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एहसास
सोमवार, 20 जुलाई 2009
तुम
लुका छिपी का यह खेल
मुझसे
कब तक भटकते रहोगे
इस सूखे रेगिस्तान में
बरसने को आतुर
बादलों की प्रतीक्षा में।
क्या नहीं उठती
कोई हलचल
तुम्हारे अन्तः में
बारिश की रेशमी फ़ुहारों के
स्पर्श को
अपने होठों पर
महसूस करने की।
विश्वास करो मुझ पर
मैं ध्वस्त तो नहीं कर सकता
इस रेगिस्तान को
पर महसूस करा सकता हूं
बारिश की रेशमी फ़ुहारों का स्पर्श
तुम्हारे अन्तः में
तुम एक बार
अपनी आंखों की गहराई में
झांकने का अवसर तो दो।
*****
हेमन्त कुमार
( कहानी कहना -----कहानी सुनाना एक कला (भाग-2)
सोमवार, 13 जुलाई 2009
स्वर+गति+लय+अभिनय =अच्छी कहानी
खास बन जाती थी । और यही साधारण सी कहानी का खास बन जाना ही बच्चों का मनोरंजन करता है।उन्हें कहानी के प्रति आकर्षित करता और अन्त तक बांधे रहता है।बच्चों को कहानी सुनाना मैनें आदरणीय विजय बोस से ही सीखा था।यद्यपि बचपन में दादी,नानी,अपनी माता जी एवम अन्य बुजुर्गों से भी कहानी सुनी थी ---लेकिन कहानी सुनने का असली तरीका आकाशवाणी में ही सीख सका ।
दरअसल बच्चों को कहानी सुनाते समय हमें कई कलाओं एवम दक्षताओं का इस्तेमाल करना होता है ।इनमें वाचन,अभिनय,चित्रकला,पुतुल(पपेट),चार्ट आदि प्रमुख हैं ।यहां मैं पहले वाचन और अभिनय का ही उल्लेख करूंगा ।क्योंकि ये दोनों ही दक्षतायें कहानी को ज्यादा आकर्षक और प्रभावशाली बनाती हैं।
1-स्वर का उतार चढ़ाव :
यह तो कहानी सुनाने का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है।यदि हम किसी बच्चे या बच्चों के समूह को एकदम साधारण ढग से ,सामान्य स्वर में कोई कहानी सुना देंगे तो वह कहानी कितनी भी अच्छी हो एकदम बेअसर हो जायेगी हो सकता है बच्चे उसे ठीक से सुनें भी न । हो सकता है कुछ बच्चे कहानी सुनते समय सोने लगें । लेकिन यही कहानी अगर कहानी के पात्रों,दृश्यों ,स्थितियों और भावों के अनुरूप अपनी आवाज में उतार चढ़ाव लाकर सुनायी जायेगी तो उसका प्रभाव ही अलग पड़ेगा ।
2-गति एवम लय :
जैसे किसी गीत को लय और गति प्रभावशाली बनाते हैं ,वैसे ही कहानी को भी यही दोनों तत्व सुनने योग्य बनाते हैं ।मान लीजिये कोई परियों की कहानी है ।उसमें परी के विवाह का वर्णन है अब उसे अगर आप कर्कश स्वरों में जल्दी जल्दी सुना देंगे तो क्या उसे बच्चे पसन्द करेंगे---नहीं न । और उसी विवाह के वर्णन को अगर आप थोड़ा कोमल स्वरों में धीरे धीरे सुनायेंगे तो उसका प्रभाव ही एकदम अलग होगा।इसी तरह अगर किसी कहानी में किसी युद्ध का वर्णन है तो आपको उसी दृश्य के अनुरूप अपने स्वरों में थोड़ा तेजी और उत्साह लाना होगा।
3-अभिनय :
कहानी सुनाने में जितनी बड़ी भूमिका स्वर,गति,लय की है उतनी ही बल्कि उससे कहीं ज्यादा अभिनय की है ।आप पूछेंगे वह कैसे ?भाई सीधी सी बात है हम सभी को राम की कहानी पढ़ने, उससे ज्यादा किसी अच्छे कथावाचक से सुनने और उससे भी ज्यादा उसे रामलीला के रूप में देखने में आनन्द आता है ।ठीक यही बात हम हर कहानी के साथ लागू कर सकते हैं।खासतौर से बच्चों को कहानी सुनाते समय तो हमें अपने अन्दर एक अच्छे अभिनेता को जगाना ही होगा।तभी हम कहानी सुनने का पूरा आनन्द बच्चों को दे सकेंगे।
मान लीजिये शेर और खरगोश की ही कहानी बच्चों को सुनानी है ।तो एक तरीका तो यह है कि हम सीधे सीधे सत्यनारायण की कथा की तरह बच्चों को यह कहानी सुना दें और फ़ुरसत पा जायें।दूसरा और मेरे हिसाब से सही तरीका यह है कि हम इस कहानी को धीरे धीरे सुनाने के साथ ही शेर और खरगोश के साथ ही अन्य जानवरों के बीच हुये संवादों को उन्हीं जानवरों की आवाजों में सुनायें। आप खुद सोच कर देखिये बच्चे आपके मुंह से शेर की दहाड़ या खरगोश की डरी हुई आवाज सुन कर कितना आनन्दित होंगे।इतना ही नहीं अगर हम खुद या फ़िर बच्चों से इन पात्रों के अभिनय करवायें तो सम्भवतः कहानी का प्रभाव दूना हो जायेगा ।
हम अभिनय के माध्यम से सिर्फ़ कहानी को ही प्रभावशाली नहीं बनाते हैं ।हम इसके माध्यम से बच्चों को कहानी में शामिल विभिन्न जानवर पात्रों के व्यवहार,उनकी बोलियों,उनके स्वभाव से भी परिचित करते हैं।इतना ही नहीं कहानी यदि किसी ऐतिहासिक घटना पर आधारित है तो उसके पात्रों के माध्यम से उस समय के लोगों की बोलने ,बातचीत की शैली भी सीखते हैं ।
हमारे प्राथमिक स्कूलों के शिक्षक बन्धुओं को तो खासातौर से अपनी कक्षाओं में कहानी सुनाते समय इन तीनों ही तत्वों स्वरों का उतार चढ़ाव,गति एवम लय तथा अभिनय का ध्यान जरूर रखना चाहिये तभी वे एक अच्छे कथावाचक की भूमिका निभा सकते हैं ।
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हेमन्त कुमार
चिड़िया
शनिवार, 4 जुलाई 2009
चिड़िया तो आखिर चिड़िया है
उसको बेचारी को कहां पता कि हम
सभ्य हो रहे हैं
और हमारा विकास
पूरी प्रगति पर है ।
चिड़िया तो खोज रही है
सूनी आंखों से
अपना नन्हां सा घोसला
और नन्हें बच्चों को
जिन्हें वह अकेला छोड़
सुबह उड़ गई थी
दानों की खोज में
पर अब तो वहां कुछ भी नहीं
न पेड़ न घोसला न बच्चे ।
उसे तो दिख रहा है
दूर दूर तक फ़ैला हुआ
कंक्रीट और इस्पात का
एक अंतहीन जंगल
पिघले हुये
काले तारकोल की बहती नदियां
और धरती के सीने में
उड़ेला जा रहा
खौलता इस्पात ।
चिड़िया बेचारी तो
हो गयी है स्तब्ध
हमारी सभ्यता
और विकास की तेज
गति को देखकर ।
आखिर वह
अब कहां खोजे
अपना घोसला और बच्चों को
किससे करे फ़रियाद
खाकी वर्दी / खद्दरधारी से
या फ़िर यू एन ओ और
वर्ल्ड पीस फ़ाउण्डेशन के
माननीय सदस्यों से ?
लेकिन
चिड़िया तो आखिर चिड़िया है
उसको बेचारी को कहां पता
कि हम सभ्य हो रहे हैं
और हमारा विकास प्रगति पर है
हमें नहीं कोई मतलब
चिड़िया घोसले
और उसके बच्चों से ।
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हेमन्त कुमार