खेत आज उदास है
शनिवार, 3 सितंबर 2016
खेत आज बहुत विवश और उदास है
एक अजीब-सा डर उसके
अस्तित्व पर कब से डोल रहा है
हरी-पीली लहराती धारियों पर अब
वह ताज़गी भरी शुद्धता की धुनें नहीं गूंजती।
एक अजीब-सा डर उसके
अस्तित्व पर कब से डोल रहा है
हरी-पीली लहराती धारियों पर अब
वह ताज़गी भरी शुद्धता की धुनें नहीं गूंजती।
मिट्टी उद्भ्रांत है
उसके मुख से लेकर अंतर्मन तक को
रासायनिक उर्वरकों के
कसैले स्वाद वाले धीमे ज़हर ने
निर्ममता से बेध डाला है।
उसके मुख से लेकर अंतर्मन तक को
रासायनिक उर्वरकों के
कसैले स्वाद वाले धीमे ज़हर ने
निर्ममता से बेध डाला है।
और इधर सदमे में है उसकी प्रिय संतान
उसका प्रिय धरतीपुत्र ..
जो जा रहा है धीरे-धीरे
ऐसी मूर्छा की ओर, जहाँ
मौसम के वैभव की गन्ध भी
उसपर निष्प्रभावी हो जाएगी।
सदमे में है मिट्टी का प्यारा पुत्र
कि पावस छल करने लगे हैं उसके साथ
हीरे-पन्नों की लहरों पर
तन्मय होकर नाचता नहरों का पानी
कब से अपने विस्तार को तलाशता-तलाशता
उसका प्रिय धरतीपुत्र ..
जो जा रहा है धीरे-धीरे
ऐसी मूर्छा की ओर, जहाँ
मौसम के वैभव की गन्ध भी
उसपर निष्प्रभावी हो जाएगी।
सदमे में है मिट्टी का प्यारा पुत्र
कि पावस छल करने लगे हैं उसके साथ
हीरे-पन्नों की लहरों पर
तन्मय होकर नाचता नहरों का पानी
कब से अपने विस्तार को तलाशता-तलाशता
थककर मौन हो चला।
उदास है घर की बड़ी बेटी
कि खेत से बहकर आने वाली हवा
अब चुप सी हो गई है
नहीं थिरकते उसके आँचल पर
परंपरा और संस्कृति वाले रोपनी के गीत।
उदास है घर की बड़ी बेटी
कि खेत से बहकर आने वाली हवा
अब चुप सी हो गई है
नहीं थिरकते उसके आँचल पर
परंपरा और संस्कृति वाले रोपनी के गीत।
उदास है वह बेटी
कि अब अग्गौं* से मिलनेवाले
खनकते सिक्के,चमकते हरे नोट
बीते दिनों की बात हो गई
जिन पैसों से खरीदती थी वह अपने लिए
रंग-बिरंगे गोटों वाली ओढ़नी
और रुन-झुन करती पायल
कि हवाओं के सुरों से मिलकर
जिसका संगीत गूँज उठता था
गाँव की तलैया से होते हुए
पर्वत वाले झरने तक।
नदी के पानी से मिट्टी को सानकर
हर सावन में गढ़ती है वह अब भी नए शिव
पर उम्मीदों के पहाड़ को
रुई की तरह धुनकर
बिखेर देता है सावन आसमान पर
भटक गई है मेघ-गीतों की तल्लीनता आतप्त वृत्तों में।
कि अब अग्गौं* से मिलनेवाले
खनकते सिक्के,चमकते हरे नोट
बीते दिनों की बात हो गई
जिन पैसों से खरीदती थी वह अपने लिए
रंग-बिरंगे गोटों वाली ओढ़नी
और रुन-झुन करती पायल
कि हवाओं के सुरों से मिलकर
जिसका संगीत गूँज उठता था
गाँव की तलैया से होते हुए
पर्वत वाले झरने तक।
नदी के पानी से मिट्टी को सानकर
हर सावन में गढ़ती है वह अब भी नए शिव
पर उम्मीदों के पहाड़ को
रुई की तरह धुनकर
बिखेर देता है सावन आसमान पर
भटक गई है मेघ-गीतों की तल्लीनता आतप्त वृत्तों में।
उदास है वह बेटी
कि मुरझाये सपनों का इक बोझ है
उसकी सूनी आँखों में
और झाँकता है गहरा विक्षोभ
घर के आइनों से
झनझना कर टूटते सपनों का
एक बोझ है उसके पिता की आँखों में
और इन बोझों के लिए जिम्मेवार
एक गहरी शर्मिंदगी का बोझ है
बहुत हीं उदास मिट्टी की थकी,
झिपकती-सी आँखों में ..।
टुकड़ों-टुकड़ों में विभक्त हो
बेबस होकर जिंदा है
वैभव खोकर बंजरपन में
मृदा आज शर्मिंदा है ll
कि मुरझाये सपनों का इक बोझ है
उसकी सूनी आँखों में
और झाँकता है गहरा विक्षोभ
घर के आइनों से
झनझना कर टूटते सपनों का
एक बोझ है उसके पिता की आँखों में
और इन बोझों के लिए जिम्मेवार
एक गहरी शर्मिंदगी का बोझ है
बहुत हीं उदास मिट्टी की थकी,
झिपकती-सी आँखों में ..।
टुकड़ों-टुकड़ों में विभक्त हो
बेबस होकर जिंदा है
वैभव खोकर बंजरपन में
मृदा आज शर्मिंदा है ll
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कवयित्री
कवयित्री
कंचन पाठक
चर्चित युवा कवयित्री और लेखिका कंचन पाठक की कविताएं आम आदमी से और जमीन से सीधी जुड़ी हैं।उन्होंने आम आदमी के साथ साथ धरती के,गांव के,किसानों के,स्त्री के और पूरी प्रकृति के दर्द को महसूस किया है और इसी लिये इन्हें अपनी कविताओं का विषय बनाया है।कंचन की अभी तक एकल और संयुक्त चार काव्य और एक कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।“इक कली थी”(एकल काव्य-संग्रह),सिर्फ़ तुम (संयुक्त काव्य-संग्रह),काव्यशाला (संयुक्त काव्य-संग्रह),सिर्फ़ तुम (कहानी संग्रह),कविता अनवरत (काव्य-संग्रह)।कई सम्मानों से सम्मानित कंचन पाठक पत्र-पत्रिकाओं के साथ ब्लाग लेखन में भी सक्रिय हैं।
चर्चित युवा कवयित्री और लेखिका कंचन पाठक की कविताएं आम आदमी से और जमीन से सीधी जुड़ी हैं।उन्होंने आम आदमी के साथ साथ धरती के,गांव के,किसानों के,स्त्री के और पूरी प्रकृति के दर्द को महसूस किया है और इसी लिये इन्हें अपनी कविताओं का विषय बनाया है।कंचन की अभी तक एकल और संयुक्त चार काव्य और एक कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं।“इक कली थी”(एकल काव्य-संग्रह),सिर्फ़ तुम (संयुक्त काव्य-संग्रह),काव्यशाला (संयुक्त काव्य-संग्रह),सिर्फ़ तुम (कहानी संग्रह),कविता अनवरत (काव्य-संग्रह)।कई सम्मानों से सम्मानित कंचन पाठक पत्र-पत्रिकाओं के साथ ब्लाग लेखन में भी सक्रिय हैं।
सम्पर्क:मेल आईडी-pathakkanchan239@gmail.com
ब्लॉग–स्वर्णरेणुकाएँ (www.kanchanpathak.blogspot.in)
वेबसाइट–kanchanpathak02.wordpress.com