पत्रिका ---"निकट” का नौवां अंक ---।
रविवार, 7 सितंबर 2014
कथाकार कृष्ण बिहारी के सम्पादन में संयुंक्त अरब अमीरात की
राजधानी आबूधाबी से प्रकाशित होने वाली पत्रिका"निकट"का अंक-9 (जुलाई,14 दिसम्बर,14)हाल ही में प्रकाशित होकर आया है।इस अंक में वह सब कुछ सामग्री
है जो किसी भी साहित्यिक पत्रिका को सम्पूर्णता प्रदान करती है।स्व0अमरकांत पर लिखे गए रवीन्द्र कालिया के संस्मरण को पढ़ना एक
ऐसे लेखक को निकट से जानने के अहसास से होकर गुजरना है,जिसने अपना पूरा जीवन अभावों में बिता दिया
पर लेखन को अपने से दूर नहीं जाने दिया।लेखक बने रहने यह जिद प्राय:कम ही
रचनाकारों में देखने को मिलती है।
स्व0कवि मान बहादुर सिंह की कुछ अप्रकाशित कविताएं इस अंक की खास
उपलब्धि हैं।मान बहादुर
सिंह ने अपनी कविताओं में जिस तरह से लोक जीवन को सम्पूर्णता के साथ उकेरा है,वह उन्हें अपने समकालीन कविओं में एक अलग
पहचान देता है।इसके लिए उन्हें लम्बे समय तक याद किया जाएगा।कुछ पंक्तियां दृष्टव्य हैं।–
उजरा बैल उलांच रहा है,
पगहे भर में नाच रहा है,
खूंटा सूंघ चाटकर नथ को
अपने मूत लिखी जो भाषा,
मुँह बिचकाए बांच रहा है
उजरा बैल कुलांच रहा है--।
रवींद्र
कालिया,प्रेम
भारद्धाज,विभारानी और प्रताप दीक्षित की कहानियां तो
कथारस से भरपूर है ही,बिमल चन्द्र पाण्डेय के उपन्यास का अंश भी कम पठनीय नहीं है।हिंदी में अभी भी सिनेमा पर
गंभीर आलेख प्राय:कम ही पढ़ने को मिलते है,पर सुचित्रा सेन पर दयानंद पाण्डेय और समकालीन फिल्मों पर
सुदीप्ति के आलेख इस अति प्रभवशाली माध्यम के प्रति पत्रिका के सकारात्मक दृष्टिकोण को रेखांकित करते हैं।आज सिनेमा और रंगमंच का साहित्य से जो
रिश्ता जुड़ रहा है उसमें इस तरह के आलेख निश्चित ही उस रिश्ते को
मजबूती देने और समझने में एक सार्थक भूमिका का निर्वाह करेंगे।"निकट"
के अगले अंकों से और भी अपेक्षाएं है।
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कौशल पाण्डेय
1310ए,वसंत विहार,
कानपुर–208021
मो0-09389462070
1 टिप्पणियाँ:
ऐसी पत्रिकाओं का बड़ा महत्व है
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