पुस्तक समीक्षा--बचकर निकलना–मौत के चंगुल से
शनिवार, 14 दिसंबर 2013
“मौत के चंगुल में”
लेखक:प्रेम स्वरूप
श्रीवास्तव
प्रकाशक:
नेशनल बुक ट्रस्ट ‘इंडिया’,नई दिल्ली
हिन्दी उपन्यासों की तरह हिन्दी बाल उपन्यास भी एक अत्यंत
आधुनिक विधा है, हिन्दी बाल उपन्यासों की एक छोटी, पर समृद्धिशील परम्परा होते हुए
भी अभी तक बाल उपन्यास न तो लोकप्रिय हो पाए हैं और न ही इनकी कोई विशेष पहचान बन
पाई है। इसके पीछे जो कारण नज़र आता है, वह है अर्थशास्त्र की मांग और पूर्ति का
सिद्धांत।बाल उपन्यासों की मांग का पक्ष कभी भी अनुकूल नहीं रहा है।बड़ों की तरह
बच्चों को हमारे यहां यह अधिकार नहीं रहा कि वे पाठ्यक्रमों से हटकर पढ़ी जाने वाली
सामग्री की खरीद स्वयं करें। लेकिन अब स्थितियाँ बदल रही हैं।महानगरों से लेकर
छोटे-छोटे शहरों में लगने वाले पुस्तक मेलों में बच्चों की सहभागिता बढ़ी है।उनके
लिये अलग से स्टाल होते हैं,जहां वे अपनी रुचि की पुस्तकें क्रय करते हैं।इस
बदलाव में ‘नेशनल बुक ट्रस्ट’ की एक महत्वपूर्ण भूमिका है।
साहस और रोमांचपूर्ण कथायें
बच्चों को सदैव आकर्षित करती रही हैं।ये कथायें बच्चों में एक जिज्ञासा पैदा कर,
उनकी रुचि को लगातार बनाए रखकर, उन्हें पढ़ने को तो प्रेरित करती ही हैं, साथ ही
उनमें साहस और वीरता का एक ऐसा भाव भी पैदा करती हैं, जिसकी आज इस कठिन समय में
उन्हें बेहद ज़रूरत है। हाल ही में ‘नेशनल बुक ट्रस्ट’ द्वारा प्रकाशित वरिष्ठ बाल साहित्यकार प्रेम स्वरूप
श्रीवास्तव का बाल उपन्यास ‘मौत के चंगुल में’ एक ऐसी ही कृति है। इस उपन्यास के माध्यम से लेखक बच्चों को
विश्व की एक ऐसी रोमांचकारी यात्रा पर ले जाता है, जहां कदम कदम पर उनका सामना
बड़े-बड़े खतरों से होता है और उन खतरों से बच निकलना भी कम रहस्यमय नहीं है।अध्यापक
वाटसन एक असामान्य एवं ज़िद्दी व्यक्ति है तो भी परिस्थितियों से हार नहीं मानता
है। यही कारण है कि वह बच्चों का एक ऐसा स्कूल चलाता है,जहां लंगड़े,दृष्टिहीन एवं
अपंग बच्चों के साथ पशु-पक्षी भी पारिवारिक सदस्यों की तरह रहते हैं।
अचानक एक दिन उसने एक ऐसा निर्णय लिया, जो सबको
आश्चर्य में डाल देता है।लोगों को लगा कि उसकी सनक कहीं बच्चों को मौत के मुंह तक
ना पहुंचा दे, पर वह अपने फ़ैसले पर अडिग रहा।लोग उसकी मदद को आगे आये।वह एटलस नाम
के एक समुद्री जहाज से करीब सात सौ बच्चों के साथ एक खतरनाक विश्व यात्रा पर निकल
पड़ा।
अपनी इस यात्रा
में उसे किन-किन संकटों से गुज़रना पड़ा,इसे पढ़ना अपने आप में एक रोमांचकारी अनुभव
से गुजरना है।खराब मौसम, अपाहिज बच्चे और उनके जीवन की पल-पल चिंता में लगे वाटसन
ने बड़ी से बड़ी प्रतिकूल स्थितियों में भी हार नहीं मानी।न्यूयार्क बंदरगाह से सैनफ़्रांसिस्को
तक ही यह यात्रा भारत होकर भी गुज़री।मुंबई आने के बाद यह यात्रा भारत दर्शन पर भी
निकली।भारत की समृद्ध सांस्कृतिक परम्पराओं का भी इस यात्रा में संक्षिप्त पर
प्रभावी वर्णन मिलता है।बंगाल के जंगल में सांप से जुड़ी घटना रोंगटे खड़ी कर देती
है।अंत में जहाज का समुद्र में डूबना और इस संकट से उबरना इस उपन्यास का सबसे
खतरनाक और रोमांचकारी पक्ष है।सांसें ठहर सी जाती हैं कि अब आगे क्या होगा।
सत्रह उपशीर्षकों में विभाजित
यह रोचक कथा बच्चों को रोज़मर्रा के जीवन से अलग हटकर एक नई दुनिया से परिचय कराती
है,जिसकी उन्हें पहले से कल्पना तक नहीं होती है।बच्चों ही नहीं बड़ों को भी इस
उपन्यास का पढ़ना एक ज़िदभरी रोमांचक यात्रा के दुर्लभ अनुभव से होकर गुज़रना है।इस
अनुभव का आनंद केवल इसे पढ़कर ही उठाया जा सकता है।पुस्तक के साथ दिये गये चित्रकार
पार्थसेन गुप्ता के चित्र भी आलेख से कम जीवांत नहीं हैं।
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समीक्षक--
कौशल पाण्डेय
1310ए,वसंत विहार,
कानपुर – 208021
मोबाइल:09389462070
श्री कौशल पाण्डेय
जी एक प्रतिष्ठित बाल साहित्यकार,कवि एवं लेखक तो हैं ही एक
कुशल समीक्षक भी हैं।आप वर्तमान समय में आकाशवाणी के गोरखपुर केन्द्र पर सहायक
निदेशक,राजभाषा पद पर कार्यरत हैं।
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