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दुनिया के उन अंधेरे कोनों की पड़ताल---जहां पुरुष अपने जीवन का उजाला तलाशते हैं।

रविवार, 11 मई 2014

पुस्तक समीक्षा 
        
पुस्तक: औरत की बोली
                            लेखिका:गीताश्री

प्रकाशक:सामयिक प्रकाशन
        3320-21,जटवाड़ा,नेताजी सुभाष मार्ग
 दरियागंज,नई दिल्ली—110002
         वेश्यावृत्ति या स्त्री देह की खरीद फ़रोख्त एक ऐसा अछूत विषय है जिस पर हमारे समाज में लोग आपस में बात तक भी नहीं करना पसंद करते।या करते भी हैं तो बहुत ही ढंके छुपे तरीके से।गोया इस विषय पर सोचना या बात करना कोई पाप है।इस विषय पर लिखा भी बहुत कम गया है।कुछ लिखा भी गया है तो सिर्फ़ सन्दर्भवश या किसी बड़े कथानक के अंश के रूप में। जबकि वेश्याओं का अस्तित्व सम्भवतः मानव समाज की शुरुआत के साथ ही दुनिया के हर कोने में बनता गया।इनकी मौजूदगी भी हमारे समाज में हर युग,हर पीढ़ी में रही है और आज भी है।
       प्राचीन काल की गणिकाओं,देवदासियों से लेकर आज की रेड लाइट एरिआज और पोर्न वेबसाइट्स तक इनका एक बड़ा साम्राज्य फ़ैला हुआ है। हमारे ही समाज के विभिन्न वर्गों के पुरुषों का एक तबका इन सेक्स वर्कर्स की देह का खरीदार बन कर भी जाता है।लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि आभिजात्य वर्ग से लेकर निचले तबके के स्त्री शरीर के इन ग्राहकों को मतलब सिर्फ़ वेश्या को उसकी कीमत चुका कर उसके शरीर के उपभोग मात्र से रहता है।
     कभी वो खरीदार या ग्राहक ये जानने की कोशिश नहीं करता कि जिस स्त्री देह का अभी अभी उसने उपभोग किया है वह स्त्री वेश्या क्यों बनी?उसका जीवन कैसा है?उसके मन में क्या है?क्या वह कभी देह व्यापार के इस अंधेरे दलदल से निकलना भी चाहती है?क्या उसके मन भी यहां से बाहर जाकर समाज में सामान्य जीवन बिताने की इच्छा उठती है? या ऐसे ही ढेरों अन्य सवाल। इस ग्राहक को छोड़ कर अगर हम समाज के आम जन की बात करें तो हमारा समाज भी इस दिशा में मौन ही रहना चाहता है।वो तो इनके बारे में बात भी करना पाप समझता है।
     ऐसे सामाजिक और बौद्धिक परिदृश्य में प्रसिद्ध पत्रकार,लेखिका गीताश्री की पुस्तक औरत की बोली हमारे सामने प्रास्टीट्युशन या देश बाजार की अंधेरी गलियों की एक एक पर्त खोलती है।गीताश्री की इस किताब को पढ़ना प्राचीन काल से आज तक के वेश्यावृत्ति के पूरे इतिहास से गुजरने के समान है। प्रास्टीट्युशन क्या है?इसकी शुरुआत कहां हुई होगी?जैसे छोटे प्रश्नों से लेकर पूरी दुनिया भर में देह व्यापार के अड्डों,उनसे जुड़ी समस्याओं,कानूनों,सर्वेक्षणों,आंकड़ों तक सब कुछ इस पुस्तक में समाहित है।सबसे महत्वपूर्ण बात यह है किगीताश्री एक औरत होने के बावजूद भारत ही नहीं विदेशों तक के रेड लाइट एरिया में गयीं और हर जगह के सेक्स वर्कर्स के मन के भीतर तक उन्होंने झांका। यह अपने आप में एक बहुत हिम्मत और साहस का काम है। और यह समाज के प्रति उनकी संवेदनशीलता और सामाजिक सरोकारों के प्रति उनके अंदर के पत्रकार के उत्तरदायित्वों को भी हमारे सामने लाता है।
         औरत की बोली पुस्तक में अमेरिका,रूस, चीन,जापान,थाईलैण्ड,,पाकिस्तान,संयुक्त अरब अमीरात से लेकर अपने देश के मुम्बई के कमाठीपुरा,कोलकाता के सोनागाछी,दिल्ली के जी बी रोड तक की सारी देह व्यापार की मण्डियों के अतिरिक्त  हाइवेज के ढाबों,होटलों,मसाज पार्लरों,अन्तर्जाल के गलियारों तक का व्यापक,गहन और सूक्ष्म अध्ययन किया गया है। इस पुस्तक में महिला सेक्स वर्कर्स के साथ ही पुरुष सेक्स वर्कर्स या जिगेलो के जीवन को भी सामने लाया गया है। मण्डियों में रहने वाली मजबूर औरतों,वेश्याओं की मजबूरियां,उनकी आर्थिक परिस्थितियां,उनके मन के भीतर समाज,पुलीस और पुरुष जाति के प्रति बैठा भय और व्यवहार,उनके पुनर्वास और सामान्य जीवन तक उन्हें पहुंचाने के लिये चल रहे सरकारी गैर सरकारी प्रयासों तक के हर तरह आंकड़े आपको इस किताब में मिल जाएंगे।
                 वेश्यावृत्ति के अलावा इन सेक्स वर्करों का और कहां कहां किस धन्धे में (जासूसी,स्मगलिंग,ड्रग्स सप्लाई आदि) इस्तेमाल किया जाता है यह तथ्य भी हमारे समक्ष उभर कर आता है।पुस्तक के बीच बीच में विभिन्न रेड लाइट एरियाज की सेक्स वर्कर्स से की गयी बातचीत हमारे सामने उनके मन की हर पर्त,हर कोने को खोल कर रखती है।किसी सेक्सवर्कर से बातचीत करना उसके मन की गहराइयों में झांकना---किसी आम व्यक्ति के वश की बात नहीं। इसके लिये बहुत ही धैर्य,सहनशीलता और संवेदनशीलता की जरूरत होगी। और पुस्तक की लेखिका गीताश्री ने अपनी यह उत्तरदायित्वपूर्ण भूमिका बखूबी निभायी है। इस दृष्टि से यह पुस्तक एक मील का पत्थर साबित होगी।
    किसी भी पुस्तक की पठनीयता और सम्प्रेषणीयता में रचनाकार की भाषा और उसकी शैली का बहुत बड़ा योगदान रहता है। इस दृष्टि से भी यह पुस्तक निश्चित ही पाठकों तक अपनी पहुंच बनायेगी। तमाम आंकड़ों,तथ्यों,कानूनों के उल्लेख और बीच बीच में सेक्स वर्कर्स से हुयी बातचीत के बावजूद यह किताब पढ़ते समय आपको किसी उपन्यास या कथात्मक किताब के पढ़ने का ही एहसास होगा। आपको कहीं ऐसा नहीं लगेगा कि यह एक शोध परक किताब है जिसमें आंकड़ों,सर्वेक्ष्णों का भी उपयोग है। किताब की भाषा की सरलता और प्रवाहमयी शैली पुस्तक के तथ्यों और आंकडों को पाठकों के लिये ग्राह्य और सम्प्रेषणीय बनाती है।
           “औरत की बोली निश्चित रूप से गीताश्री द्वारा किया गया एक साहसिक,श्रमसाध्य और महत्वपूर्ण कार्य है। यह आम पाठकों से ज्यादा महत्वपूर्ण उन शोधार्थियों,सामाजिक कार्यकर्ताओं,स्वयंसेवी संगठनों के लिये है जिनके अंदर वास्तव में इन सेक्स वर्कर्स के हालात बदलने,उनको एक बेहतर जीवन प्रदान करने की इच्छा है।जो वास्तव में इनकी समस्याओं को नजदीक से समझना चाहते हैं।उनके पुनर्वास या उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिये कुछ काम करना चाहते हैं।
             हमारे पूरे मानव समाज की इतनी उपेक्षित,तिरस्कृत पर महत्वपूर्ण अंग सेक्स वर्कर्स के जीवन की तमाम सचाइयों,समस्याओं को समाज के सामने लाने और उनके मन की गहराइयों में झांकने के इस महत्वपूर्ण कार्य के लिये गीताश्री को बधाई।
                             000
डा0हेमन्त कुमार


गीताश्री
गीताश्री पत्रकारिता और साहित्य सृजन के क्षेत्र में नया नाम नहीं है।31 दिसंबर 1965 को मुजफ़्फ़रपुर बिहार में जन्मीं गीताश्री ने आधुनिक पत्रकारिता में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने के साथ साहित्य जगत में भी प्रतिष्ठित युवाओं में से एक हैं।मीडीया एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में कई पुरस्कार प्राप्त कर चुकी गीता जी की अब तक कई पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।आप इस समय महिलाओं की प्रतिष्ठित पत्रिका बिंदिया में संपादक के रूप में कार्यरत हैं।



  



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