घर में बनाएं माहौल कुछ पढ़ने और पढ़ाने का------
शनिवार, 9 मार्च 2013
स्कूलों में जाकर अक्सर अभिभावक यह शिकायत करते हैं कि उनके “बच्चे का मन पढ़ाई में लगता ही
नहीं है।” या कि “मास्साब आप कैसे पढ़ाते हैं कि
इसे कुछ याद ही नहीं रहता।”कभी कभी यह भी शिकायत करते हैं कि “ आप इसे होमवर्क नहीं देते
इसीलिये यह घर पर कुछ पढ़ता ही नहीं।” कुछ अभिभावकों को मैंने यह भी कहते हुये सुना है कि “अरे फ़लां स्कूल---अब तो बेकार हो
चुका है—कभी होती थी वहां भी
अच्छी पढ़ाई--- अब तो बस उस स्कूल का नाम भर रह गया है।”
यानी कि बच्चा घर में पढ़े न,उसका मन
पढ़ने में न लगे,वह हमेशा टी0वी0 से चिपका रहे,खेलता रहे -----इन सब की जिम्मेदारी
स्कूल की और मास्साब की। अभिभावक ने ले जाकर स्कूल में नाम लिखा दिया और उनकी जिम्मेदारी
खत्म।अब बच्चे के पढ़ने,विकसित होने,अच्छे नंबर लाने सबका दारोमदार मास्टर जी के
ऊपर।
यहां सवाल यह उठता है कि
क्या बच्चों के पढ़ाने,लिखाने की अभिभावक या मां बाप की कोई जिम्मेदारी नहीं
है?क्या उनकी जिम्मेदारी बस बच्चे को स्कूल तक पहुंचाने की है?जबकि बच्चा स्कूल
में 24घण्टों में से सिर्फ़ 5-6 घण्टे रहता है। बाकी के 18घण्टे वो आपके साथ बिताता
है। स्कूल तो एक जगह भर है जहां उसे शिक्षा का एक रास्ता बताया जाता है। सीखने
सिखाने की एक प्रक्रिया से परिचित करा कर ज्ञान के एक अथाह समुद्र की तरफ़ बढ़ाया
जाता है। ज्ञान के इस समुद्र में बच्चे को तैरना सिखाया जाता है। अब इस अथाह
समुद्र के नये तैराक को एक कुशल,बेहतरीन तैराक बनाने में शिक्षकों के साथ
अभिभावकों की भी बहुत बड़ी भूमिका होती है। जब तक वो अपनी भी जिम्मेदारियां नहीं
निभायेंगे बच्चा ज्ञान के सागर का एक कुशल तैराक नहीं बन पायेगा।पढ़ने लिखने में आगे नहीं बढ़ सकेगा।
बच्चे को पढ़ने लिखने के लिये सबसे जरूरी चीज है अच्छे और खुशनुमा माहौल की।
स्कूल में भी और घर पर भी। खुशनुमा माहौल का मतलब है ऐसा माहौल जिसमें बच्चा सहज
ढंग से शान्तिपूर्ण वातावरण में पढ़ लिख सके। उसके ऊपर किसी तरह का मानसिक दबाव न
हो। वह संकुचित या भयभीत न रहे। वह अपने मन में उठने वाले प्रश्नों को आपसे बिना
किसी संकोच के पूछ सके। माना कि ऐसा वातावरण उसे स्कूल में अध्यापकों की कृपा और
सहयोग से मिल जाता है। लेकिन क्या हम उसे घर पर ऐसा माहौल दे पा रहे हैं? अगर दे
रहे हैं तो बहुत अच्छा है। यदि नहीं तो क्यों? और साथ ही हमें यह भी विचार करना
पड़ेगा कि हम अपने घर का कैसा माहौल बनायें जिसमें बच्चा अच्छे ढंग से पढ़ लिख सके।
यहां मैं कुछ ऐसे ही महत्वपूर्ण बिन्दुओं की ओर इंगित करूंगा जिन पर ध्यान देकर आप
घर का वातावरण बच्चों की पढ़ाई के अनुकूल बना सकते हैं।
*शान्तिपूर्ण माहौल—
बच्चों को पढ़ने के लिये सबसे
जरूरी शन्तिपूर्ण माहौल होता है। बच्चों की पढ़ाई के समय उनके पढ़ने की जगह पर तेज आवाज में बातचीत न
करें। टी0वी0,रेडियो धीमी आवाज में बजायें। यदि उनके पढ़ने के समय में घर में कोई
मेहमान आ जाता है तो कोशिश करें कि बच्चे की पढ़ाई डिस्टर्ब न हो। मेहमानों को आप
दूसरे कमरे में बैठा कर उनका स्वागत कर सकते हैं।
*समय का निर्धारण---
स्कूल के अलावा बच्चे 18घण्टों का जो
समय आपके साथ बिताते हैं उनका सही उपयोग करना बच्चों को आप ही सिखला सकते हैं।
इसके लिये यह जरूरी है कि आप अपने बच्चे के लिये एक संक्षिप्त टाइम टेबिल बनायें।
जिसमें उसके सुबह उठने,स्कूल जाने,खेलने कूदने,मनोरंजन ,पढ़ाई और सोने का समय
निर्धारित हो। यह जरूरी नहीं कि आपका बच्चा एकदम उसी समय सारिणी पर चले। जरूरत
पड़ने पर उसमें आप या बच्चा फ़ेर बदल भी कर सकते हैं। लेकिन इससे उसके अंदर काम को
समय पर और सही ढंग से करने की आदत पड़ेगी।
*टी0वी0,कम्प्युटर का समय निश्चित करें---
आजकल बच्चों का ध्यान सबसे
ज्यादा टी0वी0,वीडियो गेम्स और कम्प्युटर में लगता है। आप इससे उन्हें पूरी तरह
रोक नहीं सकते।क्योंकि आज तो इलेक्ट्रानिक माध्यमों का ही युग है। इनके बिना वह
बहुत सारे ज्ञान और सूचनाओं से वंचित रह जाएगा। लेकिन इस पर बहुत ज्यादा समय देना
भी स्वास्थ्य की दृष्टि से उचित नहीं है। इसलिये अपने बच्चों को इन माध्यमों के
फ़ायदों और हानियों से परिचित करा दें।
तथा इनके उपयोग का समय भी तय कर दें। जिससे वह अपना समय अन्य गतिविधियों को भी
दे सके।
*खुद भी पढ़ें---
बच्चों को पढ़ाई के लिये उचित माहौल
देने के लिये यह बहुत जरूरी बिन्दु है। क्योंकि बच्चे बहुत सी बातें अनुकरण से भी
सीखते हैं। आप को कोशिश यह करनी चाहिये कि आप बच्चों के पढ़ने के समय में खुद भी
अपनी रुचि की कोई पुस्तक,पत्रिका या अखबार पढ़ें। आपको पढ़ता देखकर बच्चे के अंदर भी
पढ़ाई के प्रति रुचि जागृत होगी। उसे यह महसूस होगा कि मेरे पिता या मां भी मेरे
साथ पढ़ रहे हैं।
*कुछ बाल पत्रिकाएं और रोचक बाल साहित्य बच्चों को दें----
हर भाषा में आजकल हर उम्र के
बच्चों के लिये बहुत सी पत्रिकाएं बाजार में उपलब्ध हैं। आप अपने बच्चे की आयु के
अनुरूप कुछ बाल पत्रिकाएं घर में लायें। उनसे बच्चों का मनोरंजन तो होगा ही,उनके
ज्ञान में बढ़ोत्तरी भी होगी। क्योंकि इन पत्रिकाओं में सिर्फ़ कहानी,कविता ही नहीं
बल्कि बच्चों के लिये ढेरों सामग्री रहती है। जैसे चित्रों में रंग भरने,वर्ग
पहेली,च्त्र देखकर कहानी लिखने,वाक्य पूरा करने,आदि के अभ्यास इनसे बच्चे की
बुद्धि तीव्र होने के साथ उसका मनोरंजन भी होगा। और पत्रिकाओं में सामग्री की
विविधता के कारण उसकी पढ़ने में रुचि भी
जागृत होगी।
यहां कुछ अभिभावक यह प्रश्न
उठा सकते हैं कि बच्चों के ऊपर वैसे ही बस्ते का इतना बड़ा बोझ है। उसमें ये
पत्रिकायें या बाल साहित्य---?उनके प्रश्न का सीधा सा जवाब यह है कि जैसे आप आफ़िस
में अपने काम से ऊबने लगते हैं तो क्या करते हैं?दोस्तों से गप शप,टहलना घूमना।फ़िर
तरोताजा होकर अपना काम शुरू कर देते हैं। ठीक वैसे ही बच्चों की ये पत्रिकाएं या
बाल साहित्य,बच्चों के लिये थोड़े समय का मनोरंजन का काम करेगा। यानि कि वो कुछ समय
के लिये कोर्स की किताबों से हट कर ज्ञान के ऐसे संसार में जायेंगे जहां उन्हें
ज्ञान और मनोरंजन दोनों मिलेगा।जहां उनकी कल्पनाओं के भी पंख लगेंगे। उन्हें आनन्द
की अनुभूति होगी।
*बच्चों को घर पर ही कभी कभी रोचक शैक्षिक फ़िल्में दिखाएं---
आज तो पढ़ाई में भी इलेक्ट्रानिक
माध्यमों का वर्चस्व होता जा रहा है। पत्रिकाओं की ही तरह बाजर में हर कक्षा,हर
विषय की पाठ्यक्रम आधारित या पूरक कार्यक्रमों की सी0डी0 उपलब्ध हैं। यद्यपि इनकी
संख्या अभी उतनी नहीं है जितनी होनी चाहिये। आज हर घर में टी0वी0 और सी0डी0प्लेयर
भी मौजूद हैं। आप बच्चों के लिये उनकी कक्षा के अनुरूप शैक्षिक फ़िल्मों या
इण्टरैक्टिव(ऐसे कार्यक्रम जिसमें बच्चे के लिये भी काफ़ी कुछ करने की गुंजाइश रहती
है।) कार्यक्रमों की सी0डी0लाकर बच्चों को दिखायें। इनसे भी बच्चों
के अंदर पढ़ने की रुचि पैदा होगी।
ये कुछ ऐसी छोटी छोटी बातें
हैं जिन पर ध्यान देकर इन्हें अपनाकर आप अपने घर का माहौल बच्चों की पढ़ाई लिखाई के
अनुरूप बना सकते हैं बच्चों के अंदर पढ़ने लिखने की रुचि जगा सकते हैं। उन्हें यह
महसूस करा सकते हैं कि उनके पढ़ने की जगह सिर्फ़ स्कूल में ही नहीं बल्कि घर पर भी
है।
डा0हेमन्त कुमार
5 टिप्पणियाँ:
बहुत ही अच्छे उपाय बतायें हैं, अपना उत्तरदायित्व समझने के लिये।
बहुत अच्छी पोस्ट अपने फेस बुक के टीचर्स फोरम में शेयर कर रही हूँ
बिलकुल सही कहा आपने।
पढाई के लिए भी माहौल का होना बहुत जरूरी है। तभी बच्चे मन से पढाई कर सकेंगे।
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चिम्पैंजियों की दोस्त जेन गुडाल...
डॉ हेमंत जी बहुत समय के बाद मैंने आपके ब्लॉग क्रिएटिव कोना को पढ़ा | पहले भी मैं आपके लिखे बहुत से ब्लोग्स को पढता रहता रहा हूँ आपका लेखन तथा हिंदी के सब्दो का चयन बहुत ही अच्छा है आप अपनी बात को बहुत ही सहज सब्दो में कह देते है |
आपको हमारी तरफ से होली की शुभ कामनाएँ |
अच्दछा लगा पढ़कर सचमुच यह माता- पिता की भी जि़म्मेदारी है कि वे अपने बच्चों का ध्यान रखें और पए़ाई के लिए घर में क्या क्या क्या करना ज़रूरी है यह भी जानें।
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