सुरक्षित रखें किशोरों का जीवन
रविवार, 28 जुलाई 2013
बहुत सीधा सा जवाब है इस
प्रश्न का।क्या आप,हम अपने बेटे को उसके जन्मदिन या कालेज में अव्वल दर्जे में पास
होने की खुशी में उसे बाइक या स्कूटर की चाभी पकड़ाते समय उसकी उम्र या शारीरिक
क्षमता पर ध्यान देते हैं?क्या हम उससे कभी कहते हैं कि बिना हैल्मेट लगाए बाइक मत
चलाना,दोस्तों के साथ रेस मत लगाना,या स्टंट मत दिखाना।शायद कभी नहीं। बस आपने उसे
नई गाड़ी की चाभी दी और साहबजादे फ़ुर्र।बच्चा भी खुश और हम भी खुश।उस समय किसे
ध्यान है हैल्मेट,स्टंट और रेस का। जी हां,यह एक कड़वी सच्चाई है। हमारी और सभी
अभिभावकों की गलती की। और हमें सारी बातें,सारे कानून,ट्रैफ़िक रूल्स तब याद आते
हैं जब कोई अनहोनी हो जाती है। पर तब तक बहुत देर हो चुकी रहती है।
हम अगर ध्यान दें तो सड़कों पर
फ़र्राटा भरने वाले बाइक सवारों में बड़ी संख्या ऐसे किशोरों की भी होती है जो अभी
कानूनी तौर पर बाइक या तू व्हीलर चलाने के हकदार नहीं होते।जिनके पास ड्राइविंग
लाइसेंस या तो होता ही नहीं या फ़िर फ़र्जी तरीके से गलत डेट आफ़ बर्थ डाल कर दलालों
के माध्यम से बनवाया गया होता है। और इस फ़र्जीवाड़े में भी हम उस बच्चे का पूरा साथ
देते हैं।भविष्य में आने वाली विपत्तियों को नजर अन्दाज करते हुये। और अपनी इस
गलती को हम यह तर्क देकर ढंकने की कोशिश करते हैं कि भाई जमाना ही आज यह कर रहा
है। तो हमने कौन सी गलती कर दी।
हमारी इस सोच के पीछे है भेड़ चाल
चलने की आदत। हर समाज में लोगों को भेड़ चाल चलने की आदत होती है। हमारे देश में यह
कुछ अधिक ही है। हम सब भी इसी देश और समाज के अभिन्न अंग हैं।होता यह है कि बच्चे
के हाई स्कूल या इण्टर का इम्तहान नजदीक आते ही हम उसे लालच देने लगते हैं कि बेटा
इतने परसेंट नम्बर लाओ तो युम्हें बाइक दिलवा देंगे।बच्चा मेहनत करके आपके मन
मुताबिक नम्बर ले आया। अब उसे बाइक देना तो हमारी मजबूरी बन गई। या फ़िर बच्चे के
दोस्तों ने बाइक ले ली और वह भी जिद कर बैठा।अब घर में सुबह शाम,हफ़्तों की
बहस,पत्नी की जिद,बहनों की मिन्नतें---और आप पिघल गये।किसी तरह कर्ज लेकर बाइक की
चाभी पकड़ा ही दी बच्चे के हाथों में।
और ऐसी ही घरेलू
परिस्थितियों,लाड़ प्यार ने आज सड़कों पर फ़र्राटा भरने के लिये आज किशोरों को आजाद
छोड़ दिया है।बिना उन्हें यह सिखाये कि गाड़ी धीरे चलायें,हैल्मेट लगाकर चलें और
ट्रैफ़िक के नियमों का पालन करें। और नतीजा अखबारों में रोज ही दो चार दुर्घटनाओं
की खबरें। इन दुर्घटनाओं में भी ज्यादा गलती इन्हीं किशोरों की।क्योंकि एक बार
बाइक पर बैठने के बाद न उनका नियन्त्रण बाइक पर रहता है न ही मन पर ।वो बाइक चलाते
समय खुद को जान अब्राहम य रित्विक रोशन समझते हैं और यहां की सड़कों को मुम्बई-पुने
हाइवे। हैल्मेट तो वे फ़ैशन के तौर पर हाथ या बाइक में लगे हुक में लटका देते हैं
इस पर भी सोने में सुहागा यह हो जाता है कि मोबाइल का इयर फ़ोन कान में लगा कर तेज
म्युजिक का आनन्द लेना भी वो नहीं भूलते। भले ही पीछे आती कार या ट्रक के हार्न की
आवाज उन्हें न सुनाई पड़े।
जरा सोचिये हम सभी अपने
परिवार और खासकर बच्चों से कितना प्यार करते हैं।यह मानव स्वभाव है।इसे हम बदल भी
नहीं सकते।लेकिन उन परिस्थितियों को जिनसे मजबूर होकर हम अपने बच्चों को खतरनाक
तेज गति वाले दुपहिया वाहन पकड़ा देते हैं,बदलना तो हमारे हाथ में है। क्या उसका यह
शौक हम तब तक के लिये नहीं टाल सकते जब तक कि उसे वाहन के साथ ही उसकी गति पर
नियंत्रण रखना सीख जाय।क्या हम उसे बर्थडे या अन्य किसी खुशी के मौके पर बाइक से
नीचे का कोई छोटा उपहार देकर अपना प्यार नहीं जता सकते?या उसे यह नहीं समझा सकते
कि बेटा कुछ और बड़े हो जाओ तब तुम्हारे लिये
बाइक खरीद देंगे।
इन सबके बावजूद भी मान लीजिये आपको
अपने बेटे की जिद,परिवार,समाज के दबावों के आगे झुक कर मजबूरी में भी अपने बच्चे के
लिये दुपहिया वाहन खरीदना ही पड़ता है तो कुछ बातों पर ध्यान रखकर और उसे कुछ
हिदायतें देकर आप और हम उसके जीवन को सुरक्षित रख सकते हैं।
- सबसे पहले बच्चे को
अच्छी तरह ट्रैफ़िक के नियम और चिह्नों,संकेतों से परिचित करा दें।
- उसे यह बात समझाएं
कि हैल्मेट उसकी जीवन की सुरक्षा के लिये है न कि फ़ैशन दिखलाने या हैण्डिल
में लटकाने के लिये।
- बच्चा जब तक 18वर्ष
की उम्र का न हो जाय उसे अकेले बाइक/स्कूटर न चलाने दें। आप उसके पीछे बैठ कर
साथ में जाएं। इससे गति को वह नियन्त्रित रखना सीखेगा। और कहीं गलती करने पर
आप उसे समझा सकेंगे।
- बच्चे को कभी बिना
हैल्मेट पहने वाहन न चलाने दें।
- उसे वाहन की पूरी मशीनरी
और कल पुर्जों से परिचित कराएं ताकि वह उन्हें समझ कर उन पर नियन्त्रण रख
सके।
- बच्चे को यह तथ्य
अच्छी तरह समझा दें कि शहर के भीड़ वाले ट्रैफ़िक में थोड़ी थोड़ी दूर पर आने
वाले चौराहों और सिग्नल्स के कारण 80कि मी की रफ़्तार और 40किमी की रफ़्तार में
चलने वाले दो व्यक्तियों के गन्तव्य पर पहुंचने में मुश्किल से दो चार मिनट
का अन्तर आयेगा। इसलिये जान जोखिम में डालने की जगह धीमी गति से चलना ज्यादा
फ़ायदेमन्द रहेगा।
- बच्चे को समझाएं कि
कान पर मोबाइल या म्युजिक का इयरफ़ोन लगाकर कभी वाहन न चलाये।
- उसे बतायें कि
मध्यम गति से चलने पर वह पेट्रोल की बचत भी करेगा।
- उसे समझायें कि
दोस्तों के उकसाने पर भी वह बाइक की रेस न लगाये,न ही स्टण्ट करने की कोशिश
करे।
- और सबसे महत्वपूर्ण
बात यह कि बच्चों को अच्छी तरह समझाएं कि मानव जीवन अनमोल है।यह हमें बस एक
बार मिलता है।इसे बहुत सम्हाल कर रखना होगा।
ये कुछ ऐसे बिन्दु हैं जिन पर विचार कर इन पर अमल करके हम सभी अपने प्यारे
और होनहार बच्चों का जीवन सुरक्षित करके उन्हें लम्बी उम्र प्रदान कर सकते हैं।
0000000
डा0हेमन्त कुमार
2 टिप्पणियाँ:
सामायिक-
खतरे से अनजान या खतरे उठाने का शौक-
दोनों परिस्थितियां खतरनाक
सचेत करने की जरुरत-
सादर-
संरक्षा सर्वाधिक आवश्यक है..
एक टिप्पणी भेजें