नागफनियों के बीच
रविवार, 16 नवंबर 2008
कितनी नागफनियाँ
और उगाओगे
उस नन्हें से दिल में.
अभी तो वह बेचारा वैध शब्द
से परिचित भी नहीं हुआ था
और तुमने
उसे अवैध
घोषित कर दिया.
जाती शब्द का
अर्थ जानने से पहले ही
उसे बदजात घोषित कर दिया.
कान्वेंट और मदरसे की
संस्कृतियों के बीच
तुमने लटका दिया
उसे पेंडुलम की तरह.
राजनीति शब्द सुनने के
पूर्व ही
तुम उसे राजनीति के
शिकंजों में कस कर
करने लगे परीक्षण
की किस खांचे में यह फिट बैठेगा.
गुब्बारे और कलम की जगह
तुमने पकड़ा दिया चाकू
उसके हाथों में
जिसने की अभी
चाकू की धार भी
नहीं देखी थी.
अभी कितनी नागफनियाँ
और उगाओगे
इस नन्हें से दिल में.
०००००००
हेमंत कुमार
6 टिप्पणियाँ:
...आदमी का तो काम ही यही है भाई....पहले नागफनी उगाना...फ़िर उसके काँटों में ख़ुद ही फंस भी जाना...बेशक उसके बाद भी वो कुछ नहीं सीखता....फूलों से भरे पौधों में से फूल तोडे जाते हैं....और कांटे वहीं-के वहीं....फूल फ़िर उगते हैं..फिर तोड़ लिए जाते हैं......टूटे हुए फूल आदमी के पास जाकर मुरझा जाते हैं....फूल ख़त्म हो रहे हैं....और कांटे बढ़ते जा रहे....और आदमी का दमन....खून से तर......!!
thanx sir...thanx a lot...
kya kya nahi chadega samay ki dhar par
bachpan bhi,yuvapan bhi katega nafart ki talwaar par..
faili hai charo taraf,badh rahi hai majhab ki aagjani..
ugte ja rahe hai dilo mein naagfani!
few words for ur expressive feelings...thanx sir...
sir i m glad to c ur encouraging words..i wud try to complete this surely..thanx again..
सही कहा आप ने. बच्चे तो बच्चे ही होते हैं. क्यों आख़िर इतना भेद-भाव.
गुब्बारे और कलम की जगह
तुमने पकड़ा दिया चाकू
उसके हाथों में
जिसने की अभी
चाकू की धार भी
नहीं देखी थी.
" again very emotional and touching expressions.."
Regards
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