कटघरे के भीतर
रविवार, 29 अगस्त 2021
ये कविता मैंने लगभग 10-12 साल पहले लिखी थी...परआज दुनिया की हालत को देख कर इसे फिर प्रकाशित कर रहा हूँ .......
कटघरे के भीतर
(फोटो-गूगल से साभार ) |
खून से रंगी सड़कों पर
अपने कदमों के निशान बनाते हुए
निकल पड़े हैं
हजारों लाखों बच्चे
पूरी दुनिया के घरों से।
बच्चों के हाथों में हैं मशालें
चेहरे हैं आंसुओं से तर बतर
मन में समाया है एक खौफ
कानों में गूंज रही है धमाकों की आवाजें
और आंखों में चस्पा हैं तमाम सवाल
जिनका जवाब देना है
आपको/हम सब को/इस पूरी व्यवस्था को।
इन बच्चों की लाल पड़ गई सूनी आंखें
जानना चाहती हैं
अपने पैदा होने का कसूर
कि क्यों
वे सभी बना दिए गए अनाथ
चन्द मिनटों में
कुछ उन्मादियों द्वारा किए गए धमाकों
और दहशतगर्दी के खेल से
कि क्या होगा अब उनका भविष्य
कि कैसे मिटेगा उनके चेहरों पर छाया हुआ खौफ
कि कैसे उबर सकेंगे वे पूरे जीवन भर
रात में दिखने वाले भयावह सपनों के प्रहार से
कि कौन बुलाएगा अब उन्हें
बेटा कह कर
कि किसके आंचल में छुप सकेंगे वे
उनींदी आंखों से भयावह काली आकृतियां देखकर
कि कैसे बिता सकेंगे वे भी एक
सामान्य बच्चे का जीवन।
ये सभी सवाल पूछ रहे हैं ये
सारे बच्चे
हम सभी से
सोचिए जरा सोचिए
कुछ थोड़ा बहुत तो बोलिए
क्या जवाब है हमारे /आपके पास
इनके सवालों का।
हम सब खड़े होकर कटघरों में
गीता पर हाथ रख कर
सच बोलने की शपथ तो खा सकते हैं
परन्तु
क्या दे सकते हैं इन बच्चों को
कोई सबूत/कोई प्रमाण/ कोई आश्वासन
इन बच्चों के
बचपन को सुरक्षित रखने का ?
आप भी जरा विचारिए
डालिए अपने दिमाग पर कुछ जोर
कि क्या जवाब देना है इन बच्चों को
कब तक चलता रहेगा
दहशतगर्दी का ये खेल
कब तक बारूद के धमाकों
और संगीनों के साए में
खौफनाक मंजर की तस्वीरों से
आतंकित होते रहेंगे
ये बच्चे।
00000
हेमन्त कुमार
8 टिप्पणियाँ:
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 31 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हर कोई जिम्मेदार है
कहाँ से जबाब लाएँ कसूरवार
हृदयस्पर्शी सृजन ।
बहुत खूब हेमंत जी ...
आज फिर आपके ब्लॉग पर आना अच्छा लगा ...
गहरी, सम्वेदंशीत रचना है ...
बहुत खूब
मर्मस्पर्शी कथ्य ।
हृदयस्पर्शी
बहुत ही मार्मिक...
एक टिप्पणी भेजें