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कहाँ खो गया बचपन

शनिवार, 8 नवंबर 2008

कहाँ खो गया बचपन

जाने कहाँ खो गया है बचपन
पिछले कुछ सालों से.

मैं ढूँढता रहता हूँ बचपन को
मुहल्ले की सडकों पर
पार्कों में,गलियों में चबूतरों पर
पर कमबख्त बचपन
मुझे कहीं मिलता ही नहीं.

नहीं दिखाई देती अब कोई भी लड़की
मुहल्ले की सडकों पर
चिबद्दक खेलते हुए,
रस्सी कूदते हुए या फ़िर
घरों के आंगन, बरामदों में
गुडिया का ब्याह रचाते.

न पार्क में कोई लड़का
गिल्ली डंडा,सीसो पाती या
फ़िर कबड्डी ,खोखो खेलते हुए.

कहीं ऐसा तो नहीं
हमारे देश के सारे बच्चे
उलझ गए हों
कार्टून नेटवर्क,पोगो और टैलेंट हंट के
मायाजाल में.
सिमट गया हो बचपन
सिर्फ़ वीडियो गेम और
कंप्युटर की स्क्रीन तक
या लड़ गया हो बचपन की पीठ पर
पसेरी भर का बोझा ज्ञान विज्ञानं का
बस्त्ते के रूप में.

मुझे चिंता सिर्फ़ इस बात की नहीं
की मुहल्ले की गलियों पार्कों में
पसरा सन्नाटा कैसे टूटेगा
कैसे दिखाई देंगे बच्चे यहाँ.

चिंता तो इस बात की है



की बच्चों की कल्पना का क्या होगा?
जो न सुनते हैं कहानियाँ किस्से
अब नानी दादी से
न उन्हें मालूम है की
क्या है गुड्डे गुड्डी का खेल
न जाते हैं अब वे नागपंचमी,
दशहरे के मेलों में
न करते हैं भाग दौड़,
धमाचौकडी गलियों पार्कों में.
तो कल कहाँ से करेंगे ये बच्चे
नई नई विज्ञानं की खोजें
नए नए आविष्कार
कैसे बनेंगे ये बच्चे
देश के भावी कर्णधार
कहाँ से आयेगा इनके अन्दर
गांधी नेहरू या आजाद का संस्कार .
००००००००००००००००००००००
हेमंत कुमार

2 टिप्पणियाँ:

evaluator 11 नवंबर 2008 को 7:40 pm बजे  

Respected Sir, I express my best wishes to you for doing such a commendable work and raising issues related to common man through your writing and blog.
May your efforts bore gud fruits and create awareness among us.

B.K.Sharma 12 नवंबर 2008 को 11:03 am बजे  

महोदय ,
बचपन एक सीधा-साधा निर्मल स्वच्छा ईश्वर में आस्था के सामान पवित्र होता है| परन्तु हमारे पालन करता या नित्य प्रति दिन हमारे साथ रहने वाले लोग हमें अपने अप्रत्यासित व्यवहार से कभी न कभी किसी न किसी रूप में हमें वो सब कुछ सिखा देते हैं जो की हमारे आज के इस वैज्ञानिक युग में सायद किसी में कुछा व्यक्ति विशेष को मानसिक प्रमाद के आराम प्रदान करने वाली है | परन्तु हम ये भूल जाते हैं की जब इस बचपन में कुछा सोचने समझने की छमता विकसित होती है | या फिर अविकसित कोमल मन इन विकृत मानसिक भावनाओ को समझ या आत्म सात नही कर पाता तो उस बचपन के अंदर एक डर आपने भविष्य को लेकर अथवा किसी कार्य को पूर्ण न होने को लेकर बन जाता है जो भविष्य में सभी को किसी न किसी रूप में सामने मिलता रहता है | आज की जरूरत है की हम सभी जो बड़े , बुजुर्ग या अभिवावक हैं इन कोमल मन को जो कल का भविष्य है एक सही और सकारात्मक दिशा प्रदान करे | परन्तु यह सम्भव नही हो पता क्यों की जो हम कहते है वो कर नही पाते क्यों की आज हमारा मन इतना उदार हृदय नही जो किसी अन्य को खुश देख सके या बिना स्वार्थ के किसी को आगे बढ़ने में सहयोग / मार्गदर्सन कर सके |

इस संसार मी कोई भी व्यक्ति अपने आप मे पूर्ण नही है |हर किसी व्यक्ति अपने कठिन प्रयासों के द्वारा निरंतर अपने आपको कठिन परिश्रम के द्वारा उत्थान की ओर अग्रसारित करना पड़ता है और ये प्रक्रिया जीवन पर्यन्त चलती रहती है | भविष्य मे भी पूर्णता की ओर मनुष्य अग्रसारित होता रहेगा | हे ईश्वर हम सभी को अच्छा कार्य कुशल बनने के लिए मार्ग दर्शन करे ताकि हम सभी एक साथ सदभावना पूर्वक रह कर एक साथ कार्य कर सके |

सर्वे भवन्तु सुखिना सर्वे सन्तु निरामयः सर्वे भाद्रानी मा कस्चिद दुःख भाग भवेत्|
हिन्दी अर्थ यह है की सभी लोग सुखी एवम निरोगी हो सभी अच्छा अच्छा देखे किसी को किसी प्रकार का कष्ट न हो | हम सभी मे और सुखी होने की मंगल होने की भावना हो |

सादर सप्रेम स्नेह सद्द्भावानासाहित |

बी. क. शर्मा
इंदिरा नगर लखनऊ उत्तर प्रदेश

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