सपने दर सपने
रविवार, 9 अक्तूबर 2011
हम भी दौड़ाते हैं रेल
कभी एक्स्प्रेस कभी सुपर फ़ास्ट
कभी लोकल
अपने कुनबे के सपनों को
नन्हीं सी ढोल में बन्द करके।
अम्मा बापू के सपने
हमारे सपने
सबके सपने
बन्द हैं हमारी छोटी सी ढोल में।
सबके सपनों का बोझ
भूख से कुलबुलाती अंतड़ियां
अलस्सुबह खींच ले जाती हैं हमें
भारतीय रेल की पटरियों पर।
किसी भी एक्स्प्रेस/पैसेंजर ट्रेन
के साथ दौड़ पड़ता है
हमारे सपनों का महल
पहियों की खड़र भड़र
पटरियों की खटर पटर
के साथ मिल जाती है
हमारी ढोल की थाप।
मेरी छोटी बहन
दिखाती है कलाबाजियां
सारे खतरों और भय को
करके दरकिनार
हमारे गले से निकलता बेसुरा
पर बेहद सुरीला गाना
मुन्नी बदनाम हुयी-----
यात्रियों की वाह वाह
फ़रमाइश सहानुभूति के बीच
फ़ैला हुआ हमारा हाथ
हाथों पर गिरते
रूपये एक दो के सिक्के
किसी टीनेजर के कैमरे की
चमकती फ़्लैश
बना देते हैं अनूठा अद्भुत कोलाज
हमारे चारों ओर।
इस कोलाज में बन्द हैं
अम्मा बापू छोटी बहन
हम सभी के सपने
सपनों के साकार होने की उम्मीद में
हम भी दौड़ाते हैं रेल
लखनऊ से मुम्बई
मुम्बई से इटारसी
फ़िर मुम्बई से इटारसी
सुबह से शाम
शाम से रात
सबके सपनों को बन्द करके
अपनी नन्हीं सी ढोलक
की थाप में।
000
हेमन्त कुमार
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