“द्वीप लहरी”(बालसाहित्य चिंतन) और “साहित्य अमृत”(बाल-साहित्य) विशेषांकों के बहाने------।
शनिवार, 9 नवंबर 2013
हिन्दी भाषा में बाल साहित्य को
लेकर प्रबुद्ध साहित्यकारों और पाठकों के दिल और दिमाग में जमी भ्रान्तियों की धुंध
इधर के वर्षों में बहुत तेजी के साथ छंटती दिख रही है।भ्रांतियां इस ढंग की कि बाल
साहित्य दोयम दर्जे का साहित्य है,जो लेखक बड़ों का साहित्य लिखने में असफ़ल रहे वो
बाल साहित्य लिखने लगे, या फ़िर बालसाहित्य को लेकर बड़े साहित्यकारों के बीच पसरा
सन्नाटा। यह सभी स्थितियां इधर काफ़ी कुछ बदलती नजर आ रही हैं।
इस बात का प्रमाण है पिछले कुछ
वर्षों में प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा बाल साहित्य पर आयोजित वैचारिक
संगोष्ठियां,सेमिनार,बाल साहित्य पर चर्चा,बाल साहित्य के प्रोत्साहन के लिये पुरस्कारों
की घोषणा।इसी क्रम में कुछ प्रतिष्ठित पत्रिकाओं द्वारा “बाल साहित्य” विशेषांकों का प्रकाशन,कई दैनिक समाचार
पत्रों द्वारा सप्ताह में एक दिन या प्रतिदिन अखबार का एक पूरा पृष्ठ “बाल साहित्य” को देने जैसी सुखद स्थितियों का भी
उल्लेख करना यहां समीचीन होगा।
यहां मैं पहले “बाल साहित्य चिन्तन” पर केन्द्रित “द्वीप लहरी” पत्रिका के अंक की चर्चा करना चाहूंगा।
आकर्षक साज-सज्जा और गंभीर वैचारिक विषय वस्तु से परिपूर्ण इस अंक के अतिथि संपादक
डा0बलराम अग्रवाल जी हैं।“द्वीप लहरी” के इस विशेषांक में हिन्दी बाल साहित्य
के वर्तमान परिदृश्य पर तो चिंतन किया ही गया है।साथ ही इसकी ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि
पर भी विचार विमर्श से पूर्ण सामग्री दी गयी है। प्रतिष्ठित बाल साहित्यकार श्री
बंधु कुशवर्ती ने आजादी के पहले से अभी तक के बाल साहित्य के पूरे परिदृश्य पर एक
अच्छा तथ्यपूर्ण और समीक्षात्मक लेख दिया है। इस लेख से निश्चित रूप से बाल
साहित्य के शोधार्थियों और चिन्तकों ल्को लाभ मिलेगा। पत्रिका में डा0प्रकाश
मनु,डा0हरिकृष्ण देवसरे,डा0ओम प्रकाश कश्यप जैसे प्रतिष्ठित बाल साहित्य चिन्तकों
के लेखों में जहां बाल साहित्य,बाल उपन्यास,बाल कहानियों एवम बालगीतों पर
समीक्षात्मक चर्चा है वहीं अनिल पतंग,राजकमल,देवेन्द्र मेवाड़ी,,डा0दिविक
रमेश,डा0हेमन्त कुमार के लेखों में बाल रंग मंच,कार्टून चित्रों,परियों,फ़ैण्टेसी,विज्ञान
कथाओं और इण्ट्रनेट के चैट बाक्स तक की सम्यक चर्चा है। महावीर प्रसाद जैन जी का
संस्मरणात्मक लेख”पराग के वे दिन” हमें जहां बचपन के दिनों में वापस ले
जात है वहीं राजेश उत्साही और रमेश तैलंग द्वारा की गयी पुस्तक समीक्षाएं हमारे
अंदर समीक्षित पुस्तकों को पढ़ने की लालसा पैदा करती हैं।इस अंक के अन्य रचनाकारों
में सुधा भार्गव,आशा शैली,जय प्रकाश कर्दम,रूप सिंघ चन्देल,श्याम जगोता,राजीव
सक्सेना,डा0नागेश पाण्डेय,जे बी शर्मा,डा0व्यास मणि त्रिपाठी और जय प्रकाश शुक्ल
हैं।
कुल मिलाकर “द्वीप लहरी” का यह बाल साहित्य चिंतन अंक बाल
साहित्य के पाठकों,शोधार्थियों एवं समीक्षकों के लिये एक संग्रहणीय और उपयोगी अंक
है। इसकी विषय सामग्री चयन और कुशल सम्पादन के लिये डा बलराम अग्रवाल जी निश्चय ही
बधाई के पात्र हैं।
साहित्य अमृत के इस विशेषांक की खास बात यह
है कि इसमें बच्चों को पढ़ने के लिये जहां मुंशी प्रेमचंद,प्रसाद,निराला,अमृतलाल
नागर जैसे प्रतिष्ठित साहित्यकारों की रचनाएं मिलेंगी वहीं डा0श्री प्रसाद,प्रकाश
मनु,विनायक,शेरजंग गर्ग,ओम प्रकाश कश्यप,डा0दिविक रमेश,प्रताप सहगल,डा0भैंरू लाल
गर्ग,रमेश तैलंग,मनोहर वर्मा,डा0सुनीता जैसे वरिष्ठ रचनाकारोंकी भी रचनाएं मौजूद
हैं।साथ ही वर्तमान पीढ़ी के युवा रचनाकारों पंकज चतुर्वेदी,हेमन्त कुमार,जाकिर अली
रजनीश,क्षमा शर्मा,नागेश पाण्डेय संजय,मनोहर चमोली जैसे स्थापित युवाओं का मनोरंजक
और ज्ञानवर्धक बाल साहित्य है।विशेषांक में बच्चों के लिये उपन्यास अंश,रोचक,मनोरंजक
कहानियां,नाटक,तरह तरह के मनोरंजक बालगीत,जानकारी बढ़ाने वाली विज्ञान कथा,यात्रा
वृत्त----मतलब कि साहित्य की हर विधा की रचनाओं को शामिल किया गया है,जो कि बच्चों
का मनोरंजन करने,उन्हें आनन्द देने के साथ ही उनके भीतर साहित्य को या अन्य
ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढ़ने की रुचि भी जागृत करेंगी। यद्यपि इस विशेषांक का मूल्य
जरूर थोड़ा अधिक (रू050) है।परन्तु 130 पृष्ठों में समाहित इतना ढेर सारा और बहुत
ही स्तरीय बाल साहित्य एक साथ पढ़ने के लिये बच्चों को इतने मूल्य में कहीं नहीं मिल सकेगा।इस दृष्टि
से भी “साहित्य अमृत” का यह बाल साहित्य विशेषांक एक
संग्रहणीय अंक है।
एक और बहुत खास बात इस पत्रिका के
संदर्भ में---आज के काण्वेण्ट शिक्षित बच्चे हिन्दी भाषा की गिनती पूरी तरह से और
सही सही नहीं लिख/पढ़ और उच्चरित कर(बोल)
पाते ऐसे बच्चों को यह अंक हिन्दी गिनती का उच्चारण भी सिखाएगा।
और अन्तिम बात जिसका मैं यहां विशेष रूप
से उल्लेख करना चाहूंगा कि नेशनल बुक ट्रस्ट की इकाई राष्ट्रीय बाल साहित्य
केन्द्र,चिल्ड्रेन्स बुक ट्रस्ट,एन सी ई आर टी जैसी बाल साहित्य के लिये काम करने
वाली देश की शीर्ष और अग्रणी संस्थाओं को
भी चाहिये कि वो भी साल में कम से कम एक बार “द्वीप लहरी” जैसे बाल साहित्य चिंतन/विमर्श अंक और “साहित्य अमृत” जैसा बाल साहित्य महा विशेषंक अगर
निकालना शुरू कर दें तो निश्चय ही बाल साहित्य को आगे बढ़ाने की दिशा में यह एक
सराहनीय कदम होगा।
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डा हेमन्त
कुमार
2 टिप्पणियाँ:
हिंदी बालसाहित्यकार मुख्यधारा की पत्रिकाओं में भी अपनी जगह बना रहा है, उसका प्रमाण है ये विशेषांक. दोनों विशेषाकों को चर्चा के लिए एक ही मंच पर लाकर आपने बहुत अच्छा किया है.
दोनों हिंदी की पत्रिकायों में बाल साहित्य विशानकोंका संक्षिप्त विश्लेषण सराहनीय है .
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