहीं कहीं 5 रूपये तक मेहनताना मिलता है। इन्हें औसतन 10-15 किलोमीटर प्रतिदिन पैदल चलना पड़ता है। हमारे देश के महानगरों में ऐसे बच्चों की संख्या हजारों में है।
v      स्कूटर,मोटर वर्कशापहमारे मुहल्लों की  साइकिल रिपेयरिंग की दूकानों,स्कूटर-मोटर की वर्कशाप्स में बड़ी संख्या ऐसे बच्चों की है जिनकी उम्र अभी खेलने और स्कूल जाने की है।यहां इनका दोहरा शोषण होता है।एक तो काम सिखाने के नाम पर कम पैसा देना और साथ ही काम करते समय आम आदमी के साथ ही मलिक की गालियां भी सुननी पड़ती है।जरा सी गलती होने पर मालिक या बड़ा मिस्त्री इन्हें मारने से भी नहीं चूकता।
v      ढाबे,चाय की दूकानें---आप बाजार में कभी चाय,काफ़ी पीने या खाना खाने तो जाते होंगे।
वहां निश्चित रूप से आपका साबका ऐसे बच्चों से जरूर पड़ता होगाजो आपकी,आपके बच्चों की जूठी प्लेटें,गिलास,बर्तन धोते हैं। आपको खाना सर्व करते हैं और बदले में दो जून का खाना और दस बीस रूपए के साथ ही ढाबा मालिक की गालियां,थप्पड़ भी पाते हैं।इनके चेहरों से गायब हो चुकी मासूमियत की जगह जगह बना चुकी उदासी,सूनापन या फ़िर विद्रोह का
        भाव भी शायद आपने देखा होगा। महानगरों में ऐसे बालश्रमिकों की भी बड़ी संख्या है।
v      जूता एवं चमड़ा उद्योगउत्तर प्रदेश के आगरा और कानपुर शहरों में ये उद्योग बड़ी संख्या में हैं।यहां पर भी आपको हाथों में काला,भूरा रंग पोते हुये,हाथों में हथौड़ी कील लिये पसीने से लथपथ सूनी आंखों वाले सैकड़ों अबोध बच्चे काम करते दिखाई पड़ जाएंगे।
v      चाय बागान(पश्चिम बंगाल और असम में)केवल पश्चिम बंगाल के डोआर क्षेत्र में ही लगभग सवा लाख से ज्यादा बाल मजदूर काम करते हैं।इन बागानों में काम करने वाले बच्चों में से 70 प्रतिशत से ज्यादा अनियमित रूप से(बिना रजिस्टर में नाम लिखे)काम करते हैं। कितना दुखद है कि 1947 में इन बागानों में बाल मजदूरों की संख्या कुल मजदूरों की मात्र 17प्रतिशत थी वहीं आज इनकी संख्या लाखों में पहुंच चुकी है।इनमें भी बड़ी संख्या में बच्चे कुपोषित और एनिमिक (खून की कमी) हैं।
v      मिट्टी के बर्तन बनाने का कामइस उद्योग का प्रमिख केन्द्र उत्तर प्रदेश के खुर्जा शहर में है जहां हजारों बच्चे बहुत कम दर पर मजदूरी कर रहे हैं।
v      रेल्वे स्टेशनों,बस अड्डों पर पान मसाला बेचनायह दूकानदारों,अभिभावकों ने बच्चों के माध्यम से काम करवाने का एक नया जरिया निकाला हैऽअपको देश के हर शहर में चौराहों,रेल्वे स्टेशनों और बस अड्डों पर हाथों में पान मसालों की लड़ियां लटकाए ढेरों बच्चे मिल जाएंगे।जो हमारे आपके नशे का सामान बेचते हैं। वो भी तेज ट्रैफ़िक में रोड क्रास करके,चलती ट्रेनों,बसों में चढ़ उतर कर अपनी जान जोखिम में डालते हुये। इतना ही नहीं पान मसाला बेचते बेचते इनमें से बहुत से बच्चे खुद भी ये जहरीला मसाला खाने के आदी हो जाते हैं।
v      भीख मांगनाआज महानगरों में भिक्षावृत्ति भी आमदनी का एक जरिया बन चुकी है। और इसके लिये भी बाकायदा गैंग बनने लगे हैं,ठेकेदारी होने लगी है। आप जिन ब्च्चों को सड़कों पर विकलांग बनकर,सूरदास बनकर भीख मांगते देखते हैं उनमें सभी जन्मजात विकलांग या अंधे नहीं हैं। बल्कि उन्हें भीख मंगवाकर कमाई करने वाले ठेकेदारों ने इस रूप में पहुंचाया है ताकि वो जनता की सहानुभूति पाकर ज्यादा कमाई कर सकें। और इन बच्चों की कमाई का पूरा फ़ायदा तो गैंग वाला या ठेकेदार उठाता है---इन बच्चों को तो बस दो जून का आधा पेट खाना और गालियां नसीब होती हैं।
        ये तो कुछ ऐसे धन्धे या काम थे जिनमें बच्चों के स्वास्थ्य या जीवन का खतरा कम
    है।आइये अब उन कामों पर दृष्टि डालते हैं जिनमें इन मासूमों के जीवन को सीधेसीधे
    खतरा बना रहता है---वो भी चौबीसों घण्टे।
v      रेशम उद्योगइस व्यवसाय में लगभग साढ़े तीन से चार लाख तक बाल श्रमिक कार्यरत हैं।इन्हें बहुत ही कम मजदूरी पर ज्यादा समय तक काम करना पड़ता है।
v      हथकरघा एवं बिजली करघा उद्योग---यह उद्योग पूरे देश में कई स्थानों पर हो रहा है।इसमें जरी का काम,कढ़ाई और साड़ी बुनने का काम बच्चों से भी लिया जाता है।इस काम की मजदूरी इन्हें इतनी कम दी जाती है जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते। आज से लगभग 15 साल पहले लखनऊ में कुर्तों पर कढ़ाई का काम करने वाले एक व्यवसाई ने बताया था कि बच्चों को प्रति फ़ूल की कढ़ाई का 5पैसा दिया जाता है।मतलब यह कि दिन भर में यदि बच्चे ने 100फ़ूलों वाली एक साड़ी की कढ़ाई की तो उसे मजदूरी के सिर्फ़ 5रूपये मिलेंगे।इस उद्योग में लगे बच्चों की आंखों की रोशनी भी समय से पहले कम होने लगती है।
v      पटाखा एवं माचिस उद्योग-इनके कारखाने ज्यादातर तमिलनाड़ु के शिवाकाशी में हैं। इसके अलावा भी देश के कई स्थानों पर यह काम होता है। शिवाकाशी क्षेत्र में पटाखों के लगभग 1050कारखाने और उनकी हजारों इकाइयां हैं। यहां काम करने वाले मजदूरों में से  लगभग 50प्रतिशत से ज्यादा(लगभग चालीस हजार) बच्चे बाल श्रमिक के रूप में कार्यरत हैं।इन कारखानों में से कम से कम 500बिना लाइसेंस के गैरकानूनी ढंग से चलाए जाते हैं। इन्हीं क्षेत्रों में लगभग 3989माचिस बनाने के कारखाने हैं।यहां पर काम करने वाले बच्चों को सांस रोग के साथ ही विस्फ़ोट होने पर मृत्यु का भी खतरा हमेशा बना रहता हैऽइसी खतरनाक जगहों पर काम करके ये मासूम हमारे आपके घरों की दीपावली को शुभ करते हैं।
v      कालीन उद्योग---इसके प्रमुख केन्द्र उत्तर प्रदेश के वाराणसी,मिर्जापुर,भदोही और जम्मू-काशमीर में हैं।इस उद्योग से जुड़े कुल मजदूरों में से 40प्रतिशत से अधिक संख्या बाल श्रमिकों की है।उत्तर प्रदेश में इन बाल मजदूरों की संख्या एक लाख से अधिक होगी।जबकि जम्मू काशमीर में लगभग 80हजार बच्चे इस काम  से जुड़े हैं। यहां पर भी बच्चों का अच्छा खासा शोषण होता है।बहुत सारे बच्चों को काम सिखाने के नाम पर साल साल भर तक बिना कोई मजदूरी दिये ही उनसे काम लिया जाता है। यहां उड़ने वाली धूल और गर्द से बहुत जल्द ही ये ब्च्चे फ़ेफ़ड़ों के रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं।12से16घण्टे रोज काम करके भी इन्हें बहुत कम पारिश्रमिक मिलता है।
v      पीतल उद्योगपीतल का काम मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद शहर में होता है। इसमें काम करने वाले कुल मजदूरों में से लगभग 40से50प्रतिशत बच्चे हैं।
v      बीड़ी उद्योगबीड़ी बनाने का अधिकतर काम उत्तर प्रदेश,कर्नाटक और तमिलनाडु में फ़ैला है।यहां भी  भारी संख्या में बच्चे काम कर रहे हैं।इन्हें एक दिन में लगभग 1500बीड़ियां बनाने पर मात्र 9 रूपये का मेहनताना दिया जाता है।जबकि यहां करने पर इनमें तंबाकू सेवन की गन्दी लत लगने के साथ ही इनके फ़ेफ़ड़ों को भी बहुत नुक्सान पहुंचता है।
v      भवन निर्माण---जिन मकानों या अपार्टमेण्ट्स में हम ए0सी0की हवा खाते हुये खुद को काफ़ी महफ़ूज महसूस करते हैं क्या उन्हें बनाने वाले हाथों के बारे में कभी आपने विचार किया है?इन भवनों के निर्माण में भी कितने छोटे,सुकोमल हाथों ने अपने सर पर ईंटें,मसाले का तसला लाद कर ऊपर तक पहुंचाया है। यहां तक कि सीढ़ियों,छतों से गिर कर अपंग हो चुके या फ़िर मौत को गले लगा चुके हैं?शायद नहीं सोचा होगा।लेकिन यह भी हमारे जीवन की एक कठोर सच्चाई है।पूरे देश में ऐसे दैनिक मजदूरी करने वाले बच्चों की संख्या भी लाखों में है।
v       शीशा उद्योगशीशे का काम मुख्य रूप से फ़िरोज़ाबाद में होता है।शायद कभी कोई महिला सोचती भी नहीं होगी किजो रंग बिरंगी चूड़ियां पहन कर वह अपने हाथों में चार चांद लगाती है उन्हें बनाने में कितने मासूमों ने अपने हाथ जलाए हैं। यहां काम करने वाले बच्चों को 1400से1800सेल्शियस तापमान वाली भट्ठियों के पास नंगे पैर खड़े होकर 10-12घण्टे तक काम करना पड़ता है।कितनों के हाथ पैर झुलस जाते हैं।
v      खान और पत्थर तोड़ने का काम----इस समय इस उद्योग में काम करने वाले बच्चों के नवीनतम आंकड़े तो नहीं उपलब्ध हैं।लेकिन 1981के आंकड़ों में इनकी संख्या 27हजार दर्ज़ है।मध्य प्रदेश और आंध्र परदेश में फ़ैले इस व्यवसाय में बच्चों को खतरनाक ढंग से काम करना पड़ता है।इनके ऊपर पत्थर गिरने से अंग भंग होने और मौत तक का खतरा रहता है।साथ ही कार्यस्थल पर उड़ने वाले पत्थर के बारीक कणों और धूल से बहुत जल्द ही ये सांस सम्बन्धी बीमारियों की गिरफ़्त में आ जाते हैं।
v      हीरा चमकाने के काम में---गुजरात में हीरा चमकाने का काम करने वाले कुल मजदूरों में से 25प्रतिशत से जयादा बाल श्रमिक काम करते हैं। इनके काम करने का समय भी काफ़ी ज्यादा होता है।
v      सर्कस में----सर्कस किसी समय हमारे मनोरंजन का एक मुख्य साधन के साथ ही एक बड़ा उद्योग भी था। आज इनकी संख्या कम तो हो गई है लेकिन इनका वजूद तो है ही।सर्कस में बच्चों को बहुत ही छोटी उम्र से भर्ती करके उनसे तमाम तरह के खतरनाक करतब और खेल करवाए जाते हैं।जिसमें उनके गिरने,चोट खाने,गम्भीर रूप से घायल होने के साथ ही मौत का खतरा भी बराबर बना रहता है।इस क्षेत्र में भी बच्चे बहुत बड़ी संख्या में काम कर रहे हैं।जिनको सर्कस के तीन से चार शो दिखाने के बाद भी खाना कपड़ा और घर भेजने के लिये मात्र एक या दो हजार रूपये महीना मिल पाता है।कभी कभी सर्कस की माली हालत बिगड़ने पर इन्हें दो जून का खाना भी ठीक से नहीं मिलता।
                            इन सभी सामान्य और खतरनाक कामों के अलावा भी बच्चों से गैरकानूनी तरीके से पेट्रोल पंपों,ताला बनाने,पत्थर रंगने जैसे बहुत से काम करवाए जाते हैं। और यह हालत तब है जब कि चौदह साल से कम उम्र वाले बच्चों से काम करवाना कानूनन अपराध घोषित किया जा चुका है। साथ ही तमाम सरकारी,गैर सरकारी संगठनों द्वार बाल श्रम को रोकने और उन्हें भी स्कूल जाने वाले बच्चों की मुख्य धारा से जोड़ने की कोशिशें की जा रही हैं।
                इसके बावजूद आज करोड़ों बच्चों से काम करवाकर हम उनका शारीरिक और भावनात्मक शोषण तो कर ही रहे हैं।साथ ही इनके मासूम चेहरों का भोलापन,उनकी मुस्कान,उनके सपनों को भी छीन रहे हैं।यदि आज भी हमने इस अपराध को रोकने के लिये अपना पूरा जोर नहीं लगाया तो शायद आने वाले कल में हमें इन बाल श्रमिकों के चेहरों पर मुस्कान और भोलेपन की जगहा एक भयंकर विद्रोह और खुरदुरेपन की छाया साफ़ साफ़ देखनी पड़ेगी।
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डा0हेमन्त कुमार

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. ‘देख लूं तो चलूं’ "आदिज्ञान" का जुलाई-सितम्बर “देश भीतर देश”--के बहाने नार्थ ईस्ट की पड़ताल “बखेड़ापुर” के बहाने “बालवाणी” का बाल नाटक विशेषांक। “मेरे आंगन में आओ” ११मर्च २०१९ ११मार्च 1mai 2011 2019 अंक 48 घण्टों का सफ़र----- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अण्डमान का लड़का अनुरोध अनुवाद अभिनव पाण्डेय अभिभावक अम्मा अरुणpriya अर्पणा पाण्डेय। अशोक वाटिका प्रसंग अस्तित्व आज के संदर्भ में कल आतंक। आतंकवाद आत्मकथा आनन्द नगर” आने वाली किताब आबिद सुरती आभासी दुनिया आश्वासन इंतजार इण्टरनेट ईमान उत्तराधिकारी उनकी दुनिया उन्मेष उपन्यास उपन्यास। उम्मीद के रंग उलझन ऊँचाई ॠतु गुप्ता। एक टिपण्णी एक ठहरा दिन एक तमाशा ऐसा भी एक बच्चे की चिट्ठी सभी प्रत्याशियों के नाम एक भूख -- तीन प्रतिक्रियायें एक महत्वपूर्ण समीक्षा एक महान व्यक्तित्व। एक संवाद अपनी अम्मा से एल0ए0शेरमन एहसास ओ मां ओडिया कविता ओड़िया कविता औरत औरत की बोली कंचन पाठक। कटघरे के भीतर कटघरे के भीतर्। कठपुतलियाँ कथा साहित्य कथावाचन कर्मभूमि कला समीक्षा कविता कविता। कविताएँ कवितायेँ कहां खो गया बचपन कहां पर बिखरे सपने--।बाल श्रमिक कहानी कहानी कहना कहानी कहना भाग -५ कहानी सुनाना कहानी। काफिला नाट्य संस्थान काल चक्र काव्य काव्य संग्रह किताबें किताबों में चित्रांकन किशोर किशोर शिक्षक किश्प्र किस्सागोई कीमत कुछ अलग करने की चाहत कुछ लघु कविताएं कुपोषण कैंसर-दर-कैंसर कैमरे. कैसे कैसे बढ़ता बच्चा कौशल पाण्डेय कौशल पाण्डेय. कौशल पाण्डेय। क्षणिकाएं क्षणिकाएँ खतरा खेत आज उदास है खोजें और जानें गजल ग़ज़ल गर्मी गाँव गीत गीतांजलि गिरवाल गीतांजलि गिरवाल की कविताएं गीताश्री गुलमोहर गौरैया गौरैया दिवस घर में बनाएं माहौल कुछ पढ़ने और पढ़ाने का घोसले की ओर चिक्कामुनियप्पा चिडिया चिड़िया चित्रकार चुनाव चुनाव और बच्चे। चौपाल छिपकली छोटे बच्चे ---जिम्मेदारियां बड़ी बड़ी जज्बा जज्बा। जन्मदिन जन्मदिवस जयश्री राय। जयश्री रॉय। जागो लड़कियों जाडा जात। जाने क्यों ? जेठ की दुपहरी टिक्कू का फैसला टोपी ठहराव ठेंगे से डा० शिवभूषण त्रिपाठी डा0 हेमन्त कुमार डा०दिविक रमेश डा0दिविक रमेश। डा0रघुवंश डा०रूप चन्द्र शास्त्री डा0सुरेन्द्र विक्रम के बहाने डा0हेमन्त कुमार डा0हेमन्त कुमार। डा0हेमन्त कुमार्। डॉ.ममता धवन डोमनिक लापियर तकनीकी विकास और बच्चे। तपस्या तलाश एक द्रोण की तितलियां तीसरी ताली तुम आए तो थियेटर दरख्त दरवाजा दशरथ प्रकरण दस्तक दिशा ग्रोवर दुनिया का मेला दुनियादार दूरदर्शी देश दोहे द्वीप लहरी नई किताब नदी किनारे नया अंक नया तमाशा नयी कहानी नववर्ष नवोदित रचनाकार। नागफ़नियों के बीच नारी अधिकार नारी विमर्श निकट नियति निवेदिता मिश्र झा निषाद प्रकरण। नेता जी नेता जी के नाम एक बच्चे का पत्र(भाग-2) नेहा शेफाली नेहा शेफ़ाली। पढ़ना पतवार पत्रकारिता-प्रदीप प्रताप पत्रिका पत्रिका समीक्षा परम्परा परिवार पर्यावरण पहली बारिश में पहले कभी पहले खुद करें–फ़िर कहें बच्चों से पहाड़ पाठ्यक्रम में रंगमंच पार रूप के पिघला हुआ विद्रोह पिता पिता हो गये मां पिताजी. पितृ दिवस पुण्य तिथि पुण्यतिथि पुनर्पाठ पुरस्कार पुस्तक चर्चा पुस्तक समीक्षा पुस्तक समीक्षा। पुस्तकसमीक्षा पूनम श्रीवास्तव पेड़ पेड़ बनाम आदमी पेड़ों में आकृतियां पेण्टिंग प्यारा कुनबा प्यारी टिप्पणियां प्यारी लड़की प्यारे कुनबे की प्यारी कहानी प्रकृति प्रताप सहगल प्रतिनिधि बाल कविता -संचयन प्रथामिका शिक्षा प्रदीप सौरभ प्रदीप सौरभ। प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक शिक्षा। प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव। प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव. प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव। प्रेरक कहानी फ़ादर्स डे।बदलते चेहरे के समय आज का पिता। फिल्म फिल्म ‘दंगल’ के गीत : भाव और अनुभूति फ़ेसबुक बंधु कुशावर्ती बखेड़ापुर बचपन बचपन के दिन बच्चे बच्चे और कला बच्चे का नाम बच्चे का स्वास्थ्य। बच्चे पढ़ें-मम्मी पापा को भी पढ़ाएं बच्चे। बच्चों का विकास और बड़ों की जिम्मेदारियां बच्चों का आहार बच्चों का विकास बच्चों को गुदगुदाने वाले नाटक बदलाव बया बहनें बाघू के किस्से बाजू वाले प्लाट पर बादल बारिश बारिश का मतलब बारिश। बाल अधिकार बाल अपराधी बाल दिवस बाल नाटक बाल पत्रिका बाल मजदूरी बाल मन बाल रंगमंच बाल विकास बाल साहित्य बाल साहित्य प्रेमियों के लिये बेहतरीन पुस्तक बाल साहित्य समीक्षा। बाल साहित्यकार बालवाटिका बालवाणी बालश्रम बालिका दिवस बालिका दिवस-24 सितम्बर। बीसवीं सदी का जीता-जागता मेघदूत बूढ़ी नानी बेंगाली गर्ल्स डोण्ट बेटियां बैग में क्या है ब्लाइंड स्ट्रीट ब्लाग चर्चा भजन भजन-(7) भजन-(8) भजन(4) भजन(5) भजनः (2) भद्र पुरुष भयाक्रांत भारतीय रेल मंथन मजदूर दिवस्। मदर्स डे मनीषियों से संवाद--एक अनवरत सिलसिला कौशल पाण्डेय मनोविज्ञान महुअरिया की गंध मां माँ मां का दूध मां का दूध अमृत समान माझी माझी गीत मातृ दिवस मानस मानस रंजन महापात्र की कविताएँ मानस रंजन महापात्र की कवितायेँ मानसी। मानोशी मासूम पेंडुकी मासूम लड़की मुंशी जी मुद्दा मुन्नी मोबाइल मूल्यांकन मेरा नाम है मेराज आलम मेरी अम्मा। मेरी कविता मेरी रचनाएँ मेरे मन में मोइन और राक्षस मोनिका अग्रवाल मौत के चंगुल में मौत। मौसम यात्रा यादें झीनी झीनी रे युवा रंगबाजी करते राजीव जी रस्म मे दफन इंसानियत राजीव मिश्र राजेश्वर मधुकर राजेश्वर मधुकर। राधू मिश्र रामकली रामकिशोर रिपोर्ट रिमझिम पड़ी फ़ुहार रूचि लगन लघुकथा लघुकथा। लड़कियां लड़कियां। लड़की लालटेन चौका। लिट्रेसी हाउस लू लू की सनक लेख लेख। लेखसमय की आवश्यकता लोक चेतना और टूटते सपनों की कवितायें लोक संस्कृति लोकार्पण लौटना वनभोज वनवास या़त्रा प्रकरण वरदान वर्कशाप वर्ष २००९ वह दालमोट की चोरी और बेंत की पिटाई वह सांवली लड़की वाल्मीकि आश्रम प्रकरण विकास विचार विमर्श। विश्व पुतुल दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस. विश्व रंगमंच दिवस व्यंग्य व्यक्तित्व व्यन्ग्य शक्ति बाण प्रकरण शब्दों की शरारत शाम शायद चाँद से मिली है शिक्षक शिक्षक दिवस शिक्षक। शिक्षा शिक्षालय शैलजा पाठक। शैलेन्द्र श्र प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव स्मृति साहित्य प्रतियोगिता श्रीमती सरोजनी देवी संजा पर्व–मालवा संस्कृति का अनोखा त्योहार संदेश संध्या आर्या। संवाद जारी है संसद संस्मरण संस्मरण। सड़क दुर्घटनाएं सन्ध्या आर्य सन्नाटा सपने दर सपने सफ़लता का रहस्य सबरी प्रसंग सभ्यता समय समर कैम्प समाज समीक्षा। समीर लाल। सर्दियाँ सांता क्लाज़ साक्षरता निकेतन साधना। सामायिक सारी रात साहित्य अमृत सीता का त्याग.राजेश्वर मधुकर। सुनीता कोमल सुरक्षा सूनापन सूरज सी हैं तेज बेटियां सोन मछरिया गहरा पानी सोशल साइट्स स्तनपान स्त्री विमर्श। स्मरण स्मृति स्वतन्त्रता। हंस रे निर्मोही हक़ हादसा। हाशिये पर हिन्दी का बाल साहित्य हिंदी कविता हिंदी बाल साहित्य हिन्दी ब्लाग हिन्दी ब्लाग के स्तंभ हिम्मत हिरिया होलीनामा हौसला accidents. 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