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कब मिलेंगे अधिकार हमारे

गुरुवार, 13 नवंबर 2008

कब मिलेंगे हमारे अधिकार?

कल यानी १४ नवम्बर .बाल दिवस . हमारे प्यारे चाचा नेहरू का जन्म दिवस.पूरे देश में इस दिन को हम बाल दिवस के रूप में मनाएंगे.क्योंकि चाचा नेहरू को बच्चों से बहुत प्यार था.
बाल दिवस मनाना बहुत अच्छी बात है.बच्चों के हित में भी हमारे हित में भी.हमारे हित में इसलिए क्योंकि हम सभी इसी बहाने अपने बचपन के दिन याद कर लेते हैं.
पर क्या मात्र बाल दिवस मना लेने से ही हमारे कर्तव्य पूरे हो जाते हैं ? हम अपने बच्चों को वह माहोल ,वह सुविधाएं,वह शिक्षा ,स्वास्थय,या स्तर दे पा रहे हैं जिसे देने का वादा हमने १९८९ में बाल अधिकार घोषणा पत्र पर दस्तखत करते समय किया था . आप पूछेंगे ये बाल अधिकार क्या है?हो सकता है आप जानते भी हों. लेकिन बहुतों को नहीं मालूम बाल अधिकर घोषणा पत्र क्या है.
बच्चों के अधिकारों का घोषणा पत्र अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकारों के कानून में सबसे स्पष्ट और बड़ा है .इसके ५४ अनुच्छेदों में बच्चों को पहली बार आर्थिक , सामाजिक एवं राजनैतिक अधिकार एक साथ दिए गए हैं.
यह घोषणा पत्र संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा १९८९ में स्वीकृत हो गया . ९ माह बाद इसे लागू भी कर दिया गया.इतनी जल्दी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा स्वीकृत किया जाने वाला यह पहला घोषणा पत्र था.
इस घोषणा पत्र के ५४ अनुच्छेदों में बच्चों के ४१ विशिष्ट अधिकार हैं . इनमें से भी १६ अधिकार हमारे अपने देश भारत के संदर्भ में मुझे ज्यादा ठीक लगे. इन्हीं का उल्लेख मैं नीचे कर रहा हूँ.
* इस बाल अधिकार घोषणा पत्र के मुताबिक हर बच्चे को अधिकार है –
जिंदा रहने एवं विक्सित होने(बड़े होने का).
भेद भाव रहित जीवन जीने का.
माँ बाप दोनों का पूरा प्यार ओर देख भाल पाने का.
स्वस्थ रहने एवं हर तरह की चिकित्सा सुविधाओं के साथ बीमारियों से सुरक्षा पाने का.
अच्छा जीवन स्टर pane का जिसमें उसका सही मानसिक , बौद्धिक,नैतिक,और सामाजिक विकास हो सके.
शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग होने पर उचित देखभाल,चिकित्सा एवं शिक्षा पाने का .
नशीले एवं मादक पदार्थों से बचाव का .
उचित एवं सही शिक्षा पाने का.स्कूलों में खुशनुमा माहोल एवं सम्मान पाने का .
समुचित विकास के लिए खेलकूद एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेने के अवसरों के साथ मनोरंजन का .
उपेक्षा ,गाली,दुर्व्यवहार,लापरवाही से बचाए जाने का.
अनाथ होने पर पूरी सुरक्षा ,शिक्षा, देखभाल एवं स्वास्थय सुविधायें पाने का.
बाल मजदूर या श्रमिक के रूप में काम करने से रोके जाने एवं शोषण से बचाव का .
अपहरण ,बेचे या भगाए जाने से बचाव का.
यौन उत्पीडन एवं शोषण से बचाव का.
कठोर दंड ,यातना,शारीरिक या मानसिक कष्टों से बचाव का.
किशोर के रूप में किसी कानूनी विवाद में फंसने पर पूरा आत्म सम्मान पाने का .तथा कठोर कानूनी कार्यवाहियों से बचाव का.

ये वो अधिकार हैं जो अंतर्राष्ट्रीय स्टर पर स्वीकृत किए गए हैं.हमारे अपने देश भारत ने भी बाल अधिकारों के घोषणा पत्र पर अन्य देशों के साथ ११ दिसम्बर १९९२ को समर्थन दे दिया था.
१९९२ से… यह सन २००८ . पूरे१६ साल . इन १६ सालों में दुनिया कहाँ से कहा पहुँच गयी. पर हमारे बच्चों की स्थितियां……..?क्या हम अपने बच्चों को ये सभी या इनमें से कुछ अधिकार दे पाये हैं?जबकि बच्चों को उनके ये अधिकार देने की जिम्मेदारी पूरी तरह से राज्य पर है.राज्य का मतलब सिर्फ़ सरकार से नहीं है.राज्य में वे सभी लोग शामिल हैं जो व्यवस्था का हिस्सा हैं.यानी की सरकार ,अधिकारी,कर्मचारी, और
हम यानी की आम आदमी.
ऐसा नहीं की इस दिशा में कोशिशें नहीं हो रही हैं.
हो रही हैं….तमाम राष्ट्रीय,अंतर्राष्ट्रीय स्टर की एजेंसियां बच्चों की हालत बदलने की कोशिशें कर रही हाँ.लेकिन जरूरत है उन्हें और गतिशील बनाने की.
इस दिशा में सरकारी स्तर पर २३ फरवरी २००७ को राष्ट्रीय ‘बाल आयोग’का गठन होना एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है.इस आयोग की अध्यक्ष मैग्सेसे अवॉर्ड विजेता एवं बच्चों के अधिकारों की दिशा में लंबे समय से संघर्षरत श्रीमती शांता सिन्हा जी को बनाया गया है.शांता जी ने ख़ुद बच्चों की हालत पर चिंता व्यक्त की है.उनहोंने एक प्रतिष्ठित पत्रिका में साक्षात्कार में स्वीकार भी किया है की “दिल्ली में भी एक पाकेट ऐसी है जहाँ बच्चे स्कूल नहीं जाते .उस जगह पर आइये तो एहसास हो जाता है की देश में बच्चों की स्थिति क्या है.”
तो इन हालातों में बच्चों को उनके अधिकार,उचित शिक्षा ,स्वास्थय दिलवाने एवं उन्हें स्कूलों तक पहुँचने के लिए हम सबको मिलकर कोशिश करनी है.मैं यहाँ अपनी ही एक कविता लिख रहा हूँ जो बच्चों की आज की हालत का चश्मदीद गवाह है.

उसकी उमर

उसकी उमर ग्यारह साल है.
वह अपना दिन
शुरू करता है
चाय की चुस्कियों से
और रात / समाप्त करता है
बीडी के धुवें में.
वह अपने पेट से
साइकिलों में हवा भरता हा
आंखों से दुनियादारी देखता है
हांथों से चाकू खेलता हा
दिमाग से
नई नई गालियों का उत्पादन करके
जुबान से
उन्हें निर्यात करता है
उसकी उमर ग्यारह साल है.

इस उम्र के बच्चे आपको, हमको हर शहर,मुहल्ले, हर
गली ,नुक्कड़,चौराहे पर,ढाबों,दूकानों,ठेलों के किनारे मिल
जायेंगे.इनकी उदास निगाहों में भी कुछ रंग बिरंगे सपने
हैं .इनके मन में भी कुछ कर दिखने की ललक,जोश है .ये बड़ी
उम्मीद से आपको, हमको,इस पूरी व्यवस्था को निहार रहे हैं ….

तो आइये बाल दिवस के दिन हम संकल्प लें की हम इनके
अधिकारों को दिलवाएंगे. हर हालत में….हर स्थिति में…..
ओर हर कीमत पर……

हेमंत कुमार

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