पार रूप के
बुधवार, 8 जून 2011
पुस्तक समीक्षा
समीक्ष्य पुस्तक--पार रूप के
प्रकाशन—मनस्वी प्रकाशन
हरदा(म0प्र0)।
मूल्य—रूपये 500 मात्र।
“पार रूप के” हिन्दी के सुपरिचित ललित निबन्धकार नर्मदा प्रसाद उपाध्याय के 28 ललित निबन्धों का संग्रह है। जिसकी विषय वस्तु उनके पूर्व प्रकाशित संग्रहों से बिल्कुल अलग हटकर है। ये निबन्ध भारतीय संस्कृति,परंपरा और इतिहास के माध्यम से भारतीय चित्रकला में रूप के उस आंतरिक सौन्दर्य से हमारा परिचय कराते हैं,जो कि अब तक प्रायः अनदेखा सा बना हुआ था। इन निबंधों में रामायण और महाभारत पर आधारित चित्रों से लेकर बौद्ध कालीन और मुगल शासकों के समय में बनाये गये लघुचित्रों को सामने रखकर भारतीय रूप परंपरा की एक नये ढंग से विवेचना की गयी है। इन निबंधों को पढ़ना रूप के पार जाकर रूप में झांकने की एक ऐसी अन्तर्यात्रा है,जिसमें रूप की पहचान से लेकर रूप के साक्षात्कार और उसकी धरोहर को प्रतिष्ठित करने का लेखक द्वारा विनम्र प्रयास किया गया है।
उत्कृष्ट साज सज्जा और आवरण पर दिये गये ‘कुंज में राधा’शीर्षक लघुचित्र वाली इस किताब में देश विदेश के तमाम प्रमुख संग्रहालयों के साथ-साथ कला संग्रहालयों के व्यक्तिगत संग्रहों में उपलब्ध तीन दर्जन लघुचित्रों की प्रतिकृतियां भी प्रकाशित की गयी हैं,जो इस किताब के महत्व को और भी रेखांकित करती हैं।
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समीक्षक----
कौशल पाण्डेय
हिन्दी अधिकारी
आकाशवाणी,शिवाजीनगर
पुणे-411005
मोबाईल न:09823198116
6 टिप्पणियाँ:
सुन्दर संक्षिप्त समीक्षा।
umda sameeksha....Shubhkamnayen
सुन्दर
Badhiya samikshha....
आभार पुस्तक की जानकारी एवं समीक्षा का.
पुस्तक की जानकारीके लिये धन्यवाद...
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