बाल साहित्य की वर्तमान स्थिति:लेखन एवं चित्रांकन
शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021
जब हम बाल साहित्य के आज के पूरे परिदृश्य की बात करते हैं तो हमारे सामने विभिन्न प्रदेशों की कई भाषाओं-बोलियों का एक लंबा-चौड़ा फलक आ जाता है, जिसमें हजारों प्रकाशकों द्वारा बहुत बड़ी संख्या में विभिन्न भाषाओं में बाल साहित्य का प्रकाशन किया जा रहा है।किताबों की मूल भाषा के साथ ही बहुत सारे अनुवाद भी प्रकाशित हो रहे हैं। पुस्तक प्रकाशन के क्षेत्र में देश के सबसे बड़े प्रतिष्ठान राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के साथ ही एकलव्य, प्रथम,चिल्ड्रेन्स बुक ट्रस्ट,साहित्य अकादेमी जैसी संस्थाएं भी बाल साहित्य के प्रकाशन की दिशा में काफी काम कर रही हैं। प्रकाशित हुयी बाल साहित्य की पुस्तकें बुक स्टोर्स तक भी पहुँच रही हैं।बहुत से बड़े बुक स्टोर्स पर तो बाल साहित्य के लिए अलग से चिल्ड्रेन बुक कार्नर भी बनाए गए हैं। कुल मिलाकर बाल साहित्य का परिदृश्य और भविष्य बहुत अच्छा दिखाई पड़ता है।
लेकिन अभी भी बराबर ये कहा जा रहा है कि बच्चों में पढने के प्रति रूचि कम होती जा रही है या बच्चों के हाथो तक अच्छा साहित्य नहीं पहुँच रहा है।तो इसके पीछे कारण क्या हैं? हमें उन कारणों को खोजना होगा। क्या टेलीविजन चैनल, इंटरनेट, मोबाइल बच्चों की पठनीयता में बाधक बन रहे? या फिर बच्चों के हाथों तक ऎसी किताबें नहीं पहुँच पा रही हैं जो उसे बाँध सकें, उसके अन्दर पढने की रूचि जगा सकें?
बाल साहित्य के विकास के लिए कई क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें काफी कुछ प्रयास किये जाने की जरूरत है। मैं यहाँ मुख्य रूप से दो बिन्दुओं पर बात करूंगा जिन पर काम करके बाल साहित्य को और भी समृद्ध किया जा सकता है और संभवतः बाल पाठकों के अन्दर पढने की रूचि भी जागृत की जा सकती है।
1-किताबों का कंटेंट:
सबसे पहले बात आती है बाल साहित्य के कंटेंट की। इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारे यहाँ पंचतंत्र, हितोपदेश जैसा साहित्य उपलब्ध है जो आज भी बच्चों के साथ ही बड़ों को भी आकर्षित करता रहा है। दूसरी तरफ साहित्य की मुख्य धारा के लेखकों द्वारा लिखा गया बाल साहित्य। भले ही वो साहित्य बच्चों का मनोरंजन करने के लिए कम और उन्हें उपदेश देने के लिए अधिक लिखा गया। फिर भी उसे आज भी पाठ्यक्रमों में बाल साहित्य के रूप में ही उपयोग किया जा रहा है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह भी है कि आज भी हमारे देश में बच्चों का पहला सामना पाठ्यक्रम की किताबों से ही होता है जब वो स्कूल जाना शुरू करता है।और उसके बालमन पर पाठ्यक्रम में शामिल की गयी उन्हीं उपदेशात्मक कहानियों, कविताओं की एक अमिट छाप सी पड़ जाती है।क्योंकि उन बच्चों तक संभवतः बाल साहित्य की अच्छी किताबें पहुँच ही नहीं पाती। अब बच्चों तक अच्छा बाल साहित्य कैसे पहुँच सके इस बात की चर्चा मैं आगे करूंगा।
अभी मै बात
करूंगा कंटेंट या विषय वस्तु की। हम कैसा कंटेंट बच्चों को दें जिसे वो रूचि लेकर पढ़े। जो उसे बराबर
बांधे रह सके। किताब को शुरू से आखिर तक पढने को मजबूर
कर दे। इस दृष्टि से मैं पहले यहाँ कुछ किताबों का ख़ास तौर से उल्लेख करना चाहूँगा जो
बाल साहित्य की बेहतरीन किताबें हैं मेरी दृष्टि में जिन्हें हर
बच्चे,बाल साहित्य लेखक और शिक्षकों,अभिभावकों को जरूर पढना चाहिए।
सबसे पहली किताब है “छोटी लाल मुर्गी”।एकलव्य
से प्रकाशित लगभग 16 गुणे 12 सेंटीमीटर आकार वाली इस छोटी सी आकर्षक चित्रकथा के
लेखक हैं कैरन हेडाक।कुल 24 पृष्ठ की इस किताब में लगभग 150 शब्द हैं।और हर पृष्ठ
पर खूबसूरत चित्र हैं।एक लोक कथा पर आधारित इस किताब में कहानी मात्र इतनी है कि
एक मुर्गी को गेहूं के कुछ दाने मिलते हैं तो वो सोचती है कि इन्हें बो दूं या
खाऊं?उसने बोने,सींचने,फसल काटने,माड़ने, फटकने,पीसने,रोटी बनाने के लिए कई जानवरों
से सहायता मांगी पर सबने इनकार कर दिया।लेकिन खाने के वक्त सब हाजिर पर वो अकेले
हो रोटियाँ खाती है।अब इतनी सी कहानी को जितने खूबसूरत ढंग से बहुत कम शब्दों में
खूबसूरत चित्रों के साथ प्रकाशित किया गया है वो प्रशंसनीय है।
ऎसी ही एक किताब
और जिसका मैं उल्लेख करूंगा,वो है नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित दिविक रमेश की
कहानियों की किताब “लू लू की सनक”। “लू लू की सनक” एक प्रयोगधर्मी
बाल कहानियों का संकलन है।इस संकलन में दिविक जी की कुल छः कहानियां संकलित हैं। ‘लू लू की मां’,‘लू लू की सनक’,‘लू लू बड़ा हो गया’,‘लू लू की बातें’,‘लू लू का गुस्सा’, और ‘लाल बत्ती पर’।संकलन की खास बात
यह है कि इसकी सभी कहानियों का मुख्य पात्र लू लू नाम का स्कूल जाने वाला एक बच्चा
है।हर कहानी में लू लू के साथ ही घटने वाली घटनाओं,उसके मन में उठने वाले
प्रश्नों,उसकी मां द्वारा दिये गये उत्तरों और उसके आस-पास के वातावरण के माध्यम
से दिविक जी ने सारी कहानियों का ताना बाना बुना है।
इसी ढंग की कुछ और हिंदी में अनूदित किताबें हैं जो हमारे भारतीय बाल साहित्य को समृद्ध करती हैं।“अण्डमान का लड़का”---इसकी लेखिका हैं—जाई व्हिटेकर।यह एक छोटे बच्चे की ऐसी रोमांचक कहानी है जिसे हर अभिभावक,शिक्षक और बच्चे को जरूर पढ़ना चाहिये।इसकी भी कहानी है तो बहुत साधारण सामान्य सी—अपने अभिभावकों(चाचा-चाची) द्वारा प्रताड़ित बच्चे के घर से पलायन की।पर उसकी घर से पलायन की यह यात्रा इतनी रोचक और रोमांचक है जो पाठक को अन्त तक बांधे रहती है।इसी क्रम में मैं सत्यजीत राय की बाल कहानियों की किताब “हंसने वाला कुत्ता”,मराठी के प्रसिद्ध बाल साहित्यकार ना०धो० ताम्हनकर की किताब “गोट्या”,मराठी के ही लेखक गंगाधर गाडगील के बाल उपन्यास “पक्या और उसका गैंग” का उल्लेख करना चाहूँगा।ये सभी किताबें ऐसी हैं जिन्हें उठाने के बाद इन्हें बिना ख़तम किये बच्चा रखेगा नहीं।इन सभी में बने खूबसूरत चित्रों ने इनकी पठनीयता और बढ़ा दी है।ऎसी किताबों की सूची तो लम्बी है लेकिन यहाँ मेरा मकसद किताबों की सूची गिनाना नहीं है बल्कि किताबों के कंटेंट पर बात करना है।इन सभी किताबों को पढने से कुछ ख़ास बिंदु उभर कर हमारे सामने आते हैं।
0 पहली बात सभी में जो सामान है वो ये कि सभी में बाल पाठकों की उम्र के हिसाब से उनके बाल मनोभावों का पूरा ध्यान रखा गया है।
0 दूसरी बात ये कि सभी पात्रों के नाम भी ऐसे रखे गए हैं
जिससे पढ़ते समय बच्चों को लगे कि अरे ये तो मैं ही या मेरा फलां दोस्त ही है इस
किताब का पात्र।
0 बच्चों के परिवेश,उनके पर्यावरण,उनकी आर्थिक सामाजिक स्थितियों,और उनके सामाजिक सांस्कृतिक सरोकारों को भी इन किताबों में समाहित किया गया है।जिससे इन किताबों को पढ़ते समय बच्चा बराबर ये महसूस करेगा कि ये तो हमारे ही बीच की घटना है।अरे ऐसा तो अभी पिछले दिनों हमारे गाँव में भी हुआ था।
और यही बातें हैं जो इन किताबों को बेहतरीन किताबों की श्रेणी में रखती हैं।तो इस तरह बाल साहित्य के कंटेंट को लेकर जो महत्त्व पूर्ण बातें हमारे सामने आती हैं वो हैं—
1-कंटेंट बाल मनोभावों के अनुरूप हो।
2-किताब में पात्रों के नामों का चयनकरते समय पाठक बच्चों
के परिवेश का ध्यान रखा जाय।
3-उनके पर्यावरण,उनकी आर्थिक,सामजिक स्थितियों पर निगाह एकही
जाय ।
4-उनके सामाजिक,सांस्कृतिक सरोकारों रीति-रिवाजों को जरूर शामिल
किया जाय जिससे वो खुद अपने चारों और की घटनाओं स्थितियों को वहां महसूस कर सकें।
5-उनके परिवेश के अनुरूप ही शब्दों और भाषा का चयन।
मेरे हिसाब से किसी भी बाल साहित्यकार को इन पांच बिन्दुओं को निश्चित ही ध्यान में रखकर अपनी कहानी,कविता,नाटक या किसी भी विधा में लिखे जाने वाले बाल साहित्य का सृजन करना चाहिए।
2-किताबों में चित्र:
यह बात तो हम सभी जानते हैं कि बच्चों के लिए लिखी जाने वाली किताबों में रंग-बिरंगे चित्रों की क्या आवश्यकता,क्या अनिवार्यता है।लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि चित्र हों कैसे ? क्योंकि चित्र आकर्षक और बच्चों के परिवेश के अनुरूप होंगे तभी बच्चा उस किताब के प्रति आकर्षित होगा और पढ़ेगा भी।अन्यथा प्रकाशित होने वाली ज्यादातर किताबों की तरह ही नई किताबें भी सरकारी खरीद का हिस्सा बन कर आलमारियों की शोभा बढ़ाती रहेंगी।
ध्यान देने
वाली बात ये है कि आज कुछ प्रकाशन संस्थानों को छोड़कर ज्यादातर प्रकाशकों द्वारा
छापी जाने वाली बच्चों की किताबों में चित्र किताबों के अनुरूप होते ही नहीं।वो
सिर्फ चित्र लगाने के लिए ही चित्र लगा रहे।वो भी गूगल से साभार लिए हुए।क्योंकि
बच्चों की किताबों के लिए चित्र बहुत मेहनत से बनते हैं और जाहिर सी बात है कि इसके लिए चित्रकार को पारिश्रमिक भी ज्यादा देना होगा।इंटरनेट के आने के बाद से प्रकाशकों ने सस्ते चित्रों का भी जुगाड़ कर ही लिया है।वो इस तरह कि जरुरत के मुताबिक़ इंटरनेट से चित्र उठा लो,उसमें थोड़ा टचिंग करवाकर गूगल से साभार की चिप्पी लगा कर छाप दो।नतीजा क्या हो रहा? कहानी में पात्र तो रहते हैं भारत के किसी गाँव के रामू,श्यामू, मनोहर,सीता,गुडिया,चम्पा और उनकी जगह चित्र लगे होते हैं,टामी,जोजफ,माइकल,टीना, जोजो,या कैटी के।
तो आप खुद देखिये उन चित्रों को देख कर भला हमारे भारत का बाल पाठक कैसे खुद को हजारों की संख्या में प्रकाशित होने वाले बाल साहित्य से जोड़ सकेगा?टामी,जोजफ का चित्र देख कर मनोहर और रामू को कैसे ये महसूस होगा कि अरे ये तो उनके जैसे ही किसी बच्चे की कहानी है।
इस सन्दर्भ में मुझे राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के सम्पादक श्री पंकज चतुर्वेदी की बातें याद आ जाती हैं जिसका उल्लेख यहाँ जरूरी है।फेसबुक पर जब कोई बाल साहित्य लेखक बहुत प्रसन्नता से किसी प्राइवेट प्रकाशक को पैसे देकर छपवाई हुई अपनी किताब को शेयर करता है तो पंकज भाई तुरंत उसको कहते भी हैं कि भाई कहानी तो आपकी अच्छी है पर कम से कम चित्र तो भारतीय बच्चों,पात्रों के लगवा देते।
इस बात का उल्लेख यहाँ सिर्फ इसलिए क्योंकि जब हम भारतीय बच्चों के लिए प्रकाशित होने वाले बाल साहित्य की बात करते हैं तो बहुत जरूरी है उन किताबों में प्रकाशित होने वाले चित्रों में भारतीयता का होना।यहाँ भारतीयता के होने से मेरा आशय है कि—
1-किताबों के लिए चित्र गूगल से साभार न लिए जायं।
2-प्रकाशकगण चित्र किसी अच्छे चित्रकार से पैसे देकर
बनवाएं।
3-चित्र हमारे गाँवों,शहरों के परिवेश,पर्यावरण,सामाजिक
स्थितियों को ध्यान में रखकर ही इस्तेमाल हों।
4-जिससे बच्चा भी उस किताब से खुद को जोड़ सके।उसमें खुद को
महसूस कर सके।
अंत में 2017 में साहित्य अकादमी से प्रकाशित प्रसिद्ध चित्रकार,कार्टूनिस्ट और लेखक श्री आबिद सुरती जी की एक किताब का उल्लेख करूंगा।किताब का नाम ही है “मेरा नाम है”। इस खूबसूरत रंगबिरंगे चित्रों से सजी किताब में कुल चार मजेदार कहानियाँ हैं-–चकमक चश्मे वाला, तैयबअली टाई वाला,फोफो फोटो वाला और रानी फूल-पत्ती वाला।
इन चारों खूबसूरत कहानियों को खुद आबिद जी ने इतने सुन्दर चित्रों से सजाया है कि ये किताब देखते ही कोई भी बच्चा इसे पढने को मचल उठेगा।इसके हर पृष्ठ पर दो पंक्तियाँ दी हैं “बहते चलो बच्चों बहते चलो” और “लहराते चलो बच्चों लहराते चलो”। इन्हें हम इस किताब की टैग लाइन भी कह सकते हैं जो किताब को आगे पढने के लिए प्रेरित करती हैं।किताब की ख़ास बात ये है कि इसका हर पृष्ठ अपने आप में मुकम्मल एक कहानी,एक कविता का आनंद देता है।और इसके चित्रों की तो बात ही निराली है।चित्रों से भरपूर इस किताब का वो बच्चा भी आनंद उठा सकता है जिसे अभी अक्षर ज्ञान भी नहीं है।आज भारतीय बच्चों के लिए ऎसी ही रंग-बिरंगी चित्रात्मक किताबों की ज्यादा जरूरत भी है और बच्चों को ऎसी किताबें पसंद भी आयेंगी।
०००००
डा0हेमन्त कुमार
4 टिप्पणियाँ:
बहुत अच्छा लेख है। क्षमा शर्मा जी ने भी दूरभाष पर इसका जिक्र किया। हार्दिक बधाई।
जब-जब बाल साहित्य की चर्चा होती है आश्चर्य है कि इसके दायरे में बस कविता-कहानी ही समाहित मिलते हैं और साहित्य के उस महत्वपूर्ण पक्ष की पूरीतरह अनदेखी कर दी जाती है जिस पर देश के भविष्य का न केवल विकास निर्भर करता है बल्कि जिसे यदि रोचकता से प्रस्तुत किया जाए तो यह ज्ञान में वृद्धि के साथ-साथ बच्चों में पठन-पाठन की प्रवृत्ति भी जाग्रत करने की सामर्थ्य रखता है और व्यापारिक स्तर पर भी यह इतना सफल है कि बाकी सारी विधाओं की बिक्री के आंकड़े इस अकेले के सामने धराशायी नज़र आयें ।
जी हाँ, यह महत्वपूर्ण विधा है बाल-विज्ञान साहित्य जिसके बारे में मैं अपनी पुस्तकों की बिक्री के आंकड़ों से मिले लंबे अनुभव के आधार पर यहां अपने कथन को दावे के तौर पर प्रस्तुत करने की धृष्टता कर रहा हूँ क्योंकि मुझे लगता है कि साहित्य के इतने सशक्त पक्ष की उपेक्षा देश के लिए घातक सिद्ध हो रही है और इस ओर संजीदगी के साथ ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है ।
----- आइवर यूशिएल
लोकप्रिय बाल- विज्ञान लेखक
बहुत बढ़िया
बहुत अच्छा और प्रेरक आलेख
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