मासूम लड़की
शनिवार, 24 जनवरी 2009
जहाँ नारियों की पूजा होती है वहां देवताओं का निवास होता है।
ये बात हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले कही थी। उस समय यहाँ वास्तव में नारियों की पूजा होती थी। लेकिन समय के साथ सब कुछ बदलता गया। और आज नारियों की पूजा की जगह ले ली है कन्या भ्रूण हत्या ने। आज भी हमारे देश में लड़कियों को दूसरे दर्जे पर माना जाता है।
यहाँ के लोगों की इसी सोच को बदलने के लिए,आज भारत सरकार को राष्ट्रीय बालिका दिवस मानना पड़ रहा है।
मासूम लड़की
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।
मुहँ अंधेरे आकर
हमारी
पूरी कालोनी को
जगा देती है
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।
बर्तनों की खड़ भड़
झन झन टनाक टन
नल की टोटी से
तेज धार बहता पानी
इसी में अपने
जीवन का संगीत
ढूँढती है
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।
झाडू की खर्र खर्र
सर्र सर्र
पोंछे की
छपाक छप्प
फर्नीचरों की
उठापटक के बीच
बार बार
माथे के बालों को
पीछे करती
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।
कमरे में बिख्ररे सामानों को
समेटने में ही
अपने भविष्य के
सपनों को
आकर देती
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।
कमरे में मेज पर
बिखरी बच्चों की किताबों
पेंसिलों बस्तों
रैक पर सजे खिलौनों को
बड़ी हसरत से
निहारती
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।
सुबह से शाम तक
आंटियों की डांट डपट
अंकलों की
अल्त्रावाइलेट
रेज वाली
शातिर निगाहों से
नहा कर
सराबोर हो जाती है
वह मासूम
वह भोली सी लड़की ।
जुम्मा जुम्मा
आठ नौ बरस की उमर में ही
पूरी कालोनी की खबरों को
मिर्च मसाला
लगाकर
आंटियों से बतियाती
पूरी दादी अम्मा बन गयी
वह मासूम
वह भोली सी लड़की।
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हेमंत कुमार