यह ब्लॉग खोजें

पिन होल कैमरे से डिजिटल कैमरों तक की अनोखी यात्रा

बुधवार, 19 अगस्त 2020

(विश्व फोटोग्राफी दिवस पर विशेष)


पिन होल कैमरे से डिजिटल कैमरों तक की अनोखी यात्रा


डा0हेमन्त कुमार 

                                            


        आप जब भी कहीं अकेले,परिवार या मित्रों के साथ घूमने जाते हैं तमाम सुन्दर प्राकृतिक दृश्य देखते हैं।खूबसूरत पार्क,पक्षी,जीव-जंतु,ऐतिहासिक स्थल देखते हैं और उसकी सुन्दरता को फ़ौरन अपने मोबाइल या डिजिटल कैमरे में स्मृति के तौर पर सुरक्षित कर लेते हैं।कभी किसी शादी विवाह,सामाजिक समारोह में गए और वहां परिवार के कोई सदस्य वर्षों बाद मिले झट से अपना मोबाइल फोन निकाला और उनके साथ एक सेल्फी ले ली।मतलब आज कितना आसान हो गया है फोटो खींचना,खिंचवाना,उसे फ़ौरन देखना और अपनी डिवाइस(मोबाइल या कंप्यूटर) में उसे सुरक्षित कर लेना।ये सब आज के डिजिटल कैमरों, मोबाइल्स और डिजिटल तकनीक का ही तो कमाल है।

    लेकिन अगर हम आप आज से लगभग ढाई से तीन दशक पहले के समय पर निगाह डालें यानि लगभग 1990 के आस-पास।तो क्या उस समय भी फोटो खींचना इतना आसान था जितना आज है?इसका सीधा सा उत्तर है नहीं।क्योंकि उस समय फोटोग्राफी एक बहुत महँगा शौक था।फिल्म वाले कैमरे इस्तेमाल होते थे जिनमें फिल्म लगती थी।कैमरे भी हर किसी के पास नहीं थे।जिन लोगों के पास कैमरे थे भी तो वो उसमें फिल्म डलवाने,फिल्म लैब से डेवलप प्रिंट करवाने के खर्चों से बचने के लिए जल्दी कैमरों का इस्तेमाल नहीं करते थे।एक बात और भी थी कि अगर कोई व्यक्ति आज कैमरे से फोटो खींचता था या फिर स्टूडियो में खिंचवाता था तो उसे फोटो देखने का मौक़ा कम से कम एक सप्ताह बाद ही मिल पाता था।इन एक हफ़्तों में उसके सामने बड़ी असमंजस वाली या कह सकते हैं सस्पेंस की स्थितियां रहती थीं कि पता नहीं फोटो कैसी आई होगी।कहीं खराब बनी होगी तो पैसे बेकार जायेंगे वगैरह वगैरह।जबकि आज आप मोबाइल कैमरे से फोटो खींचते हैं और तुरंत देख भी लेते हैं।उसे किसी के पास भेजना हो तो भेज भी देते हैं या किसी सोशल साईट पर अपलोड भी कर देते हैं।प्रिंट करवाना हो तो किसी फोटो कलर लैब में अपने मोबाइल के मेमोरी कार्ड से फोटो लैब के कंप्यूटर में ट्रांसफर करवा कर प्रिंट करवा लेते हैं।पर क्या कभी आपने इस बात पर भी विचार किया है कि इन डिजिटल,मोबाइल या फिल्म वाले कैमरों का आकार प्रकार पहले कैसा था ? या पहली बार कैसे और किस कैमरे से फोटो खींची गयी थी ? चलिए हम आपको ले चलते हैं इन कैमरों के दादाओं पर दादाओं के पास और फोटोग्राफी के उन खोजकर्ताओं के पास जिनकी बदौलत हम आप आज इतनी आसानी से सुन्दर खूबसूरत तस्वीरें खींचते हैं।

         

सबसे पहले 965 से 1040 ई० के बीच अल्हाजेन ने लोगों को किसी दीवाल पर एक पिनहोल कैमरे के माध्यम से एक तस्वीर बना कर दिखाई।यह पहला कैमरा था जिसे कैमरा आब्स्क्युरा नाम दिया गया था।इसमें एक पिन के बराबर के छेद से रोशनी दीवाल या किसी दूसरी सतह पर आकर एक तस्वीर बनाती थी जो कि तुरंत हट भी जाती थी।फिर लोगों के ये कहने पर कि ऐसा कोई उपाय हो जिससे  ये तस्वीर वहां बनी रहे।1727 ई०में जर्मनी के एक रसायनशास्त्री जान शुल्ज ने ये खोज की कि अगर चाक,नाइट्रिक एसिड और चांदी को मिलाकर उस जगह पर लगा दें तो सूरज की रोशनी पड़ने से वहां बनी तस्वीर बाद में भी बनी रहेगी।इस घटना के लगभग 50 सालों बाद 1777 में स्वीडिश रसायनशास्त्री कार्ल शील ने उस रसायन में कुछ बदलाव कर उसमें अमोनिया मिलाकर उस तस्वीर को दीवाल या सतह पर स्थाई रूप से बनाने में सफलता हासिल की।

       इसके बाद कई देशों में कई वज्ञानिक इस दिशा में लगातार काम करते रहे।और आखिरकार फ्रांस के दो वैज्ञानिकों जोसेफ नाईसफोर और लुईस डॉगेर ने फोटोग्राफी की प्रक्रिया डोगोरोटाइप का आविष्कार करके 1826 में पहली फोटो खिंची।इसके लिए उन लोगों ने आब्स्क्युरा कैमरे का ही इस्तेमाल किया जिसमें उन्होंने चांदी और अन्य रसायन लगी एक बड़ी प्लेट लगाईं जिस पर फोटो बनी थी।लेकिन इस पहली फोटो को खींचने में उन्हें लगभग 8 घंटों का समय लगा था।और इस पहली फोटो में उन लोगों ने अपने कमरे की खिड़की के बाहर का दृश्य खींचा था।लेकिन फोटोग्राफी की इस प्रक्रिया में काफी समय लगता था।लोगों को फोटो देखने के लिए कई कई दिन इंतज़ार करना होता था।इसलिए इस लम्बे समय को कम करने की दिशा में भी दोनों वैज्ञानिकों ने काफी प्रयास किया।और 1832 में कुछ रसायनों के और इस्तेमाल के बाद उन्होंने एक दिन में फोटो तैयार करने में सफलता पाई।इस आविष्कार की घोषणा 19अगस्त1839 को फ्रांस सरकार ने आधिकारिक तौर पर की थी।इसीलिए19अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस पूरी दुनिया भर में मनाया जाता है।

  फोटोग्राफी को और बेहतर बनाने की दिशा में अब दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने काम करना शुरू कर दिया था।फोटो खींचने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले कैमरों के बड़े आकार और उसमें लगने वाली प्लेट्स के कारण अभी फोटोग्राफी सिर्फ बड़े,धनवान और अमीर लोगों के लिए ही संभव थी।इसी लिए दुनिया के वैज्ञानिक इस प्रक्रिया को सरल बनाने और कैमरे का आकार छोटा करने की दिशा में काम कर रहे थे।

    इस बीच फोटोग्राफी की दिशा में स्काटलैंड के भौतिक शास्त्री क्लार्क मैक्सवेल ने एक और सफलता हासिल कर लीवो काफी लम्बे समय से रंगीन फोटो बनाने की दिशा में काम कर रहे थे।और अंततः उन्होंने सन 1861 में दुनिया की पहली रंगीन तस्वीर बनाने में सफलता हासिल की।यह तस्वीर एक फीते की थी जिसमें लाल,नीला और पीला रंग था।

  ये वो समय था जब दुनिया के हर कोने में फोटोग्राफी कला को और बेहतर बनाने के लिए नयी खोजें और प्रयोग हो रहे थे।एक तरफ वैज्ञानिक स्टिल फोटो को आम जन तक पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे तो वहीँ कुछ वैज्ञानिक इन तस्वीरों को चलती फिरती आकृतियों या कहें फिल्म के रूप में प्रस्तुत करने के लिए काम कर रहे थे।इसकी शुरुआत एक स्टिल फोटोग्राफर एडवर्ड मुएब्रिज ने सन1872 में की थी।उन्हें दुनिया की पहली चलती फिरती तस्वीरों को खींचने में 6 साल का समय लगा था।उन्होंने घोड़ों के दौड़ने को कैमरे में कैद करने के लिए रेस ट्रैक पर 12 वायर कैमरे लगाये थे।आखिर एडवर्ड की मेहनत भी रंग लाई और वो 6 साल की मेहनत के बाद जमीन को छुए बगैर दौड़ते घोड़ों की तस्वीरें कैमरे में कैद करने में सफल रहे।इसे ही पहली मोशन पिक्चर भी कहा गया है।

      1870 के दशक में ही फोटोग्राफी की दिशा में एक और महत्वपूर्ण काम हुआ।यह काम किया रिचर्ड मैडाक्स ने।इन्होने पहली बार फोटोग्राफ को सुरक्षित रखने के लिए सूखी जिलेटिन की प्लेट्स का इस्तेमाल किया।इस प्लेट को अधिक समय तक सुरक्षित भी रखा जा सकता था।

         अभी तक फोटोग्राफी का शौक सिर्फ धनी और पेशेवरों के लिए ही था।लेकिन सन 1880 में जार्ज ईस्टमैन ने अमेरिका में कोडक नाम से एक कम्पनी बनाई।ईस्टमैन ने कैमरों में लगाने के लिए एक लचीली रोल फिल्म भी बनाई जिसे कैमरों में लगाना भी आसान था।इसी के बाद उन्हें कैमरा बनाने की भी अनुमति सरकारी तौर पर दी गयी।कोडक कंपनी ने इस दौरान लकड़ी का एक बाक्स कैमरा भी बनाया।जिसमें लगभग 100 तस्वीरें खींचने के लिए फिल्म लगी होती थी।ये कैमरा भी थोड़ा बड़ा था और इसमें सभी फोटो खींचने के बाद ग्राहक तस्वीरें बनाने के लिए पूरे कैमरे को ही कोडक कम्पनी में भेजता था।और उसे आगे फोटो खींचने के लिए लकड़ी का ही एक 100 फोटो खींचने वाला कैमरा दिया जाता था।फिर कुछ समय बाद पिछले कैमरे की तस्वीरें उसके पास आती थीं।

     

धीरे-धीरे कोडक कम्पनी ने भी अपने इस कैमरे में बदलाव किया और प्रसिद्ध कैमरा निर्माता फ्रैंक ब्राउनवेल से कह कर दुनिया का सबसे पहला छोटा कैमरा “कोडक ब्राऊनी” बनवाया जिससे एक छोटा बच्चा भी फोटो खींच सकता था।इसके बाद कोडक कंपनी लगातार अपने कैमरों को बेहतर बनाने की दिशा में और फिल्म को सुधारने की दिशा में काम करती रही।1930में कोडक ने अपनी पचासवीं वर्षगाँठ के  अवसर पर कोडक कैमरों के कई माडल बनाए।इतना ही नहीं “कोडक ब्राउनी” माडल के लगभग 5 लाख कैमरे बना कर एक फिल्म के साथ  उस साल12 वर्ष की उम्र पूरी करने वाले सभी बच्चों को मुफ्त बांटा।एक तरह से देखा जाय तो कोडक कम्पनी फोटोग्राफी के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुयी।लेकिन अभी इन कैमरों में 6,8 या12 तस्वीरें लेने वाली वन ट्वेंटी साइज की बड़ी फिल्मों की रील लगती थी।

    1905 से1913 के बीच का भी समय फोटोग्राफी की दिशा में महत्वपूर्ण है।इस बीच बहुत सी कम्पनियां 35एम0एम0की छोटी फ़िल्में भी कैमरों के लिए बनाना शुरू कर चुकी थीं।और आस्कर बारनैक ने 1913 में 35एम0एम0 फिल्म वाला पहला कैमरा लाइका बनाया।पर विश्व युद्ध के कारण उन्हें अपना काम रोक देना पडा।और फिर 1925 में उन्होंने लिट्ज कैमरा कंपनी की और से लाइका कैमरा बाजार में उतारा।इसके बाद धीरे धीरे 35एम0एम0 फिल्म वाले कैमरों की ओर लोगों का आकर्षण बढ़ा और लोगों ने इनका इस्तेमाल शुरू किया।1936 में जापान की कंपनी “कैनन” ने अपना पहला रेंज फाइंडर कैमरा शुरू किया।

      फिर तो धीरे धीरे कैमरा बनाने वाली कंपनियों को पंख लग गए।रेंज फाइंडर कैमरों के बाद पहले टी0एल०आर० फिर एस0 एल0 आर०कैमरे बाजार में आने लगे।1936 से लगभग 1990 तक का लगभग 50 वर्षों का समय पूरी दुनिया में फोटोग्राफी कैमरों और फिल्मों की विकास का रहा है।इस दौरान रोलीफ्लेक्स,याशिका,निकान,कैनन,पेंटेक्स,मिनोल्टा जैसी कई बड़ी कंपनियों ने अपने कैमरों के बेहतरीन माडल्स बनाए।कैमरों के लिए ब्लैक एंड व्हाईट,कलर,गेवाकलर,अँधेरे में भी फोटो खींचने वाली फ़िल्में भी बनीं और पूरी दुनिया में फोटोग्राफी का बहुआयामी विकास होता गया।लेकिन सबसे बेहतरीन कैमरे बनाने के क्षेत्र में जापान सबसे आगे रहा।

                           

             कैमरों के इतिहास में अगर पोलोराइड कैमरे की चर्चा न हो तो बात अधूरी लगेगी।पोलोराइड वो कैमरा होता था जिसमें फिल्म की जगह केमिकल लगा फोटोग्राफी पेपर लगता था।और उसमें फोटो खींच कर 10 सेकेण्ड में ही कैमरे से बाहर आ जाती थी।हालांकिइस कैमरे की खोज एडविन ह्यूबर्ट लैंड ने 1947 में ही कर ली थी।पर वो कैमरा काफी वजनी था।इसके काफी बाद 1970 के आस-पास पहला हल्का पोलोराइड कैमरा बाजार में आया।इसका इस्तेमाल अक्सर स्टूडियो वाले ग्राहक को तुरंत फोटो देने के लिए करते थे या फिर शौकिया लोग इसका इस्तेमाल करते थे।2008 में कंपनी के बंद होने तक इन कैमरों का इस्तेमाल होता रहा।   

       फिल्म कैमरों के बाद फोटोग्राफी की दिशा में सबसे बड़ी छलांग डिजिटल युग में लगी।यद्यपि 1980 से 1990 के दशक में डिजिटल कैमरों को बनाने की दिशा में काफी काम हो रहा था।लेकिन पहला सफल डिजिटल कैमरा कोडक कंपनी ने 1991 में बनाया।बाद में दुनिया की बड़ी-बड़ी नामी गिरामी कंपनियों कैनन,निकान,पेंटेक्स,सोनी,मिनोल्टा आदि  ने भी डिजिटल कैमरे बनाने की दिशा में काम शुरू कर दिया।फिल्म कैमरों की ही तरह इन कैमरों में भी पहले रेंज फाइंडर कैमरे बाजार में आये फिर धीरे-धीरे डी0एस०एल०आर० का ज़माना आ गया।डिजिटल कैमरों की शुरुआत ने हर आम आदमी को भी फोटोग्राफर बना दिया।क्योंकि जो लोग कैमरे नहीं खरीद सकते उनके लिए मोबाइल कंपनियों ने मोबाइल में एक से एक गुणवत्ता और इफेक्ट्स वाले कैमरे लगाने  शुरू कर दिए हैं। 

            पहले जहां कैमरों में फिल्म लगती थी वहीं अब इन डिजिटल कैमरों में मेमोरी कार्ड लगने लगे।और इन कैमरों की फोटो की गुणवत्ता उनके पिक्सेल से आंकी जाती है।आज स्थिति यह है हर आम आदमी भी मोबाइल से फोटो खींचता नजर आ जाता है।आज हर आदमी के पास डिजिटल कैमरा भले ही न हो लेकिन एक अदद मोबाइल तो है ही।जिसमें डिजिटल कैमरा लगा हुआ है।अब ये बात अलग है की कौन कैसी फोटो खींचता है पर फोटो खींचता तो है।


     इस तरह फोटोग्राफी की दुनिया लगभग दो सौ सालों की यात्रा पूरी कर उस मुकाम पर पहुँच चुकी है जहां आज हर व्यक्ति को हर कदम पर फोटो की जरूरत है।चाहे वो परिचय-पत्र हो,वोटर आई0 डी0कार्ड,आधार कार्ड,राशन कार्ड,बैंक एकाउंट पासबुक,ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट,या अन्य कोई व्यक्तिगत कागजात।बिना फोटो के सब कुछ अधूरा है।

           ये तो हुयी लोगों के व्यक्तिगत जीवन में फोटो की उपयोगिता।आइये ज़रा देखें इस फोटोग्राफी का हमारे जीवन में और कहाँ कहाँ इस्तेमाल हो रहा ?अगर देश की बात करें तो हर वैज्ञानिक,औद्योगिक आविष्कारों में,अंतरिक्ष और वैज्ञानिक खोजों में,हमारे स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए होने वाले एक्स-रे,सी०टी0स्कैन,एम०आर०आई०में,हमारी सुरक्षा के लिए लगे सैनिकों के लिए नाईट विजन कैमरे.,टी0,वी०,पत्र-पत्रिकाओं और शिक्षा के क्षेत्र में ----कहाँ नहीं है फोटोग्राफी का उपयोग।

    एक बात और है कि ये कैमरा या मोबाइल कैमरा तो केवल एक फोटो खींचने की मशीन मात्र है।असली फोटो तो खींचता है दुनिया का सबसे बड़ा कंप्यूटर यानि आपका दिमाग। आपकी कल्पना शक्ति।किसी वस्तु या दृश्य को आप किस एंगिल से देखते हैं,किस लाईट में फोटो खींचते हैं,अपनी फोटो में किस वास्तु को शामिल करते या छोड़ते हैं ---इन सब बातों पर निर्भर करेगी आपकी या किसी छायाकार की फोटो की गुणवत्ता।आप भी चाहें तो एक कुशल फोटोग्राफर बन सकते हैं।बस जरूरत है आपके अन्दर कल्पनाशीलता,चीजों,दृश्यों को देखने की अपनी सोच,और फोटोग्राफी के प्रति समर्पण और जज्बा---ये सभी चीजें मिलकर आपको एक बेहतरीन छायाकार बना सकती हैं।तो सोच क्या रहे हैं--–उठाइये अपना मोबाइल कैमरा और शुरू हो जाइए दुनिया की खूबसूरती को अपने नजरिये से देखने के लिए।

                             ०००००


लेखक:डा0हेमन्त कुमार

Read more...

लेबल

. ‘देख लूं तो चलूं’ "आदिज्ञान" का जुलाई-सितम्बर “देश भीतर देश”--के बहाने नार्थ ईस्ट की पड़ताल “बखेड़ापुर” के बहाने “बालवाणी” का बाल नाटक विशेषांक। “मेरे आंगन में आओ” ११मर्च २०१९ ११मार्च 1mai 2011 2019 अंक 48 घण्टों का सफ़र----- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अण्डमान का लड़का अनुरोध अनुवाद अभिनव पाण्डेय अभिभावक अम्मा अरुणpriya अर्पणा पाण्डेय। अशोक वाटिका प्रसंग अस्तित्व आज के संदर्भ में कल आतंक। आतंकवाद आत्मकथा आनन्द नगर” आने वाली किताब आबिद सुरती आभासी दुनिया आश्वासन इंतजार इण्टरनेट ईमान उत्तराधिकारी उनकी दुनिया उन्मेष उपन्यास उपन्यास। उम्मीद के रंग उलझन ऊँचाई ॠतु गुप्ता। एक टिपण्णी एक ठहरा दिन एक तमाशा ऐसा भी एक बच्चे की चिट्ठी सभी प्रत्याशियों के नाम एक भूख -- तीन प्रतिक्रियायें एक महत्वपूर्ण समीक्षा एक महान व्यक्तित्व। एक संवाद अपनी अम्मा से एल0ए0शेरमन एहसास ओ मां ओडिया कविता ओड़िया कविता औरत औरत की बोली कंचन पाठक। कटघरे के भीतर कटघरे के भीतर्। कठपुतलियाँ कथा साहित्य कथावाचन कर्मभूमि कला समीक्षा कविता कविता। कविताएँ कवितायेँ कहां खो गया बचपन कहां पर बिखरे सपने--।बाल श्रमिक कहानी कहानी कहना कहानी कहना भाग -५ कहानी सुनाना कहानी। काफिला नाट्य संस्थान काल चक्र काव्य काव्य संग्रह किताबें किताबों में चित्रांकन किशोर किशोर शिक्षक किश्प्र किस्सागोई कीमत कुछ अलग करने की चाहत कुछ लघु कविताएं कुपोषण कैंसर-दर-कैंसर कैमरे. कैसे कैसे बढ़ता बच्चा कौशल पाण्डेय कौशल पाण्डेय. कौशल पाण्डेय। क्षणिकाएं क्षणिकाएँ खतरा खेत आज उदास है खोजें और जानें गजल ग़ज़ल गर्मी गाँव गीत गीतांजलि गिरवाल गीतांजलि गिरवाल की कविताएं गीताश्री गुलमोहर गौरैया गौरैया दिवस घर में बनाएं माहौल कुछ पढ़ने और पढ़ाने का घोसले की ओर चिक्कामुनियप्पा चिडिया चिड़िया चित्रकार चुनाव चुनाव और बच्चे। चौपाल छिपकली छोटे बच्चे ---जिम्मेदारियां बड़ी बड़ी जज्बा जज्बा। जन्मदिन जन्मदिवस जयश्री राय। जयश्री रॉय। जागो लड़कियों जाडा जात। जाने क्यों ? जेठ की दुपहरी टिक्कू का फैसला टोपी ठहराव ठेंगे से डा० शिवभूषण त्रिपाठी डा0 हेमन्त कुमार डा०दिविक रमेश डा0दिविक रमेश। डा0रघुवंश डा०रूप चन्द्र शास्त्री डा0सुरेन्द्र विक्रम के बहाने डा0हेमन्त कुमार डा0हेमन्त कुमार। डा0हेमन्त कुमार्। डॉ.ममता धवन डोमनिक लापियर तकनीकी विकास और बच्चे। तपस्या तलाश एक द्रोण की तितलियां तीसरी ताली तुम आए तो थियेटर दरख्त दरवाजा दशरथ प्रकरण दस्तक दिशा ग्रोवर दुनिया का मेला दुनियादार दूरदर्शी देश दोहे द्वीप लहरी नई किताब नदी किनारे नया अंक नया तमाशा नयी कहानी नववर्ष नवोदित रचनाकार। नागफ़नियों के बीच नारी अधिकार नारी विमर्श निकट नियति निवेदिता मिश्र झा निषाद प्रकरण। नेता जी नेता जी के नाम एक बच्चे का पत्र(भाग-2) नेहा शेफाली नेहा शेफ़ाली। पढ़ना पतवार पत्रकारिता-प्रदीप प्रताप पत्रिका पत्रिका समीक्षा परम्परा परिवार पर्यावरण पहली बारिश में पहले कभी पहले खुद करें–फ़िर कहें बच्चों से पहाड़ पाठ्यक्रम में रंगमंच पार रूप के पिघला हुआ विद्रोह पिता पिता हो गये मां पिताजी. पितृ दिवस पुण्य तिथि पुण्यतिथि पुनर्पाठ पुरस्कार पुस्तक चर्चा पुस्तक समीक्षा पुस्तक समीक्षा। पुस्तकसमीक्षा पूनम श्रीवास्तव पेड़ पेड़ बनाम आदमी पेड़ों में आकृतियां पेण्टिंग प्यारा कुनबा प्यारी टिप्पणियां प्यारी लड़की प्यारे कुनबे की प्यारी कहानी प्रकृति प्रताप सहगल प्रतिनिधि बाल कविता -संचयन प्रथामिका शिक्षा प्रदीप सौरभ प्रदीप सौरभ। प्राथमिक शिक्षा प्राथमिक शिक्षा। प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव। प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव. प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव। प्रेरक कहानी फ़ादर्स डे।बदलते चेहरे के समय आज का पिता। फिल्म फिल्म ‘दंगल’ के गीत : भाव और अनुभूति फ़ेसबुक बंधु कुशावर्ती बखेड़ापुर बचपन बचपन के दिन बच्चे बच्चे और कला बच्चे का नाम बच्चे का स्वास्थ्य। बच्चे पढ़ें-मम्मी पापा को भी पढ़ाएं बच्चे। बच्चों का विकास और बड़ों की जिम्मेदारियां बच्चों का आहार बच्चों का विकास बच्चों को गुदगुदाने वाले नाटक बदलाव बया बहनें बाघू के किस्से बाजू वाले प्लाट पर बादल बारिश बारिश का मतलब बारिश। बाल अधिकार बाल अपराधी बाल दिवस बाल नाटक बाल पत्रिका बाल मजदूरी बाल मन बाल रंगमंच बाल विकास बाल साहित्य बाल साहित्य प्रेमियों के लिये बेहतरीन पुस्तक बाल साहित्य समीक्षा। बाल साहित्यकार बालवाटिका बालवाणी बालश्रम बालिका दिवस बालिका दिवस-24 सितम्बर। बीसवीं सदी का जीता-जागता मेघदूत बूढ़ी नानी बेंगाली गर्ल्स डोण्ट बेटियां बैग में क्या है ब्लाइंड स्ट्रीट ब्लाग चर्चा भजन भजन-(7) भजन-(8) भजन(4) भजन(5) भजनः (2) भद्र पुरुष भयाक्रांत भारतीय रेल मंथन मजदूर दिवस्। मदर्स डे मनीषियों से संवाद--एक अनवरत सिलसिला कौशल पाण्डेय मनोविज्ञान महुअरिया की गंध मां माँ मां का दूध मां का दूध अमृत समान माझी माझी गीत मातृ दिवस मानस मानस रंजन महापात्र की कविताएँ मानस रंजन महापात्र की कवितायेँ मानसी। मानोशी मासूम पेंडुकी मासूम लड़की मुंशी जी मुद्दा मुन्नी मोबाइल मूल्यांकन मेरा नाम है मेराज आलम मेरी अम्मा। मेरी कविता मेरी रचनाएँ मेरे मन में मोइन और राक्षस मोनिका अग्रवाल मौत के चंगुल में मौत। मौसम यात्रा यादें झीनी झीनी रे युवा रंगबाजी करते राजीव जी रस्म मे दफन इंसानियत राजीव मिश्र राजेश्वर मधुकर राजेश्वर मधुकर। राधू मिश्र रामकली रामकिशोर रिपोर्ट रिमझिम पड़ी फ़ुहार रूचि लगन लघुकथा लघुकथा। लड़कियां लड़कियां। लड़की लालटेन चौका। लिट्रेसी हाउस लू लू की सनक लेख लेख। लेखसमय की आवश्यकता लोक चेतना और टूटते सपनों की कवितायें लोक संस्कृति लोकार्पण लौटना वनभोज वनवास या़त्रा प्रकरण वरदान वर्कशाप वर्ष २००९ वह दालमोट की चोरी और बेंत की पिटाई वह सांवली लड़की वाल्मीकि आश्रम प्रकरण विकास विचार विमर्श। विश्व पुतुल दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस विश्व फोटोग्राफी दिवस. विश्व रंगमंच दिवस व्यंग्य व्यक्तित्व व्यन्ग्य शक्ति बाण प्रकरण शब्दों की शरारत शाम शायद चाँद से मिली है शिक्षक शिक्षक दिवस शिक्षक। शिक्षा शिक्षालय शैलजा पाठक। शैलेन्द्र श्र प्रेमस्वरूप श्रीवास्तव स्मृति साहित्य प्रतियोगिता श्रीमती सरोजनी देवी संजा पर्व–मालवा संस्कृति का अनोखा त्योहार संदेश संध्या आर्या। संवाद जारी है संसद संस्मरण संस्मरण। सड़क दुर्घटनाएं सन्ध्या आर्य सन्नाटा सपने दर सपने सफ़लता का रहस्य सबरी प्रसंग सभ्यता समय समर कैम्प समाज समीक्षा। समीर लाल। सर्दियाँ सांता क्लाज़ साक्षरता निकेतन साधना। सामायिक सारी रात साहित्य अमृत सीता का त्याग.राजेश्वर मधुकर। सुनीता कोमल सुरक्षा सूनापन सूरज सी हैं तेज बेटियां सोन मछरिया गहरा पानी सोशल साइट्स स्तनपान स्त्री विमर्श। स्मरण स्मृति स्वतन्त्रता। हंस रे निर्मोही हक़ हादसा। हाशिये पर हिन्दी का बाल साहित्य हिंदी कविता हिंदी बाल साहित्य हिन्दी ब्लाग हिन्दी ब्लाग के स्तंभ हिम्मत हिरिया होलीनामा हौसला accidents. Bअच्चे का विकास। Breast Feeding. Child health Child Labour. Children children. Children's Day Children's Devolpment and art. Children's Growth children's health. children's magazines. Children's Rights Children's theatre children's world. Facebook. Fader's Day. Gender issue. Girl child.. Girls Kavita. lekh lekhh masoom Neha Shefali. perenting. Primary education. Pustak samikshha. Rina's Photo World.रीना पीटर.रीना पीटर की फ़ोटो की दुनिया.तीसरी आंख। Teenagers Thietor Education. World Photography day Youth

हमारीवाणी

www.hamarivani.com

ब्लागवार्ता


CG Blog

ब्लागोदय


CG Blog

ब्लॉग आर्काइव

कुल पेज दृश्य

  © क्रिएटिव कोना Template "On The Road" by Ourblogtemplates.com 2009 and modified by प्राइमरी का मास्टर

Back to TOP