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बेसिक शिक्षा के बढ़ते कदम---“उम्मीद के रंग”

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2020

  पुस्तक समीक्षा  


बेसिक शिक्षा के बढ़ते कदम---“उम्मीद के रंग”

                                                                             

                   “उम्मीद के रंग”




प्रकाशक

एकलव्य फाउंडेशन

जमानालाल बजाज परिसर

जाटखेड़ी,भोपाल(म०प्र०)

       प्राथमिक शिक्षा के विकास और सुधार की बुनियाद ही निरंतर किये जा रहे नए प्रयोगों और नवाचार पर टिकी है।हमारे देश भारत में भी जब हम आज़ादी के बाद से अब तक के प्राथमिक शिक्षा के परिदृश्य पर निगाह दौड़ाते हैं तो हमें इस दिशा में काफी कुछ सकारात्मक बदलाव साफ़ दिखाई पड़ते हैं।ख़ास तौर से जब हम सरकारी या परिषदीय विद्यालयों की बात करते हैं तो उनमें भी आज के परिदृश्य में काफी कुछ गुणात्मक बदलाव दिखाई पड़ेगा।चाहे वो स्कूल भवनों की बात हो,शिक्षा के स्तर की बात हो,सीखने-सिखाने की प्रक्रिया की बात हो,शिक्षकों-बच्चों के बीच के रिश्तों और व्यवहार की बात हो सभी में कुछ न कुछ सकारात्मक बदलाव आता दिखाई पड़ रहा है।हाँ ये बात जरूर है कि इस बदलाव की गति उतनी तेज नहीं है जितनी होनी चाहिए।लेकिन जो भी बदलाव आया है वह हमारी प्राथमिक शिक्षा के सुनहले भविष्य की और संकेत करता है।

         

           

प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में यह जो सकारात्मक और गुणात्मक परिवर्तन आ रहा है इसके पीछे शिक्षा विभाग के कर्मठ और सृजनात्मक ऊर्जा वाले उच्च अधिकारियों का हाथ तो है ही।इसके साथ ही हमारे प्राथमिक विद्यालयों के उन मेहनती और अपने कार्य के प्रति समर्पित शिक्षकों का भी बहुत बड़ा हाथ है जो निरंतर अपने विद्यालयों की भौतिक और बौद्धिक स्थिति को सुधारने के लिए लगातार प्रयत्नशील हैं।

           

हमारे ऐसे ही कुछ चुनिन्दा शिक्षकों की लगन,मेहनत और खूबसूरत अनुभवों की कहानियों का संकलन है –“उम्मीद के रंग”।एकलव्य फाउन्डेशन,भोपाल द्वारा प्रकाशित “उम्मीद के रंग” किताब में बेसिक शिक्षा विभाग,उत्तर प्रदेश के उन विद्यालयों के शिक्षकों की सफलता की कहानियां संकलित हैं जिन विद्यालयों में जाना शिक्षकों को पसंद नहीं था।जहां जाते ही उनके सामने मुसीबतों के पहाड़ आ खड़े होते थे।जहां पहुँचने के रास्ते अत्यंत दुर्गम थे।जहां बच्चे भी नहीं आते थे।जहां पहुँचने के बाद अक्सर शिक्षक हिम्मत हार कर अपना तबादला करवा लेते थे।

                               

     ऐसे विद्यालयों में पहुँच कर इन शिक्षकों ने इन विद्यालयों की भौतिक सूरत को बदलना,बच्चों का नामांकन बढ़ाना,स्कूलों के प्रति अभिभावकों और ग्रामीणों की सोच को बदलना,सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में नए प्रयोग करके शिक्षण की घिसी-पिटी परिपाटी को तोड़ कर एक नवाचार की मिसाल कायम करना ही अपने जीवन और शिक्षक जीवन का लक्ष्य बना लिया है।

           

        

                                    “उम्मीद के रंग” किताब में प्राथमिक शिक्षा विभाग,उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत 24 शिक्षकों के संघर्ष,जद्दोजहद और सफलता की कहानियां उन्हीं  के द्वारा कलमबद्ध करके संकलित की गयी हैं।यह किताब बेसिक शिक्षा विभाग,उ०प्र० के ऊर्जावान और सृजनशील निदेशक डा0सर्वेन्द्र विक्रम सिंह की परिकल्पना और परिषदीय विद्यालयों के शिक्षकों के अन्दर एक नयी ऊर्जा और आत्मविश्वास भरने की वृहद् योजना का एक हिस्सा है।इस किताब के आमुख में ही डा0 सर्वेन्द्र जी ने लिखा है की “गत दो-तीन वर्षों में अनेक शिक्षकों द्वारा विद्यालयों में किये जा रहे प्रयासों,यथा—विद्यालय परिवेश को आकर्षक बनाना,छात्र नामांकन तथा उपस्थिति में वृद्धि,पाठ्य-सहगामी क्रिया-कलापों के संयोजन आदि से गुणात्मक परिवर्तन देखा जा रहा है।इसके दृष्टिगत यह अनुभव किया गया की यदि इन प्रयासों को उन्हीं शिक्षकों द्वारा लिपिबद्ध कराया जाय तथा उसे अन्य शिक्षकों के साथ साझा किया जाय तो इसके व्यापक परिणाम संभव होंगे।”

                              

यद्यपि शिक्षकों के इन अनुभवों और सफलता की कहानियां इसके पहले भी हमारे सामने आ चुकी हैं।राज्य शैक्षिक तकनीकी संस्थान उत्तर प्रदेश ने पूरे प्रदेश के कई जिलों में घूम-घूम कर प्राथमिक स्कूलों के शिक्षकों की सफलता की कहानियों पर फ़िल्में बनाई हैं जो कि समय-समय पर लखनऊ दूरदर्शन से प्रसारित होने वाले शैक्षिक कार्यक्रम “दीक्षा” तथा सी0आई0ई0टी0,एन0सी0ई0 आर0टी0,नई दिल्ली द्वारा प्रसारित राष्ट्रीय शैक्षिक प्रसारण “ज्ञानदर्शन” में समय-समय पर प्रसारित होती रही हैं।इसके साथ ही प्राथमिक शिक्षा से जुड़ी विभिन्न पत्रिकाओं “शिक्षा की बुनियाद”, “लर्निंग कर्व”(अजीम प्रेम जी फाउंडेशन,बैंगलोर), “शैक्षिक दखल”(पिथौरागढ़ उत्तराखंड से प्रकाशित),“शैक्षिक सन्दर्भ”(एकलव्य भोपाल”,“प्रारम्भ” (नालंदा,लखनऊ)में भी प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षकों के अनुभवों और सफलता की कहानियां प्रकाशित हुई हैं।लेकिन ये कहानियां दूसरों द्वारा कही गयी हैं।शैक्षिक प्रसारणों में इनकी कहानी  प्रोड्यूसरों द्वारा बनायी गयी फिल्मों के माध्यम से दर्शकों तक पहुंचाई गयी हैं तो पत्रिकाओं में प्रकाशित कुछ कहानियों दूसरे पेशेवर लेखकों,शिक्षाविदों द्वारा बताई गयी हैं।कुछ कहानियां इन पत्रिकाओं ने भी शिक्षकों से ही लिखवाई भी हैं।

                            

                  जबकि “उम्मीद के रंग” इन सबसे कुछ अलग हट कर है।इस किताब में शामिल हर शिक्षक खुद अपनी कहानी का लेखक है।और निश्चित रूप से किसी और के द्वारा बयान की गयी संघर्ष की कहानी और खुद शिक्षक द्वारा बताई गयी कहानी में बहुत बड़ा अंतर होगा ही।किसी और द्वारा सुनाई या लिखी गयी किसी शिक्षक की सफलता की कहानी में बहुत कुछ छूट जाने या बदल जाने का खतरा है।जबकि शिक्षक द्वारा लिखे शब्दों में इस बात की कोई गुंजाइश नहीं है।अपने संघर्षों,प्रयासों,और सफलता की कहानियों को शिक्षकों द्वारा खुद लिखने और एक पुस्तक के रूप में उनके प्रकाशन की यह कोशिश उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग की यह संभवतः पहली कोशिश है।

                                       

                       वैसे तो इस किताब में हर शिक्षक द्वारा बयान की गयी हर कहानी अन्य शिक्षकों के लिए प्रेरक होने के साथ ही प्राथमिक शिक्षा से जुड़े हर व्यक्ति के लिए पठनीय है।लेकिन कुछ स्कूलों की कहानियां तो पढ़ कर बड़ा आश्चर्य होता है कि वहां की विषम  परिस्थितियों को बदलने के लिए शिक्षक ने कितनी मेहनत की।जैसे “स्पेलिंग गार्डन”(महेश चन्द्र),“विज्ञान क्या किसी आदमी का नाम है?”(वर्षा श्रीवास्तव),“बैलगाड़ी में बच्चे”(सुमन), “तराई में एक दोस्त पुस्तकालय”(जय शेखर)।सबसे सुखद तो “न पूछे गए सवालों के जवाब”(जैतून जिया) पढ़ते समय तो ऐसा लगा जैसे शिक्षिका ने बच्चों को शान्ति निकेतन पहुंचा दिया हो।इसी तरह “स्पेलिंग गार्डन” पढ़ कर हम कल्पना कर सकते हैं उस कक्ष की जिसमें स्पेलिंग गार्डन बनाया गया होगा।जहां पहुँच कर हर बच्चा शिक्षक के निर्देशों और अपने खुद के प्रयासों द्वारा बनाए गए उस अद्भुत शब्दकोष के बगीचे में पहुच कर अपने द्वारा लगायी गयी वस्तुओं के अंग्रेजी नाम और स्पेलिंग समझ सकेगा।

                                      

इस किताब में शामिल सभी लेखक शिक्षकों-–आसिया फारुकी,वीरेन्द्र कुमार शुक्ल, डा०कौसर जहां,राखाराम गुप्ता,सदाशिव तिवारी,सुनील सिंह,सुमन,अंजू जायसवाल,सर्वेष्ट मिश्रा,जैतून जिया,वर्षा श्रीवास्तव,महेश चन्द्र,जयशेखर,अनंत तिवारी,सपना सिंह,पूजा यादव,डा0रचना सिंह,श्वेता श्रीवास्तव,हृदयेश गोस्वामी,श्रीप्रकाश सिंह,रश्मि मिश्रा,आभा त्रिपाठी,गीता यादव,विवेक पाठक के प्रयास निश्चित ही पूरे प्रदेश ही नहीं देश के प्राथमिक शिक्षकों के लिए प्रेरणा बनेंगे।दोनों ही क्षेत्रों में—अपने स्कूलों को बेहतर बनाने की दिशा में और खुद अपनी कहानियां लिखने की दिशा में।यहाँ एक ख़ास बात मैं और लिखूँगा—कि मुझे इन सभी शिक्षकों की कहानियां पढ़ते समय ऐसा लग रहा था कि ये कहानियां एक अच्छे लेखक द्वारा लिखी गयी हैं।मतलब इन सभी शिक्षकों में लेखन कार्य से जुड़ने की भी काफी संभावनाएं दिख रही हैं।यदि इन्हें बराबर लिखने का समय और प्रकाशन का प्लेटफार्म मिले तो ये बहुत अच्छी रचनाएं भी समाज को दे सकेंगे।

                                       

                     इन सभी शिक्षकों की सफलता की कहानियों में जो सबसे बड़ा बिंदु है वो है उनके द्वारा गाँव की जनता,अभिभावकों और बच्चों को भी एक बेहतरीन स्कूली शिक्षा और खूबसूरत भविष्य के लिए मानसिक रूप से तैयार करना।और अपने विद्यालयों को सुसज्जित, खूबसूरत और बच्चों के मनोनुकूल बनाने के लिए करवाए गए सामूहिक और सामुदायिक प्रयास।जिसके बिना वो अपने विद्यालयों की सूरत बदल नहीं सकते थे।मुझे लगता है कि इन शिक्षकों की सफलता की कुछ कहानियों पर आधारित लघु फ़िल्में बनवा कर बेसिक शिक्षा विभाग उनके प्रसारण की व्यवस्था यदि करे तो संभवतः इन शिक्षकों के सफलता की ये कहानियां हमारे समाज के उस तबके की मानसिकता बदलने में भी कामयाब होंगी जो आज भी प्राइवेट स्कूलों के पीछे भागता है और जिसकी मानसिकता आज भी ये बनी है कि सरकारी स्कूलों या परिषदीय विद्यालयों में कुछ नहीं होता।कम से कम वो लोग भी देख सकेंगे कि आज परिषदीय विद्यालयों में भी शिक्षकों की मेहनत से उम्मीदों के जो रंग भरे जा रहे हैं।वो रंग हमारी प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को कितना खूबसूरत बना रहे हैं।

      

                                   इस किताब का खुबसूरत कवर और अन्दर बने सुन्दर चित्र इसे और पठनीय बनाते हैं।पुस्तक से जुड़ी पूरी टीम को हार्दिक बधाई।


००००



समीक्षक-डा0हेमन्त कुमार


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लेबल

. ‘देख लूं तो चलूं’ "आदिज्ञान" का जुलाई-सितम्बर “देश भीतर देश”--के बहाने नार्थ ईस्ट की पड़ताल “बखेड़ापुर” के बहाने “बालवाणी” का बाल नाटक विशेषांक। “मेरे आंगन में आओ” ११मर्च २०१९ ११मार्च 1mai 2011 2019 अंक 48 घण्टों का सफ़र----- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अण्डमान का लड़का अनुरोध अनुवाद अभिनव पाण्डेय अभिभावक अम्मा अरुणpriya अर्पणा पाण्डेय। अशोक वाटिका प्रसंग अस्तित्व आज के संदर्भ में कल आतंक। आतंकवाद आत्मकथा आनन्द नगर” आने वाली किताब आबिद सुरती आभासी दुनिया आश्वासन इंतजार इण्टरनेट ईमान उत्तराधिकारी उनकी दुनिया उन्मेष उपन्यास उपन्यास। उम्मीद के रंग उलझन ऊँचाई ॠतु गुप्ता। एक टिपण्णी एक ठहरा दिन एक तमाशा ऐसा भी एक बच्चे की चिट्ठी सभी प्रत्याशियों के नाम एक भूख -- तीन प्रतिक्रियायें एक महत्वपूर्ण समीक्षा एक महान व्यक्तित्व। एक संवाद अपनी अम्मा से एल0ए0शेरमन एहसास ओ मां ओडिया कविता ओड़िया कविता औरत औरत की बोली कंचन पाठक। कटघरे के भीतर कटघरे के भीतर्। कठपुतलियाँ कथा साहित्य कथावाचन कर्मभूमि कला समीक्षा कविता कविता। कविताएँ कवितायेँ कहां खो गया बचपन कहां पर बिखरे सपने--।बाल श्रमिक कहानी कहानी कहना कहानी कहना भाग -५ कहानी सुनाना कहानी। काफिला नाट्य संस्थान काल चक्र काव्य काव्य संग्रह किताबें किताबों में चित्रांकन किशोर किशोर शिक्षक किश्प्र किस्सागोई कीमत कुछ अलग करने की चाहत कुछ लघु कविताएं कुपोषण कैंसर-दर-कैंसर कैमरे. कैसे कैसे बढ़ता बच्चा कौशल पाण्डेय कौशल पाण्डेय. कौशल पाण्डेय। क्षणिकाएं क्षणिकाएँ खतरा खेत आज उदास है खोजें और जानें गजल ग़ज़ल गर्मी गाँव गीत गीतांजलि गिरवाल गीतांजलि गिरवाल की कविताएं गीताश्री गुलमोहर गौरैया गौरैया दिवस घर में बनाएं माहौल कुछ पढ़ने और पढ़ाने का घोसले की ओर चिक्कामुनियप्पा चिडिया चिड़िया चित्रकार चुनाव चुनाव और बच्चे। चौपाल छिपकली छोटे बच्चे ---जिम्मेदारियां बड़ी बड़ी जज्बा जज्बा। जन्मदिन जन्मदिवस जयश्री राय। जयश्री रॉय। जागो लड़कियों जाडा जात। जाने क्यों ? 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