हादसा--(भाग-2)
शुक्रवार, 8 नवंबर 2024
(कल आपने पढ़ा था मेरी कहानी “हादसा” का पहला भाग।आज प्रस्तुत है “हादसा” का दूसरा और अंतिम भाग –डा० हेमन्त कुमार )
“अरे.... अरे... रोको... रोको उसे...ये पगला कहाँ घुसा जा
रहा है?”वहां खड़ी कई औरतें युवक को रोकने के लिए एक साथ चिल्ला पड़ीं।वहां खड़ी भीड़
और चीख रही औरतें जब तक कुछ समझ पातीं पगले ने एक झटके से उस लाश को सीधा किया और
उसका मुहं देखते हुए चिल्ला पड़ा—“अरे ई ता हमार बहिनिया मिरवा अहै हो .....बड़के
नेता जी के घरे काम करे जात रही दुई साल से .... ।”पगला की तेज आवाज ने एक बार फिर
सबके अन्दर लाश देखने की उत्सुकता जगा दी थी।लोग फिर से एक बार लाश को देखने के
लिए एक दूसरे को धकेल कर आगे पहुँचने की कोशिश करने लगे थे।पगला लाश पहचानने के
बाद एकदम से स्तंभित और भौचक्का सा हो कर खड़ा हो गया था।शायद अब उसकी समझ में यह
बात नहीं आ रही थी कि अब क्या करे वो ? पगला एक बार फिर झुक कर लाश को ध्यान से
देखने लगा।
“अरे-अरे देखौ भैया मिरवा के हाथे में का अहै
हो?कौनौ सोने के जंजीर लागत बा।”पगला की तेज आवाज ने एक बार फिर सबको भरभराकर लाश
के नजदीक पहुंच कर उसे देखने पर मजबूर कर दिया था।मुझसे भी नहीं रहा गया।मैं भी
दूसरों की तरह लाश के ऊपर झुक कर ध्यान से उसके हाथ की ओर देखने लगा।अरे सच में
उसकी मुट्ठी में दबी एक सोने की मोटी चेन का छोटा सा हिस्सा बाहर की तरफ लटक रहा
था।चेन की बनावट देखते ही मेरी आँखों के आगे कई चेहरे नाच उठे।और अचानक मेरे आगे
रंजीत का चेहरा कौंध उठा।
रंजीत यहाँ के
पश्चिमी क्षेत्र के विधायक जी का इकलौता बेटा और मेरा पुराना दोस्त भी था।अभी कुछ
ही दिनों पहले की तो बात थी।जब रंजीत ने अपने जन्मदिन पर सारे दोस्तों को शहर के
एक सबसे महंगे होटल में काकटेल पार्टी दी थी।हालाँकि मेरा इधर उससे कोई ज्यादा
संपर्क नहीं रह गया था लेकिन उसने किसी दोस्त से कहकर मुझे भी उस पार्टी में बुला
लिया था।.....उस पार्टी में ही तो रंजीत ने बड़ी शान से हम सभी को ये चेन दिखाते
हुए कहा था,“देखो सालों देखो...ई चेन खास तौर से बाबू जी ने हमरे लिए दुबई से
मंगाई है ...देखे हो कभौं ऐसी चेन?”
और उस चेन को
पहचानते ही मेरा क्राइम रिपोर्टर पूरी तरह से जाग उठा।... “ल्यो गुरु बन गई स्टोरी
..अब जल्दी से सुलझाओ इस चेन की गुत्थी को।अउर फैलाय देव सनसनी पूरी दुनिया भर
में।”और इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता मैं भागा तेजी से घर की ओर अपनी खटारा
मोपेड उठाने।क्योंकि मुझे पक्का यकीन था कि ये काण्ड रंजीत का ही किया हुआ है।वो
पहले भी एक रेप केस में फंसा था लेकिन विधायक बाप ने किसी तरह उसे बचा लिया
था।मीरा सुन्दर तो थी ही।हो सकता है दारु के नशे में रंजीत और उसके खास दोस्तों ने
पहले उसके साथ बलात्कार किया हो फिर उसे मार कर यहाँ फेंक गए हों।मेरा दिमाग बहुत
तेजी से चल रहा था और मुझे जल्दी से जल्दी विधायक जी के घर पहुँच कर रंजीत की शहर
में मौजूदगी या फरारी की जानकारी हासिल करनी होगी।
अपनी खटारा मोपेड
से शहर के सबसे पुराने मोहल्ले में स्थित विधायक जी की कोठी तक पहुँचने में मुझे
मजे का वक्त लग गया।दोपहर होने को आई थी और विधायक जी की कोठी पर एकदम से सन्नाटा
पसरा था।आम तौर पर उनके यहाँ उनके समर्थकों और मिलने वालों का तांता लगा रहता था
लेकिन आज एकदम से सन्नाटा था।कोठी के बाहर एकाध बाइक के अलावा कोई वाहन भी नहीं
था।न ही विधायक जी की गाड़ियाँ और न ही रंजीत की स्कार्पियो।
मुझे वैसे तो रंजीत के दोस्त के रूप में वहां के
सभी गार्ड जानते थे लेकिन फिर भी मुझे अन्दर जाने से रोक दिया गया।गार्डों से
जानकारी मिली कि विधायक जी किसी मीटिंग में दिल्ली गये हैं और रंजीत “बाबा” पिछले
दो दिनों से बाहर हैं।जब मैंने गार्डों से मीरा की बाबत कुछ पूछना चाहा तो सब
चुप्पी साध गए।बल्कि एक गार्ड ने तो मेरा माखौल उड़ाते हुए यहाँ तक कह दिया कि
---“का गुरु तुमका और कौनौ नाहीं मिली?ऊ मीरवै पे दिल आय गवा का तुम्हार?”जब मैंने
उन्हें बताया कि यहाँ काम करने आने वाली मीरा का मर्डर हुआ है और उसकी लाश दारागंज
में रेलवे लाइन के पास देखी गयी है।तो एक ने मुझे सीधे–सीधे सलाह दी कि—“गुरु अब
बहुत होई गवा फालतू में अफवाह न फैलाव।नाहीं तौ तुमहीं पेल दिहे जैहो मीरा के
मर्डर में।अब तुम रंजीत बाबा के दोस्त हो एही लिए कुछ कही नाहीं रहे।चुप्पै चाप
फूट ल्यो पतली गली से---।” गार्ड की घुड़की सुनकर मैं भी बिना कुछ बोले वहां से
निकल लिया।
सारा दिन
इधर-उधर भटकते हुए मीरा और रंजीत के बारे में कई दोस्तों से पूछताछ करने के बाद लगभग
रात ग्यारह बजे तक वापस लौटने पर पता चला पुलिस आई थी और उस युवती की लाश को उठाकर
मेडिकल कालेज के चीरघर ले गयी।पुलिस के जाने के बाद अब मोहल्ले में भी पूरी तरह
सन्नाटा पसरा था।मुझे भी थकान सी लग रही थी और मैं भी घर जाकर खाना खाकर अपनी
बंसेहटी पसर गया।मेरे भीतर का क्राइम
रिपोर्टर आगे की योजना बनाता रहा।और मैं कब गहरी नींद में सो गया मुझे पता ही नहीं
चला।
अगले दिन मैं सुबह
देर से उठा।उठते ही कल का हादसा और दिन भर की भाग-दौड़ मेरी आँखों के सामने घूम गई
और मैं आगे की खबरें जानने के लिए तेजी से आज के अखबार पर झपटा।अख़बार के तीसरे पेज
पर ही मीरा की फोटो के साथ खबर छपी थी कि “दारागंज में शंटिंग कर रही मालगाड़ी के
इंजन से युवती कटी”।नीचे खबर पर विस्तृत रिपोर्ट भी थी जिसमें पुलिस की तरफ से साफ़
साफ़ कहा गया था कि युवती ने ट्रेन के आगे कूद कर मरने की कोशिश की थी लेकिन इंजन
में फंस कर कुछ दूर घिसटने के बाद उसकी मौत हो गयी और ड्राइवर ने सतर्कता से ब्रेक
लगा दिया था। इस लिए युवती का शरीर क्षत-विक्षत होने से बच गया।उसके ट्रेन से
टकराने की पुष्टि भी पोस्ट मार्टम रिपोर्ट से कन्फर्म हो गई थी।क्योंकि पोस्ट
मार्टम रिपोर्ट के मुताबिक ट्रेन से टकराने पर युवती के सर में लगी गंभीर चोट से उसकी
मौत हो गयी।साथ ही राज्य सरकार और विधायक जी की तरफ से युवती के परिवार वालों को
दो-दो लाख रुपये देने की घोषणा भी कर दी गयी थी।
खबर पढ़ कर मैं
अवाक रह गया।ये तो साफ़-साफ़ मीरा के साथ अन्याय हुआ है।पक्की तौर पर इस पूरे
कारनामे को रंजीत ने ही अंजाम दिया था और इस बार भी विधायक जी उसे बचाने के लिए
पुलिस,पोस्ट मार्टम हाउस सभी जगह सेटिंग कर चुके थे।मैं अभी कुछ सोचता या कुछ करने
की योजना बनाता तभी मेरे पिताजी ने तेज आवाज में मुझे नीचे बुलाया।नीचे मेरे पिता
जी घबराये डरे हुए सर पर हाथ धरे बैठे थे।अम्मा भी उनके सामने डरी बैठी थीं।
“क्या हुआ बाबू जी
अम्मा?आप लोग इतना घबराए काहे हैं?”मेरा प्रश्न सुनते ही पिता जी फफक कर रो पड़े।
“अरे क्या हुआ बाबू जी बताइए तो?”
“तुम अपनी ई रिपोर्टर बनने की सनक कब छोड़ोगे?क्या जब इस घर
से कोई लाश उठेगी तब?”बाबू जी अब भी सिसक रहे थे।
“पर हुआ
क्या?”मुझे भी अब कुछ घबराहट होने लगी।पिता जी बेवजह नहीं रोते।वो मन और दिल के
बड़े मजबूत व्यक्ति थे।जरुर कोई बड़ी बात हुई है।नहीं तो उनके जैसा हिम्मती इन्सान
कभी रोता नहीं।
००००
डा०हेमन्त कुमार
7 टिप्पणियाँ:
बहुत खूब, रिपोर्टरगिरी चालू रहनी चाहिए। मीरा को इंसाफ दिलाना होगा। अगले भाग-3 का इंतजार है।
बहुत अच्छी कहानी है। कहानी का climex
आपके पापा का रोना है। अगली कहानी पापा को केंद्र में रख कर लिखिये। धन्यवाद।
शुक्रिया मेरी कहानी पढ़ने के लिए। आगे भी लिखूंगा 🙏🙏
भाई आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए उत्साहवर्धक है। लेकिन आप अपना नाम तो दीजिए। बेनामी में छुपे रहने का क्या मतलब। और हाँ ये मेरे पापा का नहीं देश के हर उस युवा का रोना है जो अन्याय के विरुद्ध खड़ा होना चाहता है। शुभकामनायें। आपकी सलाह जरुर मानूंगा और अगली कहानी आपके आदेशानुसार.....🙏🙏🙂🙂
बहुत अच्छी और यथार्थ को चित्रित करती एक सशक्त कहानी है डॉक्टर साहब । परंतु इससे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वालों के लिए एक निराशाजनक स्थिति उत्पन्न होती है और प्रभावशाली लोगों की बिगड़ैल, आवारा औलादों के हौंसले बुलंद होते हैं । यद्यपि कहानी मन को झकझोरती है और बहुत कुछ सोचने पर मजबूर भी करती है, किंकर्तव्यविमूढ़ता वाली स्थिति में फंसा देती है । आगे दो कड़ियां और बढ़ाते तो अच्छा रहता । बहुत - बहुत बधाई !
- लायक राम मानव ।
सराहना के लिए आभार मानव जी 🙏🙏कोशिश करता हूं इसे आगे बढ़ाऊं 🙏🙏
बहुत खूब
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