पेड़ बनाम आदमी
शनिवार, 27 जून 2009
पेड़ जितना झेलता है
सूरज को
सूरज कभी नहीं झेलता
पेड़ जितना झेलता है
मौसम को
मौसम कभी नहीं झेलता।
---और पेड़ जितना झेलता है
आदमी को
आदमी कभी नहीं झेलता
सच तो यह है
पेड़ अंधेरे में भी
रोशनी फ़ेंकते हैं
और अपने तैनात रहने को
देते हैं आकार।
------और आदमी उजाले में
जो उगलता है विष
महज पेड़ ही उसे पचाते हैं
पेड़ रात में बगुलों के लिये
तालाब बन जाते हैं
और आत्मसात कर लेते हैं
बगुलाहीन गंध।
पेड़ जब उपेक्षित होते हैं
तब ठूंठ होते हैं
और फ़लते हैं गिद्ध
वही करते हैं बूढ़े बरगद की
लम्बी यात्रा को अंतिम प्रणाम।
अगर उगने पर ही उतारू
हो जाये पेड़
तो चिड़ियों के बीट से भी
अंकुरा सकते हैं
किले की मोटी और मजबूत दीवारों को फ़ोड़
खींच सकते हैं अपनी खुराक
जुल्म की लम्बी और मजबूत परम्परा को
खोखला कर सकते हैं।
पेड़ कभी धरती पर भारी नहीं होते
आदमी की तरह आरी नहीं होते
पेड़ अपनी जमीन पर खड़े हैं
इसीलिये आदमी से बड़े हैं।
पेड़ जितना झेलता है सूरज को
सूरज कभी नहीं झेलता
पेड़ जितना झेलता है मौसम को
मौसम कभी नहीं झेलता
-------और पेड़ जितना झेलता है आदमी को
आदमी कभी नहीं झेलता।
*******
सूरज को
सूरज कभी नहीं झेलता
पेड़ जितना झेलता है
मौसम को
मौसम कभी नहीं झेलता।
---और पेड़ जितना झेलता है
आदमी को
आदमी कभी नहीं झेलता
सच तो यह है
पेड़ अंधेरे में भी
रोशनी फ़ेंकते हैं
और अपने तैनात रहने को
देते हैं आकार।
------और आदमी उजाले में
जो उगलता है विष
महज पेड़ ही उसे पचाते हैं
पेड़ रात में बगुलों के लिये
तालाब बन जाते हैं
और आत्मसात कर लेते हैं
बगुलाहीन गंध।
पेड़ जब उपेक्षित होते हैं
तब ठूंठ होते हैं
और फ़लते हैं गिद्ध
वही करते हैं बूढ़े बरगद की
लम्बी यात्रा को अंतिम प्रणाम।
अगर उगने पर ही उतारू
हो जाये पेड़
तो चिड़ियों के बीट से भी
अंकुरा सकते हैं
किले की मोटी और मजबूत दीवारों को फ़ोड़
खींच सकते हैं अपनी खुराक
जुल्म की लम्बी और मजबूत परम्परा को
खोखला कर सकते हैं।
पेड़ कभी धरती पर भारी नहीं होते
आदमी की तरह आरी नहीं होते
पेड़ अपनी जमीन पर खड़े हैं
इसीलिये आदमी से बड़े हैं।
पेड़ जितना झेलता है सूरज को
सूरज कभी नहीं झेलता
पेड़ जितना झेलता है मौसम को
मौसम कभी नहीं झेलता
-------और पेड़ जितना झेलता है आदमी को
आदमी कभी नहीं झेलता।
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कवि – नंदल हितैषी
हेमंत कुमार द्वारा प्रकाशित ।
*श्री नंदल हितैषी हिन्दी के चर्चित कवि। उत्तर प्रदेश पुलिस से सेवा निवृत्त होने
के बाद फ़िलहाल स्वतंत्र लेखन एवम वृत्त चित्रों के निर्माण में व्यस्त।
हेमंत कुमार द्वारा प्रकाशित ।
*श्री नंदल हितैषी हिन्दी के चर्चित कवि। उत्तर प्रदेश पुलिस से सेवा निवृत्त होने
के बाद फ़िलहाल स्वतंत्र लेखन एवम वृत्त चित्रों के निर्माण में व्यस्त।
5 टिप्पणियाँ:
nandan जी की saarthak rachnaa के लिए shukriyaa......... सच लिखा है.... insaan बस vinaash ही kartaa है jabki पेड़ hameshaa देते हैं
ओह, बहुत सुन्दर कविता।
सत्य कहा है। पेड़ से बहुत कुछ सीखना है मानव को।
Umda bhav aur sarthak abhivyakti.
और आदमी उजाले में
जो उगलता है विष
महज पेड़ ही उसे पचाते हैं
-vaigyanik paksh ko saath le kar chalati ek safal kavita..
-aadmi aur ped ka bahut sahi comparison kiya hai.
dhnywaad Nandal ji ki is kavita ko padhwane ke liye/
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