पिता (दस क्षणिकाएं)
शनिवार, 16 जून 2012
आज पितृ दिवस पर मैं अपनी इन क्षणिकाओं के साथ अपनी बेटियों
द्वारा बनाया गया यह चित्र पोस्ट कर रहा हूं।
(एक)
पिता
विशाल बाहुओं का छत्र
वट वृक्ष
हम पौधे
फ़लते फ़ूलते
वट वृक्ष की
छाया में।
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(दो)
पिता
अनन्त असीमित आकाश
हम सब
उड़ते नन्हें पाखी।
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(तीन)
हम
लड़खड़ाते
जब जब भी
सम्हालते पिता
आगे बढ़ कर
बांह पसारे।
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(चार)
आंसू
बहते गालों पर
ढाढ़स देता
पिता के खुरदरे
हाथों का स्पर्श।
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(पांच)
पिता
बन जाते उड़नखटोला
हम करते हैं सैर
दुनिया भर की।
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(छः)
हमारी ट्रेन
खिसकती प्लेटफ़ार्म से
पिता
पोंछ लेते आंसू
पीछे मुड़कर।
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(सात)
पिता
बन जाते हिमालय
कोई आक्रमण
होने से पहले
हम पर।
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(आठ)
जब भी
आया तूफ़ान कोई
हमारे जीवन में
पिता बन गये
अजेय अभेद्य
दीवार।
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(नौ)
पिता
बन गये बांध
समुन्दर को
बढ़ते देख
हमारी ओर।
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(दस)
पिता
बन गये बिछौना
हमें नंगी जमीन पर
सोते देख कर।
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डा0हेमन्त कुमार