क्षणिकाएं
शुक्रवार, 21 जनवरी 2011
बेटियां
खुली खिड़कियां
खुला आसमां
हुलस पड़ी ज्यों
सभी बेटियां।।
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बच्चे
नई स्लेट और नई किताबें
बच्चे सब स्कूल को भागें
कुछ बच्चे क्यों
रिंच हथौड़ी
में बस अपना भाग्य निहारें ?
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बाल मन
झमाझम बारिश
कागज की नाव
मास्टर जी की छड़ी देख
सहम उठा बाल मन।
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किशोरावस्था
रंग बिरंगे सपने
मेरे हिस्से के
छिनते गये मुझसे
ज्यों ज्यों मैं
बच्चे से किशोर होता गया।
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हेमन्त कुमार