मां तेरा साथ----------
रविवार, 8 मई 2011
नदी किनारे शाम को
तुम्हारे साथ पानी में पैर डुबाकर बैठना
तुम्हारा मेरे बालों को सफ़ेद फ़ूलों से सजाना
मेरे साथ
रंग बिरंगी तितलियों के पीछे भागना
आड़े तिरछे झूलों पर फ़ुदकना
और फ़िर काले खट्टे गोले की चुस्कियाँ लेना
वो लुक्का छुपी खेलना
मेरा झाड़ियों में छुपना
और चोटिल होना
“मम्मा इदल आओ…”
वो सुबकना
और
तुमहारा मुझे गोद में उठाकर फ़ुसलाना
मुझे बढ़ते हुए देखना
मेरी दिन भर की चटर पटर पर खिलखिलाना
कालेज के दोस्तों के किस्से बताना
और तुम्हारा वो “बेटा जल्दी आना”
सब याद आता है माँ
जब कभी अकेली होती हूँ...
तुम्हें लगता है मैं बड़ी हो गई हूँ
पर मुझे आज भी अच्छा लगता है
काली खूबसूरत रातों को
तुम्हारी गोद में सर रख कर
सितारों संग सैर पे जाना...
000 नेहा शेफ़ाली
9 टिप्पणियाँ:
bahut sunder .........
बहुत सुन्दर ख्याल पिरोये हैं।
ओह! बहुत सुन्दर!
बहुत प्यारी कविता है।धन्यवाद ।
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति।
तुम्हें लगता है मैं बड़ी हो गई हूँ
पर मुझे आज भी अच्छा लगता है
काली खूबसूरत रातों को
तुम्हारी गोद में सर रख कर
सितारों संग सैर पे जाना...
Behad pyaree rachana! Aapko padhne ka bade dinon baad mauqa mila.
बहुत प्यारी कविता!
बहुत प्यारी कविता है......हैप्पी मदर्स डे
हेमंत जी,
माँ के ऊपर कितनी सादगी से आप ने क्या कुछ लिख दिया!
बहुत बहुत धन्यबाद!!
आशु
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