( कहानी कहना -----कहानी सुनाना एक कला (भाग-2)
सोमवार, 13 जुलाई 2009
स्वर+गति+लय+अभिनय =अच्छी कहानी
मेरे लेखन की शुरुआत आकाशवाणी के इलाहाबाद केन्द्र से हुई थी ।वह भी बच्चों के लिये प्रसारित होने वाले कार्यक्रम ‘बालसंघ’ से ।1974 के आसपास ‘बालसंघ’ कार्यक्रम का संचालन आदरणीय श्री विजय बोस जी किया करते थे ।श्री विजय बोस एक बेहतरीन ड्रामा आर्टिस्ट होने के साथ ही एक बढ़िया प्रस्तोता एवम वाचक भी थे …खासकर कहानियां सुनाने के मामले में तो उनका कोई जवाब नहीं था ।साधारण कहानी को भी विजय भैया इतने बढ़िया ढंग से सुनाते थे कि वह कहानी
खास बन जाती थी । और यही साधारण सी कहानी का खास बन जाना ही बच्चों का मनोरंजन करता है।उन्हें कहानी के प्रति आकर्षित करता और अन्त तक बांधे रहता है।बच्चों को कहानी सुनाना मैनें आदरणीय विजय बोस से ही सीखा था।यद्यपि बचपन में दादी,नानी,अपनी माता जी एवम अन्य बुजुर्गों से भी कहानी सुनी थी ---लेकिन कहानी सुनने का असली तरीका आकाशवाणी में ही सीख सका ।
दरअसल बच्चों को कहानी सुनाते समय हमें कई कलाओं एवम दक्षताओं का इस्तेमाल करना होता है ।इनमें वाचन,अभिनय,चित्रकला,पुतुल(पपेट),चार्ट आदि प्रमुख हैं ।यहां मैं पहले वाचन और अभिनय का ही उल्लेख करूंगा ।क्योंकि ये दोनों ही दक्षतायें कहानी को ज्यादा आकर्षक और प्रभावशाली बनाती हैं।
1-स्वर का उतार चढ़ाव :
यह तो कहानी सुनाने का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है।यदि हम किसी बच्चे या बच्चों के समूह को एकदम साधारण ढग से ,सामान्य स्वर में कोई कहानी सुना देंगे तो वह कहानी कितनी भी अच्छी हो एकदम बेअसर हो जायेगी हो सकता है बच्चे उसे ठीक से सुनें भी न । हो सकता है कुछ बच्चे कहानी सुनते समय सोने लगें । लेकिन यही कहानी अगर कहानी के पात्रों,दृश्यों ,स्थितियों और भावों के अनुरूप अपनी आवाज में उतार चढ़ाव लाकर सुनायी जायेगी तो उसका प्रभाव ही अलग पड़ेगा ।
2-गति एवम लय :
जैसे किसी गीत को लय और गति प्रभावशाली बनाते हैं ,वैसे ही कहानी को भी यही दोनों तत्व सुनने योग्य बनाते हैं ।मान लीजिये कोई परियों की कहानी है ।उसमें परी के विवाह का वर्णन है अब उसे अगर आप कर्कश स्वरों में जल्दी जल्दी सुना देंगे तो क्या उसे बच्चे पसन्द करेंगे---नहीं न । और उसी विवाह के वर्णन को अगर आप थोड़ा कोमल स्वरों में धीरे धीरे सुनायेंगे तो उसका प्रभाव ही एकदम अलग होगा।इसी तरह अगर किसी कहानी में किसी युद्ध का वर्णन है तो आपको उसी दृश्य के अनुरूप अपने स्वरों में थोड़ा तेजी और उत्साह लाना होगा।
3-अभिनय :
कहानी सुनाने में जितनी बड़ी भूमिका स्वर,गति,लय की है उतनी ही बल्कि उससे कहीं ज्यादा अभिनय की है ।आप पूछेंगे वह कैसे ?भाई सीधी सी बात है हम सभी को राम की कहानी पढ़ने, उससे ज्यादा किसी अच्छे कथावाचक से सुनने और उससे भी ज्यादा उसे रामलीला के रूप में देखने में आनन्द आता है ।ठीक यही बात हम हर कहानी के साथ लागू कर सकते हैं।खासतौर से बच्चों को कहानी सुनाते समय तो हमें अपने अन्दर एक अच्छे अभिनेता को जगाना ही होगा।तभी हम कहानी सुनने का पूरा आनन्द बच्चों को दे सकेंगे।
मान लीजिये शेर और खरगोश की ही कहानी बच्चों को सुनानी है ।तो एक तरीका तो यह है कि हम सीधे सीधे सत्यनारायण की कथा की तरह बच्चों को यह कहानी सुना दें और फ़ुरसत पा जायें।दूसरा और मेरे हिसाब से सही तरीका यह है कि हम इस कहानी को धीरे धीरे सुनाने के साथ ही शेर और खरगोश के साथ ही अन्य जानवरों के बीच हुये संवादों को उन्हीं जानवरों की आवाजों में सुनायें। आप खुद सोच कर देखिये बच्चे आपके मुंह से शेर की दहाड़ या खरगोश की डरी हुई आवाज सुन कर कितना आनन्दित होंगे।इतना ही नहीं अगर हम खुद या फ़िर बच्चों से इन पात्रों के अभिनय करवायें तो सम्भवतः कहानी का प्रभाव दूना हो जायेगा ।
हम अभिनय के माध्यम से सिर्फ़ कहानी को ही प्रभावशाली नहीं बनाते हैं ।हम इसके माध्यम से बच्चों को कहानी में शामिल विभिन्न जानवर पात्रों के व्यवहार,उनकी बोलियों,उनके स्वभाव से भी परिचित करते हैं।इतना ही नहीं कहानी यदि किसी ऐतिहासिक घटना पर आधारित है तो उसके पात्रों के माध्यम से उस समय के लोगों की बोलने ,बातचीत की शैली भी सीखते हैं ।
हमारे प्राथमिक स्कूलों के शिक्षक बन्धुओं को तो खासातौर से अपनी कक्षाओं में कहानी सुनाते समय इन तीनों ही तत्वों स्वरों का उतार चढ़ाव,गति एवम लय तथा अभिनय का ध्यान जरूर रखना चाहिये तभी वे एक अच्छे कथावाचक की भूमिका निभा सकते हैं ।
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हेमन्त कुमार
खास बन जाती थी । और यही साधारण सी कहानी का खास बन जाना ही बच्चों का मनोरंजन करता है।उन्हें कहानी के प्रति आकर्षित करता और अन्त तक बांधे रहता है।बच्चों को कहानी सुनाना मैनें आदरणीय विजय बोस से ही सीखा था।यद्यपि बचपन में दादी,नानी,अपनी माता जी एवम अन्य बुजुर्गों से भी कहानी सुनी थी ---लेकिन कहानी सुनने का असली तरीका आकाशवाणी में ही सीख सका ।
दरअसल बच्चों को कहानी सुनाते समय हमें कई कलाओं एवम दक्षताओं का इस्तेमाल करना होता है ।इनमें वाचन,अभिनय,चित्रकला,पुतुल(पपेट),चार्ट आदि प्रमुख हैं ।यहां मैं पहले वाचन और अभिनय का ही उल्लेख करूंगा ।क्योंकि ये दोनों ही दक्षतायें कहानी को ज्यादा आकर्षक और प्रभावशाली बनाती हैं।
1-स्वर का उतार चढ़ाव :
यह तो कहानी सुनाने का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है।यदि हम किसी बच्चे या बच्चों के समूह को एकदम साधारण ढग से ,सामान्य स्वर में कोई कहानी सुना देंगे तो वह कहानी कितनी भी अच्छी हो एकदम बेअसर हो जायेगी हो सकता है बच्चे उसे ठीक से सुनें भी न । हो सकता है कुछ बच्चे कहानी सुनते समय सोने लगें । लेकिन यही कहानी अगर कहानी के पात्रों,दृश्यों ,स्थितियों और भावों के अनुरूप अपनी आवाज में उतार चढ़ाव लाकर सुनायी जायेगी तो उसका प्रभाव ही अलग पड़ेगा ।
2-गति एवम लय :
जैसे किसी गीत को लय और गति प्रभावशाली बनाते हैं ,वैसे ही कहानी को भी यही दोनों तत्व सुनने योग्य बनाते हैं ।मान लीजिये कोई परियों की कहानी है ।उसमें परी के विवाह का वर्णन है अब उसे अगर आप कर्कश स्वरों में जल्दी जल्दी सुना देंगे तो क्या उसे बच्चे पसन्द करेंगे---नहीं न । और उसी विवाह के वर्णन को अगर आप थोड़ा कोमल स्वरों में धीरे धीरे सुनायेंगे तो उसका प्रभाव ही एकदम अलग होगा।इसी तरह अगर किसी कहानी में किसी युद्ध का वर्णन है तो आपको उसी दृश्य के अनुरूप अपने स्वरों में थोड़ा तेजी और उत्साह लाना होगा।
3-अभिनय :
कहानी सुनाने में जितनी बड़ी भूमिका स्वर,गति,लय की है उतनी ही बल्कि उससे कहीं ज्यादा अभिनय की है ।आप पूछेंगे वह कैसे ?भाई सीधी सी बात है हम सभी को राम की कहानी पढ़ने, उससे ज्यादा किसी अच्छे कथावाचक से सुनने और उससे भी ज्यादा उसे रामलीला के रूप में देखने में आनन्द आता है ।ठीक यही बात हम हर कहानी के साथ लागू कर सकते हैं।खासतौर से बच्चों को कहानी सुनाते समय तो हमें अपने अन्दर एक अच्छे अभिनेता को जगाना ही होगा।तभी हम कहानी सुनने का पूरा आनन्द बच्चों को दे सकेंगे।
मान लीजिये शेर और खरगोश की ही कहानी बच्चों को सुनानी है ।तो एक तरीका तो यह है कि हम सीधे सीधे सत्यनारायण की कथा की तरह बच्चों को यह कहानी सुना दें और फ़ुरसत पा जायें।दूसरा और मेरे हिसाब से सही तरीका यह है कि हम इस कहानी को धीरे धीरे सुनाने के साथ ही शेर और खरगोश के साथ ही अन्य जानवरों के बीच हुये संवादों को उन्हीं जानवरों की आवाजों में सुनायें। आप खुद सोच कर देखिये बच्चे आपके मुंह से शेर की दहाड़ या खरगोश की डरी हुई आवाज सुन कर कितना आनन्दित होंगे।इतना ही नहीं अगर हम खुद या फ़िर बच्चों से इन पात्रों के अभिनय करवायें तो सम्भवतः कहानी का प्रभाव दूना हो जायेगा ।
हम अभिनय के माध्यम से सिर्फ़ कहानी को ही प्रभावशाली नहीं बनाते हैं ।हम इसके माध्यम से बच्चों को कहानी में शामिल विभिन्न जानवर पात्रों के व्यवहार,उनकी बोलियों,उनके स्वभाव से भी परिचित करते हैं।इतना ही नहीं कहानी यदि किसी ऐतिहासिक घटना पर आधारित है तो उसके पात्रों के माध्यम से उस समय के लोगों की बोलने ,बातचीत की शैली भी सीखते हैं ।
हमारे प्राथमिक स्कूलों के शिक्षक बन्धुओं को तो खासातौर से अपनी कक्षाओं में कहानी सुनाते समय इन तीनों ही तत्वों स्वरों का उतार चढ़ाव,गति एवम लय तथा अभिनय का ध्यान जरूर रखना चाहिये तभी वे एक अच्छे कथावाचक की भूमिका निभा सकते हैं ।
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हेमन्त कुमार
6 टिप्पणियाँ:
धन्यवाद। आपका लेख सुन्दर लगा। बड़े भैया की याद दिला दी आपने। उनके साथ काम करने के कुछ सुनहरे अवसर कभी मुझे भी मिले थे। पुरानी यादें ताज़ा हो आयीं आपके लेख के माध्यम से। धन्यवाद।
सच कहा हेमंत जी....... कहानी कहना और वो भी बच्चों को सुनाना तो कला ही है ....... ठीक सुझाया इन सब बातों का ख्याल रखना चाहिए..... घर पर भी जब बच्चों को कहानी सुनानी हो .
बहुत सुन्दर हेमन्त जी, आप बच्चों के बारे में ही नहीं, बड़ों को भी सुनाने की तकनीक बता रहे हैं।
अपनी वक्तृता में हमें इन पक्षों का पर्याप्त ध्यान रखना चाहिये।
धन्यवाद।
बहुत गहन जानकारी.....
इस लेख से कथा-वाचन की तकनीक का काफी ज्ञान प्राप्त होता है.
यह बहुत ही अच्छी और अपनी तरह की अलग ही पोस्ट है.
आप ने बहुत ही प्रभावी ढंग से समझा कर सरल तरीके से इस कला की विधि को बताया है.आशा है कहानी पढने पढाने वालों को इस से जरुर लाभ मिलेगा.
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