यह ब्लॉग खोजें

वर्ष २००९ में ......

मंगलवार, 30 दिसंबर 2008


वर्ष २००९ में --------
----------दुनिया के हर बच्चे को :

० जीवित रहने, बड़े होने
० भेद भावः रहित जीवन जीने
० मां पिता का प्यार दुलार,देख भाल पाने
० स्वस्थ रहने
० बीमारियों से बचे रहने
० अच्छा जीवन स्तर पाने
० शिक्षा पाने
० उचित पोषण और आहार पाने
० स्कूल,घर,परिवार,समाज में खुशनुमा
माहौल

एवं
पूरा आत्म सम्मान पाने
० शोषण,अन्याय,बाल श्रम से मुक्त होने
० उपेक्षा,गाली,दुर्व्यवहार से बचाव
० पूर्ण शारीरिक,मानसिक एवं बौद्धिक
विकास

का अधिकार मिले
इस हार्दिक मंगल कामना के साथ सभी दोस्तों,प्रसंशकों एवं ब्लोगिंग जगत से जुड़े हुए मित्रों को नए साल की ढेरों शुभकामनायें एवं बधाइयाँ.
हेमंत कुमार

Read more...

सांता क्लाज़ से

बुधवार, 24 दिसंबर 2008



सबके,
दुनिया भर के बच्चों के
प्यारे सान्ताक्लाज़
एक बार आप
हमारी बस्ती में जरूर आओ ।

हमें नहीं चाहिए
कोई उपहार
कोई गिफ्ट
कोई खिलौना रंग बिरंगा
आपसे
हमें तो बस
किसी बच्चे की
पुरानी , फटी ,गुदड़ी
या फ़िर कोई
उतरन ही दे देना
जो इस हाड़ कंपाती
ठंडक में
हमें जिन्दा रख सके ।

हमारी असमय
बूढी हो चली माँ
झोपडी के कोने में
टूटी चरपैया पर पडी
रात रात भर खों खों खांसती है
बस एक बार
आप उसे देख भर लेना
सुना है
आपके
देख लेने भर से
बड़े से बड़े असाध्य
रोग के रोगी
भी ठीक हो जाते हैं ।

हमारी बडकी दीदी
तो अम्मा के हिस्से
का काम करने
कालोनियों में जाते जाते
पता नहीं कब
अचानक ही
अनब्याही माँ बन गयी
पर छुटकी दीदी के हाथ
हो सके तो
पीले करवा देना ।

हमारे हाथों में
साइकिलों , स्कूटरों , कारों के
नट बोल्ट कसते कसते
पड़ गए हैं गड्ढे (गांठें)
अगर एक बार
छू भर लोगे आप
तो शायद हमारी पीड़ा
ख़तम नहीं तो
कुछ काम तो जरूर हो जाएगी ।

चलते चलते
एक गुजारिश और
प्यारे सान्ताक्लाज़
हमारी बस्ती को तो
रोज़
उजाडा जाता है
हम प्रतिदिन
उठा कर फेंके जाते हैं


फूटबोल के मानिंद
शहर के एक कोने से दूसरे
दूसरे से तीसरे
तीसरे से चौथे
और उजडे जाने की यह
अंतहीन यात्रा है….
की ख़तम ही नहीं होती ।

चलते चलते
भागते भागते
हम हो चुके हैं पस्त/क्लांत/परास्त
सान्ताक्लाज़
हो सके तो हमारे लिए भी
दुनिया के किसी कोने में
एक छोटी सी बस्ती
जरूर बना देना ।

सबके
दुनिया भर के
बच्चों के
प्यारे सान्ताक्लाज़
एक बार आप
हमारी बस्ती में जरूर आना .

हेमंत कुमार

Read more...

किताबें करती हैं बातें

शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008

बच्चों को ज्ञान या जानकारी कई तरीकों से मिलती है.अनुभव से, देखकर,सुनकर,ख़ुद प्रयोग करके,तथा पढ़कर.इन सब में भी पढ़ कर किसी चीज को जानना या समझ पाना ज्यादा सार्थक है.क्योंकि अनुभव करने,देखने,सुनने जैसी क्रियाएँ हो सकता है बच्चा दुहरा सके.लेकिन पढ़ना एक ऐसा काम है जिसे बच्चा बार बार दुहरा सकता है.पढ़ना ही शिक्षा का पहला और सबसे जरूरी कदम है.पढने की क्षमता के विकसित हुए बिना बच्चा आगे नहीं बढ़ सकता.और यही एक ऐसा काम है जिसमें आज बच्चों को अरुचि होती जा रही है.यानि की बच्चा पढने से दूर भाग रहा है.
अंनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट(असर)२००८ के मुताबिक स्कूल में छह महीने आने के बाद भी कक्षा के ३२%बच्चे अक्षरों को नहीं पहचान पाते हैं.कक्षा के ४३%बच्चे सरल शब्द नहीं पढ़ सकते.और कक्षा के करीब ४०%बच्चे कक्षा दो के स्तर का पाठ भी नहीं पढ़ सकते.
कितनी बड़ी विडम्बना है की सर्वशिक्षा अभियान
द्वारा काफी धन खर्च करने के बाद भी स्कूलों में दाखिल होने के बाद भी बच्चों में पढने की दक्षता नहीं विकसित हो पा रही है.पढने की दक्षता विकसित हो पाने के कारण कई हैं.आकर्षक पुस्त्स्कों का आभाव,इलेक्ट्रानिक माध्यमों का बढ़ता प्रभाव तथा उससे भी बढ़ कर शिक्षकों और माता पिता द्वारा बच्चों में पढने की ललक जगा पाने की कोशिश में कमी.
इनमें भी इलेक्ट्रानिक माध्यमों के असर से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कारण किताबों के कलेवर तथा अभिभावकों एवम शिक्षकों की कोशिशों में कमी है.
हमारे प्राथमिक स्कूलों (गावं/शहर के सरकारी स्कूल)में ही हमारी जनसँख्या के ज्यादा बच्चे पढने के लिए जाते हैं.इन स्कूलों में बच्चों को सरकारी किताबें (मुफ्त)दी जा रही हैं.लेकिन इन किताबों का कंटेंट तो ठीक है,परन्तु ले आउट ,चित्रांकन,छपाई,कागज इतना घटिया है की उन्हें बच्चे तो बच्चे बड़े भी एक बार पढने के लिए मना कर सकते हैं.चिंता की बात तो ये है की हर राज्य में सर्व शिक्षा अभियान,एस.सी..आर.टी.तथा बेसिक शिक्षा निदेशालय इन किताबों को तैयार करवाने के लिए(लेखन से ले कर प्रकाशन,छपाई तक) काफी ज्यादा पैसा खर्च करते हैं. उसके बाद भी किताबों का कलेवर ज्यों का त्यों बना रहता है.फ़िर कहाँ से बच्चों में पढने की ललक जगाई जा सकेगी.
यदि हम शिक्षकों, अभिभावकों की भूमिका पर बात करें तो भी हमें काफी निराश होना पड़ता है.शिक्षक जहाँ कक्षा में मात्र एक बार रीडिंग लगवा लेने को पाठ पढ़ने की इतिश्री समझ लेते हैं,वहीं अभिभावक भी अपनी तरफ़ से बच्चों में किताब पढने का कोई उत्साह नहीं जगा पाता.जब की दोनों की इस सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण भूमिका है.
यहाँ मैं हिंदुस्तान दैनिक में १४ नवम्बर को प्रकाशित रुक्मिणी बनर्जी के एक लेख के हवाला देना चाहूँगा.इस लेख का शीर्षक ही है "बाज पट्टी में आलू,कालू और मालू".लेख बिहार के सीतामधी जिले के बाजपट्टी ब्लाक के एक प्राईमरी स्कूल को लेकर लिखा गया है.यह एक तरह से वहां के बच्चों शिक्षिका के दोस्ताना रिश्तों के साथ ही शिक्षिका द्वारा किए गए प्रयासों तथा उसकी सफलता की कहानी है.
एक बारिश के दिन जब प्रायः सभी स्कूलों में छुट्टी हो जाती है.बाजपट्टी के प्राथमिक विद्यालय के बच्चे पानी में भीगते हुए स्कूल आते हैं.शिक्षिका उनके साथ बैठ कर गप शप करने लगती है.बात चूहे बिल्ली से शुरू होकर आगे बढ़ते बढ़ते कहानी,फ़िर चित्र बनने पर पहुँच जाती है.बच्चे दीदी से बातें करते हैं.चित्र बनते हैं.एक लडकी भाग कर बगल वाले कमरे से एक चित्रात्मक किताब उठा लाती है.फ़िर बच्चे बारी बारी से कहानी पढ़ते हैं.कहानी का नाम था "आलू,मालू और कालू ".बच्चे पहले भी ये कहानी पढ़ चुके थे .पर उस दिन भी उन्होंने पूरे उत्साह से कहानी पढी.किसी ने तेज आवाज में ,किसी ने धीमे स्वरों में.कुछ देर बाद बारिश रुक गयी.लेकिन बच्चे फ़िर भी वहीं रहे.सबने कागज की नावें बना कर पाने में तैरना शुरू कर दिया.
इस तरह बरसात के दिन का भी बच्चों ने बहुत ही अच्छे ढंग से इस्तेमाल किया.बातचीत की,खेले कूदे,कहानी पढी,चित्र बनाया,कागज की नाव भी बनाई.
अब आप ही बताइए,बच्चों को पढ़ने का ये ढंग अच्छा था या कुर्सी पर बैठकर,ऊंघते हुए,छडी पटकते हुए,कक्षा के बच्चों को जोर जोर से डाँटते हुए पढाने का ढंग.यदि हमारे देश के सभी प्राथमिक विद्यालयों में बाज पट्टी के इसी स्कूल जैसा माहौल बन जाया तो…..मुझे नहीं लगता की कोई बच्चा स्कूल छोड़ कर जन चाहेगा.
रही बात अभिभावकों की .अभिभावक को भी यह बात समझनी होगी की पढ़ना(किताब के अक्षरों को पढ़ कर समझना) बच्चों के लिए कितना जरूरी है.बिना इसके बच्चे का कोई विकास नहीं होगा.वह जीवन में कुछ भी नहीं कर सकेगा.यहाँ पढने का मतलब रत्वाने ,परीक्षा पास करवाने मात्र से नहीं है.बल्कि बच्चों के अन्दर पढने की,सीखने की,कुछ नया करने की इक्षा जागृत करने से है.
एक बात और.हमारे देश में कईएन जी.. भी इस दिशा में कार्यरत हैं. जो की स्कूल में बच्चों को पाठ्यक्रम की सरकारी किताबों के अलावा छोटी छोटी रंग बिरंगी कहानियो,कविताओं,गीतों,की चित्रात्मक पुस्तकें मुहैया करा रहे हैं.इन किताबों का कलेवर,ले-आउट ,चित्र इतने सुंदर हैं की उन्हें देख कर ही बच्चों में पढने का एक तरह से लालच का भावः जग जाए.(मेरे एक जापानी मित्र बताते थे की जापान में खाना इतनी खूबसूरती से सजाकर परसतेहैं की उसे देखकर भूख बढ़ जाया ).ठीक यही बात बच्चों की किताबों के साथ होनी चाहिए.
देश की सबसे बड़ी प्रकाशन संस्था नॅशनल
बुक ट्रस्ट है.इसकी तरफ़ से तो पूरे देश में बच्चों के बीच पाठक मंच बनवाये जा रहे हैं.जहाँ बच्चों को पढने के लिए सुंदर अच्छी किताबें मिल सकें.और उनमें पढने की रूचि पैदा हो सके.
इस समय जरूरत है ऐसे पाठक मंचों ,.जी..द्वारा किए जा रहे,तथा सरकारी स्तर पर चल रहे प्रयासों को गति देने की,जिससे बच्चों में किताबें पढने की रूचि ,इक्षा पैदा की जा सके.
हेमंत कुमार

Read more...

वजूद की तलाश

सोमवार, 15 दिसंबर 2008


माँ ने कहा तुम हंसो
तो मैं हंसने लगा
बापू ने कहा रोओं
तो मैं रोने लगा।

भइया ने कहा
नाच कर दिखलाओ
और मेरे नंगे पाँव
थिरक उठे
पथरीली जमीन पर।

बहना ने चाहा
की मैं गाऊं
और मैं गाने लगा।

ऐसे ही किसी एक दिन
हँसता रोता नाचता गाता
हुआ मैं
बन जाऊंगा
सेमल का फूल
और अपने सपनों को
मुट्ठी में बंद करके
उड़ जाऊंगा
नीले असमान में दूर
बहुत दूर
अपने वजूद की तलाश में।
००००००००
हेमंत कुमार

Read more...

मीठा क्या

शनिवार, 13 दिसंबर 2008


वह तोतली बोली में
मां से बोली
अम्मी क्या दूध चाय से
मीठा होता है?

अम्मी ने उसे समझाया
नहीं बेटी
दूध
बहुत कड़ुवा होता है
चाय
बहुत मीठी होती है.
००००००००००००
हेमंत कुमार

Read more...

राज कुमार को रजुआ केई प्रसाद को कलुआ क्यों पुकारते हो भइया ?

बुधवार, 10 दिसंबर 2008

मैने अपने पुराने लेख में बच्चों के अन्य अधिकारों के साथ ही उनके नाम और राष्ट्रीयता के अधिकार की बात भी उठाई थी.दरअसल बच्चों के नाम और राष्ट्रीयता का मसला ऐसा है जो हमारी रोज मर्रा की जिंदगी से जुडा हैहम , आप,सभी लोग अक्सर दूकानों पर,ढाबों पर,स्कूटर कार का पंचर बनवाते समय ….छोटू,
बोलतू , छोकरा जैसे संबोधनों से बच्चों को बुलाये जाते हुए सुनते भी हैं.ख़ुद बुलाते भी हैं.
मेरा सीधा सा सवाल ये है की भइया हम, आप हम सभी ऐसा क्यों करते हैं?हम उन बच्चों का अच्छा खासा नाम क्यों बिगाड़ देते हैं.
जब की बाल अधिकारों के अंतर्राष्ट्रीय घोषणा पत्र में साफ साफ लिखा है की
हर बच्चे को पैदा होने पर नाम मिलना चाहिए.बच्चे को राष्ट्रीयता मिलने का भी अधिकार है.
तथा जहाँ तक सम्भव हो उसे अपने मां बाप को जानना चाहिए .मां बाप द्वारा उसकी देख भाल भी होनी चाहिए.”
परन्तु हमारे देश का ये दुर्भाग्य ही है की यहाँ पर नियम ,कानून,घोषना पत्रवादे ..ये सब सिर्फ़ कागजों और पुस्तकालयों की शोभा बढ़ने के लिए होते हैं.
मुझे तो व्यक्तिगत रूप से बहुत दुःख होता है ,जब किसी बच्चे को उसके असली नाम से बुला कर उसे बिगाडे गए नाम से बुलाया जाता है.
जरा आप ख़ुद सोचिये की अच्छे खास नाम रामू को रमुआकाली प्रसाद को कलुआ कह कर पुकारने से हमें क्या मिल जाता है? कोई आत्मिक सुख ….कोई संतुष्टि का भावः….फ़िर हम क्यों ऐसा कर रहे हैं/
बात यहीं तक होती तो भी गनीमत थी,हम लोगों ने तो बच्चों के कामों के हिसाब से ही उनके नामकरण का ठेका भी ले रखा है .अब आप देखियेबच्चा स्कूटर की दूकान पर कम कर रहा है तो उसे नट्टूबोल्टू,ढाबे पर कम कर रहा है तो मग्घा..सकोरा …,किसी साफ सुथरी कपड़े की दूकान पर है तोहीरो,स्टेशन पर है तो लौंडे..पोरे….छोकरे…..कितने नाम गिनाऊँ मैं.
बस जिसको जहाँ जिस नाम से मर्जी हुई बुला लिया मासूमों को
और बच्चों कें नाम बिगाड़ कर पुकारने का ठेका सिर्फ़ हमारे देश के लोगों ने ले रखा हो ऐसी बात नहीं है.पूरी दुनिया में इन मासूमों के नामों को अलग अलग ढंग से बिगाडा जा रहा है.दक्षिण अमेरिका और कोलंबिया में सड़क पर काम करने वाले बच्चों को गामिन्स(छोकरा),एवं
चिन्चेजखटमल कहते हैं.ब्राजील में इन्हेंमर्गिनीज”(अपराधी)कहते हैं.पेरू मेंपेजेरस फ्रुतेरस”(फल पक्षी)कहते हैं.अफ्रीका मेंसलीगोमन” (निर्लज्ज बच्चा),कमरून मेंमस्तिक्स”(मच्छर),वियतनाम मेंबुइदुई”(धूल वाले बच्चे) कहा जाता है.
अब आप सोचिये जरा .मान लीजिये मेरा नाम हेमंत कुमार है.मुझे कोई हेमुआ कह कर बुलाए तो मुझे तो बहूत ज्यादा बुरा लगेगा.आपका नाम शेर बहादुर है अगर आपको सेरुआ कह कर बुलाया जाय तो ….?बौखला जायेंगे आप और हम.फ़िर जरा सोचिये उन मासूमों पर क्या गुजराती होगी जब उनका अच्च्छा खासा नाम बिगाड़ कर उन्हें बुलाया जाता होगा.जब दिनेश कुमार को दिनुआ,रत्तन कुमार को रत्तू,लाल सिंह को ललुआ या लालू..कह कर बुलाया जाता है.
और बच्चों के इस नाम बिगाड़ने की परम्परा ..उनके अपमान..उनके आत्म सम्मान को ठेस पहुँचाने के लिए हम आप सभी जिम्मेदार हैं.और हम ही बच्चों को इस मानसिक संतापअपमान और नाम बिगाड़ कर बुलाने से उनके अन्दर जीवन भर के लिए पनप रही कुंठा,हीन भावना से मुक्ति दिला सकते हैं.
तो आइये कम से कम हम लोग ही मिल कर इस दिशा में कुछ करें.कम से कम हम ब्लोगर ही ये निश्चय कर लें की हम मासूमों को उनके सही नामों से सम्मान जनक ढंग से बुलाएँगे.नाम बिगाड़ कर नहीं.
हेमंत कुमार

Read more...

लेबल

. ‘देख लूं तो चलूं’ "आदिज्ञान" का जुलाई-सितम्बर “देश भीतर देश”--के बहाने नार्थ ईस्ट की पड़ताल “बखेड़ापुर” के बहाने “बालवाणी” का बाल नाटक विशेषांक। “मेरे आंगन में आओ” ११मर्च २०१९ ११मार्च 1mai 2011 2019 अंक 48 घण्टों का सफ़र----- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अण्डमान का लड़का अनुरोध अनुवाद अभिनव पाण्डेय अभिभावक अम्मा अरुणpriya अर्पणा पाण्डेय। अशोक वाटिका प्रसंग अस्तित्व आज के संदर्भ में कल आतंक। आतंकवाद आत्मकथा आनन्द नगर” आने वाली किताब आबिद सुरती आभासी दुनिया आश्वासन इंतजार इण्टरनेट ईमान उत्तराधिकारी उनकी दुनिया उन्मेष उपन्यास उपन्यास। उम्मीद के रंग उलझन ऊँचाई ॠतु गुप्ता। एक टिपण्णी एक ठहरा दिन एक तमाशा ऐसा भी एक बच्चे की चिट्ठी सभी प्रत्याशियों के नाम एक भूख -- तीन प्रतिक्रियायें एक महत्वपूर्ण समीक्षा एक महान व्यक्तित्व। एक संवाद अपनी अम्मा से एल0ए0शेरमन एहसास ओ मां ओडिया कविता ओड़िया कविता औरत औरत की बोली कंचन पाठक। कटघरे के भीतर कटघरे के भीतर्। कठपुतलियाँ कथा साहित्य कथावाचन कर्मभूमि कला समीक्षा कविता कविता। कविताएँ कवितायेँ कहां खो गया बचपन कहां पर बिखरे सपने--।बाल श्रमिक कहानी कहानी कहना कहानी कहना भाग -५ कहानी सुनाना कहानी। काफिला नाट्य संस्थान काल चक्र काव्य काव्य संग्रह किताबें किताबों में चित्रांकन किशोर किशोर शिक्षक किश्प्र किस्सागोई कीमत कुछ अलग करने की चाहत कुछ लघु कविताएं कुपोषण कैंसर-दर-कैंसर कैमरे. कैसे कैसे बढ़ता बच्चा कौशल पाण्डेय कौशल पाण्डेय. कौशल पाण्डेय। क्षणिकाएं क्षणिकाएँ खतरा खेत आज उदास है खोजें और जानें गजल ग़ज़ल गर्मी गाँव गीत गीतांजलि गिरवाल गीतांजलि गिरवाल की कविताएं गीताश्री गुलमोहर गौरैया गौरैया दिवस घर में बनाएं माहौल कुछ पढ़ने और पढ़ाने का घोसले की ओर चिक्कामुनियप्पा चिडिया चिड़िया चित्रकार चुनाव चुनाव और बच्चे। चौपाल छिपकली छोटे बच्चे ---जिम्मेदारियां बड़ी बड़ी जज्बा जज्बा। जन्मदिन जन्मदिवस जयश्री राय। जयश्री रॉय। जागो लड़कियों जाडा जात। जाने क्यों ? जेठ की दुपहरी टिक्कू का फैसला टोपी ठहराव ठेंगे से डा० शिवभूषण त्रिपाठी डा0 हेमन्त कुमार डा०दिविक रमेश डा0दिविक रमेश। डा0रघुवंश डा०रूप चन्द्र शास्त्री डा0सुरेन्द्र विक्रम के बहाने डा0हेमन्त कुमार डा0हेमन्त कुमार। डा0हेमन्त कुमार्। डॉ.ममता धवन डोमनिक लापियर तकनीकी विकास और बच्चे। तपस्या तलाश एक द्रोण की तितलियां तीसरी ताली तुम आए तो थियेटर दरख्त दरवाजा दशरथ प्रकरण दस्तक दिशा ग्रोवर दुनिया का मेला दुनियादार दूरदर्शी देश दोहे द्वीप लहरी नई किताब नदी किनारे नया अंक नया तमाशा नयी कहानी नववर्ष नवोदित रचनाकार। नागफ़नियों के बीच नारी अधिकार नारी विमर्श निकट नियति निवेदिता मिश्र झा निषाद प्रकरण। नेता जी नेता जी के नाम एक बच्चे का पत्र(भाग-2) नेहा शेफाली नेहा शेफ़ाली। पढ़ना पतवार पत्रकारिता-प्रदीप प्रताप पत्रिका पत्रिका समीक्षा परम्परा परिवार पर्यावरण पहली बारिश में पहले कभी पहले खुद करें–फ़िर कहें बच्चों से पहाड़ पाठ्यक्रम में रंगमंच पार रूप के पिघला हुआ विद्रोह पिता पिता हो गये मां पिताजी. पितृ दिवस पुण्य तिथि पुण्यतिथि पुनर्पाठ पुरस्कार पुस्तक चर्चा पुस्तक समीक्षा पुस्तक समीक्षा। पुस्तकसमीक्षा पूनम श्रीवास्तव पेड़ पेड़ बनाम आदमी पेड़ों में आकृतियां पेण्टिंग प्यारा कुनबा प्यारी टिप्पणियां प्यारी लड़की प्यारे कुनबे की प्यारी कहानी प्रकृति प्रताप सहगल प्रतिनिधि बाल कविता -संचयन प्रथामिका शिक्षा प्रदीप सौरभ प्रदीप सौरभ। प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक शिक्षा। प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव। प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव. प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव। प्रेरक कहानी फ़ादर्स डे।बदलते चेहरे के समय आज का पिता। फिल्म फिल्म ‘दंगल’ के गीत : भाव और अनुभूति फ़ेसबुक बंधु कुशावर्ती बखेड़ापुर बचपन बचपन के दिन बच्चे बच्चे और कला बच्चे का नाम बच्चे का स्वास्थ्य। बच्चे पढ़ें-मम्मी पापा को भी पढ़ाएं बच्चे। बच्चों का विकास और बड़ों की जिम्मेदारियां बच्चों का आहार बच्चों का विकास बच्चों को गुदगुदाने वाले नाटक बदलाव बया बहनें बाघू के किस्से बाजू वाले प्लाट पर बादल बारिश बारिश का मतलब बारिश। बाल अधिकार बाल अपराधी बाल दिवस बाल नाटक बाल पत्रिका बाल मजदूरी बाल मन बाल रंगमंच बाल विकास बाल साहित्य बाल साहित्य प्रेमियों के लिये बेहतरीन पुस्तक बाल साहित्य समीक्षा। बाल साहित्यकार बालवाटिका बालवाणी बालश्रम बालिका दिवस बालिका दिवस-24 सितम्बर। बीसवीं सदी का जीता-जागता मेघदूत बूढ़ी नानी बेंगाली गर्ल्स डोण्ट बेटियां बैग में क्या है ब्लाइंड स्ट्रीट ब्लाग चर्चा भजन भजन-(7) भजन-(8) भजन(4) भजन(5) भजनः (2) भद्र पुरुष भयाक्रांत भारतीय रेल मंथन मजदूर दिवस्। मदर्स डे मनीषियों से संवाद--एक अनवरत सिलसिला कौशल पाण्डेय मनोविज्ञान महुअरिया की गंध मां माँ मां का दूध मां का दूध अमृत समान माझी माझी गीत मातृ दिवस मानस मानस रंजन महापात्र की कविताएँ मानस रंजन महापात्र की कवितायेँ मानसी। मानोशी मासूम पेंडुकी मासूम लड़की मुंशी जी मुद्दा मुन्नी मोबाइल मूल्यांकन मेरा नाम है मेराज आलम मेरी अम्मा। मेरी कविता मेरी रचनाएँ मेरे मन में मोइन और राक्षस मोनिका अग्रवाल मौत के चंगुल में मौत। मौसम यात्रा यादें झीनी झीनी रे युवा रंगबाजी करते राजीव जी रस्म मे दफन इंसानियत राजीव मिश्र राजेश्वर मधुकर राजेश्वर मधुकर। राधू मिश्र रामकली रामकिशोर रिपोर्ट रिमझिम पड़ी फ़ुहार रूचि लगन लघुकथा लघुकथा। लड़कियां लड़कियां। लड़की लालटेन चौका। लिट्रेसी हाउस लू लू की सनक लेख लेख। लेखसमय की आवश्यकता लोक चेतना और टूटते सपनों की कवितायें लोक संस्कृति लोकार्पण लौटना वनभोज वनवास या़त्रा प्रकरण वरदान वर्कशाप वर्ष २००९ वह दालमोट की चोरी और बेंत की पिटाई वह सांवली लड़की वाल्मीकि आश्रम प्रकरण विकास विचार विमर्श। विश्व पुतुल दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस. विश्व रंगमंच दिवस व्यंग्य व्यक्तित्व व्यन्ग्य शक्ति बाण प्रकरण शब्दों की शरारत शाम शायद चाँद से मिली है शिक्षक शिक्षक दिवस शिक्षक। शिक्षा शिक्षालय शैलजा पाठक। शैलेन्द्र श्र प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव स्मृति साहित्य प्रतियोगिता श्रीमती सरोजनी देवी संजा पर्व–मालवा संस्कृति का अनोखा त्योहार संदेश संध्या आर्या। संवाद जारी है संसद संस्मरण संस्मरण। सड़क दुर्घटनाएं सन्ध्या आर्य सन्नाटा सपने दर सपने सफ़लता का रहस्य सबरी प्रसंग सभ्यता समय समर कैम्प समाज समीक्षा। समीर लाल। सर्दियाँ सांता क्लाज़ साक्षरता निकेतन साधना। सामायिक सारी रात साहित्य अमृत सीता का त्याग.राजेश्वर मधुकर। सुनीता कोमल सुरक्षा सूनापन सूरज सी हैं तेज बेटियां सोन मछरिया गहरा पानी सोशल साइट्स स्तनपान स्त्री विमर्श। स्मरण स्मृति स्वतन्त्रता। हंस रे निर्मोही हक़ हादसा। हाशिये पर हिन्दी का बाल साहित्य हिंदी कविता हिंदी बाल साहित्य हिन्दी ब्लाग हिन्दी ब्लाग के स्तंभ हिम्मत हिरिया होलीनामा हौसला accidents. Bअच्चे का विकास। Breast Feeding. Child health Child Labour. Children children. Children's Day Children's Devolpment and art. Children's Growth children's health. children's magazines. Children's Rights Children's theatre children's world. Facebook. Fader's Day. Gender issue. Girl child.. Girls Kavita. lekh lekhh masoom Neha Shefali. perenting. Primary education. Pustak samikshha. Rina's Photo World.रीना पीटर.रीना पीटर की फ़ोटो की दुनिया.तीसरी आंख। Teenagers Thietor Education. World Photography day Youth

हमारीवाणी

www.hamarivani.com

ब्लागवार्ता


CG Blog

ब्लागोदय


CG Blog

ब्लॉग आर्काइव

कुल पेज दृश्य

  © क्रिएटिव कोना Template "On The Road" by Ourblogtemplates.com 2009 and modified by प्राइमरी का मास्टर

Back to TOP