किताबें करती हैं बातें
शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008
बच्चों को ज्ञान या जानकारी कई तरीकों से मिलती है.अनुभव से, देखकर,सुनकर,ख़ुद प्रयोग करके,तथा पढ़कर.इन सब में भी पढ़ कर किसी चीज को जानना या समझ पाना ज्यादा सार्थक है.क्योंकि अनुभव करने,देखने,सुनने जैसी क्रियाएँ हो सकता है बच्चा दुहरा न सके.लेकिन पढ़ना एक ऐसा काम है जिसे बच्चा बार बार दुहरा सकता है.पढ़ना ही शिक्षा का पहला और सबसे जरूरी कदम है.पढने की क्षमता के विकसित हुए बिना बच्चा आगे नहीं बढ़ सकता.और यही एक ऐसा काम है जिसमें आज बच्चों को अरुचि होती जा रही है.यानि की बच्चा पढने से दूर भाग रहा है.
अंनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट(असर)२००८ के मुताबिक स्कूल में छह महीने आने के बाद भी कक्षा १ के ३२%बच्चे अक्षरों को नहीं पहचान पाते हैं.कक्षा २ के ४३%बच्चे सरल शब्द नहीं पढ़ सकते.और कक्षा ५ के करीब ४०%बच्चे कक्षा दो के स्तर का पाठ भी नहीं पढ़ सकते.
कितनी बड़ी विडम्बना है की सर्वशिक्षा अभियान
द्वारा काफी धन खर्च करने के बाद भी स्कूलों में दाखिल होने के बाद भी बच्चों में पढने की दक्षता नहीं विकसित हो पा रही है.पढने की दक्षता न विकसित हो पाने के कारण कई हैं.आकर्षक पुस्त्स्कों का आभाव,इलेक्ट्रानिक माध्यमों का बढ़ता प्रभाव तथा उससे भी बढ़ कर शिक्षकों और माता पिता द्वारा बच्चों में पढने की ललक जगा पाने की कोशिश में कमी.
इनमें भी इलेक्ट्रानिक माध्यमों के असर से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कारण किताबों के कलेवर तथा अभिभावकों एवम शिक्षकों की कोशिशों में कमी है.
हमारे प्राथमिक स्कूलों (गावं/शहर के सरकारी स्कूल)में ही हमारी जनसँख्या के ज्यादा बच्चे पढने के लिए जाते हैं.इन स्कूलों में बच्चों को सरकारी किताबें (मुफ्त)दी जा रही हैं.लेकिन इन किताबों का कंटेंट तो ठीक है,परन्तु ले आउट ,चित्रांकन,छपाई,कागज इतना घटिया है की उन्हें बच्चे तो बच्चे बड़े भी एक बार पढने के लिए मना कर सकते हैं.चिंता की बात तो ये है की हर राज्य में सर्व शिक्षा अभियान,एस.सी.ई.आर.टी.तथा बेसिक शिक्षा निदेशालय इन किताबों को तैयार करवाने के लिए(लेखन से ले कर प्रकाशन,छपाई तक) काफी ज्यादा पैसा खर्च करते हैं. उसके बाद भी किताबों का कलेवर ज्यों का त्यों बना रहता है.फ़िर कहाँ से बच्चों में पढने की ललक जगाई जा सकेगी.
यदि हम शिक्षकों, अभिभावकों की भूमिका पर बात करें तो भी हमें काफी निराश होना पड़ता है.शिक्षक जहाँ कक्षा में मात्र एक बार रीडिंग लगवा लेने को पाठ पढ़ने की इतिश्री समझ लेते हैं,वहीं अभिभावक भी अपनी तरफ़ से बच्चों में किताब पढने का कोई उत्साह नहीं जगा पाता.जब की दोनों की इस सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण भूमिका है.
यहाँ मैं हिंदुस्तान दैनिक में १४ नवम्बर को प्रकाशित रुक्मिणी बनर्जी के एक लेख के हवाला देना चाहूँगा.इस लेख का शीर्षक ही है "बाज पट्टी में आलू,कालू और मालू".लेख बिहार के सीतामधी जिले के बाजपट्टी ब्लाक के एक प्राईमरी स्कूल को लेकर लिखा गया है.यह एक तरह से वहां के बच्चों शिक्षिका के दोस्ताना रिश्तों के साथ ही शिक्षिका द्वारा किए गए प्रयासों तथा उसकी सफलता की कहानी है.
एक बारिश के दिन जब प्रायः सभी स्कूलों में छुट्टी हो जाती है.बाजपट्टी के प्राथमिक विद्यालय के बच्चे पानी में भीगते हुए स्कूल आते हैं.शिक्षिका उनके साथ बैठ कर गप शप करने लगती है.बात चूहे बिल्ली से शुरू होकर आगे बढ़ते बढ़ते कहानी,फ़िर चित्र बनने पर पहुँच जाती है.बच्चे दीदी से बातें करते हैं.चित्र बनते हैं.एक लडकी भाग कर बगल वाले कमरे से एक चित्रात्मक किताब उठा लाती है.फ़िर बच्चे बारी बारी से कहानी पढ़ते हैं.कहानी का नाम था "आलू,मालू और कालू ".बच्चे पहले भी ये कहानी पढ़ चुके थे .पर उस दिन भी उन्होंने पूरे उत्साह से कहानी पढी.किसी ने तेज आवाज में ,किसी ने धीमे स्वरों में.कुछ देर बाद बारिश रुक गयी.लेकिन बच्चे फ़िर भी वहीं रहे.सबने कागज की नावें बना कर पाने में तैरना शुरू कर दिया.
इस तरह बरसात के दिन का भी बच्चों ने बहुत ही अच्छे ढंग से इस्तेमाल किया.बातचीत की,खेले कूदे,कहानी पढी,चित्र बनाया,कागज की नाव भी बनाई.
अब आप ही बताइए,बच्चों को पढ़ने का ये ढंग अच्छा था या कुर्सी पर बैठकर,ऊंघते हुए,छडी पटकते हुए,कक्षा के बच्चों को जोर जोर से डाँटते हुए पढाने का ढंग.यदि हमारे देश के सभी प्राथमिक विद्यालयों में बाज पट्टी के इसी स्कूल जैसा माहौल बन जाया तो…..मुझे नहीं लगता की कोई बच्चा स्कूल छोड़ कर जन चाहेगा.
रही बात अभिभावकों की .अभिभावक को भी यह बात समझनी होगी की पढ़ना(किताब के अक्षरों को पढ़ कर समझना) बच्चों के लिए कितना जरूरी है.बिना इसके बच्चे का कोई विकास नहीं होगा.वह जीवन में कुछ भी नहीं कर सकेगा.यहाँ पढने का मतलब रत्वाने ,परीक्षा पास करवाने मात्र से नहीं है.बल्कि बच्चों के अन्दर पढने की,सीखने की,कुछ नया करने की इक्षा जागृत करने से है.
एक बात और.हमारे देश में कई। एन जी.ओ. भी इस दिशा में कार्यरत हैं. जो की स्कूल में बच्चों को पाठ्यक्रम की सरकारी किताबों के अलावा छोटी छोटी रंग बिरंगी कहानियो,कविताओं,गीतों,की चित्रात्मक पुस्तकें मुहैया करा रहे हैं.इन किताबों का कलेवर,ले-आउट ,चित्र इतने सुंदर हैं की उन्हें देख कर ही बच्चों में पढने का एक तरह से लालच का भावः जग जाए.(मेरे एक जापानी मित्र बताते थे की जापान में खाना इतनी खूबसूरती से सजाकर परसतेहैं की उसे देखकर भूख बढ़ जाया ).ठीक यही बात बच्चों की किताबों के साथ होनी चाहिए.
देश की सबसे बड़ी प्रकाशन संस्था नॅशनल
बुक ट्रस्ट है.इसकी तरफ़ से तो पूरे देश में बच्चों के बीच पाठक मंच बनवाये जा रहे हैं.जहाँ बच्चों को पढने के लिए सुंदर अच्छी किताबें मिल सकें.और उनमें पढने की रूचि पैदा हो सके.
इस समय जरूरत है ऐसे पाठक मंचों ,न.जी.ओ.द्वारा किए जा रहे,तथा सरकारी स्तर पर चल रहे प्रयासों को गति देने की,जिससे बच्चों में किताबें पढने की रूचि ,इक्षा पैदा की जा सके.
हेमंत कुमार
अंनुअल स्टेटस ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट(असर)२००८ के मुताबिक स्कूल में छह महीने आने के बाद भी कक्षा १ के ३२%बच्चे अक्षरों को नहीं पहचान पाते हैं.कक्षा २ के ४३%बच्चे सरल शब्द नहीं पढ़ सकते.और कक्षा ५ के करीब ४०%बच्चे कक्षा दो के स्तर का पाठ भी नहीं पढ़ सकते.
कितनी बड़ी विडम्बना है की सर्वशिक्षा अभियान
द्वारा काफी धन खर्च करने के बाद भी स्कूलों में दाखिल होने के बाद भी बच्चों में पढने की दक्षता नहीं विकसित हो पा रही है.पढने की दक्षता न विकसित हो पाने के कारण कई हैं.आकर्षक पुस्त्स्कों का आभाव,इलेक्ट्रानिक माध्यमों का बढ़ता प्रभाव तथा उससे भी बढ़ कर शिक्षकों और माता पिता द्वारा बच्चों में पढने की ललक जगा पाने की कोशिश में कमी.
इनमें भी इलेक्ट्रानिक माध्यमों के असर से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कारण किताबों के कलेवर तथा अभिभावकों एवम शिक्षकों की कोशिशों में कमी है.
हमारे प्राथमिक स्कूलों (गावं/शहर के सरकारी स्कूल)में ही हमारी जनसँख्या के ज्यादा बच्चे पढने के लिए जाते हैं.इन स्कूलों में बच्चों को सरकारी किताबें (मुफ्त)दी जा रही हैं.लेकिन इन किताबों का कंटेंट तो ठीक है,परन्तु ले आउट ,चित्रांकन,छपाई,कागज इतना घटिया है की उन्हें बच्चे तो बच्चे बड़े भी एक बार पढने के लिए मना कर सकते हैं.चिंता की बात तो ये है की हर राज्य में सर्व शिक्षा अभियान,एस.सी.ई.आर.टी.तथा बेसिक शिक्षा निदेशालय इन किताबों को तैयार करवाने के लिए(लेखन से ले कर प्रकाशन,छपाई तक) काफी ज्यादा पैसा खर्च करते हैं. उसके बाद भी किताबों का कलेवर ज्यों का त्यों बना रहता है.फ़िर कहाँ से बच्चों में पढने की ललक जगाई जा सकेगी.
यदि हम शिक्षकों, अभिभावकों की भूमिका पर बात करें तो भी हमें काफी निराश होना पड़ता है.शिक्षक जहाँ कक्षा में मात्र एक बार रीडिंग लगवा लेने को पाठ पढ़ने की इतिश्री समझ लेते हैं,वहीं अभिभावक भी अपनी तरफ़ से बच्चों में किताब पढने का कोई उत्साह नहीं जगा पाता.जब की दोनों की इस सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण भूमिका है.
यहाँ मैं हिंदुस्तान दैनिक में १४ नवम्बर को प्रकाशित रुक्मिणी बनर्जी के एक लेख के हवाला देना चाहूँगा.इस लेख का शीर्षक ही है "बाज पट्टी में आलू,कालू और मालू".लेख बिहार के सीतामधी जिले के बाजपट्टी ब्लाक के एक प्राईमरी स्कूल को लेकर लिखा गया है.यह एक तरह से वहां के बच्चों शिक्षिका के दोस्ताना रिश्तों के साथ ही शिक्षिका द्वारा किए गए प्रयासों तथा उसकी सफलता की कहानी है.
एक बारिश के दिन जब प्रायः सभी स्कूलों में छुट्टी हो जाती है.बाजपट्टी के प्राथमिक विद्यालय के बच्चे पानी में भीगते हुए स्कूल आते हैं.शिक्षिका उनके साथ बैठ कर गप शप करने लगती है.बात चूहे बिल्ली से शुरू होकर आगे बढ़ते बढ़ते कहानी,फ़िर चित्र बनने पर पहुँच जाती है.बच्चे दीदी से बातें करते हैं.चित्र बनते हैं.एक लडकी भाग कर बगल वाले कमरे से एक चित्रात्मक किताब उठा लाती है.फ़िर बच्चे बारी बारी से कहानी पढ़ते हैं.कहानी का नाम था "आलू,मालू और कालू ".बच्चे पहले भी ये कहानी पढ़ चुके थे .पर उस दिन भी उन्होंने पूरे उत्साह से कहानी पढी.किसी ने तेज आवाज में ,किसी ने धीमे स्वरों में.कुछ देर बाद बारिश रुक गयी.लेकिन बच्चे फ़िर भी वहीं रहे.सबने कागज की नावें बना कर पाने में तैरना शुरू कर दिया.
इस तरह बरसात के दिन का भी बच्चों ने बहुत ही अच्छे ढंग से इस्तेमाल किया.बातचीत की,खेले कूदे,कहानी पढी,चित्र बनाया,कागज की नाव भी बनाई.
अब आप ही बताइए,बच्चों को पढ़ने का ये ढंग अच्छा था या कुर्सी पर बैठकर,ऊंघते हुए,छडी पटकते हुए,कक्षा के बच्चों को जोर जोर से डाँटते हुए पढाने का ढंग.यदि हमारे देश के सभी प्राथमिक विद्यालयों में बाज पट्टी के इसी स्कूल जैसा माहौल बन जाया तो…..मुझे नहीं लगता की कोई बच्चा स्कूल छोड़ कर जन चाहेगा.
रही बात अभिभावकों की .अभिभावक को भी यह बात समझनी होगी की पढ़ना(किताब के अक्षरों को पढ़ कर समझना) बच्चों के लिए कितना जरूरी है.बिना इसके बच्चे का कोई विकास नहीं होगा.वह जीवन में कुछ भी नहीं कर सकेगा.यहाँ पढने का मतलब रत्वाने ,परीक्षा पास करवाने मात्र से नहीं है.बल्कि बच्चों के अन्दर पढने की,सीखने की,कुछ नया करने की इक्षा जागृत करने से है.
एक बात और.हमारे देश में कई। एन जी.ओ. भी इस दिशा में कार्यरत हैं. जो की स्कूल में बच्चों को पाठ्यक्रम की सरकारी किताबों के अलावा छोटी छोटी रंग बिरंगी कहानियो,कविताओं,गीतों,की चित्रात्मक पुस्तकें मुहैया करा रहे हैं.इन किताबों का कलेवर,ले-आउट ,चित्र इतने सुंदर हैं की उन्हें देख कर ही बच्चों में पढने का एक तरह से लालच का भावः जग जाए.(मेरे एक जापानी मित्र बताते थे की जापान में खाना इतनी खूबसूरती से सजाकर परसतेहैं की उसे देखकर भूख बढ़ जाया ).ठीक यही बात बच्चों की किताबों के साथ होनी चाहिए.
देश की सबसे बड़ी प्रकाशन संस्था नॅशनल
बुक ट्रस्ट है.इसकी तरफ़ से तो पूरे देश में बच्चों के बीच पाठक मंच बनवाये जा रहे हैं.जहाँ बच्चों को पढने के लिए सुंदर अच्छी किताबें मिल सकें.और उनमें पढने की रूचि पैदा हो सके.
इस समय जरूरत है ऐसे पाठक मंचों ,न.जी.ओ.द्वारा किए जा रहे,तथा सरकारी स्तर पर चल रहे प्रयासों को गति देने की,जिससे बच्चों में किताबें पढने की रूचि ,इक्षा पैदा की जा सके.
हेमंत कुमार
8 टिप्पणियाँ:
aapne bilkul sahi kaha ki kitaaben baaten karti hain,apne is nibandh dwaara aapne jagrukta bhare sandesh diye hai,meri kamna hai-iske saarthak parinaam mile
हेमंत जी आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा. आपके लेख और ब्लॉग दोनों ही अति सुंदर है. आपने एक ब्लॉग पर कुछ प्रश्न छोड थे जैसे लाइव ट्रैफिक ब्लॉग पर कैसे दिखाएँ. लगता है आपको अभी तक हल नहीं मिला है . चलिए ये समस्या मै दूर किए देता हूँ. आप अपने ब्लॉग पर लाइव ट्राफिक देखने और दिखाने के लिए www.feedjit.com पर जायें सबसे नीचे Get Feedjit option पर क्लिक करें और जावा स्क्रिप्ट विजेट चुन ले. और फ़िर ब्लॉगर के लेआउट में जाकर add a page element click करें और html & javascript page जोड़े और फीद्जित के कोड को कॉपी कर के यहाँ पेस्ट कर दे और सेव कर ले. आपका लाइव ट्रैफिक दिखने लगेगा. फटाफट लगाईये.. देर किस बात की? कोई दिक्कत हो तो मुझसे संपर्क करे... धन्यवाद.
विवेक वेबलॉग
Respected Hemant sir,
Apke blog par bachchon se sambandhit itnee achchhee jankariyan evam soochnaen miltee hain.Mujhe to lagta hai ye blog har abhibhavak evam teachers ko jaroor padhna chahiye.
with best wishes.
ur way of description is too effective.. congrats sir!!
n give me a favour..word verification kaise hatega?
पुस्तक महिमा तो दृढ़ पाठक ही समझ सकते हैं |
धन्यवाद |
आपने तो मेरे प्रिय विषय पर लिखा है। और बहुत अच्छा। पढ़ना बहुत ज़रूरी है, और उस से ज़्यादा पढ़ कर समझना, विभिन्न स्ट्रैटिजी का इस्तेमाल कर पढ़े हुये को गहराई से समझना। आपके लेख से याद आया, मेरी रीडिंग स्ट्रैटिजीज़ पर लेख की और कड़ियाँ लिखनी हैं।
आपका ईमेल मिला है, आपको जल्द ईमेल करती हूँ।
बच्चों को पढ़ने की आदत डालने के लिये अच्छा लेख लिखा है आपने।
thanx sir!
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